हरतालिका तीज के अगले दिन से गणेश चतुर्थी पर्व की शुरुआत हो जाती है। ये पर्व पूरे 10 दिनों तक चलता है। साल 2023 में इस उत्सव की शुरुआत 19 सितंबर से होने जा रही है और इसका समापन 29 सितंबर को अनंत चतुर्दशी के दिन होगा। जिसे गणेश विसर्जन के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का जन्म हुआ था। हर चन्द्र महीने में हिन्दू कैलेंडर में 2 चतुर्थी तिथी होती है. हिन्दू शास्त्रों के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान गणेश से सम्बंधित होती है. शुक्ल पक्ष के दौरान अमावस्या या नए चाँद के बाद चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है, और कृष्ण पक्ष के दौरान एक पूर्णमासी या पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है।जानिए गणेश चतुर्थी की पूजा विधि विस्तार से यहां।
ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता भगवान गणेश का पर्व प्रारंभ हो गया है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि बेहद महत्वपूर्ण मानी गई है। यह तिथि भगवान गणेश को समर्पित है, इस दिन गणपति बप्पा का जन्म दिवस मनाया जाता है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर गणपति बप्पा का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी से प्रारंभ होने के बाद गणेश उत्सव पूरे 10 दिन तक मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी तिथि पर लोग अपने घरों में शुभ मुहूर्त पर भगवान गणेश की स्थापना करते हैं। 10 दिनों तक विधि अनुसार श्रद्धालु विघ्नहर्ता गणेश की पूजा करते हैं और दसवें दिन उनकी प्रतिमा को पवित्र नदी, सरोवर या झील में विसर्जित करते हैं। कुछ लोग इस त्योहार को सिर्फ दो दिन, सात दिन के लिए मनाते हैं तो कुछ इसे पूरे दस दिन तक मनाते हैं। और गणपति बाप्पा मोरिया अगले बरस तू जल्दी आ के जयकारे लगाते है। यानि बाप्पा को अगले साल बुलाने की कामना की जाती है। साथ ही इस दिन कई जगह भंडारे और कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।भारत में गणेशोत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। हर जगह गणेश चतुर्थी की रौनक देखी जाती है। लोग गणेश चतुर्थी पर व्रत रखकर उनकी पूजा करते हैं। अगर आप भी व्रत रख रहे हैं तो यहां देखें वर्ष 2023 में गणेश चतुर्थी की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा, आरती और उपाय समेत अन्य सभी जानकारी।
गणेश चतुर्थी और विनायक चतुर्थी कब और कहाँ मनाई जाती है
भादो के महीने में शुक्ल पक्ष चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाई जाती हैं, और विनायक चतुर्थी हर महीने मनाई जाती है. इस दिन से दस दिनों तक गणेश पूजा की जाती हैं. इसका महत्व देश के महाराष्ट्र प्रांत में अधिक देखा जाता हैं. महाराष्ट्र में गणेश जी का एक विशेष स्थान होता हैं. वहाँ पुरे रीती रिवाजों के साथ गणेश जी की स्थापना की जाती हैं उनका पूजन किया जाता हैं. पूरा देश गणेश उत्सव मनाता हैं।
गणेश चतुर्थी की तिथि
पंचांग के अनुसार, आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है। ऐसे में आज से 10 दिवसीय गणेश उत्सव का त्योहार शुरू हो रहा है। इस अवसर पर आज लोग व्रत रखकर घर में गणपति की स्थापना कर उनकी पूजा-अर्चना करेंगे। आज सूर्योदय 6 बजकर 26 मिनट पर है। जबकि सूर्यास्त शाम 6 बजकर 39 मिनट पर होगा। इसके साथ ही चित्रा नक्षत्र और इंद्र योग का खास संयोग बन रहा है। ज्योतिषीय गणना के मुताबिक, चंद्र देव तुला राशि में रहेंगे। वहीं सूर्य देव कन्या राशि में विराजमान रहेंगे। अभिजित मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 08 मिनट से 12 बजकर 57 मिनट तक है। जबकि आज राहु काल सुबह 07 बजकर 58 मिनट से 09 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। आइए जानते हैं चौघड़िया समेत आज का पूरा पंचांग और शुभ-अशुभ मुहूर्त।
वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि प्रारंभ- 09 अप्रैल सुबह 09 बजकर 35 मिनट पर
