हम आज जिस दुनिया में रह रहे हैं, वो टेक्नोलॉजी से भरी पड़ी है। हमारे आसपास की हर चीज़, जैसे-मोबाइल लैपटॉप या टीवी हमें दुनिया भर के बारे में अपडेट करने में मदद करती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये चीज़ें हमारा कितना नुकसान करती हैं। हममें से बहुत से लोग ऑफिस खत्म होने के बाद भी घंटों ईमेल या मैसेज चेक करते रहते हैं और सोशल मीडिया से चिपके रहते हैं। हालांकि डिजिटाइजेशन के कुछ फायदे हैं, लेकिन ये हमें कुछ वक्त के लिए ही रिलैक्स कर सकता है। लंबे वक्त में ये चीज़ें हमें स्ट्रेस दे सकती हैं। बहुत से लोग तो ऐसे भी हैं, जो चौबीस घंटे अपने फोन से चिपके रहते हैं, यहां तक कि वे बाथरूम तक में फोन लेकर जाते हैं। इसके अलावा ऐसे लोग जिनके काम का डिजिटल दुनिया से कोई लेना-देना नहीं है, वो भी इंटरनेट और सोशल मीडिया का लालच छोड़ नहीं पाते हैं। ऐसे में अगर आप थकान, सुस्ती और मोटिवेशन की कमी महसूस कर रहे हैं, तो वक्त आ गया है कि आपको सोशल मीडिया यानी टेक्नोलॉजी से ब्रेक लेने की जरूरत है। तो चलिए आपको बताते हैं कुछ ऐसे तरीके, जिनके ज़रिए आप टेक्नोलॉजी से ब्रेक ले सकते हैं और डिजिटल स्ट्रेस को दूर भी रख सकते हैं।
टेक्नोलॉजी, डिजिटल प्लेटफॉर्म और इंटरनेट दिन-प्रतिदिन तेजी से ग्रो कर रहे हैं और इन पर लोगों की निर्भरता भी बढ़ती जा रही है। जिसका असर सेहत पर भी नजर आने लगा है। आजकल लोग छोटी उम्र में ही तनाव, अवसाद आदि का शिकार हो रहे हैं। जिसका कारण बढ़ता स्क्रीन टाइम और डिजिटल ओवरयूज है। भले ही डिजिटलाइजेशन ने हमारे कई कार्यों को बहुत आसान बना दिया है, परंतु इसका खामियाजा सबसे ज्यादा हमारे शरीर और मानसिक स्वास्थ्य को भुगतना पड़ रहा है।असल दुनिया से हटकर एक अलग डिजिटल दुनिया भी हमारा समय लेने लगी है, जिससे “डिजिटल स्ट्रेस” बढ़ रहा है। जी हां! डिजिटल स्ट्रेस (Digital stress) एक प्रकार का तनाव है, जो आपके मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। तो आइए जानते हैं। आखिर किस तरह डिजिटल स्ट्रेस हमारी सेहत को प्रभावित करता है, साथ ही जानेंगे इससे बचाव के कुछ जरूरी टिप्स।
पहले जानें क्या है डिजिटल स्ट्रेस
वर्क फ्रॉम होम हो या ऑफिस हर जगह हम लैपटॉप और कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा जब हमें फ्री टाइम मिलता है, तो हम अपने मोबाइल फोन पर सोशल मीडिया स्क्रॉल करने लग जाते हैं। हमारा दिमाग आंख और शरीर पूरे दिन टेक्नोलॉजी और डिजिटलाइजेशन से घिरा रहता है। यहां तक कि रात को सोने से तुरंत पहले तक हम मोबाइल चलाते रहते हैं। इन सभी आदतों की वजह से डिजिटल स्ट्रेस बनता है। हमारी आंखें एवं शरीर एक लिमिटेड समय के लिए स्क्रीन टाइम को झेल सकती हैं। उसके बाद यदि आप इसका प्रयोग करते हैं, तो उसका आपके शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सोशल मीडिया पर चल रही तमाम चीजें आपके दिमाग में 24 घंटे घूमती रहती हैं, ऐसे में आपका ब्रेन थोड़ी देर भी शांत नहीं रहता तो ऐसी स्थिति में तनाव बनना बिल्कुल आम है। डिजिटल स्ट्रेस की स्थिति में सिर दर्द, कमर दर्द, इरिटेशन, आंखों में जलन होने जैसे तमाम लक्षण देखने को मिलते हैं।
