दिवाली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश जी के पूजा का विधान है। यह एक ऐसा त्योहार जिसका इंतजार हमें सालभर से रहता है। हिन्दू धर्म में दिवाली के अवसर पर सभी लोग अपने घरों की साफ-सफाई करके दीपोत्सव का त्योहार दिवाली बड़े धूमधाम से मनाते हैं और लक्ष्मी पूजन करते हैं। दिवाली के दिन लक्ष्मी जी का पूजा विधि-विधान करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और मां की कृपा बनी रहती है। तो आइए, दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त और संपूर्ण पूजा विधि जानते हैं।
दुनिया भर में भारतीय मूल के लोगों के लिए, दिवाली सबसे व्यापक रूप से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है। ‘दीपावली’ संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है–दीप+आवली। जिसका अर्थ है, “रोशनी की पंक्ति”। हर साल यह त्योहार, अंधेरे पर प्रकाश की जीत, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की जीत का जश्न मनाता है। दीपावली का यह त्योहार करीब 5 दिनों का होता है। त्योहार का पहला दिन धनतेरस होता है। इस दिन लोग धातु की वस्तुओं जैसे सोने और चांदी के आभूषण को खरीदकर अपने घर जरूर लेकर जाते हैं। दूसरा दिन नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। कुछ लोग इस दिन को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाते हैं। तीसरे दिन त्योहार का मुख्य दिन होता है। इस दिन महालक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। चौथे दिन गोवर्धन पूजा होती है क्योंकि इस दिन भगवान कृष्ण ने इंद्र के क्रोध से हुई मूसलाधार वर्षा से लोगों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठा लिया था। दिवाली के त्योहार के आखिरी दिन को भाई दूज के रूप में मनाया जाता है।
हर साल मनाया जाता है
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, दिवाली के दिन ही चौदह साल के वनवास के बाद अयोध्या के राजकुमार राम, उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण की वापसी हुई थीं। हिंदू परंपरा में, राजकुमार राम को भगवान विष्णु के और धार्मिकता के अवतार के रूप में देखा जाता है। और सीता को धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता हैं। कहते है कि अमावस्या की रात होने के कारण काफी अंधेरा होता है, जिस वजह से उस दिन पूरे अयोध्या को दीपों और फूलों से सजाया गया था, ताकि भगवान राम के आगमन में कोई परेशानी न हो, तब से लेकर आज तक इसे दीपों का त्योहार और अंधेरे पर प्रकाश की जीत के रूप में मनाया जाता है।
दिवाली शुभ मुहूर्त
आज दीपों का उत्सव दिवाली मनाई जा रही है. अमावस्या तिथि में प्रदोष काल आज प्राप्त होने से दिवाली मनाई जा रही है. आज कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि, स्वाति नक्षत्र, आयुष्यमान योग, शकुनी करण, रविवार दिन और पश्चिम का दिशाशूल है. अमावस्या तिथि का प्रारंभ 02:46 बजे से होगा. दिवाली की पूजा सूर्यास्त के बाद होगी क्योंकि उस समय से ही प्रदोष काल का प्रारंभ होता है. दिवाली पर आयुष्यमान और सौभाग्य योग के अलावा स्वाति नक्षत्र है. दिवाली पूजा का मुहूर्त शाम 05:39 बजे से 07:35 बजे तक है. शुभ समय में माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति स्थापना करके विधिपूर्वक पूजन करें. माता लक्ष्मी को खीर, खील, बताशे और गणेश जी को लड्डू या मोदक का भोग लगाएं. गणेश और लक्ष्मी जी के लिए घी के दीपक जलाएं. आरती करके पूरे घर को दीयों की रोशनी से सजाएं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दिवाली पर लक्ष्मी पूजा करने से धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।
