देशभर में ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का त्यौहार 29 जून यानी आज मनाया जा रहा है। ईद-उल-अजहा बलिदान का त्योहार है और यह अल्लाह के प्रति समर्पण का उदाहरण है। यह त्योहार खुशियां बांटने और गरीबों और बेसहारा लोगों की मदद करने का भी एक अवसर है। ईद-उल-अजहा को बकरीद भी कहा जाता है।
भारतीय उपमहाद्वीप में इस ‘बलिदान के पर्व,’ को बकरा-ईद और अरबी में ईद-उल-अजहा कहा जाता है, क्योंकि इसमें में बकरे या दुंबे-भेड़ की बलि देने की परंपरा है। दो ईद में से यह मुसलमानों की दूसरी ईद होती है जिसे कई परम्पराओं के साथ भारत और दुनियाभर में मनाया जाता है। पहली ईद अल-फ़ितर या रमज़ान ईद है। यह त्योहार रमजान या रमजान के नौवें महीने के अंत का प्रतीक है जब दुनिया भर में मुसलमान सुबह से शाम तक उपवास करते हैं। ईद-उल-अजहा प्रेम, निस्वार्थता और बलिदान की भावना के प्रति आभार व्यक्त करने और एक समावेशी समाज में एकता और भाईचारे के लिए मिलकर काम करने का त्योहार है। मीठी ईद यानी ईद उल फितर के 70 दिन के बाद बकरीद का त्यौहार मनाते है। ईद उल ज़ुहा भारत और दुनिया भर में पारंपरिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। ईद उल जुहा के दौरान मुसलमान ईदगाह या मस्जिद में जमा होते हैं और जमात के साथ 2 रकात नमाज अदा करते हैं। यह नमाज अमूमन सुबह के समय आयोजित की जाती है। इस्लामी कैलेंडर में बारहवें और अंतिम महीने – बकरीद ‘धु अल हिजाह’ के दौरान मनाई जाती है। चूंकि त्योहार का सही दिन चांद के दिखने पर आधारित होता है, इसलिए, इस बात की संभावना है कि भिन्न-भिन्न देशों के बीच तिथि अलग हो सकती है। इस साल, त्योहार जून महीन के अंतिम सप्ताह में मनाया जाएगा।
भारत में बकरीद कब है?
सऊदी अरब द्वारा घोषित तारीख के अनुसार यह जश्न, इस साल, बकरीद यानी ईद उल-अधा, बुधवार, 28 जून 2023 की शाम से शुरू होने और गुरुवार, 29 जून 2023 की शाम तक चलने की घोषणा की गई है। दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम के अनुसार, ईद अल-अधा का त्यौहार 29 जून 2023 को भारत मनाया जाएगा।
किस तरह निकाली जाती है बकरीद की तारीख
इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, बारहवें महीने में ज़ु अल-हज्जा की 10 तारीख को बकरीद का त्योहार मनाया जाता है जो ईद उल फितर से लगभग 70 दिनों के बाद होती है। वहीं बकरीद होने के 10 दिन पहले चांद के दीदार करने के बाद इस तारीख का ऐलान किया जाता है।
1/ ذوالحجہ 1444ھ
20/ جون 2023ء
دن: منگل
1/ ज़ुल ह़िज्जह 1444 हि•
20/ जून 2023 ई•
दिन: मंगल
2/ ذوالحجہ 1444ھ
21/ جون 2023ء
دن: بدھ
2/ ज़ुल ह़िज्जह 1444 हि•
21/ जून 2023 ई•
दिन: बुध
3/ ذوالحجہ 1444ھ
22/ جون 2023ء
دن: جمعرات
3/ ज़ुल ह़िज्जह 1444 हि•
22/ जून 2023 ई•
दिन: जुमेरात
4/ ذوالحجہ 1444ھ
23/ جون 2023ء
دن: جمعہ
4/ ज़ुल ह़िज्जह 1444 हि•
23/ जून 2023 ई•
दिन: जुमुअ़ह
5/ ذوالحجہ 1444ھ
24/ جون 2023ء
دن: ہفتہ
5/ ज़ुल ह़िज्जह 1444 हि•
24/ जून 2023 ई•
दिन: शनिवार
6/ ذوالحجہ 1444ھ
25/ جون 2023ء
دن: اتوار
6/ ज़ुल ह़िज्जह 1444 हि•
25/ जून 2023 ई•
दिन: इतवार
7/ ذوالحجہ 1444ھ
26/ جون 2023ء
دن: پیر شریف
7/ ज़ुल ह़िज्जह 1444 हि•
26/ जून 2023 ई•
दिन: पीर शरीफ
8/ ذوالحجہ 1444ھ
27/ جون 2023ء
دن: منگل
8/ ज़ुल ह़िज्जह 1444 हि•
27/ जून 2023 ई•
दिन: मंगल
9/ ذوالحجہ 1444ھ
28/ جون 2023ء
دن: بدھ
9/ ज़ुल ह़िज्जह 1444 हि•
28/ जून 2023 ई•
दिन: बुध
10/ ذوالحجہ 1444ھ
29/ جون 2023ء
دن: جمعرات
10/ ज़ुल ह़िज्जह 1444 हि•
29/ जून 2023 ई•
दिन: जुमेरात
कैसे शुरू हुई प्रथा?
