दुर्ग। बीमा अवधि में नाक संबंधी बीमारी का इलाज कराने के बाद उसका दावा भुगतान नहीं करने के कृत्य को ग्राहक के प्रति सेवा में निम्नता का परिचायक मानते हुए जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने आईसीआईसीआई लोंबार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी पर 34151 रुपये हर्जाना लगाते हुए आदेश पारित किया। आर्य नगर दुर्ग निवासी मनीष जैन ने आईसीआईसीआई लोंबार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी से बीमा पॉलिसी ली थी। पॉलिसी प्रमाणपत्र के साथ उसे रिस्क कवर होने वाली बीमारियों की सूची प्रदान की गई थी जिसमें नाक संबंधी बीमारी हेतु इलाज की राशि दिए जाने का उल्लेख था। दिसंबर 2015 से परिवादी की नाक में बीमारी उत्पन्न हुई जिसके इलाज के लिए वह पं.जवाहरलाल नेहरू हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर सेक्टर 9 भिलाई में 21 परवरी 2016 को भर्ती हुआ और नाक संबंधी व्याधि का ऑपरेशन कराया। जिस के संबंध में क्लेम करने पर बीमा कंपनी ने दावा निरस्त कर दिया। बीमा कंपनी ने प्रकरण में उपस्थित होकर बताया कि परिवादी ने नाक का जो इलाज कराया है वह सेप्टोप्लास्टी है जो बीमा पॉलिसी के अंतर्गत कवर्ड नहीं है।
प्रकरण में विचारण के दौरान जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने पाया कि अनावेदक बीमा कंपनी ने परिवादी को शल्यक्रिया चिकित्सा की जो सूची प्रदान की है उसमें यह उल्लेखित है कि नाक के अन्य ऑपरेशंस कवर होंगे, जिसके तहत नाक के सभी ऑपरेशन आ जाते हैं और परिवादी का सेप्टोप्लास्टी का इलाज भी इसमें शामिल है, इस कारण परिवादी दावा राशि पाने का अधिकारी है। प्रकरण में यह बात भी सामने आई कि बीमा कंपनी ने परिवादी को सीधे प्रत्यक्ष रूप से पॉलिसी जारी नहीं की है बल्कि अनावेदक क्रमांक 2 जैन इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन के मार्फत उसे पॉलिसी दिलाई गई है, ऐसे में परिवादी को पॉलिसी के नियम और शर्तें स्पष्ट रूप से समझायी गई था, यह स्थिति दिखाई नहीं देती है। यदि पॉलिसी जारी करते समय ही अनावेदकगण द्वारा परिवादी को वस्तुस्थिति सही-सही समझायी गई होती तो संभवत: परिवादी भ्रमपूर्ण शब्दावली वाली पॉलिसी नहीं लेता। बीमा कंपनी के इस बचाव को खारिज कर दिया गया कि उसने नियम, शर्तों अपवर्जन और सीमाओं के साथ पॉलिसी जारी की थी क्योंकि बीमा कंपनी अपने इस बचाव के समर्थन में ऐसा कोई दस्तावेज पेश नहीं कर सकी। बीमा कंपनी को ग्राहक के प्रति सेवा में निम्नता और व्यवसायिक कदाचरण का जिम्मेदार पाते हुए जिला उपभोक्ता फोरम के सदस्य राजेन्द्र पाध्ये और लता चंद्राकर ने उस पर रु. 34151 हर्जाना लगाया, जिसमें क्लेम राशि 27151 रुपये, मानसिक क्षतिपूर्ति स्वरूप 6000 रुपये तथा वाद व्यय के रूप में 1000 रुपये अदा करना होगा। साथ ही क्लेम राशि पर 7.50 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी देना होगा।
इलाज का बीमा क्लेम नहीं दिया…. बीमा कंपनी पर लगा हर्जाना
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