लक्ष्मी पूजा का शाम का मुहूर्त: 05:39 बजे से 07:35 बजे तक
लक्ष्मी का निशिता काल मुहूर्त: रात 11:39 बजे से देर रात 12:32 बजे तक
सूर्योदय-सूर्यास्त और चंद्रोदय-चंद्रास्त का समय
सूर्योदय – 06:50:00 AM
सूर्यास्त – 05:56:00 PM
चन्द्रोदय – 30:27:59 AM
चन्द्रास्त – 16:42:59 PMचन्द्र राशि – तुला
हिन्दू मास एवं वर्ष
शक सम्वत – 1945 शुभकृतविक्रम सम्वत – 2080
दिन काल – 10:48:13 मास
अमांत – आश्विनमास
पूर्णिमांत – कार्तिकशुभ
समय – 11:43:27 से 12:26:40 तक
अशुभ समय (अशुभ मुहूर्त)
दुष्टमुहूर्त– 16:02:45 से 16:45:58 तककुलिक– 16:02:45 से 16:45:58 तककंटक– 10:17:01 से 11:00:14 तकराहु काल– 16:33 से 17:56 तककालवेला/अर्द्धयाम– 11:43:27 से 12:26:40
तकयमघण्ट– 13:09:53 से 13:53:06 तकयमगण्ड– 12:05:04 से 13:26:05 तकगुलिक काल– 15:09 से 16:33 तक
सुख-समृद्धि चाहते हैं तो दिवाली पर इन 7 टिप्स से सजाएं घर
1- मुख्य द्वार पर रंगोली
2- दरवाजे पर तोरण द्वार
3- मुख्य द्वार पर स्वास्तिक और शुभ-लाभ के निशान
4- पूजा स्थल पर लक्ष्मी जी की चरण पादुका
5- आम और अशोक के हरे पत्तों या फूलों की बंधनवार बांधना शुभ
6- ईशान कोण में जल से भरा पात्र रखें
7- पूजा में घी या तेल के दीपक
दिवाली पूजन सामग्री
एक चौकी, लाल कपड़ा, भगवान गणेश और माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या फोटो, अक्षत यानी साबुत चावल के दानें जो टूटे न हों, कुमकुम, हल्दी, दूर्वा, सुपारी, लौंग, इलायची, एक तांबे या पीतल का कलश, आम के पत्ते, पान के पत्ते, मौली, दो नारियल, 2 बड़े दीपक, 11 छोटे दीपक, घी, सरसों का तेल, दीये की बाती, धूप, अगरबत्ती, जल पात्र, गंगाजल, पुष्प, कमल का फूल, मीठे बताशे, खील, मिठाई, फल, पकवान, मेवे। लक्ष्मी पूजा में कई जगह कमलगट्टे, कौड़ी और धनिया चढ़ाने की भी परंपरा है, तो अगर आप चाहें तो यह सामग्री चढ़ा सकते हैं।
लक्ष्मी पूजा की तैयारियां
* जहां पूजा करनी है, उस जगह को साफ करें।
* ज़मीन पर आटे या चावल से चौक बनाएं।
* आपसे चौक न बनें तो केवल कुमकुम से स्वास्तिक बना लें या कुछ दाने अक्षत के रख दें।
* इसपर अब एक चौकी रखें, उसपर लाल कपड़ा बिछाएं।
* अक्षत का आसन देते हुए, माता लक्ष्मी और गणेश को विराजमान करें।
* लक्ष्मी जी को गणेश जी के दाहिने ओर ही स्थापित करें और दोनों प्रतिमाओं का मुख पूर्व या पश्चिम दिशा में ही रखें।
* अब हम दोनों प्रतिमाओं के आगे थोड़े रुपए, गहने और चांदी के सिक्के रखें। चांदी के सिक्के देवता कुबेर का स्वरूप होते हैं, अगर यह आपके पास उपलब्ध न हों तो आप कुबेर जी का चित्र या प्रतिमा भी स्थापित कर सकते हैं।
* लक्ष्मी जी के दाहिनी तरफ अक्षत से अष्टदल यानी 8 पखुंडियों वाला एक पुष्प बनाएं।
* जल से भरे कलश को उसपर रख दें, इसके अंदर गंगा जल, हल्दी, कुमकुम, अक्षत, दूर्वा, सुपारी, लौंग और इलायची का जोड़ा डालें।
* अगर आपके पास यह सब सामग्री नहीं है तो केवल शुद्ध जल, अक्षत, हल्दी और कुमकुम भी डाल सकते हैं। कलश पर हम कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं।
* साथ ही आम के पत्तों पर भी हल्दी-कुमकुम लगाएं।
* इस कलश में आम के पत्ते भी डालें और उसके ऊपर नारियल पर मौली बांधकर रख दें।
* चौकी के सामने अन्य सामग्री भी लगा कर रख दें।
* आप दो बड़े चौमुखी घी के दीपक रख लें और 11 दीयों में सरसों का तेल डालें।
* आप शुभ मुहूर्त से पहले स्नान कर लें और नए वस्त्र पहन लें।
