आज यानी 04 जनवरी का दिन दुनिया भर में ब्रेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि आज ही के दिन ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुईस ब्रेल का जन्म हुआ था। ब्रेल नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए पढ़ने और लिखने की एक स्पर्श प्रणाली है| ब्रेल लिपि से दृष्टि बाधित लोगों को आत्मनिर्भर बनने में बहुत सहायता मिली| आइये जानते हैं ब्रेल लिपि क्या होती है और विश्व ब्रेल दिवस कब और क्यों मनाया जाता है।
दोस्तों दुनिया में बहुत से ऐसे लोग पैदा हुए है जिन्होंने असहाय लोगों की मदद के लिया अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया और जीवन भर ऐसे लोगों की सेवा करते रहे। दृष्टिबाधित लोगों के लिए एक ऐसी ही प्रेरणा ब्रेल लिपि के जनक लुई ब्रेल भी थे। 04 जनवरी का दिन अंतरराष्ट्रीय ब्रेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन लुई ब्रेल का जन्म हुआ था जिनकी याद में 2019 से यह दिन अंतरराष्ट्रीय ब्रेल दिवस प्रत्येक वर्ष विश्व स्तर पर मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य ब्रेल लिपि को संचार के साधन के रूप में तथा उसके महत्व समझाने के लिए तथा लोगों को इसके बारे में जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, नेत्र रोगों के विषय पर उनकी पहचान और उनके रोकथाम के विषय जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की जाती हैसाथ ही साथ बहुत स्थानों पर नेत्र शिविर का आयोजन भी किया जाता है जहां नेत्र संबंधी समस्याओं की पहचान करके उनका निदान कराया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 06 नवंबर 2018 को विश्व ब्रेल दिवस मनाने का प्रस्ताव सार्वभौमिक स्तर पर पारित किया था।
ब्रेल प्रणाली क्या है?
ब्रेल प्रणाली नेत्रहीन लोगों के लिए एक लिपि है| ब्रेल छह बिंदुओं का उपयोग करके वर्णमाला और संख्यात्मक प्रतीकों का एक स्पर्शपूर्ण प्रतिनिधित्व है| इस प्रणाली से न केवल अक्षर और संख्या, बल्कि संगीत, गणितीय और वैज्ञानिक प्रतीकों को भी स्पर्श से समझा जाता है| ब्रेल के उपयोग से नेत्रहीन और आंशिक रूप से देखने वाले व्यक्ति विज़ुअल फॉण्ट में छपी पुस्तकों और पत्रिकाओं को पढ़ सकते हैं|
विश्व ब्रेल दिवस कब मनाया जाता है?
विश्व ब्रेल दिवस प्रत्येक वर्ष 04 जनवरी को मनाया जाने वाला एक अंतराष्ट्रीय दिवस है| यह तारीख नवंबर 2018 में सयुंक्त राष्ट्र महासभा द्वारा एक उद्घोषणा के माध्यम से चुनी गई थी| यह तारीख 19वीं शताब्दी में ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुइस ब्रेल की जन्म तिथि है| इन्हीं के नाम पर ब्रेल लिपि जानी जाती है| पहला विश्व ब्रेल दिवस 04 जनवरी 2019 को मनाया गया| यह दिन नेत्रहीन और दृष्टिबाधित लोगों के लिए मानवाधिकारों की पूर्ण प्राप्ति में संचार के साधन के रूप में ब्रेल के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाता है|
लुई ब्रेल का प्रारम्भिक जीवन
