जीवन में कई बार ऐसी स्थिति आ जाती है कि समझ में नहीं आता कि आखिर क्या किया जाए। ऐसी स्थिति में इंसान के अंदर कई तरह के विचार चलते रहते हैं और समझ में नहीं आता कि क्या किया जाए। ऐसी स्थिति से निपटने और जीतने के लिए अपने विचारों में कुछ बदलाव करने होंगे, तभी आप स्थिति को कंट्रोल कर पाएंगे। आज इंसान हर कदम इसी द्वंद्व में जी रहा है। उसकी सोच, कर्म और निर्णय की प्रक्रिया इस दिल और दिमाग के द्वंद्व से गुजर रहा है। क्या सोचें क्या न सोचें, क्या बोलें क्या न बोलें या क्या करें या क्या न करें?
कई बार हम किसी भी प्रकार का निर्णय लेने में बहुत ज्यादा कन्फ्यूज हो जाते हैं। हमेशा हमारे अंदर एक तरह का द्वंद चलता रहता है कि दिल कुछ और कहता है और दिमाग कुछ और, अब यह समझ में नहीं आता कि दिल की सुने या दिमाग की और इस तरह हम अपने किसी भी काम को लेकर कई बार फैसला नहीं ले सकते और लोगों की सलाह लेने लग जाते हैं। अब कुछ लोगों का कहना है कि दिल की सुनो और कुछ लोग कहते हैं दिमाग को सुनो । आइए जानते हैं आज विस्तार से कि हमें दिल की सुने या फिर दिमाग की।
दिल और दिमाग में अन्तर
दिल और दिमाग दोनों ही हमारे शरीर के मुख्य अंग हैं। दिल और दिमाग का खेल भी निराला है बहुत सोचना पड़ता है, अब मुंह खोलने से पहले क्योंकि कुछ लोग दिमाग लगाकर दिल से खेल जाते है और दिल लगाने वाले भोली सी आत्मा फिर जिंदगी भर पछताती हैं। दिल से हम किसी को प्यार कर सकते हैं पर किसी को सही निर्णय पर नहीं पहुंचा सकते हैं। जहां तक है अगर हम किसी व्यक्ति को प्यार करते हैं तो वह हम दिल दे बैठते हैं पर दिमाग नहीं। इसलिए अगर जिंदगी में कोई अहम फैसला लेना है तो दिमाग से फैसला लें।
निर्णय लेने की क्षमता
ज्यादातर लोग चिंता, भय और तनाव में फंसे होने कारण कई बार समझ नहीं पाते हैं कि अंदर की आवाज दिल की है या दिमाग की। फलस्वरूप मनुष्य मजबूरी और जल्दबाजी में गलत फैसला कर लेता है। उसके कर्मफल के चलते इंसान आए दिन दुख, अशांति और परेशानी का सामना कर रहा है। मन की मजबूती न होने से मनुष्य कई बार मजबूर हो जाता है। इंसान प्रदूषित परिवेश, प्रकृति, बुरी संगत और बुरे संस्कारों के वशीभूत और परेशान हो जाता है। इसमें मूल रूप से इंसान का दोष नहीं, पर उसकी जिम्मेदारी तो है। दोष असल में उसकी आंतरिक शक्तियों की कमी, कमजोरी और निर्बलता में है, जिसका कारण और निवारण मनुष्य स्वयं ही है। जब मनुष्य की आत्मशक्ति कम होती है, उसका मनोबल उसी अनुरूप घटता है। साथ ही उसकी बुद्धि, बल और अच्छे संस्कार कमजोर होते हैं। सही या गलत क्या है, जानते हुए भी कई बार सही को आजमा नहीं पाता और गलती करने से बच नहीं पाता है। फिर आगे के लिए सही कर्म करने और गलती न करने की आवश्यक इच्छाशक्ति भी नहीं जुटा पाता है। ऐसे में विल पावर को बल देने वाली शक्ति कमजोर होती जाती है।
दिल या दिमाग किसकी सुने
फ्रेंड्स कई बार हमारे साथ ऐसा होता है कि हमें बहुत अहम फैसला लेना होता है ऊपर से दिल कुछ और कहता है और दिमाग उसका विरोध करता है और कई बार तो दिमाग फैसला करना मैं सक्षम ही नहीं रहता और दिल है कि मानता नहीं। अब हम दिल और दिमाग की लड़ाई में बुरी तरह फस जाते है। निर्णय तो लेना ही पड़ता है पर यह समझ में नहीं आता कि यह निर्णय सही है या गलत । बहुत सारे लोग इसी कशमकश में रहते हैं कि किसकी सुने दिल की या दिमाग की लेकिन यह केवल एक तुलना है। अब इन बातों से हटकर हम दिल और दिमाग के काम को जानते हैं।
दिमाग क्या काम करता है- यह तो हम सभी जानते हैं दिल का काम है धड़कना और दिमाग का काम है सोचना है, पर इन दोनों का आपस में रिश्ता बहुत ही गहरा है। आज विज्ञान जगत ने बहुत ही तरक्की कर ली है, पर वैज्ञानिक आधार भी यही सवीकार करता है कि दिल को स्वस्थ रखने के लिए दिमाग की सेहत अच्छी रखनी बहुत जरूरी है। दिमाग अच्छा काम करें इसके लिए दिल को स्वस्थ रखना जरूरी है। हमारा दिल ही दिमाग को एनर्जी देता है।