सिद्धि योग- रात्रि 10 बजकर 14 मिनट तक
गणेश चतुर्थी 2023 स्थापना मुहूर्त
गणेश जी स्थापना मुहूर्त – सुबह 11.01 – दोपहर 01.28 (अवधि – 2.27 मिनट)
गणेश चतुर्थी पर पूजा के 3 मुहूर्त
चर (सामान्य) – सुबह 09.11 – सुबह 10.43
लाभ (उन्नति) – सुबह 10.43 – दोपहर 12.15
अमृत (सर्वोत्तम) – दोपहर 12.15 – दोपहर 01.37
आज का पंचांग इस प्रकार रहेगा
शक संवत – 1945
विक्रम संवत – 2080
कलि संवत – 5124
मास – भाद्रपद, शुक्ल पक्ष
शुभ समय
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04 बजकर 32 मिनट से सुबह 05 बजकर 17 मिनट तक
विजय मुहूर्त- दोपहर 02 बजकर 30 मिनट से दोपहर 03 बजकर 20 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त- शाम 06 बजकर 42 मिनट से शाम 07 बजकर 05 मिनट तक
निशिता मुहूर्त- मध्यरात्रि 12 बजकर 16 से रात्रि 01 बजकर 45 मिनट तक
अशुभ समय
राहुकाल- शाम 05 बजकर 08 मिनट से सुबह 06 बजकर 43 मिनट तक
गुलिक काल- दोपहरा 03 बजकर 33 मिनट से शाम 05 बजकर 08 मिनट तक
भद्रा काल- सुबह 06 बजकर 03 मिनट से सुबह 09 बजकर 35 मिनट तक
सूर्योदय और सूर्यास्त का समय
सूर्योदय- सुबह 06 बजकर 03 मिनट से
सूर्यास्त- शाम 06 बजकर 43 मिनट पर
चंद्रोदय और चन्द्रास्त का समय
चंद्रोदय- रात्रि 10 बजकर 02 मिनट से
चन्द्रास्त- 09 अप्रैल सुबह 07 बजकर 50 मिनट पर
आज का चौघड़िया
आज दोपहर 12.14 बजे से 01.44 बजे तक अमृत का चौघड़िया रहेगा। शुभ का चौघड़िया दोपहर 03.15 बजे से 04.46 बजे तक रहेगा। सुबह 10.43 बजे से 12.14 बजे तक लाभ का चौघड़िया रहेगा। रात 10:45 बजे से देर रात 01.43 बजे तक क्रमशः शुभ एवं अमृत का चौघड़िया रहेगा। इन शुभ चौघड़ियों एवं मुहूर्त में राहुकाल को टाल कर अन्य सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
गणेश मनोकामना पूर्ति मंत्र
ॐ गं गणपतये नमः
ग्रह दोष निवारण गणेश मंत्र
गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक:।।
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम।।
बिगड़े कार्यों को सफल बनाने का मंत्र
त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय।
नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।
गणेश जी को प्रसन्न करने का मंत्र
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
गणेश गायत्री मंत्र
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात्।
गणपति षडाक्षर मंत्र: आर्थिक तरक्की के लिए
ओम वक्रतुंडाय हुम्
सुख समृद्धि के लिए गणेश मंत्र
ऊं हस्ति पिशाचिनी लिखे स्वाहा
गणेश चतुर्थी पूजा विधि
यदि आप घर में ही भगवान श्री गणेश की मूर्ति स्थापित करके उनकी पूजा करना चाहते हैं, तो आप मूर्ति खरीदते समय ध्यान रखें की मूर्ति खंडित नहीं होनी चाहिए। भगवान के हाथों में अंकुश, पास, लड्डू, सूंड, धुमावदार और हाथ वरदान देने की मुद्रा में होनी चाहिए। भगवान श्री गणेश के शरीर पर जनेऊ और उनका वाहन चूहा जरूर होना चाहिए। ऐसी प्रतिमा की पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
गणेश चतुर्थी मूर्ति स्थापना विधि
गणेश चतुर्थी के दिन सबसे पहले आप सूर्य उदय होने से पहले नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। अब पूजा का संकल्प लेते हुए भगवान श्री गणेश का स्मरण करते हुए अपने कुलदेवता का मनन करें। अब पूजा स्थल के स्थान पर पूर्व की दिशा में मुंह करके आसन पर बैठ जाए। अब एक चौकी पर लाल या सफेद कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर एक थाली में चंदन, कुमकुम से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। थाली पर बने स्वास्तिक के निशान के ऊपर भगवान श्री गणेश की मूर्ति स्थापित करते हुए पूजा शुरू करें। पूजा करने के बाद इस मंत्र का जाप करें।
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं। उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
गणपति पूजा विधि
