सावन मास में भगवान शिव की पूजा की जाती है. मान्यता है कि यह महीना भगवान शिव का सबसे प्रिय होता है. इस बार सावन का महीना बेहद खास रहने वाला है. सावन के महीने को श्रावण के नाम से भी जाना जाता है. इस मास का हिंदू धर्म में भी विशेष महत्व है। मुख्य रूप से सावन के सोमवार का अधिक महत्व है। यह मास भगवान शिव का प्रिय मास माना जाता है। इसी कारण से भक्तगण इस मास में कई प्रकार के व्रत करते हैं। भगवान के प्रति प्रेम को दर्शाने के लिए भक्तों को इस मास की प्रतीक्षा हमेशा ही रहती है। यह महीना भगवानशिव के भक्तों के लिए बेहद खास माना जाता है क्योंकि पूरे भारत में सावन बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. सावन का महीना इस बार जुलाई से शुरू होगा और इस माह का समापन अगस्त में होगा।
वैसे तो हिंदू धर्म में प्रत्येक माह देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है और खासतौर पर शुभ कार्यों से पहले देवताओं को अवश्य याद किया जाता है. लेकिन सावन का महीना धार्मिक दृष्टिकोण से बेहद ही खास और महत्वपूर्ण माना गया है. यह माह देवो के देव महादेव को समर्पित है और इस माह की महिमा का बखान शिव पुराण में भी किया गया है. इस साल सावन 4 जुलाई 2023 से शुरू हो रहा है और इस माह भगवान शिव की अराधना की जाती है. साथ ही इस दौरान कांवड़ यात्रा भी शुरू होती है और भक्त पैदल यात्रा करते हुए गंगाजल लाकर उससे भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर सावन के महीने में भगवान का ही पूजन क्यों किया जाता है और इस धार्मिक दृष्टिकोण इस माह का क्या महत्व है? आज के इस लेख में हम सावन मास के महत्व को भी समझेंगे। हम सावन मास की पूजा विधि को भी जानेंगे। साथ ही हम ये भी जानेंगे की सावन के सोमवार कब है इसके बाद अंत में ये जानना भी जरूरी हो जाता है की सावन कब खत्म होगा।
सावन मास क्या है?
सावन के नाम से कई लोग कन्फ्यूज हो जाते हैं। परंतु सामान्य भाषा में श्रावण मास को ही सावन कहा जाता है। हिंदू धर्म में सावन मास की अहम विशेषता है। हिंदू पंचांग के अनुसार सावन मास वर्ष का पांचवा महीना होता है। सावन मास हर वर्ष आता है। सावन मास दोनो पक्षों शुक्ल एवं कृष्ण को मिलाकर पूर्ण होता है। सावन मास को सबसे पवित्र मास एवं भगवान शिव का सबसे प्रिय मास माना जाता है। इस पूरे महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना होती है। इस मास में जो भक्त भोलेनाथ की पूजा करते हैं। उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। भोलेनाथ बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और ये मास उनका प्रिय भी होता है। इसलिए इस मास में उनकी पूजा उत्तम मानी गई है। प्रतिवर्ष कांवड़ यात्रा भी इसी मास में निकलती है। हिंदू धर्म में कांवड़ यात्रा का एक विशेष ही महत्व है। यह कांवड़ यात्रा भी भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए होती है। सावन के मास का हर दिन काफी शुभ होता है। परंतु इस मास के सोमवार की एक अलग ही विशेषता है। सावन मास के सोमवार को मास का सबसे उत्तम एवं शुभ दिन माना गया है। इसलिए इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से वे भी बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं। सावन मास के बारे में जानने के बाद हम ये जान लेते हैं की 2023 में सावन कब से शुरू हो रहा है।
सावन मास कब होता है ?
वैसे अगर हिंदू पंचाग के अनुसार देखा जाए तो सावन मास एक निश्चित मास है। जो हमेशा अपने सही समय पर आता है। परंतु हिंदू पंचाग एवं अंग्रेजी कैलेंडर में अंतर होने के कारण सामान्य जीवन में उपयोग की गई तारीख के अनुसार सावन मास का समय बदल जाता है। फिर भी अगर देख जाए तो प्रति वर्ष सावन मास अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जुलाई – अगस्त के महीने मे पड़ता है। कई बार जुलाई में शुरू होकर अगस्त के खत्म होता है तो कभी अगस्त में ही शुरू एवं खत्म होता है।
शुभु संयोग : इस बार है दो सावन मास
इस वर्ष महादेव की कृपा से ऐसा योग बना है की सावन मास में अधिक मास पढ़ा है। हिंदू पंचांग के अनुसार कुछ वर्ष पश्चात एक मास अधिक मास पढ़ता है। जिसे अधिक मास या मल मास के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष ये अधिक मास, सावन मास पर पढ़ा है। जिस कारण से इस बार दो सावन मास है एक साधारण सावन मास और एक अधिक सावन मास। इस कारण से इस बार सावन मास की अवधि दुगनी हो गई है और ये काफी अच्छा है क्योंकि हमें महादेव की भक्ति के लिए एक महीने और मिल गया है। जिससे हम शिव जी को और पूज सके।
सावन कब से शुरू है ?
