प्रतिवर्ष मई और अक्टूबर महीने के दूसरे शनिवार को मनाए जाने वाला विश्व प्रवासी पक्षी दिवस इस साल 2023 में 13 मई और 14 अक्टूबर 2023 को मनाया जा रहा है। अपने बच्चों को पालने, प्रजनन करने या मौसम की मार से खुद को बचाने के लिए जब पक्षी सर्वोत्तम पारिस्थितिक परिस्थितियों एवं आवास की खोज में सैकड़ों और हजारों किलोमीटर का सफर तय करते है, तो इसे “प्रवास” कहा जाता है। आज कई पक्षी इस यात्रा के दौरान थकने, प्यास लगने या भोजन की कमी से मर जाते है, ऐसे में इन्हें हम मनुष्यों की मदद की आवश्यकता होती है, इसीलिए प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों के संरक्षण की आवश्यकता को समझते हुए साल में दो बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रवासी पक्षी दिवस (World Migratory Bird Day) मनाया जाता है।
विश्व प्रवासी पक्षी दिवस 13 मई को भारत सहित दुनिया भर के देशों में मनाया जायेगा। यह दिन प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों की रक्षा करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालने का दिन है। संयुक्त राष्ट्र इस वैश्विक जागरूकता अभियान का समर्थन करने वाले कई संगठनों में से एक है। प्रत्येक मई के दूसरे सप्ताह के शनिवार को, दुनिया भर के लोग पक्षी उत्सव, शिक्षा कार्यक्रम और पक्षी-देखने के भ्रमण जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों का आयोजन करके विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाते हैं। विश्व प्रवासी पक्षी दिवस (डब्लूएमबीडी) एक वार्षिक जागरूकता अभियान है जो प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों के संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। इसकी वैश्विक पहुंच है और यह प्रवासी पक्षियों के सामने आने वाले खतरों, उनके पारिस्थितिक महत्व और उनके संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने में मदद करने के लिए एक प्रभावी उपकरण है। हर साल दुनिया भर में लोग विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाने के लिए पक्षी उत्सव, शिक्षा कार्यक्रम, प्रदर्शनियां और पक्षी-देखने के भ्रमण जैसे सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। ये सभी गतिविधियां वर्ष में किसी भी समय की जा सकती हैं क्योंकि वे देश या क्षेत्र अलग-अलग समय पर प्रवास के चरम को देख सकते हैं, लेकिन मई और अक्टूबर में दूसरे शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय समारोहों के लिए मुख्य दिन हैं।
वर्ल्ड माइगेट्री बर्ड डे के बारे में जानकारी
नाम : विश्व प्रवासी पक्षी दिवस (World Migratory Bird Day)
शुरूआत : वर्ष 2006 में
कब : मई और अक्टूबर का दूसरा शनिवार
उद्देश्य : प्रवासी पक्षियों के पारिस्थितिक महत्त्व एवं संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाना।
थीम (2023) : वाटर: सस्टेनिंग बर्ड लाइफ
तारीख़ : 13 मई 2023 और 14 अक्टूबर 2023
विश्व प्रवासी पक्षी दिवस की शुरूआत कैसे हुई? (इतिहास)
प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों के संरक्षण की आवश्यकता को विश्व भर के लोगों को समझाने और उन्हें जागरुक करने के लिए साल में दो बार मई और अक्टूबर के दूसरे शनिवार को विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाया जाता है। वन्य जीवों की प्रवासी प्रजाति और अफ्रीकी-यूरेशियाई वॉटरबर्ड समझौते (AEWA) के संरक्षण पर सम्मेलन के सचिवालय द्वारा आयोजित, विश्व प्रवासी पक्षी दिवस एक वार्षिक, वैश्विक जागरूकता बढ़ाने वाला अभियान है। जो प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों की संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। इसे मनाए जाने की शुरुआत वर्ष 2006 में अफ्रीकी-यूरेशियन प्रवासी जल पक्षी संरक्षण समझौते (AEWA) के सचिवालय द्वारा वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (CMS) पर कन्वेंशन के सचिवालय के सहयोग से की गई थी।
पहली बार वर्ल्ड माइगेट्री बर्ड डे कब मनाया गया?