दिमाग से सुने- दिमाग से सुनो आप जो सोचते हैं, देखते हैं, सीखते हैं या सिखाते, यह हम सब कुछ दिमाग से ही करते हैं। अगर यही दिमाग ना हो तो आप कुछ भी नहीं सोच पाएंगे। सही गलत का निर्णय भी आप अपने दिमाग से ही लेते हैं। दिमाग में इतनी पावर होती है अगर हमारे शरीर के किसी भी अंग में खारिश होती है वो तुरंत हमारे हाथ को इशारा देता है और वह वहां पर खारिश करने के लिए चला जाता है। अगर यह सोचने समझने की शक्ति दिमाग में ना हो तो हमारा शरीर केवल एक पत्थर की तरह पड़ा रहेगा, हो सकता है हमारी सांसे चलती रहें, दिल भी धडकता रहे, पर अगर दिमाग काम ना करें खारिश तो क्या वह पलक भी नहीं झपक सकता। इसलिए हमेशा जिंदगी में अहम फैसले लेने के लिए दिमाग की सुने।
समझदार बनो- दिल की सुनो अगर आपको सही बताएं तो दिल कुछ भी नहीं जानता, कुछ भी नहीं सोचता, सिखाता भी नही, दिल तो बस धड़कता है और दिमाग में भावनाओं को डालता है। सही मायने में सोचना तो दिमाग का ही काम है, पर कुछ लोग कहते हैं, दिल की सुनो फिर क्या दिल सोच सकता है नहीं, दिल का काम तो धड़कना है। सोचना तो दिमाग का काम है। अब इस बात पर आपको गौर फरमाना है कि अगर दिल किसी बात के लिए धड़क रहा है तो है बेचैन है। दिमाग अगर किसी बात को लेकर कंफ्यूज है तो है दिमाग का काम है किसी की भावनाओं को समझना है।
दिमाग और दिल का मिलन- एक सही फैसला तब लिया जा सकता है जब दिमाग एकाग्र और शांत हो और वह किसी बात को लेकर विचलित ना हो किसी का अहित ना सोच रहा हो और फैसला दिल और दिमाग के संयोग से लिया जा सकता है। जब दिल तेजी से धड़कता है तो दिमाग शांत हो जाता है इसलिए फैसला लेते समय दिल और दिमाग अपनी पूरी क्षमता में होना चाहिए।
दिमाग बनाम दिल- दोस्तों सबसे पहले बात आती है फैसला लेने की किसकी सुने । दिल का जैसा काम धड़कना होता है वैसे दिमाग का काम सोचना होता है। अब बारी आती है भावनाओं के, दिल फीलिंग देता है। भावनाएं देता है हालांकि सही मायने में हम सोचते तो दिमाग से हैं पर दिल से दिमाग का एक खास रिश्ता होता है। इसलिए फैसला अपने दिमाग से ही लेना चाहिए। भावनाओं मे बेहकर कोई फैसला नहीं लिया जा सकता क्योंकि कई बार भावना में बहकर हम कोई गलत निर्णय कर बैठते हैं, तो सही अगर फैसला लेना है तो आपको दिमाग से ही लेना होगा, क्योंकि दिमाग में ही निर्धारित करनी होगी दिल तो भावनाओं में आ जाता है।
संतो के विचार कया कहते हैं- जब भी फैसला लेना होता है तो हमेशा दिमाग़ की सुनो लेकिन दूसरी ओर यह भी कहते हैं जब सिर्फ दिल से फैसला लेते हैं तो कहीं बाहर विपरीत परिणाम या अपने लिए कष्टदायक साबित होता है। इसलिए हर फैसला दिल और दिमाग से ही लेना सही है। यानी आप दिमाग से फैसला ले पर फैसला भावना से परिपूर्ण हो, सही हो जिसमें, तर्क वितर्क ना हो और ना ही भावनाओं में बह कर लिया गया हो। स्वामी विवेकानंद के अनुसार सोचना भी दिमाग का काम है दिल का नहीं । बस दिल अपनी भावनाओं को प्रकट करने में हमारी मदद करता है। इसलिए जितना हो सके दोनों तरफ से लिया हुआ फैसला सही होता है ,भावनाओं से नहीं, क्योंकि दिमाग तर्क वितर्क करना जानता है दिल नहीं ।इसलिए दिल को ज्यादा फैसला लेने की मंजूरी ना दें।