लुई ब्रेल का जन्म 4 जनवरी सन 1809 इस्वी को हुआ था। उनका जन्म फ्रांस के एक कूप्रे नाम के गाँव में हुआ था जो फ्रांस की राजधानी पेरिस से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। उनकी माता का नाम मोनिक ब्रेल और उनके पिता का नाम सायमन ब्रेल था। उनके पिता सायमन् ब्रेल एक ऐसी जगह काम करते थे जहां घोड़े की जीन पर काम होता था जबकि इनकी माता मोनिक ब्रेल एक गृहणि थी। लुईस के चार भाई-बहन थे जिनमे वो उम्र में सबसे छोटे थे। उन्होनें तीन साल की उम्र में अपनी आँखों की रौशनी खो दी थी जब उन्होंने अपने पिता के एक औजार से अपनी आँख में गलती से मार दिया था| कोई भी उपचार उनकी आँख को ठीक नहीं कर सका| उनकी इस आँख का संक्रमण दूसरी आँख तक फैल गया| पांच वर्ष तक आयु तक लुइस का संक्रमण तो ठीक हो गया पर उनकी दोनों आँखों की रौशनी पूरी तरह से चली गई| लुइस की बुद्धिमता और परिश्रम के कारण दस साल की उम्र में उन्हें ब्लाइंड स्कूल में जाने की अनुमति मिली| स्कूल में वे फ्रेंच आर्मी में कार्यरत चार्ल्स बार्बियर से मिले जिन्होंने नेत्रहीन लोगों के लिए नाईट राइटिंग का आविष्कार किया था| नाईट राइटिंग प्रणाली में बारह बिंदुओं से और उनके सयोंजन के स्पर्श के माध्यम से सभी अक्षर समझे जाते थे| इस प्रणाली की समस्या यह थी कि मानव उँगलियाँ एक स्पर्श से सभी बारह बिंदुओं को महसूस नहीं कर सकते थे| इसके बाद लुइस ब्रेल को ग्यारह वर्ष की आयु में ही नाईट राइटिंग को सुधारने की प्रेरणा मिली और उन्होनें नाईट राइटिंग के बारह बिंदुओं के सेल को छह बिंदुओं में बदला| हर सेल अलग-अलग कॉम्बिनेशन के साथ 63 अलग अक्षर, शब्द, संख्या, साउंड या साइन दर्शाता है| लुइस ब्रेल की इस विरासत ने नेत्रहीन लाखों लोगों के जीवन को प्रकाशित किया है|
नेत्रहीनों के लिये लुई ब्रेल का योगदान
लुइ ब्रेल को दिखाई नहीं देता था, लेकिन फ़िर भी उन्होंने पूरे दृष्टिबाधित समुदाय के लिए बहुत बड़ा उपकार किया ताकि वे भी स्वयं पर आश्रित हो उन्हें दूसरों का सहारा न लेना पडे। आज आप अपने आस पास देखते है कि दृष्टि हीन लोग भी बहुत अच्छी तरह शिक्षित हैं पूरे सामर्थ्य के साथ अलग अलग जगह पर काम करते हैं। लेकिन पहले ऐसा नहीं था क्योंकि इन दृष्टि बाधित लोगों के लिए शिक्षा का कोई अवसर नहीं था क्योंकि वो देख नहीं सकते थे। शिक्षा और स्वावलम्बन के अभाव में उन्हें दूसरों पर आश्रित रहना पडता था जिससे उनका जीवन उनके लिए एक अभिशाप बन जाता था। लेकिन आज ऐसा नहीं है आज उन्हें भी ब्रेल लिपि की मदद से शिक्षा के समान अवसर है, आज वे भी बड़ी बड़ी उचाइया छू रहे है और अपने बल पर अपने सपने भी पूरे कर रहे है। आज उनकी शिक्षा और विकास का पूरा श्रेय लुई ब्रेल को जाता है जिन्होंने ऐसे दृष्टि बाधित लोगों को शिक्षित बनाने के लिए ब्रेल लिपि बनाई। जैसे लोगों को अलग अलग लिपियों जैसे कि रोमन लिपि, देवनागरी लिपि आदि में पढ़ाया जाता है ठीक उसी तरह दृष्टि हीन बच्चों के पढ़ने लिए ब्रेल लिपि का इस्तेमाल किया जाता है जिसका आविष्कार लुई ब्रेल ने किया था। जब लुई ब्रेल की उम्र मात्र तीन साल की थी एक दिन खेल खेल में उन्होंने अपनी एक आंख में चाकू मार लिया जिससे उनकी आंख में बहुत गहरी चोट आई और उन्हें उस आख से दिखाई देना बंद हो गया। जब उनके एक आंख में चोट के कारण संक्रमण ज्यादा बढ़ गया तो उसके महज कुछ दिनों के बाद ही उन्हे दूसरे आख से भी दिखाई देना बंद हो गया और वह पूरी तरह अंधे हो गए।
लुई ब्रेल की शिक्षा