भगवान श्री गणेश का आवाहन करते हुए चौकी पर रखें प्रतिमा के सामने ऊं गं गणपतये नम: का मंत्र का जाप करते हुए जल डालें। अब गणेश जी को हल्दी, चावल, चंदन, गुलाब, सिंदूर, मौली, दूर्वा,जनेऊ, मिठाई, मोदक, फल, माला और फूल अर्पित करें। अब भगवान श्री गणेश के साथ-साथ भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा करें। पूजा में धूप दीप करते हुए सभी की आरती करें। आरती करने के बाद 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। जिसमें से 5 लड्डू भगवान श्री गणेश की मूर्ति के पास रखें। बाकी लड्डू को ब्राह्मण और अन्य लोगों को प्रसाद के रूप में दें वितरण कर दें। पूजा के अंत में ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लें। पूजा करने के बाद इस मंत्र का जाप जरूर करें।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी व्रत पूजा विधि
* भद्रपद की गणेश चतुर्थी में सर्वप्रथम पचांग में मुहूर्त देख कर गणेश जी की स्थापना की जाती हैं।
* सबसे पहले एक ईशान कोण में स्वच्छ जगह पर रंगोली डाली जाती हैं, जिसे चौक पुरना कहते हैं।
* उसके उपर पाटा अथवा चौकी रख कर उस पर लाल अथवा पीला कपड़ा बिछाते हैं।
* उस कपड़े पर केले के पत्ते को रख कर उस पर मूर्ति की स्थापना की जाती हैं।
* इसके साथ एक पान पर सवा रूपये रख पूजा की सुपारी रखी जाती हैं।
* कलश भी रखा जाता हैं एक लोटे पर नारियल को रख कर उस लौटे के मुख कर लाल धागा बांधा जाता हैं. यह कलश पुरे दस दिन तक ऐसे ही रखा जाता हैं. दसवे दिन इस पर रखे नारियल को फोड़ कर प्रशाद खाया जाता हैं।
* सबसे पहले कलश की पूजा की जाती हैं जिसमे जल, कुमकुम, चावल चढ़ा कर पुष्प अर्पित किये जाते हैं।
* कलश के बाद गणेश देवता की पूजा की जाती हैं. उन्हें भी जल चढ़ाकर वस्त्र पहनाए जाते हैं फिर कुमकुम एवम चावल चढ़ाकर पुष्प समर्पित किये जाते है।
* गणेश जी को मुख्य रूप से दूबा चढ़ायी जाती हैं।
* इसके बाद भोग लगाया जाता हैं. गणेश जी को मोदक प्रिय होते हैं।
* फिर सभी परिवार जनो के साथ आरती की जाती हैं. इसके बाद प्रशाद वितरित किया जाता हैं।
स्थान आधारित गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी के दिन
यह समझना महत्वपूर्ण है कि विनायक चतुर्थी / गणेश चतुर्थी के लिए उपवास का दिन दो शहरों के लिए अलग हो सकता है, भले ही वे शहर एक ही राज्य के भीतर हो. विनायक चतुर्थी / गणेश चतुर्थी के लिए उपवास सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पर निर्भर करता है और यह तब देखा जाता है जब दोपहर के दौरान चतुर्थी तिथि बनी रहती है. इसलिए विनायक चतुर्थी / गणेश चतुर्थी उपवास तिथि के अनुसार मनाया जाता है, यानि चतुर्थी तिथि के एक दिन पहले, जैसा कि दोपहर का समय सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पर निर्भर करता है, जोकि सभी शहरों के लिए अलग है. हिन्दू कैलेंडर को अन्य वेबसाइट की तरह स्थान के आधार पर विनायक चतुर्थी / गणेश चतुर्थी के दिनों को सूचीबद्ध करना महत्वपूर्ण है. स्थान आधारिक तारीखों को बनाने के लिये समय लेने वाले अधिकांश स्त्रोत इस तथ्य को अनदेखा करते है, और सभी भारतीय शहरों के लिए एकल सूची प्रकाशित करते हैं।
गणेश चतुर्थी मनाने का तरीका
नई दिल्ली और डीएसटी के स्थानीय समय के साथ 24 घंटे की घड़ी सभी मूहूर्त के समय के लिए समायोजित है। गणेश उत्सव को सामाजिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं क्यूंकि यह त्यौहार केवल घर के लोगो के बीच ही नहीं सभी आस पड़ोसियों के साथ मिलकर मनाया जाता हैं. गणेश जी की स्थापना घरो के आलावा कॉलोनी एवम नगर के सभी हिस्सों में की जाती हैं. विभिन्न प्रकार के आयोजन, प्रतियोगिता रखी जाती हैं, जिनमे सभी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. ऐसे में गणेश उत्सव के बहाने सभी में एकता आती हैं. व्यस्त समय से थोड़ा वक्त निकाल कर व्यक्ति अपने आस पास के परिवेश से जुड़ता हैं।
गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व
* जीवन में सुख एवं शांति के लिए गणेश जी की पूजा की जाती हैं.