वर्ष 2006 में प्रवासी जल पक्षी दिवस (Migratory Waterbird Day) को विश्व प्रवासी पक्षी दिवस के रूप में विस्तारित किए जाने के बाद पहला वर्ल्ड माइगेट्री बर्ड डे 8-9 अप्रैल, 2006 को “प्रवासी पक्षियों को अब हमारे समर्थन की आवश्यकता है!” थीम के साथ मनाया गया था। हालंकि 13/14 मई 2006 के सप्ताहांत पर, पश्चिमी गोलार्ध में सैकड़ों लोग यह दिवस मना रहे थे।
वर्ल्ड माइगेट्री बर्ड डे क्यों मनाया जाता है?
वर्ल्ड माइगेट्री बर्ड डे मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य लोगों के अंदर प्रवासी पक्षियों के प्रति जागरुकता पैदा करना और उन्हे बचाना है। ताकि वे सही सलामत अपने देश लौट सके और फिर मौसम अनुसार वापस भी आए। सभी प्रवासी पक्षी हमारी साझा प्राकृतिक विरासत का हिस्सा हैं। और वे प्रजनन, भोजन और विश्राम के लिए अपने प्रवास मार्गों के नेटवर्क पर निर्भर हैं।
प्रवासी पक्षियों को संरक्षित करने की आवश्यकता क्यों है?
प्रवासी पक्षी हमारे और पारिस्थितिक तंत्र के लिए काफी फायदेमंद हैं पक्षियों के द्वारा ही फूलों में परागकण प्रक्रिया, बीज फैलाव एवं कीट नियंत्रण जैसी महत्वपूर्ण कार्य किए जाते हैं। साथ ही यह पर्यटन और फोटोग्राफी जैसी प्रमुख आर्थिक लाभ और लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। आप भी आज से अपने बगीचे में या छत पर पक्षियों के लिए दाना-पानी एवं उनके आश्रय व आराम करने की व्यवस्था आवश्य करें।
विश्व प्रवासी पक्षी दिवस 2023 की थीम
हर साल, विश्व प्रवासी पक्षी दिवस एक वार्षिक थीम प्रस्तुत करता है, जिसका उद्देश्य प्रवासी पक्षियों को प्रभावित करने वाले मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उनके संरक्षण के लिए दुनिया भर के लोगों और संगठनों को प्रेरित करना होता है। इस साल विश्व प्रवासी पक्षी दिवस 2023 की थीम “जल: सतत पक्षी जीवन” (Water: Sustaining Bird Life) है। यह थीम और नारा प्रवासी पक्षियों के लिए पानी के महत्व पर केंद्रित है, जो हमारे ग्रह पर जीवन का मूलभूत आधार है। पिछली साल 2022 में Migratory Bird Day की Theme ‘प्रवासी पक्षियों पर प्रकाश प्रदूषण का प्रभाव‘ (Impact of Light Pollution on Migratory Birds) थी, और इस साल का स्लोगन (नारा) “रात में पक्षियों के लिए रोशनी कम करें!” (Dim the Lights for Birds at Night!) था। साल 2021 में इसे “Sing, Fly, Soar, like a Bird” थीम के साथ मनाया गया था, तो वहीं 2020 का विषय “Birds Connect Our World” (पक्षियों के माध्यम से जुड़ी पूरी दुनिया) था।
पिछले कुछ सालों की थीम
वर्ष थीम
2022 Impact of Light Pollution on Migratory Birds
2021 Sing, Fly, Soar, like a Bird
2020 Birds Connect Our World
2019 Protectd Birds: Be the Solution to Plastic Pollution
2018 Unifying Our Voices for Bird Conservation
2017 Their Future is our Future
2016 Stop the illegal killing, taking and trade of Migratory Birds!
2015 Energy – make it bird-friendly!
2014 Destination Flyways: Migratory Birds and Tourism
2013 Networking for migratory birds
अंतर्राष्ट्रीय घूमंतू पक्षी दिवस कैसे मनाया जाता है?
