बिलासपुर 22 नवंबर 2023। सिद्ध शक्तिपीठ मां महामाया मंदिर रतनपुर की कहानी बड़ी रोचक अद्भुत और अविस्मरणी है। मां महामाया मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ो की संख्या में माता के दरबार में सुबह शाम भक्तगण दर्शन और पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं। यहां आकर भक्तगण अपनी मन की मुरादे भी पूरी करते हैं। बिलासपुर जिले से 24 किलोमीटर की दूरी पर जंगल और पहाड़ों के बीच में मां महामाया मां का मंदिर सिद्ध शक्तिपीठ रतनपुर के नाम से देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध है। मंदिर में तीन देवियों की मूर्ति स्थापित है। अग्रभाग में महालक्ष्मी और महा सरस्वती के दर्शन हो जाते हैं तथा पीछे भाग में महाकाली की मूर्ति विराजित है। जिसके दर्शन भक्तगण मंदिर के पीछे जाकर प्रणाम कर करते हैं। मूर्ति सीधे रूप से भक्तगण को दिखाई नहीं देती है। मान्यता के अनुसार यह मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में राजा रतन देव के द्वारा किया गया था। सिद्ध पीठ मां महामाया मंदिर के ट्रस्टी और नगर निगम भिलाई के जनसंपर्क अधिकारी शरद दुबे बताते हैं कि राजा रतनदेव जंगल में शिकार करने गए थे। इसी दौरान राजा ने शेर का शिकार करने के लिए तीर चलाया तो वह तीर शेर के पीछे पैर में लगा और वह लंगड़ा कर भागने लगा। राजा पेंड्रा रोड के जंगल में अपने सैनिकों के साथ आखेट करने गए थे। शेर के पीछा करते हुए वह जंगल के बीच चले गए और शाम हो गई। पास के तालाब में ही मचान बनाकर वह वहीं रात्रि विश्राम कर रहे थे। तब वह स्वप्न में देखा कि एक अलौकिक दिव्य रोशनी आ रही है और सभी जानवर वहीं पर बैठ रहे हैं। जिस शेर को तीर लगा था वह शेर भी वहां उपस्थित है। राजा की यह निद्रा था या स्वप्न उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था। भोर में चिड़ियों की चहचहट से राजा की निद्रा टूटी और वह वापस अपने महल में आकर राजपुरोहितों को अपनी बीती बात बताई। राजपुरोहित इस बात को सुनकर वह भी अचंभित हो गए। महल के एक प्रकांड विद्वान पुरोहित को दूसरे दिन स्वप्न आता है कि पास के ही तालाब में तीन मूर्तियां गढ़ी हुई है। इसकी जानकारी उन्होंने राजा को दी राजा के द्वारा खुदाई कराया गया। तो तालाब से महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती की मूर्ति मिली।जिसकी विधि विधान से पूजा कर मंदिर का निर्माण करवाया गया फिर मंदिर में तीनों मूर्तियां को स्थापित की गई। अग्रभाग में मां सरस्वती और लक्ष्मी की मूर्ति और पीछे भाग पर महाकाली की मूर्ति विराजित है। यहां महाकाली माता को बलि देने की प्रथा भी प्रचलित थी जो अभी बंद है। कथा पुराण अनुसार राजा तृतीय के पुत्र के भक्षण के बाद बलि प्रथा बंद कर दी गई और राजा के द्वारा महाकाली मंदिर के दरवाजे को बंद कर दिया गया है।महाकाली माता यहां से रूठ कर बांग्ला पुराण अनुसार कोलकाता कालीघाट में मंदिर में चली गई है। वर्ष में यहां दो बार क्वार नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि में ज्योति कलश प्रचलित किया जाता है। 1982 में पांच ज्योति कलश बलराम ,पत्रकार महेंद्र दुबे,रमाशंकर गोरख, अनिल खंडेलवाल और बृजमोहन अग्रवाल के द्वारा जलाकर शुरुआत की गई थी। जो आज 27000 तक पहुंच चुका है। देश सहित विदेश में रहने वाले भक्तगण ज्योति कलश जलाकर अपनी मनोकामना पूर्ण हैं। यह तांत्रिक पीठ भी कहलाता है यहां पर हर सिद्धि को प्राप्त कर सकते हैं। साल भर यज्ञ कुंड पर आहुति दी जाती है यज्ञ कुंड का धुआं जो एक बार जला है वर्षों से बंद नहीं हुआ है। सिद्ध शक्तिपीठ रतनपुर महामाया मां का मंदिर का नाम गिनीज ऑफ बुक रिकॉर्ड में भी दर्ज है। यहां मन में सुख ,शांति, समृद्धि, वैभव और तांत्रिक पूजा के लिए मनुष्य माता रानी की शरण में आते हैं।