जानिए डिजिटल स्ट्रेस को कैसे कंट्रोल करना है
एक सुनिश्चित बाउंड्री तय करें : खुद को डिजिटल स्ट्रेस से डिटॉक्स करने के लिए पूरे दिन में कुछ ऐसा समय निश्चित करें, जब आप मोबाइल फोन से पूरी तरह से दूरी बनाए रखेंगे। इसमें सेल्फ कंट्रोल बहुत ज्यादा मायने रखता है। निश्चित रूप से खाना खाते वक्त, वॉशरूम में, रात को सोने से पहले, दोस्तों के साथ या फिर परिवार के सदस्यों के साथ बैठे होने पर मोबाइल का इस्तेमाल न करें। यदि आप लैपटॉप या पीसी पर अपने ऑफिस का काम करते हैं, तो बीच-बीच में ब्रेक लेते रहें। 20-20 रूल अपना सकते हैं। जैसे कि हर 20 मिनट के बाद 20 सेकंड के लिए अपने आंखों को लैपटॉप से हटाकर किसी अन्य ऑब्जेक्ट पर टिकाए रखें। ऐसा करने से आपके आंखों का थकान कम होता है। जब आपकी आंखें रिलैक्स रहती हैं, और आप फोन चलाने का एक निश्चित समय तय कर लेते हैं, तो ऐसे में डिजिटल स्ट्रेस होने का खतरा बहुत कम होता है। ऐसे में आप पूरे दिन में अन्य गतिविधियों में भी भाग ले पाते हैं।
काम से ब्रेक लें : डिजिटल स्ट्रेस को लेकर किए गए सर्वे के मुताबिक, हमेशा काम के लिए मौजूद रहना डिजिटल स्ट्रेस के सबसे अहम कारणों में से एक है और सर्वे में शामिल तकरीबन एक चौथाई लोगों ने इसके कारण काम करने में ज्यादा वक्त बिताया। हालांकि ऑफिस से निकलने के बाद भी ईमेल चेक करना और ऑफिस कॉल का जवाब देना जरूरी हो सकता है, लेकिन अपने लिए कुछ वक्त निकालना और काम के स्ट्रेस से दूर रहना भी बहुत जरूरी है। अपने ऑफिस के साथियों को बताएं कि आप ऑफिस के बाद उपलब्ध नहीं रहेंगे। अपने फोन और कंप्यूटर को बंद कर दें और हर शाम को आराम करने के लिए थोड़ा सा वक्त निकालें। इस दौरान नहाएं, किताब पढ़ें, एक्सरसाइज़ करें, या वो काम करें, जिससे आपको रिलैक्स होने में मदद मिले। अगर ऑफिस के बाद भी आपके लिए कॉल व मैसेज का जवाब देना जरूरी है, तो भी इनका टाइम कम रखें और कुछ देर के लिए अपना फोन बंद रखें।
अपने डिवाइस नोटिफिकेशन को कस्टमाइज करें : जैसे ही आपके फोन का नोटिफिकेशन बजता है, आप अपने सभी काम छोड़कर अपने फोन के पास भागते हैं। यह आदत सेहत के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं है, क्योंकि यह आपके मोबाइल और आपके बीच के अंतर को धीरे-धीरे और ज्यादा कम कर रहा है। हमेशा जरूरी नोटिफिकेशंस को ऑन रखें और फोन के अन्य सभी नोटिफिकेशंस को बंद कर दें। ऐसी स्थिति में आप आसानी से डिजिटल स्ट्रेस से दूरी बनाए रख सकते हैं।
ब्लू लाइट फ़िल्टर का इस्तेमाल करें : फोन से निकलने वाली ब्लू लाइट से आंखों पर भार पड़ता है, जिसकी वजह से नींद पूरी तरह से डिस्टर्ब हो जाती है। ब्लू लाइट फिल्टर, ग्लास और ब्लॉकिंग स्क्रीन प्रोटेक्टर्स का इस्तेमाल आंखों पर पड़ने वाले ब्लू लाइट के प्रभाव को कम कर देता है। साथ ही यह आपके नींद की गुणवत्ता को भी बढ़ाता है।