लुई के दृष्टिहीन हो जाने के बाद उनके जीवन के 07 साल बड़ी कठिनाई से गुजरे लेकिन उन्होने हार नहीं मानी और 10 वर्ष की आयु में शिक्षा की ओर निकल पडे। उनके पिता ने उनका ऐडमिशन नेशनल स्कूल आफ़ ब्लाइन्ड चिल्ड्रेन में करवाया जहाँ वेलेन्टीन होउ लिपि में दृष्टि बाधितो को शिक्षा दी जाती थी जो अधूरी और ज्यादा उपयोगी नहीं थी। लुई ब्रेल ने यहां पर इतिहास भूगोल आदि विषयों की शिक्षा प्राप्त की जिसके बाद इसी स्कूल में एक फ्रांस की सेना से आए हुए एक अधिकारी कैप्टन चार्ल्स बार्बियर ने ‘नाइट राइटिंग’ या ‘सोनोग्राफी’ लिपि के बारे चर्चा की है जिसका उपयोग फ्रांसीसी सैनिक अंधेरे में पढ़ने के लिए करते थे। मित्रों जैसा कि कहां जाता है कि ईश्वर प्रत्येक कार्य किसी विशेष प्रयोजन से करते हैं इसलिए मात्र 3 वर्ष की आयु में लुई ब्रेल का नेत्र विहीन होना भी एक ऐसे विशेष कार्य के लिए हुआ था जोकि आगामी वर्षों से लेकर हमेशा के लिए नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए वरदान साबित हुआ।
ब्रेल लिपि का आविष्कार
लुइ ब्रेल ने उस समय चल रहे प्रख्यात विषयों जैसे गणित, इतिहास, भूगोल आदि विषयों में महानता प्राप्त कर ली। अपने पढ़ाई के दौरान लुई ब्रेल फ्रांस सेनानायक चार्ल्स बार्बियर से मुलाकात की जिसके बाद उन्होंने लुई को सेना की विशेष अध्ययन प्रणाली जैसे रात में पढ़ी जाने वाली नाइट रीडिंग, सोनोग्राफी जैसी विधियों के बारे में बताया जिससे आगे चलकर लुई ब्रेल को बहुत सहायता मिली।बार्बियर ने बताया कि यह लिपि कागज पर अक्षरों के माध्यम से बनाई जाती है जिसमें 12 बिंदुओं की 02 पंक्तियां होती हैं जिनमें 6-6 बिंदु होते हैं पर इसमें विराम चिह्न, संख्या, गणितीय चिह्न आदि मौजूद नहीं थे जिससे यह लिपि अधूरी थी। लुई ब्रेल ने इसी लिपि को आधार बनाकर उन 12 बिंदुओं को केवल 06 बिंदु में संग्रहित कर दिया जिनमें 64 अक्षर थे और विराम चिन्ह भी। सबसे खास बात तो यह थी कि इसमें न केवल विराम चिन्ह बल्कि गणिती चिन्ह और संगीत के नोटेशन भी थे और आज भी लिपि चलती है। मात्र 15 साल की छोटी उम्र में अपनी तेज बुद्धि का इस्तेमाल करके लुई ब्रेल ने यह लिपि बनाई थी आज के समय में रामायण महाभारत श्रीमद् भागवत गीता जैसे ग्रंथों के अलावा हिंदू पंचांग आदि जैसी चीजें भी उपलब्ध है। इसके अलावा ब्रेल लिपि में पुस्तकें भी लिखी जाती हैं। लुई ब्रेल की वृद्धों के लगभग 16 वर्ष पश्चात 1768 में रॉयल इंस्टीट्यूट आफ ब्लाइंड यूथ उनकी बनाई गई ब्रेल लिपि को सार्वभौमिक मान्यता दी जिसके बाद से सन 1821 में बनाने वाली दुनिया के सभी देशों में दृष्टिहीन लोगों को पढ़ाने के लिए इस्तेमाल में लाए जाने लगी। हमारे भारतवर्ष में भी ब्रेल लिपि को मान्यता प्राप्त है और ब्रेल लिपि में पुस्तक ग्रंथ आदि भी उपलब्ध हैं। 1821 ई़ में नाइट रीडिंग तथा सोनोग्राफी की विशेष विधियों की मदद से लुई ने एक ऐसी लिपि का आविष्कार कर दिया जो कि नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए वरदान साबित हुआ।
लुई ब्रेल का करियर
उनकी योग्यता तथा कार्यप्रणाली को देखते हुए उन्हें एक विद्यालय में अध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। वे अपने सभी बच्चों को एक समान स्नेह देते थे तथा एक समान रूप से सभी पर ध्यान देते थे। ऐसा कर वे संपूर्ण विद्यालय में सर्वप्रिय थे। वे कभी भी बच्चों को दंडित नहीं करते थे उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र को एक नया आयाम दिया। जो भी अच्छे कार्य करता है उसके जीवन में अनेक कठिनाइयां अवश्य आती हैं कुछ ऐसा ही उनके साथ भी हुआ। लुइ ब्रेल का पूरा जीवन कठिनाइयों एवं अपेक्षाओं से भरा रहा। कुछ सामाजिक लोग सदैव उनकी उपेक्षा में लगे रहते परंतु लुई इसकी चिंता न करते हुए अपने कार्य में लगे रहे।