प्रति वर्ष तो सावन मास जुलाई एवं अगस्त के महीने के बीच में पड़ता है। परंतु हमें सावन शुरू होने की तारीख की जानकारी अवश्य होनी चाहिए। हर वर्ष सावन मास शुरू होने की तारीख अलग होती है। इसलिए अगर हम वर्तमान वर्ष 2023 की बात करें तो सावन मास 4 जुलाई से शुरू हो रहा है। इसके आधार पे हम कह सकते हैं की सावन 4 जुलाई 2023 से शुरू है।
सावन कब खत्म होगा ?
जिस तरीके से सावन मास जुलाई या अगस्त में आरंभ होता है। उसी प्रकार ये जुलाई अथवा अगस्त में खत्म होता है। सावन मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को समाप्त होता है। प्रति वर्ष सावन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की तिथि अलग होती है इसी कारण से सावन खत्म होने की तारीख भी अलग अलग होती है। इसलिए अगर हम वर्तमान वर्ष 2023 की बात करें तो सावन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 31 अगस्त को है। जिससे हमें ये पता चलता है की सावन मास 31 अगस्त को खत्म होगा।
सावन में कितने सोमवार है?
सावन का पूरा मास शुभ होता है एवं इसका एक एक दिन काफी फलदायक होता है। परंतु सावन मास में सोमवार का एक विशेष महत्व होता है। कहा जाता है की सोमवार को भगवान शिव की पूजा करने से वे बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं। चूंकि हर वर्ष सावन मास की तारीख में बदलाव होता है तो इस मास के सोमवार की तारीखों में भी बदलाव होता है। कभी सोमवार 4 पड़ते हैं तो कभी 5। चूंकि इस बार सावन अधिक मास है इसलिए इस बार सावन में 8 सोमवार है।अगर हम वर्तमान वर्ष की बात करें तो इसमें 8 सोमवार है जिनकी तारीख नीचे लिखी है।
* पहला सोमवार – 10 जुलाई 2023
* दूसरा सोमवार – 17 जुलाई 2023
* तीसरा सोमवार – 24 जुलाई 2023
* चौथा सोमवार – 31 जुलाई 2023
* पांचवा सोमवार – 7 अगस्त 2023
* छठा सोमवार – 14 अगस्त 2023
* सातवा सोमवार – 21 अगस्त 2023
* आठवां सोमवार – 28 अगस्त 2023
सावन का महत्व
शास्त्रों एवं पुराणों में सावन के मास का बहुत अधिक महत्व है। सावन का मास काफी शुभ माना गया है। अगर हम वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखे हैं तो सावन के मास में वर्षा आरंभ हो जाती है जो काफी फलदायक होती है। सावन के मास में भगवान शिव की पूजा करने का विधान है।प्रभु शिव को सोमवार अति प्रिय है इस वजह से सावन के सोमवार को शुभ कहा गया है। इस दिन कई लोग व्रत भी रखते हैं।अगर जीवन में विवाह संबंधित कोई परेशानी हो तो सावन मास में भगवान के भक्ति एवं आशीर्वाद से दूर हो जाती है।
सावन में पूजा की विधि
वर्ष सावन मास में पूजा का फल तब ही मिलता है जब आपने सही विधि से सावन के सोमवार की पूजा की हो। अगर गलत विधि से पूजा की जाए तो वह फलदायक नही होती है। चलिए अब सही विधि जान लेते हैं।
* सबसे पहले सूर्योदय होने से पूर्व जग जाएं।
* फिर दैनिक क्रिया करके अच्छे से नहा लें।
* नहाने के पश्चात साफ सुथरे वस्त्र धारण करें अर्थात पहने लें।
* फिर पूजा के स्थान को साफ कर लें।
* इसके पश्चात अपने घर के मन्दिर में दीपक जला लें।
* फिर सभी देवी देवताओं का अभिषेक करें। गंगा जल अभिषेक के लिए उत्तम माना गया है।
* फिर भगवान शिव पर गंगा जल एवं दूध चढ़ाएं।
* इसके पश्चात शिवलिंग पर पुष्प एवं बेलपत्र अर्पित करें।
* इस सबके बाद भगवान शिव की आरती करें और उन्हें प्रसाद लगाएं।
* जो भक्त सावन सोमवार का व्रत करते हैं वे अपना व्रत जारी रखें एवं भगवान शिव की सुबह शाम पूजा करें।
सावन सोमवार पूजा सामग्री लिस्ट
* बेलपत्र
* भांग, धतूरा
* शमी के पत्ती
* शहद, पंचामृत, सुपारी
* कच्चा दूध, गंगा जल
* चीनी या मिश्री
* फल
* सफेद चंदन
सावन में भगवान शिव को प्रसन्न कैसे करें
इस मास में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