अपने कॉन्टैक्ट चुनें : फोन पर आने वाले ढेर सारे मैसेज या ऐसे लोगों का सोशल मीडिया अपडेट देखना जो आपको किसी भी तरह से स्ट्रेस देते हैं, उससे आपका मूड आसानी से खराब हो सकता है। इसलिए आप किसके लिए और कब उपलब्ध हैं, ये चुनना आपके लिए मददगार हो सकता है। हममें से बहुत से सोशल मीडिया पर आने वाली हर फ्रेंड रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट कर लेते हैं और दूसरों को अपना कॉन्टैक्ट नंबर भी आसानी से दे देते हैं, लेकिन ऐसा सिर्फ तभी करें जब आप सामने वाले को अच्छी तरह से जानते हों या जब आपका मन करे। अगर आपको लगता है कि आप किसी के साथ लगातार कॉन्टैक्ट में नहीं रह सकते हैं, तो उन्हें समझाने की कोशिश करें कि आप सोशल मीडिया का यूज़ कम करते हैं। इसी तरह अगर आप ऑफिस के सभी साथियों के लिए लगातार उपलब्ध नहीं रहना चाहते हैं, तो चुनिंदा साथियों से बातचीत करने के लिए अलग ग्रुप बनाएं।
डिजिटल डिटॉक्स करें : हममें से बहुत से लोग अपने दिन का एक बड़ा वक्त इंटरनेट, सोशल मीडिया या मोबाइल पर बिताते हैं। इससे हम वक्त बिताने वाली दूसरी एक्टिविटीज़ से दूर हो जाते हैं, जैसे- परिवार, दोस्तों या हमारे आसपास के लोगों के साथ बातचीत। इसलिए स्ट्रेस कम करने और दूसरी फायदेमंद एक्टिविटीज़ के लिए वक्त निकालने के लिए डिजिटल डिटॉक्स करने की कोशिश करें। कुछ घंटे, एक दिन या एक हफ्ता, जो भी आपके लिए सही हो, बिना फोन या लैपटॉप के बिताएं और इसके बजाय असल दुनिया में रहें। अपने आईपॉड पर गाने सुनने के बजाय पंछियों को गाते हुए सुनें, अपने फोन पर नज़रें गड़ाने के बजाय अपने आसपास के माहौल को देखें और ईमेल भेजने के बजाय किसी से आमने-सामने बातचीत करें। फोन और लैपटॉप को कुछ वक्त के लिए बंद करने से आपकी दुनिया नहीं रुक जाएगी, लेकिन इससे आपका स्ट्रेस जरूर कम होगा।
माइंडफुलनेस का अभ्यास करें : खाना खाते वक़्त इंस्टाग्राम स्क्रॉल करने जैसी मल्टीटास्किंग काम काफी मजेदार लगते हैं, पर ये सेहत के लिए कितने हानिकारक हो सकते हैं, इसकी जानकारी आपको शायद नहीं है। हमेशा ऐसी चीजों को अवॉइड करें। डिजिटलाइजेशन की दुनिया को आवश्यकता अनुसार इस्तेमाल करना सही है, परंतु इसका अधिक इस्तेमाल आपके मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है। डिजिटल स्ट्रेस के प्रभाव को कम करने के लिए अपने फ्री समय में माइंडफूलनेस जैसे कि योग, मेडिटेशन, इत्यादि का अभ्यास करें। इसके साथ ही अपने मन पसंदीदा कार्य जैसे की पेंटिंग, डांसिंग, सिंगिंग, लेखन जैसी गतिविधियों में भाग ले सकते हैं।