लुई ब्रेल की मृत्यु
लुई ब्रेल अपने कार्य में इतने व्यस्त हो जाते थे कि उन्हें अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान में नहीं रहता था जिसके कारण मात्र 35 वर्ष की अल्पायु में वे क्षय रोग की चपेट में आ गए। और मात्र 43 वर्ष की अल्पायु में ही अनेक दृष्टिबाधित बच्चों की जीवन में शिक्षा की ज्योति जगाने वाले लुई ब्रेल 08 जनवरी 1852 को अपनी अंतिम सांस लेते हुए चिर निद्रा में सो गए। उन्होंने अपने जीवन में दृष्टिबाधित बच्चों के लिए जो कार्य किया वह अतुलनीय है परंतु फ्रांस की निरंकुश शाही राजव्यवस्था तथा अशिक्षित जनता उनके इस काम के लिए जीते जी उन्हें कोई भी सम्मान ना दे सकी। परंतु 100 वर्षों पश्चात फ्रांस की सरकार तथा जनता ने उनके पार्थिव शरीर को राष्ट्रीय सम्मान के साथ दफनाया तथा अपने द्वारा की गई भूल के लिए उनके नश्वर शरीर से माफी भी मांगी। भारत में भी 04 जनवरी 2009 को उनके सम्मान में डाक टिकट संचालित किया गया।
ब्रेल लिपि से जुड़े रोचक व महत्वपूर्ण तथ्य –
1. ब्रेल लिपि का आविष्कार सन 1821 में हुआ था जिसकी श्रेय लुइस ब्रेल को जाता है
2. देवनागरी और रोमन लिपि की भांति ब्रेल लिपि भी एक लिपि है जिसमें दृष्टि बाधित लोगों को पढ़ाया जाता है।
3. इसमें 06 बिंदु बनाए गए हैं जिनमें कुल 64 वर्ण थे लेकिन वर्तमान समय में यह बढ़कर 256 हो गए है। इसके अलावा इस लिपि में विराम चिन्ह गणित चिन्ह और साथ-साथ संगीत के नोटेशन भी हैं।
4. इस ब्रेल लिपि का निर्माण लुइस ब्रेल ने सोनोग्राफी और नाइट राइटिंग तकनीक के आधार पर किया है जो उस समय फ्रांसीसी सेना रात के समय अंधेरे में लिखने के लिए इस्तेमाल करती थी।
5. ब्रेल लिपि को वर्णमाला के अक्षरों को कूट रूप में लिखने वाली पहली लिपि माना जाता है।
6. भारत के महान धार्मिक ग्रंथ जैसे रामायण महाभारत और भागवत गीता आदि ब्रेल लिपि में यहां के दृष्टिबाधितओं को पढ़ाए जाते हैं।
7. ब्रेल लिपि में पुस्तकें भी लिखी जा सकती हैं हालांकि कुछ पुस्तकें लिखी भी गई हैं।
8. आधुनिक ब्रेल लिपि को छह के बजाय 8 बिंदुओं में फिर से विकसित किया गया है ताकि इसका ध्यान आसान हो सके।
ब्रेल लिपि और कोविड-19
महामारी ने आवश्यक जानकारी व सूचनाएँ, सुलभ साधनों में उपलब्ध कारने की महत्ता को भी उजागर कर दिया है – इनमें ब्रेल लिपि और सुनने वाले संसाधन शामिल हैं. ये, इसलिये भी हर एक इंसान को उपलब्ध होने बहुत आवश्यक हैं ताकि वो ख़ुद को सुरक्षित रखने के लिये ज़रूरी जानकारी हासिल कर सकें और कोविड-19 महामारी के फैलाव का ख़तरा कम कर सकें. संयुक्त राष्ट्र ने, महामारी की एक समावेशी जवाबी कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिये, अपने स्तर पर, अनेक गतिविधियाँ व कार्यक्रम चलाए हैं।
स्पर्श लेखन प्रणाली यानी ब्रेल में अंतर्निहित स्पर्श की भाषा एक परिवर्तनकारी शक्ति रही है, जिसने लाखों लोगों को स्वतंत्र रूप से सूचना, शिक्षा और साहित्य तक पहुंचने में सक्षम बनाया है। लुई ब्रेल का ब्रेल प्रणाली का आविष्कार पहली बार 1829 में प्रकाशित हुआ था जब वह सिर्फ 20 साल के थे। इसे अपनाने के शुरुआती विरोध के बावजूद, ब्रेल लिपी को धीरे-धीरे लोग अपनाने लगें। नेत्रहीन लोगों के लिए स्पर्श संबंधी पढ़ने और लिखने का जरिया बन गया। यह दिन इस बात को भी मान्यता देता है कि दृष्टिबाधित लोगों को मानवाधिकारों तक अन्य सभी लोगों की तरह ही पहुंच मिलनी चाहिए।