* शुभ मुहूर्त में पूजा स्थल पर चौकी के सामने अपने सभी परिवार के सदस्यों के साथ आसन ग्रहण कर लें।
लक्ष्मी पूजा विधि
* इसके बाद, जल पात्र में एक पुष्प को डुबोकर, सभी देवी-देवताओं पर छिड़कें।
* आचमन के लिए आप इस तरह बाएं हाथ से दाएं हाथ में जल लें और दोनों हाथों को साफ करें।
* अब तीन बार यह जल स्वयं ग्रहण करें और साथ ही इन मंत्रों का उच्चारण करें-
ॐ केशवाय नमः
ॐ नारायणाय नमः
ॐ माधवाय नमः
* इसके बाद फिर से हाथ धो लें।
* दोनों घी के बड़े दीपकों की गणेश जी और लक्ष्मी जी के सामने प्रज्वलित करें
* एक तेल का दीपक कलश के समक्ष जलाएं।
* एक दीपक आप पितरों के नाम से पूजा में जला लें।
* अब दीपक के साथ धूप और अगरबत्ती भी जलाकर, भगवान जी को दिखाएं।
* अब हाथ में पुष्प लेकर, अपनी आंखें बंद करें और इस मंत्र के साथ गणेश जी का आवाहन करें-
ऊँ गं गणपतये नमः।
* इसके बाद माता लक्ष्मी का आवाहन करते हुए, इस मंत्र का उच्चारण करें- ऊँ महालक्ष्म्यै नमः।
* भगवान गणेश, माता लक्ष्मी, कुबेर जी, कलश और दीपक को एक-एक करके पुष्प अर्पित करें।
* अब माता लक्ष्मी को हम वस्त्र रूपी मौली अर्पित करें और गणेश जी को जनेऊ अर्पित करें।
* कुमकुम से दोनों प्रतिमाओं को तिलक करें। साथ ही चांदी के सिक्कों और गहनों को तिलक लगाएं।
* अब भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के चरणों में अक्षत अर्पित करें।
* ऐसा करने के बाद हम कमल का फूल और कमल गट्टे भी भगवान जी को चढ़ाएंगे।
* माता लक्ष्मी को नारियल अर्पित करें।
* अब दो लौंग, दो इलायची, और सुपारी, पान के पत्ते पर रखकर भगवान गणेश और माँ लक्ष्मी के सामने रख दें।
* अब बारी है भगवान जी को भोग अर्पित करने की, इसके लिए हम भगवान को खील और चीनी के बताशों का भोग लगाएंगे। भोग में आप मिठाई, फल और पकवान भी चढ़ा सकते हैं।
* भोग के बाद चम्मच से चारों ओर जल घुमाएं और नीचे गिरा दें।
* अब भगवान की आरती उतारते हुए भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की आरती गाएं।
* आरती के बाद, हाथ में पुष्प और अक्षत लें ले और ईश्वर से यह प्रार्थना करें कि, “आप हमारी पूजा स्वीकार करना, और हमें जीवन में सुख-समृद्धि और सद्बुद्धि प्रदान करना।
* साथ ही पूजा अब हम पूजा में हुई, किसी भी गलती के लिए मांफी मांगे, अगर हमसे इस पूजा में कोई भी भूल-चूक हुई हो तो हमें क्षमा करें।
* इसके बाद, यह पुष्प और अक्षत भगवान के चरणों में छोड़ दें।
* अंत में सबको आरती दें और भोग को प्रसाद के रूप में वितरित करें। अपने घर में बड़े लोगों का आशीर्वाद ज़रूर लें। बचे हुए दीयों को घर के विभिन्न स्थानों पर रख दें।
* ध्यान रहे, दीयों का मुख बाहर की तरफ होना चाहिए।
* इस प्रकार हमारी पूजा संपन्न हुई। भगवान आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें,
गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
मां लक्ष्मी जी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता।
सूर्य चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
दुर्गा रूप निरंजनी, सुख-संपति दाता।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
तुम ही पाताल निवासिनी, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भव निधि की त्राता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
जिस घर तुम रहती हो, तांहि में हैं सद्गुण आता।
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता।
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
