इंसान के सेहतमंद रहने के कई पहलू हैं. एक तो वह ऐसा जीवन जिए जिससे उसे कोई रोग ही ना हो यह सीधा लाइफस्टाइल से संबंधित है. दूसरा पहलू है रोग और उसका इलाज. किसी भी रोग से निपटने के भी दो तरीके होते हैं. एक तो उसका उपचार है जिसमें दवा देकर रोग ठीककिया जा सके. वहीं दूसरे तरीके में शरीर को इतना ताकतवर बनाया जाया कि वह खुद ही अपनी प्रतिरोधक क्षमता के बल पर रोग से लड़ सके. इसमें एक कारगर उपाय वैक्सीन है. 16 मार्च को भारत में राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस मनाया जा रहा है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन तक बहुत अहमियत देता है।
राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस हर साल 16 मार्च को मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत 1995 में हुई थी। जब पहली बार पोलियो वैक्सीन की ओरल खुराक शुरू की गई थी। 16 मार्च के दिन ही पहली पोलियो वैक्सीन भारत में दी गई थी। तब से लगातार इस दिवस को राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाए जाने का उद्देश्य टीकों यानी वैक्सीनेशन के बारे में लोगों को जागरूक करने और इसका महत्व समझाने के लिए मनाया जाता है। जब कोरोना महामारी की शुरुआत हुई तब लोगों को टीकाकरण की अहमियत समझ आई। उन्हें समझ आया कि किस प्रकार टीकाकरण बीमारियों को रोकने के लिए कारगर साबित हो सकता है। इतना ही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन- डब्ल्यूएचओ (WHO) के अनुसार जीवन के लिए खतरनाक संक्रामक रोगों को नियंत्रित करने और उन्मूलन के लिए टीकाकरण एक सिद्ध तकनीक है। भारत में पिछले साल कोरोना के लिए एक बड़े स्तर पर टीकाकरण अभियान की शुरुआत की गई थी, जिसमें कोरोना महामारी से निपटने के लिए देश के हर निवासी को वैक्सीन दी गई थी। भारत ने अपने देशवासियों के साथ अन्य देशों के लिए भी टीकाकरण को महत्वपूर्ण समझा और इसके लिए भारत ने कई पड़ोसी देशों के साथ अन्य देशों की भी वैक्सीन मुहैया करवाई। न केवल भारत बल्कि साथ के कई देश इस अभियान का हिस्सा बनें। राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस क्यों मनाया जाता है, कब मनाया जाता है और 16 मार्च को ही क्यों मनाया जाता है आदि सवाल सभी के मन में आते हैं। आज इस लेख के माध्यम से आपको इन सभी की जानकारी देंगे।
क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस
प्रतिवर्ष राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस 16 मार्च को मनाया जाता है। इस दिवस को 16 मार्च को इसलिए मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन भारत में पहली ओरल वैक्सीन की शुरुआत की गई थी। 16 मार्च के इस ऐतिहासिक दिन को चिन्हित करने के लिए पहला राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस मनाया गया था। भारत में पहली पोलियो वैक्सीन की खुराक में 1995 दी गई थी। तभी से लगातार इस दिवस को मनाया जाता है। ये दिवस भारत सरकार के पोलियो उन्मूलन के लिए पल्स पोलियो अभियान की एक पहल थी, जिसका जश्न मनाने के लिए इस दिवस को मनाया जाता है।
राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस 2023 की थीम
राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस हर साल एक नई थीम के साथ मनाया जाता है। इस साल यानी 2023 में राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस की थीम “टीके सभी के लिए काम करते हैं (वैक्सीन वर्क फॉर ऑल)” चुनी गई है। इस थीम का चुनाव इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि किस प्रकार वैक्सीन का विकास करने वाले, उसे वितरित करने वाले और उसे प्राप्त करने वाले लोग हर स्थान पर हर किसी के स्वास्थ्य की रक्षा करने का कार्य करते हैं। आपको बता दें कि पिछले साल (2022) भी राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस को इसी थीम के साथ मनाया गया था।
राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस की टाइमलाइन
• 1940 का दशक- बड़े पैमाने पर टीका उत्पादन- बड़े पैमाने पर टीका उत्पादन और रोग नियंत्रण प्रयासों की अनुमति देने के लिए वैज्ञानिक ज्ञान विकसित हुआ।
• 1960 का एमएमआर टीका-खसरा, कण्ठमाला और रूबेला के टीकों को मिलाकर M.M.R टीका बनाया जाता है।
• 1972 – चेचक के टीके को हटा दिया गया – वैश्विक उन्मूलन के बाद चेचक के टीके को बंद कर दिया गया।
• 2020-कोविड-19 टीके-कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए आवश्यक टीकों को मंजूरी दी गई है।
भारत में कब हुई थी आधुनिक टीकाकरण की शुरुआत