इस्लाम में कुर्बानी का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है. कुरान के अनुसार कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेनी चाही. उन्होंने हजरत इब्राहिम को हुक्म दिया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को उन्हें कुर्बान कर दें. हजरत इब्राहिम को उनके बेटे हजरत ईस्माइल सबसे ज्यादा प्यारे थे। अल्लाह के हुक्म के बाद हजरत इब्राहिम ने ये बात अपने बेटे हजरत ईस्माइल को बताई. बता दें, हजरत इब्राहिम को 80 साल की उम्र में औलाद नसीब हुई थी. जिसके बाद उनके लिए अपने बेटे की कुर्बानी देना बेहद मुश्किल काम था. लेकिन हजरत इब्राहिम ने अल्लाह के हुक्म और बेटे की मुहब्बत में से अल्लाह के हुक्म को चुनते हुए बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। हजरत इब्राहिम ने अल्लाह का नाम लेते हुए आंख बंद करके अपने बेटे के गले पर छुरी चला दी. लेकिन जब उन्होंने अपनी आंख खोली तो देखा कि उनका बेटा बगल में जिंदा खड़ा है और उसकी जगह बकरे जैसी शक्ल का जानवर कटा हुआ लेटा हुआ है. जिसके बाद अल्लाह की राह में कुर्बानी देने की शुरुआत हुई।
बकरीद पर क्या होता है?
बकरा ईद के मौके पर सबसे पहले मस्जिदों में नमाज अदा की जाती है। इसके बाद बकरे या दुंबे-भेड़ की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। इसमें से एक हिस्सा गरीबों को जबकि दूसरा हिस्सा दोस्तों और सगे संबंधियों को दिया जाता है। वहीं, तीसरे हिस्सा अपने परिवार के लिए रखा जाता है।
ऐसे दी जाती है कुर्बानी
बकरीद को कुर्बानी का त्योहार कहा जाता है। हालांकि इस्लाम में सिर्फ हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से ही कुर्बानी जायज मानी जाती है। इस दिन इस्लाम को मानने वाले अपने प्यारे जानवर की कुर्बानी करते हैं और कुर्बानी के गोश्त को रिश्तेदारों और जरूरतमंदों में बांट देते हैं। इस दिन लोग बकरे के अलावा ऊंट या भेड़ की भी कुर्बानी देते हैं। लेकिन बीमार, अपाहिज या कमजोर जानवर की कुर्बानी नहीं करते हैं। माना जाता है कि बकरीद पर उस जानवर की कुर्बानी देनी चाहिए, जिसे आपने अपने बच्चे की तरह पाला हो।
ईद की कुर्बानी के नियम
* कुर्बानी का पहला नियम है कि जिसके पास 613 से 614 ग्राम चांदी हो या इतनी चांदी की कीमत के बराबर धन हो सिर्फ उन्हीं लोगों को कुर्बानी देनी चाहिए।
* जो व्यक्ति पहले से ही कर्ज में हो वह कुर्बानी नहीं दे सकता है।
* जो व्यक्ति अपनी कमाई में से ढाई फीसदी हिस्सा दान देता हो साथ ही समाज की भलाई के लिए धन के साथ हमेशा आगे रहता हो उसे कुर्बानी देना जरुरी नहीं है।
* ऐसे पशु जिसे शारीरिक बीमारी हो, सींग या कान का अधिकतर भाग टूटा हो और छोटे पशु की कुर्बानी नहीं दी जा सकती है।
* इसके अलावा ईद की नमाज के बाद ही मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है।
मीठी ईद और बकरीद में क्या अंतर है?
मीठी ईद की तरह बकरीद भी खुशी के साथ मनाई जाती है बस ईद-उल-फितर और बकरीद में में फर्क इतना है कि ईद-उल-फितर खुशी के तौर पर देखा जाता है रमजान के तोहफे के तौर पर मनाई जाती है और ईद-उल-अजहा यानी की बकरीद गरीब और मुजलिमो के लिए उनके साथ मिलकर मनाई जाती है । कुर्बानी का जो कांसेप्ट है उसका भी यही मतलब है कि वह गोश्त गरीबों में तक्सीम करें ताकि गरीबों को एक वक्त का खाना मिल सके। नमाज अदा करने के बाद वे भेड़ या बकरी की कुर्बानी (बलि) देते हैं और परिवार के सदस्यों, पड़ोसियों और गरीबों के उसे साझा करते हैं।
बकरा ईद का महत्व क्या है
मीठी ईद के करीब 70 दिन बाद बकरा ईद मनाई जाती है। बकरा ईद लोगों को सच्चाई की राह में अपना सबकुछ कुर्बान कर देने का संदेश देती है। ईद-उल-अजहा को हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए आगे बढ़े तो खुदा ने उनकी निष्ठा को देखते हुए इस्माइल की कुर्बानी को दुंबे की कुर्बानी में परिवर्तित कर दिया।
बकरीद कितने दिनों का त्यौहार है?
ईद उल-अज़हा 3 दिनों का त्यौहार है. ईद उल-अज़हा को ही भारत, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में बकरीद कहा जाता है. 3 दिन के दौरान हज के सभी अरकानों को पूरा किया जाता है।
हैप्पी बकरी या बकरीद मुबारक कहना, क्या सही है?
बकरीद बलिदान का त्यौहार है. मुसलमान अल्लाह के नाम पर जानवरों की कुर्बानी देते हैं. ऐसे में इस त्यौहार का थीम कुर्बानी यानी बलिदान है. इसीलिए हमें कुर्बानी कबूल होने की अल्लाह से दुआ करनी चाहिए यही नहीं हमें दूसरों के लिए भी यही दुआ करनी चाहिए। अगर आप किसी को कहते हैं कि आप की कुर्बानी कबूल हो यह ज्यादा बेहतर तरीका है. इससे अल्लाह आपको सवाब देगा और सामने वाला भी ज्यादा खुश होगा।
इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।’