* संतान प्राप्ति के लिए भी महिलायें गणेश चतुर्थी का व्रत करती हैं।
* बच्चों एवम घर परिवार के सुख के लिए मातायें गणेश जी की उपासना करती हैं।
* शादी जैसे कार्यों के लिए भी गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता हैं।
* किसी भी पूजा के पूर्व गणेश जी का पूजन एवम आरती की जाती हैं. तब ही कोई भी पूजा सफल मानी जाती हैं।
* गणेश चतुर्थी को संकटा चतुर्थी भी कहा जाता हैं. इसे करने से लोगो के संकट दूर होते हैं।
विनायक चतुर्थी व्रत का महत्व
* भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के आलावा हर महीने की चतुर्थी का व्रत भी किया जाता हैं. जिसे विनायक चतुर्थी कहा जाता है।
* विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है. वरद का अर्थ होता है “भगवान से किसी भी इच्छा को पूरा करने के लिए पूछना”।
* जो इस उपवास का पालन करते हैं, उन भक्तों को भगवान गणेश ज्ञान और धैर्य के साथ आशीर्वाद देते हैं।
* बुद्धि और धैर्य दो गुण है, जिनके महत्व को मानव जाति में युगों से जाना जाता है. जो कोई भी इन गुणों को प्राप्त करता है, वह जीवन में प्रगति कर सकता है साथ वह अपनी इच्छा भी प्राप्त कर सकता है।
* विनायक चतुर्थी / गणेश चतुर्थी पर गणेश पूजा दोपहर के दौरान की जाती है जो हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से मध्यान्ह होता है।
गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी कथा
गणेश जी को सर्व अग्रणी देवता क्यूँ कहा जाता हैं
एक बार माता पार्वती स्नान के लिए जाती हैं. तब वे अपने शरीर के मेल को इक्कट्ठा कर एक पुतला बनाती हैं और उसमे जान डालकर एक बालक को जन्म देती हैं. स्नान के लिए जाने से पूर्व माता पार्वती बालक को कार्य सौंपती हैं कि वे कुंड के भीतर नहाने जा रही हैं अतः वे किसी को भी भीतर ना आने दे. उनके जाते ही बालक पहरेदारी के लिए खड़ा हो जाता हैं. कुछ देर बार भगवान शिव वहाँ आते हैं और अंदर जाने लगते हैं तब वह बालक उन्हें रोक देता हैं. जिससे भगवान शिव क्रोधित हो उठते हैं और अपने त्रिशूल से बालक का सिर काट देते हैं. जैसे ही माता पार्वती कुंड से बाहर निकलती हैं अपने पुत्र के कटे सिर को देख विलाप करने लगती हैं. क्रोधित होकर पुरे ब्रह्मांड को हिला देती हैं. सभी देवता एवम नारायण सहित ब्रह्मा जी वहाँ आकर माता पार्वती को समझाने का प्रयास करते हैं पर वे एक नहीं सुनती। तब ब्रह्मा जी शिव वाहक को आदेश देते हैं कि पृथ्वी लोक में जाकर एक सबसे पहले दिखने वाले किसी भी जीव बच्चे का मस्तक काट कर लाओं जिसकी माता उसकी तरफ पीठ करके सोई हो. नंदी खोज में निकलते हैं तब उन्हें एक हाथी दिखाई देता हैं जिसकी माता उसकी तरफ पीठ करके सोई होती हैं. नंदी उसका सिर काटकर लाते हैं और वही सिर बालक पर जोड़कर उसे पुन: जीवित किया जाता हैं. इसके बाद भगवान शिव उन्हें अपने सभी गणों के स्वामी होने का आशीर्वाद देकर उनका नाम गणपति रखते हैं. अन्य सभी भगवान एवम देवता गणेश जी को अग्रणी देवता अर्थात देवताओं में श्रेष्ठ होने का आशीर्वाद देते हैं. तब से ही किसी भी पूजा के पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती हैं।
गणेश जी को संकट हरता क्यूँ कहा गया
एक बार पुरे ब्रहमाण में संकट छा गया. तब सभी भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का निवारण करने हेतु प्रार्थना की गई. उस समय कार्तिकेय एवम गणेश वही मौजूद थे, तब माता पार्वती ने शिव जी से कहा हे भोलेनाथ ! आपको अपने इन दोनों बालकों में से इस कार्य हेतु किसी एक का चुनाव करना चाहिए। तब शिव जी ने गणेश और कार्तिकेय को अपने समीप बुला कर कहा तुम दोनों में से जो सबसे पहले इस पुरे ब्रहमाण का चक्कर लगा कर आएगा, मैं उसी को श्रृष्टि के दुःख हरने का कार्य सौपूंगा. इतना सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मयूर अर्थात मौर पर सवार होकर चले गये. लेकिन