* रोज सुबह शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए।
* शंकर जी को सोमवार का दिन प्रिय है इसलिए सावन के सोमवार को व्रत करके विधि विधान से उनकी पूजा करनी चाहिए और फिर अंत में प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
* इस माह में दान धर्म का विधान भी है। सावन के किसी भी दिन अथवा सोमवार को दान करने से भी भगवान प्रसन्न होते हैं।
सावन में कांवड़ यात्रा
सावन मास भगवान का प्रिय मास है। इस वजह से इस पूरे में मास में भारत के अलग अलग जगह अलग अलग कार्यकर्म चलते ही रहते हैं। ऐसा ही कार्यक्रम कांवड़ यात्रा भी है। सावन की कांवड़ यात्रा पूरे भारत भर में प्रसिद्ध है। जगह जगह से भक्त लोग कांवड़ यात्रा करते हैं। कांवड़ यात्रा कोई भी कर सकता है बस उसका मन भगवान के प्रेम में लीन हो। कांवड़ यात्रा में मुख्य रूप से पवित्र नदियों के जल से महादेव का अभिषेक किया जाता है। भक्तगण अपनी कांवड़ यात्रा आरंभ करते हैं। यह यात्रा पदयात्रा होती है अर्थात पैरों से। सभी भक्त विभिन्न पावन स्थलों एवं तीर्थ स्थलों तक ऐसे ही जाते हैं। वहां पर जाकर पवित्र नदियों का जल एकत्र करते हैं। इस जल को अपने पास रख लेते हैं फिर वापस यात्रा करते हैं। अब यात्रा करके वे वहीं जाते हैं जहां से उन्होंने अपनी यात्रा शुरू की थी। वहां पर जाकर भगवान शिव का इस पावन जल से अभिषेक करते हैं। इस तरीके से भक्तों की कांवड़ यात्रा पूरी होती है।
कावड़ से जुड़ी पौराणिक कथा
मान्यता है कि जब समुद्र मंथन से विष निकला, तो दुनिया को उसके बुरे प्रभाव से बचाने के लिए महादेव ने विष कंठ में रोक लिया, जिसकी वजह से शिव का पूरा शरीर नीला हो गया और शरीर में नकारात्मक उर्जा से गर्मी उत्पन्न हो गई। तब शिव के परम भक्त रावण ने कांवड़ में गंगाजल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाया और उनका अभिषेक किया था। उस समय से कावड से शिव का जलाभिषेक किया जाता है और माना जाता है कि ऐसा करने से सभी प्रकार के दुष्प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
कावड़ यात्रा के प्रकार
समय के साथ कावड़ यात्रा में कई बदलाव आए हैं। अब तीन तरह की कावड़ यात्रा प्रचलन में है:-
झांकी वाली कावड़– इस तरह की कावड़ यात्रा में कावड़िए किसी खुले वाहन में भगवान शिव का दरबार सजा कर इस पावन यात्रा को पूरी करते हैं।
खड़ी कावड़ खड़ी कावड़ सबसे कठिन कावड़ यात्रा मानी जाती है, क्योंकि इस यात्रा में कावड़ को कहीं जमीन पर नहीं रखना होता है। यदि किसी कावड़िए को भोजन या आराम करना है, तो वह अपनी कावड़ किसी दूसरे को थमा देता है या फिर किसी स्टैंड पर रख सकता है।
डाक कावड़– इस तरह की कावड़ यात्रा में शिव भक्त जलाभिषेक वाले दिन तक लगातार बगैर रुके चलते हैं।
सावन से संबंधित कथा
वैसे तो हिंदू पुराणों में सावन से संबंधित कई कथाएं प्रचलित हैं। परंतु उनमें से कुछ कथाएं मुख्य एवं महत्वपूर्ण है। ऐसी ही एक कथा के बारे में आज हम जानेंगे। भगवान शिव का विवाह माता सती के साथ हुआ था। परंतु जब उनके पिता के घर पर महादेव का अपमान हुआ तो उन्होंने स्वयमग्नि धारण कर ली। जिससे वे पंचतत्व में विलीन हो गई। इस पर महादेव बहुत क्रोधित हो गए और वे एक लम्बे काल के लिए गहन साधना में चले गाय। माता सती का माता पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ। जब उन्हें इन सब बातों का स्मरण हुआ तो वे महादेव के पास चलीं। परंतु महादेव अभी भी साधना में थे। महादेव को साधना से उठाने के लिए माता पार्वती जी ने कठिन तपस्या की। कहा जाता है की सावन के मास में माता ने गहन तप किया जिसके फलस्वरूप महादेव अपनी साधना से उठे। इस वजह से इस मास को शुभ माना जाने लगा और ये मास भगवान शिव का प्रिय मास बन गया।
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