# पुराणों के अनुसार दिवाली पर माँ लक्ष्मी की पूजा करने के पीछे भी एक कहानी हैं, एक गरीब ब्राह्मण को पुजारी ने माँ लक्ष्मी की पूजा करने को कहा ताकि वह उन्हें धन प्रदान कर सकें। क्योंकि विष्णु जी, आषाढ़ के 11वें चंद्र दिन से कार्तिकेय के 11वें चंद्र दिवस तक सोते हैं, इसलिए दिवाली सबसे शुभ संध्या है, जो बीच में आती है, इसलिए शास्त्र सीधे माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने की सलाह देते हैं, तभी लोग दिवाली के दौरान उनकी पूजा करते हैं।
# एक अन्य कहानी के अनुसार, एक दिन, माँ लक्ष्मी विष्णु जी को बड़े गर्व से बता रही थीं कि कैसे वह अपनी शक्तियों से किसी को भी धनवान और समृद्ध बना सकती हैं। विष्णु जी ने उनके अहंकार को समाप्त करने के उद्देश्य से कहा कि मातृत्व का अनुभव किए बिना महिलाएँ अधूरी हैं, यह सुनकर वह निराश हो गईं। और माँ पार्वती के पास गई और उनसे कहा कि वह उन्हें गणेश देकर, उन पर मातृत्व की कृपा करें। माँ पार्वती ने सोचा कि माँ लक्ष्मी का कोई निश्चित स्थान नहीं है, इसलिए वह गणेश की देखभाल करने में सक्षम नहीं हो सकती हैं। लेकिन माँ लक्ष्मी ने माँ पार्वती से वादा किया कि जहाँ वह रहेंगी, वहाँ गणेश भी रहेंगे। अगर कोई गणेश की पूजा नहीं करेगा, तो वह उन पर अपनी दया नहीं बरसाएगी। फ़िर माँ पार्वती ने आश्वस्त होकर, गणेश को माँ लक्ष्मी के साथ जाने दिया। इस कारण हम दिवाली पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति लगाते हैं। एक और कारण बताता है कि ज्ञान के बिना धन निरर्थक है, सही निर्णय लेने के लिए आपको ज्ञान की आवश्यकता होती है। और वह ज्ञान गणेश जी की पूजा करने से आता है। वह सफलता और समृद्धि के देवता हैं। और धन तथा विलासिता के साथ, हमें उनकी बुद्धि और ज्ञान की आवश्यकता है। इसलिए भगवान गणेश और माँ लक्ष्मी की एक साथ पूजा की जाती हैं।
# इस त्योहार से सम्बंधित एक प्रचलित कहानी का विशेष महत्व है। कहते है, जब अहंकार के वश में होकर इंद्र देवता ने एक बार लक्ष्मी को दिव्य दुनिया को छोड़कर दूधिया सागर में प्रवेश करने के लिए उकसाया था। और तब लक्ष्मी के मार्गदर्शन और आशीर्वाद के बिना, दुनिया एक अंधेरी जगह में बदल गई थीं, फ़िर देवता उन्हें वापस लाने के लिए बेताब थे। 1000 वर्षों तक दूधिया सागर का मंथन करने के बाद, दिवाली के दिन ही लक्ष्मी का पुनर्जन्म हुआ और वह एक सुंदर कमल के फूल की सतह पर उठी और पुनः दुनिया के लिए सौभाग्य का आशीर्वाद लेकर आई।
# भारत विभिन्नताओं का देश है, इसलिए दक्षिणी भाग में प्रचलित, शक्तिशाली राक्षस राजा नरकासुर पर भगवान कृष्ण की जीत की कहानी बताती है कि क्यों छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के रूप में भी मनाया जाता है। यह किंवदंती है कि नरकासुर को ब्रह्मा ने आशीर्वाद दिया था कि वह केवल अपनी मां के हाथ से मर सकता है। और उसे पता था कि गहरे प्रेम के कारण उसकी माँ उसे कभी नहीं मारेगी, तब उसकी माँ ने फिर से कृष्ण की पत्नी सत्यभामा के रूप में जन्म लिया, और नरकासुर के द्वारा अपने पति कृष्ण को युद्ध में घायल होते देखकर घातक आघात पहुँचाया। मरने से पहले, नरकासुर ने अनुरोध किया कि कोई भी उसकी मृत्यु पर शोक न करे, अपितु भरपूर उमंग और रंग के साथ इस दिन को मनाए, जैसा कि देखा जाता है कि दिवाली त्योहार के दौरान दक्षिण में लोग रंग भी खेलते है।