गणेश जी वही बैठे रहे थोड़ी देर बाद उठकर उन्होंने अपने माता पिता की एक परिक्रमा की और वापस अपने स्थान पर बैठ गये. कार्तिकेय जब अपनी परिक्रमा पूरी करके आये तब भगवान शिव ने गणेश जी से वही बैठे रहने का कारण पूछा तब उन्होंने उत्तर दिया माता पिता के चरणों में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण बसा हुआ हैं अतः उनकी परिक्रमा से ही यह कार्य सिध्द हो जाता हैं जो मैं कर चूका हूँ. उनका यह उत्तर सुनकर शिव जी बहुत प्रसन्न हुए एवम उन्होंने गणेश जी को संकट हरने का कार्य सौपा। इसलिए कष्टों को दूर करने के लिए घर की स्त्रियाँ प्रति माह चतुर्थी का व्रत करती हैं और रात्रि में चन्द्र को अर्ग चढ़ाकर पूजा के बाद ही उपवास खोलती हैं।
गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत,
चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे
मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े,
और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे
संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत,
कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत
निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥
सूर’ श्याम शरण आए,
सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो,
शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो
जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥
गणेश स्त्रोत पाठ
प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम् ।
भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ॥1॥
प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।
तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ॥2॥
लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ॥3॥
नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ॥4॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥
जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।
संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ॥7॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8॥
॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
भारत में गणेश जी के प्रसिद्ध मंदिर की सूची
क्र. मंदिर के नाम
1 गणपति पुले कोंकण तट
2 सिद्धी विनायक
3 रणथम्भौर
4 कर्पगा विनायक
5 रॉक फोर्ट उच्ची पिल्लायर तिर्रुचिल्लापली
6 मनाकुला विनयागर
7 मधुर महा गणपति मंदिर
8 ससिवे कालू कदले गणेशा
9 गणेश टोक
10 दगडूशेठ
11 मोती डूंगरी
12 मंडई गणपति
13 खड़े गणेश जी
14 स्वयंभू गणपति
15 खजराना
गणेश जी के बारे में जानकारी
पुरे भारत में गणपति जी की पूजा की जाती हैं. विशेष तौर पर महाराष्ट्र में गणपति जी का महत्व बहुत अधिक हैं. मुबई में बड़े- बड़े सेलेब्रिटी गणपति जी की स्थापना करते हैं पूरी धूम धाम से गणपति जी को घर में लाया जाता हैं फिर उन्हें विसर्जित किया जाता हैं. भादो में पुरे दस दिनों तक गणपति के नाम की धूम रहती हैं. रुके हुए मांगलिक कार्य इन दिनों में पुरे किये जाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गणेश जी देवताओं में सबसे श्रेष्ठ होते हैं वे भगवान् शिव एवम माता पार्वती की संतान हैं. मूषक अर्थात चूहा गणेश जी का वाहक हैं. उन्हें खाने में मोदक पसंद हैं. इनकी दो पत्नियाँ रिद्दी एवम सिद्धि हैं. गणपति जी को बुद्धि का देवता कहा जाता हैं. गणपति जी ने ही महर्षि वेद व्यास के द्वारा बोली गई भगवत गीता को लिखा था। गणेश जी की उपासना में गणपति अथर्वशीर्ष का बहुत अधिक महत्व हैं. इसे रोजाना भी पढ़ा जाता हैं. इससे बुद्धि का विकास होता हैं एवम संकट दूर होते हैं।
अंत में सभी पाठक गणों को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाये हर संकट दूर हो, सभी की मनोकामनाएं पूर्ण हो ….
”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”