हर साल दुनिया भर के लोग और समर्पित संगठन सैकड़ों सार्वजनिक कार्यक्रम जैसे पक्षी उत्सव, शिक्षा कार्यक्रम, प्रदर्शनियां और बर्ड-वॉचिंग का आयोजन करते हैं। और विश्व भर में पक्षियों और पक्षी संरक्षण के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए विविध भागीदारों के साथ काम करते है। उनके कार्यक्रम बच्चों और वयस्कों को बाहर जाने, पक्षियों के बारे में जानने और उनके संरक्षण में भाग लेने के लिए प्रेरित करते हैं। आप भी अपने छत पर पक्षियों के आराम करने और भोजन-पानी का इंतजाम करें और अच्छे फूल-पौधे लगाकर आप उन्हे आकर्षित कर सकते है। कुछ पक्षी कीड़े-मकौड़े खाते है ऐसे में उनके लिए इसका प्रबंधन आपके बागीचे की उपजाऊ मिट्टी से हो सकता है। (ध्यान रखें की यह स्थान कुत्ते या बिल्ली की पहुंच से दूर हो)
अधिकांश पक्षी कभी भी एक जगह नहीं ठहरते, और बदलते मौसम के अनुरूप से वे एक से दूसरे राज्य में प्रवास करते रहते हैं।
पक्षियों की कई प्रजातियां तो ऐसी हैं, जो हजारों मील का सफर तय करके दूसरे देश पहुँच जाती हैं। इसके अलावा, पक्षी अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए सर्वोत्तम परिस्थितियों और आवास की तलाश में सैकड़ों और हजारों किलोमीटर का सफर तय करते हैं। ज्यादातर पक्षी उत्तरी क्षेत्र से दक्षिणी मैदानों की ओर पलायन करते हैं। हालांकि, कुछ पक्षी अफ्रीका के दक्षिणी भागों में प्रजनन करते हैं, और सर्दियों में तटीय जलवायु का आनंद लेने के लिए प्रवास पर मैंदानों की ओर निकल पड़ते हैं। अन्य पक्षी सर्दियों के महीनों के दौरान मैदानी क्षेत्र में रहते हैं, और गर्मियों में पहाड़ों की ओर चले जाते हैं। प्रवासी पक्षियों को कई खतरों का भी सामना करना पड़ता है, जिसमें मुख्य रूप से प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। प्रदूषण से न केवल स्थानीय पक्षी प्रभावित होते हैं, बल्कि इससे प्रवासी पक्षियों के लिए संकट खड़ा हो रहा है। प्रदूषण के कारण पक्षियों का जीवन बेहद मुश्किल हो जाता है, और इससे पक्षियों को अपने प्रवास को सफलतापूर्वक पूरा करना कठिन हो जाता है। इसके साथ ही, पक्षियों का अवैध शिकार भी एक गंभीर समस्या है। हर साल बड़ी संख्या में पक्षियों को अपने प्रवास के बीच भुखमरी का सामना करना पड़ता है। अपर्याप्त भोजन के कारण अधिकांश पक्षी मौत का शिकार हो जाते हैं। प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिए विश्व प्रवासी पक्षी दिवस साल में दो बार मनाया जाता है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड के अनुसार भोजन और संसाधनों की खपत में वृद्धि ने पक्षियों के प्राकृतिक आवास को नुकसान पहुँचाया है, और इसमें विकासात्मक गतिविधियों की अहम भूमिका है। लिविंग प्लेनेट इंडेक्स के अनुसार वर्ष 1970 से 2014 की अवधि में पशु एवं पक्षियों की आबादी में 60 प्रतिशत की गिरावट हुई है। आर्द्रभूमि प्रवासी पक्षियों की गर्म प्रजनन स्थल मानी जाती है। लेकिन, ढांचागत संरचनाओं और विकासात्मक गतिविधियों में वृद्धि के साथ आर्द्रभूमि तेजी से समाप्त हो रही हैं। यह बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों की आबादी को प्रभावित कर रहा है। हर साल भारत में विभिन्न प्रजाति के पक्षियों का प्रवास होता है। भारत आने वाले प्रवासी पक्षियों में साइबेरियन क्रेन, ग्रेटर फ्लेमिंगो, रफ, ब्लैक विंग्ट स्टिल्ट, कॉमन टील, वुड सैंडपाइपर जैसी पक्षियों की प्रजातियां शामिल हैं। इन प्रवासी पक्षियों को हम जिम कॉर्बेट, दिल्ली बायोडायवर्सिटी पार्क जैसी जगहों पर भी देख सकते हैं। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण प्रवासी पक्षियों की संख्या में तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है। ऐसे में, हमें यह समझना जरूरी है कि प्रवासी पक्षी हमारी एक साझा प्राकृतिक विरासत हैं और इनका भी संरक्षण बेहद जरूरी है।
भारत में आने वाले प्रमुख प्रवासी पक्षी कौन से है?