आत्मशक्ति को बढ़ाने की जरूरत- मानव जीवन और कर्म को सही, सुखद और सफल बनाने के लिए उसकी आत्मशक्ति को बढ़ाने की जरूरत है। यानी सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने की जरूरत है। आत्म चेतना और चिंतन में वृद्धि लाने के लिए भी यह जरूरी है। नकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि से जीवन और समाज आज दुख, अशांति, निराशा से घिरा हुआ है। कहते हैं, व्यक्ति की जैसी मनोस्थिति या वृत्ति होती है, वैसी ही उसकी परिस्थिति बनती है, और वातावरण भी। इंसान की मानसिक अवस्था के अनुरूप ही उसकी दुनियावी व्यवस्था बन जाती है। मन की स्थिति या अवस्था अगर शांत, स्थिर, शीतल, संतुलित, व्यवस्थित और सुखदायी है, तो मनुष्य की व्यावहारिक व्यवस्था और परिस्थिति भी उसी अनुरूप शुभ, सुखद, सकारात्मक और सुव्यवस्थित हो जाती है। कहते भी हैं कि अंतर्मुखी सदा सुखी और बाहरमुखी सदा दुखी है।
दिमाग और जिंदगी के फैसले
इसी प्रकार अगर हम किसी को गिफ्ट देना चाहते हैं तब भी हम दिमाग से सोचते हैं क्योंकि दिल तो महंगी चीजों की तरफ आकर्षित होता है, और हो सकता है हमारी जेब हमें अनुमति नहीं दे रही हो महंगा तोहफा खरीदने का, तो ऐसे समय में हमें अपनी बुद्धि का प्रयोग करना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि अगर हमारी जेब में पैसा है तभी हम किसी को महंगे गिफ्ट दे सकते हैं नहीं तो अपनी चादर ज्यादा फैलाकर फाड़ने वाली कहावत सिद्ध हो जाती हैं। इसलिए तभी कहा गया है कि कुछ फैसले जिंदगी के जो अहम होते हैं उनको दिल से नहीं दिमाग से लेने चाहिए ,क्योंकि हो सकता है हम किसी को महंगा गिफ्ट देकर थोड़ी देर के लिए खुश कर सकते हैं पर खुद खुद कंगाल हो सकते हैं। इसलिए भावनाओं में ना बहकर हमेशा दिमाग की सुने दिल के नहीं।
स्पष्ट तरीके से सोचना होगा
अगर हमे कोई निर्णय लेना हो तो पूरी बुद्धिमता के साथ लेना चाहिए यानी दिमाग से ही लेना होगा। जिसमें दिल यानी अपनी भावनाओं हटाकर यह दोनों चीजें बुद्धिमता और भावना आपके अंदर ही हैं और असीमित हैं। आपको फैसला लेते समय बहुत ही स्पष्ट तरीके से सोचना होगा। अगर मै ऐसा करता हूँ तो क्या होगा अगर मैं ऐसा नहीं करता हूँ तो फिर क्या होगा अब यहां फैसले लेना बहुत ही जरूरी है। दोनों बातें अब आपको अच्छी तरह में समझ आ गई होंगी क्योंकि दिल भावना में बह जाता है दिमाग नहीं। इसलिए फैसला लेते समय दिमाग से फैसला ले दिल से नहीं क्योंकि दिल तो राह चलते इंसान पर भी आ जाता है पर दिमाग नहीं।
भावनाओं में आकर न लें जिंदगी के अहम फैसले
अक्सर जब 2 बच्चे एक दूसरे को प्यार करने लग जाते हैं तो वह अपने सिर्फ दिल की बात सुनते और सोचने समझने की शक्ति को खत्म करके सिर्फ दिल की बात सुनकर एक दूसरे के साथ जीवन भर की कसमें खा लेते हैं और उसका रिजल्ट कुछ दिनों बाद जब आता है फिर सिर्फ पछताने के सिवा और कुछ नहीं रहता, क्योंकि दिल से घर गृहस्थी नहीं चलती। घर को चलाने के लिए दिमाग का होना बहुत जरूरी है ।किसी इंसान का बुद्धिमान होना बहुत जरूरी है । नादान बच्चे इस फैसले को लेकर जिंदगी भर पछताते रहते हैं, जो जवानी की दहलीज पर पैर रखते ही किसी लड़के की बातों में आकर अपने घर वालों को त्याग कर शादी करने का फैसला कर लेती है और फिर पछताने के सिवा कुछ नहीं रहता। एक बार बहुत ठंडे दिमाग से ध्यान से सोचो अगर कोई लड़का तुम्हारे लिए अपने मां बाप और बहन को छोड़ सकता है फिर वह तुम्हें भी छोड़ सकता है इस बात की कोई गारंटी नहीं जो अपने परिवार को छोड़ सकता है वो तुम्हें नहीं छोड़ेगा। इसलिए मन की भावनाओं में आकर जिंदगी के कुछ गंभीर फैसले लेते समय दिमाग का जरूर इस्तेमाल करें।
हमेशा जिंदगी के अहम फैसले लेने के लिए दिमाग से काम ले दिल से नहीं, क्योंकि दिल अगर धड़क रहा है और दिमाग काम ना करें एक बार सोच कर देखो, अगर आपका दिमाग कोमा में चला जाए तो दिल कोई भी फैसला नहीं ले सकता है। फैसला देने में सक्षम सिर्फ हमारे शरीर का एक ही अंग है वह है दिमाग, इसलिए जिंदगी से जो भी फैसले लेने हो तो हमेशा दिमाग से ही ओना चाहिए।