# दीवाली के चौथे दिन को बलिप्रतिपदा भी कहते है, एक किंवदंती है कि शक्तिशाली राजा बलि, जिन्होंने पृथ्वी और आकाश पर शासन किया था, उनसे देवता इतने भयभीत हो गए थें कि उन्होंने विष्णु को उनका निपटान करने के लिए भेजा। विष्णु ने एक बौने का रूप धारण किया और बलि के सामने प्रकट हुए, उन्होंने अनुरोध किया कि उन्हें उस सारी भूमि पर नियंत्रण प्रदान किया जाए, जिसे वह तीन चरणों में नाप लेंगे। बौने के छोटे कद के कारण, बलि ने बिना किसी हिचकिचाहट के इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया, और तब विष्णु ने बलि के पूरे राज्य को दो चरणों में नाप लिया और तीसरा चरण उसके सिर पर रखकर उसे नीचे की दुनिया में गिरा दिया। हालांकि, उनके नेक स्वभाव के कारण, विष्णु ने बलि को प्रत्येक वर्ष एक दिन के लिए पृथ्वी पर लौटने का अधिकार दिया, और इस प्रकार प्रिय राजा बलि के पृथ्वी पर लौटने के सम्मान में दिवाली का चौथा दिन मनाया जाता है।
# प्राचीन हिंदू महाकाव्य महाभारत में भी दिवाली को मनाने की परम्परा पढ़ने को मिलती है, जब पांडवों को चौसर का खेल हारने के बाद तेरह साल के लिए वनवास का आदेश दिया गया था। पांडवों से वास्तव में लोग प्यार करते थे, और निर्वासन से उनकी वापसी की ख़ुशी पर राज्य की सड़कों को दीपों की रोशनी से सजाया गया था। यह वापसी दिवाली के त्योहार के दौरान होनी कहीं जाती है, और इस प्रकार वार्षिक परंपरा के अनुरूप इस त्योहार को मनाया जाता है।
# भारत के पश्चिम बंगाल में विनाश की देवी काली को दिवाली से जुड़े प्रमुख देवता के रूप में मनाया जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, काली का जन्म स्वर्ग और पृथ्वी को राक्षसों के क्रूर उत्पीड़न से मुक्त करने के लिए हुआ था। हालांकि, सभी राक्षसों को मारने के बाद, काली ने नियंत्रण खो दिया और भगवान शिव के हस्तक्षेप तक अपने विनाश का रास्ता जारी रखा। उनके पश्चाताप का दिन दिवाली के रूप में मनाया जाता है। यह दिन काली की भयानक शक्ति और बुराई पर अच्छाई की अंतिम जीत के उनके अवतार को श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
# दिवाली त्योहार से सम्बंधित कई किंवदंतियाँ हिंदू पौराणिक कथाओं से आती हैं, मगर वही जैन धर्म में जैनियों की भी अपनी परंपराएँ हैं, जो दिवाली के उत्सव का मार्गदर्शन करती हैं। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भगवान महावीर, दिवाली के समय ज्ञान तक पहुंचे थे। महावीर, जैन धर्म में एक प्रमुख व्यक्ति हैं, और उनकी निर्वाण (पीड़ा या दु:ख से मुक्ति पाने की स्थिति) की उपलब्धि ही जैनियों के लिए उत्सव का प्रतीक है, इसलिए इस दिन को वे बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।
# वहीं सिख धर्म में दिवाली बंदी छोर दिवस के रूप में विख्यात है। जब सिखों के छठे, गुरु हरगोबिंद सिंह जी को मुगल साम्राज्य के शासक जहाँगीर ने अपनी हिरासत में लिया था। और दिवाली के दिन ही उन्हें रिहा किया था। इस दिन सभी सिख पारंपरिक रूप से गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इकट्ठा होते हैं, और आधिकारिक तौर पर 16 वीं शताब्दी के बाद से दिवाली को सिख त्योहार के रूप में भी मनाया जाता है।
दिवाली रंग, रोशनी और ख़ुशियों का त्योहार है। यह सभी धर्मों के लोगों के मन को उत्साह और आंनद से अभिभूत कर देता हैं। दिवाली हमें याद दिलाती है कि जीवन में नकरात्मक शक्तियों का अंत निश्चित है। हर अँधेरे को रोशनी से पराजित होना पड़ता है। आज हम दियों की रोशनी के साथ पटाखों की रोशनी से भी आसमान को जगमगा देते हैं, मगर पटाखें चलाने का रिवाज़ हमारे पर्यावरण को दूषित करता है। और हमें भी सांस सम्बन्धी रोग से प्रभावित करता हैं। इसलिए हमें चाहिए की त्रेतायुग की तरह दिवाली को रंगो, फूलों और रोशनी से ही सरोबार करें तथा मानवता का परिचय देते हुए, सभी अपने-परायों के साथ मिलकर हँसी-ख़ुशी से दिवाली मनाए।
”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”