भारत में आने वाले पांच प्रमुख प्रवासी पक्षी है
* साइबेरियन सारस (Siberian Cranes),
* अमूर फाल्कन (Amur Falcons),
* राजहंस (Greater Flamingo),
* रोजी पेलिकन (Rosy Pelican)
* एशियाई कोयल (Asian Cuckoo).
सबसे छोटा प्रवासी पक्षी कौन सा है?
हमिंग बर्ड सबसे छोटा प्रवासी पक्षी है, और यह प्रवास करते समय 48 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से यात्रा कर सकते हैं। यह पंछी पर्यावरण में फैलते प्रदूषण की वजह से लुप्त होने जा रहे है। अगर इनका बचाव नही किया गया तो यह जल्द ही पृथ्वी पर समाप्त हो जाएंगे। अथार्त इनका संरक्षण बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। ऐसे में International Migratory Bird Dayके इस ख़ास मौके पर हमें इनके संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए। और अपने घर की छतों एवं बगीचों में इनके खाने पीने और आराम करने का प्रबंध करना चाहिए।
राजस्थान में है पक्षी प्रेमियों का स्वर्ग, जहां आते हैं रंग-बिरंगे प्रवासी पक्षी
अगर आप खूबसूरत रंग-बिरंगे प्रवासी पक्षियों को देखना और उनकी आवाज को सुनना चाहते हैं तो पक्षी विहार सबसे बेहतर जगह है। मनमोहक रंगबिरंगे पक्षियों के कलरव से गूंजता भारतपुर पक्षी विहार पर्यटकों को खूब लुभाता है। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान या केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान में स्थित एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान है। इसको पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। यह उद्यान पक्षी प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। विश्व धरोहर सूची में शामिल यह स्थान प्रवासी पक्षियों का भी बसेरा है। यह भारत का सबसे बड़ा पक्षी अभयारण्य है जो 1964 में अभयारण्य और 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। यह उद्यान भरतपुर का सर्वाधिक प्रसिद्ध पर्यटन आकर्षण है। केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान का निर्माण लगभग 250 वर्ष पहले महाराजा सूरजमल ने करवाया था। यह राष्ट्रीय उद्यान 29 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। 1985 में यूनेस्को ने इस उद्यान विश्व विरासत स्थान की मान्यता दी। प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में पर्यटक इस लोकप्रिय राष्ट्रीय उद्यान की सैर करने के लिए आते हैं। वर्तमान में इस पार्क में कछुओं की कई किस्में, मछलियों की 50 किस्में और उभयचरों की पांच किस्में पाई जाती हैं। इसके अलावा यह उद्यान पक्षियों की लगभग 375 किस्मों का प्राकृतिक आवास है। इस उद्यान में न केवल देश से बल्कि यूरोप, अफगानिस्तान, चीन, मंगोलिया, रूस और तिब्बत आदि से भी पक्षी आते हैं। 5000 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर दुर्लभ प्रवासी पक्षी साइबेरियन क्रेन सर्दियों में यहां पहुंचते हैं जो पर्यटकों का मुख्य आकर्षण होते हैं। मानसून के मौसम के दौरान देश के प्रत्येक भागों से पक्षियों के झुंड यहां आते हैं। पानी में पाए जाने कुछ पक्षी जैसे सिर पर पट्टी और ग्रे रंग के पैरों वाली बतख, पिनटेल बतख, सामान्य छोटी बतख, रक्तिम बतख, जंगली बतख, वेगंस, शोवेलेर्स, सामान्य बतख, लाल कलगी वाली बतख आदि यहां पाए जाते हैं। यह राष्ट्रीय उद्यान सुंदर पक्षियों की 375 से अधिक प्रजातियों का बसेरा है। पक्षियों के अलावा पर्यटक जानवर जैसे काला हिरन, पायथन, सांबर, धब्बेदार हिरण और नीलगाय देख सकते हैं।