प्रेशर महसूस न करें : एक सर्वे के मुताबिक, डिजिटल स्ट्रेस का एक अहम कारण टेक्नोलॉजी के साथ तालमेल बिठाना है। हममें से ज्यादातर लोगों को लगता है कि वो हर नई टेक्नोलॉज़ी के बारे में अपडेट रहें। ये बात मोबाइल फोन या आईपॉड खरीदने या सोशल मीडिया साइट पर अकाउंट बनाने के लिए जरूरी हो सकती है, लेकिन हर चीज़ के लिए नहीं। याद रखें कि टेक्नोलॉजी आपकी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए है, न कि इससे अलग करने के लिए और अगर ये आपको स्ट्रेस दे रही है, तो इससे दूर होना ही सही है। टेक्नीक का असर आपके मूड और दिमाग पर पड़े, ये भी सही नहीं है, इसलिए आपको जो चीज़ फायदेमंद लगे, उसका अपडेट पाने की कोशिश करें और किसी ट्रेंड को फॉलो करने के चक्कर में न पड़ें। अगर आपको अपनी नौकरी के लिए कुछ डिजिटल चीज़ों के बारे में जानने की जरूरत है या इससे आपके स्किल्स बेहतर होंगे, तो कोई कोर्स करें या किसी से इसके बारे में पूछें, लेकिन इसे अपने ऊपर हावी न होने दें।
फेस टू फेस मीटिंग रहेगी अधिक प्रभावी : मेंटल एक्सपर्ट बताते हैं की डिजिटलाइजेशन ने हमें अपनों से जितना ज्यादा जोड़ा है उससे कहीं ज्यादा दूर कर दिया है। आज हम विदेश में बैठे लोगों से बातचीत कर सकते हैं, परंतु घर के पास रहने वाले व्यक्ति से शायद महीने में एक बार भी नहीं मिलते हैं। लोगों से फोन कॉल पर बात करने का प्रेशर, सोशल मीडिया पर चैट करने का दबाव यह सभी आपको डिजिटल स्ट्रेस का शिकार बना रहा है। जब कभी आप फ्री रहते हैं, तो फोन पर बात करने की जगह अपने किसी दोस्त या परिवार के सदस्य जो आपके आसपास रहता हों, उनसे मिलें और बैठकर बातचीत करें। ऐसा करने से आपका स्क्रीन टाइम कम होता है और आप टेक्नोलॉजी से थोड़ी देर के लिए ही सही दूर रहती हैं। जो आपके मेंटल हेल्थ के लिए बहुत जरूरत है।
सोने से पहले टेक्नोलॉजी से दूर रहें : टेक्नोलॉजी न सिर्फ आपके मूड पर, बल्कि आपके सोने के तरीके पर भी असर डाल सकती है। ये आपके मूड पर गहरा असर डाल सकती है, क्योंकि नींद की कमी से थकान, चिड़चिड़ापन और आपकी इम्युनिटी भी खराब हो सकती है। इसलिए सोने से करीब एक घंटे पहले अपने मोबाइल और लैपटॉप को बंद कर दें और इसके बजाय रिलैक्स होने की कोशिश करें। खुद को नींद के लिए तैयार करने के लिए आप किताब पढ़ सकते हैं, मेडिटेशन या डीप ब्रीदिंग कर सकते हैं या सुकून भरा म्यूज़िक भी सुन सकते हैं। इससे आपको अच्छी और गहरी नींद पाने में मदद मिलेगी। सेल्फ केयर की प्रैक्टिस करें : डिजिटल स्ट्रेस से निपटने के लिए सेल्फ केयर की प्रैक्टिस करें। इसका मतलब यह नहीं है कि आपको डिजिटल दुनिया से पूरी तरह से अलग होना है, लेकिन आपको अपने शरीर और दिमाग को आराम देने के लिए ई-मेल, सोशल मीडिया और मैसेज की दुनिया से बाहर निकलना होगा। ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका है रोज़ाना कुछ वक्त का ब्रेक लेना और उस वक्त का यूज़ खुद पर ध्यान देने के लिए करना। इसके लिए आप ऑफिस से आकर थोड़ा रिलैक्स कर सकते हैं, खुद का पसंदीदा खाना बना सकते हैं, योगा कर सकते हैं या स्पोर्ट्स शूज पहनकर बाहर टहलने जा सकते हैं। टेक्नोलॉजी सेल्फ केयर की प्रैक्टिस करने में हमारी मदद कर सकती है, लेकिन सोशल मीडिया या मैसेज बाढ़ में खो जाने के बजाय हमें इसका इस्तेमाल ब्रेक लेने के लिए और खुद को रिलैक्स करने के लिए करना चाहिए।