भारत के पहले पर्यावरणविद ‘बिश्नोई’, जिनकी पहचान है करुणा और त्याग
15 वीं शताब्दी के बाद से राजस्थान में बिश्नोई समुदाय पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित रहे है। पर्यावरण के लिए करुणा और त्याग समुदाय के मन में हमेशा रहता है। सन् 1485 में पश्चिमी राजस्थान में मारवाड़ के राजपूत सरदार, गुरु जम्बेश्वर बिश्नोई पंथ का संस्थापक माना जाता हैं। उन्होंने 29 आज्ञाएं तैयार कीं, जो बिश्नोई मृत्यु तक पालन करने की उम्मीद करते है। इनमें से छह असाधारण हैं, वे सभी पर्यावरण संरक्षण के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। वो अपनों से अलग हुए पशुओं के लिए आश्रय प्रदान करते हैं और उन्हें पेड़ों को काटने की इजाज़त नहीं है, उन्हें इस आज्ञा आजीवन पालन करना होता है। बिश्नोई समुदाय के लोग राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उतरप्रदेश और मध्यप्रदेश आदि प्रदेश में रहते हैं। इस पंथ के मूल में पर्यावरण की सुरक्षा सिद्धांतों के अंतर्गत की जाती है। सदियों से, वे पर्यावरण के लिए जीते और मरते रहे हैं। सन् 1730 में पश्चिमी राजस्थान के सुदूरवर्ती गांव खेजारी में 363 बिश्नोई पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने खेजड़ी के सैकड़ों पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी थी। यह पेड़ राजा के महल के लिए चूने के भट्टों गर्म करने के लिए काटे जा रहे थे। बिश्नोई अपने आसपास रहने वाले लुप्तप्राय वन्यजीवों की रक्षा करते हैं। 15 वीं शताब्दी में गुरु जंबेश्वर द्वारा 29 सिद्धांत तैयार किए गए थे। वो रेगिस्तान में कठिन परिस्थितियों में गेहूं, बाजरा और मिर्च उगाते हैं। वे वन्यजीवों के साथ 10 प्रतिशत भोजन साझा करने के सिद्धांत का धार्मिक रूप से पालन करते हैं। पारंपरिक बिश्नोई रसोई में केवल पेड़ों से गिरी लकड़ियों और पूरी तरह से सूख चुके पेड़ों की लकड़ियों को ईंधन के रूप में और फर्नीचर बनाने में उपयोग करते हैं। उन्होंने जोधपुर के पास गुडा झील में प्रवासी पक्षियों के लिए इस रेगिस्तानी क्षेत्र में वर्षा जल का संरक्षण किया है। यह झील बिश्नोईयों द्वारा बनाई गई है। कुछ साल पहले, बिश्नोईयों ने बिजली परियोजना की नींव रखने के खिलाफ हरियाणा के फतेहाबाद में भूख हड़ताल की। वे क्षेत्र के लुप्तप्राय वन्यजीवों के लिए एक पर्याप्त संरक्षण कार्यक्रम की मांग करते रहे हैं।
विश्व प्रवासी पक्षी दिवस की गतिविधियां दुनिया भर के कई अलग-अलग देशों और स्थानों में होती हैं – एक आम अभियान और थीम से एकजुट होती हैं। यदि आप डब्लूएमबीडी के लिए एक कार्यक्रम आयोजित करने में रुचि रखते हैं, तो अपनी नियोजित गतिविधि को पंजीकृत करें। इस तरह, व्यक्तिगत घटनाओं को दुनिया भर के अन्य लोगों के साथ साझा किया जा सकता है और उन्हें भी कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करने में मदद मिलती है। पता करें कि आप कैसे भाग ले सकते हैं।