भारत में आधुनिक टीकाकरण की शुरुआत उन्नीसवीं सदी में हुई थी। आज से करीब 51 वर्ष पहले। जब भारत ने बैसिल कैलमेट गुएरिन (BCG) टीकाकरण की शुरुआत तपेदिक से निपटने के लिए की थी। जिसको ध्यान में रखते हुए वर्ष 1978 में उन्नत कार्यक्रम की शुरुआत की गई। इसमें टाइफाइड और डीपीटी टीकाकरण शामिल किया गया। जिसके बाद इस योजना को संशोधित कर इसका नाम 1985 में बदलकर सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP) किया गया। आपको बता दें कि इसे चरणों में लागू किया गया था।
राष्ट्रीय टीकाकरण का क्या है उद्देश्य
राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम का उद्देश्य एक ऐसा शक्तिशाली और कारगर तंत्र विकसित करना है जिससे सभी बच्चों और शिशुओं को सभी जरूरी टीके लगना सुनिश्चित किया जा सके. सौभाग्य से भारत का इस मामले में रिकॉर्ड, सौ फीसद लक्ष्य हासिल ना करने के बाद भी, बहुत अच्छा है. हमारे देश के टीकाकरण काफी सफल रहे हैं जो दुनिया के कई बड़े देशों के लिए भी एक सबक है।
भारत को कब किया गया पोलियो मुक्त घोषित
राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस की शुरुआत पोलियो के टीके से की गई थी। जहां पोलियो की बीमारी से बचाने के लिए 0 से 5 साल की आयु के बच्चों को पोलियो की ओरल वैक्सीन के 2 ड्रॉप दिए जातें। ये कार्यक्रम आज भी जारी है। लेकिन आपके लिए जानना आवश्यक है कि भारत अब पोलियो मुक्त देश है। लगातार चल रहे पोलियो टीकाकरण अभियान के कारण वर्ष 2014 में भारत को पोलियो मुक्त राष्ट्र घोषित किया गया था। पोलियो का आखिरी मामला 2011 में पश्चिम बंगाल में सामने आया था।
कौनसी है वो बीमारियां जिनकी नहीं बन पाई है वैक्सीन
कई ऐसी बीमारियां अभी भी मौजूद है जिनकी अभी तक वैक्सीन नहीं बन पाई है। जैसा की आपको बताया गया कि WHO का भी मानना है कि खतरनाक संक्रामक रोगों को नियंत्रित करने टीकाकरण एक सिद्ध तकनीक है, लेकिन अभी भी विश्व में कई बीमारियां है जिनकी वैक्सीन अभी तक नहीं बन पाई है। आइए आपको उन बीमारियों के नाम बताएं।
1. एचआईवी/एड्स (HIV/AIDS)
2. अस्थमा (Asthma)
3. एड्रोनोकोर्टिकल कार्सिनोमा (Adrenocortical Carcinoma)
4. टोक्सोप्लाज्मोसिस (Toxoplasmosis)
5. इबोला वायरस (Ebola virus)
6. सर्दी जुकाम (Cold)
7. मधुमेह (Diabetes)
8. अल्जाइमर (Alzheimer)
9. गठिया (Arthritis)
10. रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Respiratory Syndrome)
11. सिकल सेल एनीमिया (Sickle cell anemia)
12. ट्राईजेमिनल न्युरोसिस (Trigeminal Neurosis)
टीकाकरण की दिशा में मिशन इंद्रधनुष
मिशन इंद्रधनुष एक टीकाकरण अभियान है, जिसकी शुरुआत 25 दिसंबर 2014 में की गई थी। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य भारत को 90 प्रतिशत टीकाकरण कवरेज देना था और इसे 2022 तक बनाए रखने का प्रयास करना था। मिशन का लक्ष्य 2023 में बाल मृत्यु को समाप्त करना और सतत विकास को प्राप्त करना था। जिसके लिए गर्भवती महिलाओं और दो वर्ष की आयु के बच्चों के लिए सभी आवश्यक टीकों के साथ पूर्ण टीकाकरण सुनिश्चित करना था।
कोविड महामारी के खास सबक
टीकाकरण की अहमियत एक बार फिर हाल ही में दुनिया को समझ में आई जब उसके जरिए दुनिया को कोविड-19 जैसी महामारी से बचाया जा सकता है. इस लाइलाज वायरस संक्रमण से लड़ने की इंसान के पास पहले से ही कारगर क्षमता नहीं थी और जानकारी के अभाव में लाखों करोड़ों लोगों की जान चली गई. लेकिन महामारी के टीकों ने दुनिया को इससे उबरने में बहुत मदद की और हमें कई अहम सबक भी।
टीके और उसकी जागरूकता का महत्व
दुनिया सहित भारत में भी नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों को कई खतरनाक बीमारियों के टीके लगाए जाते हैं लेकिन टीकाकरण की सुविधा भारत जैसे देश में हर शिशु और बच्चे तक पहुंचाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है. कोविड महामारी ने हमें सिखाया है कि इसी वजह गरीबी उतनी नहीं है जितनी की जागरूकता और शिक्षा क्योंकि कई शिक्षित और आर्थिक रूप से सक्षम लोग भी कोविड के टीके के प्रति असंवेदनशील और लापरवाह देखे गए हैं।
भारत में टीकाकरण की सफलता
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत ने साल 2017 से 2020 के बीच 32.4 करोड़ बच्चों को एमआर टीकाकरण किया है जिससे देश में मिजील्स और रेबुला बीमारी का उन्मूलन हो सके. टीकाकरण मूल रूप से संक्रमित रोगों को फैलने से रोकने के लिए शरीर के प्रतिरोधी क्षमता को ताकतवर बनाने के किया जाता है. हर रोग का अलग टीका या वैक्सीन होती है. इससे शरीर के प्रतिरोधी तंत्र को एक तरह का प्रशिक्षण मिलता है कि वह अमुक रोग से कैसे लड़े।
कैसे काम करता है टीका
टीके शरीर में संक्रामक रोगाणु को पहचानने की क्षमता विकसित करने के लिए होते हैं जिससे शरीर उससे लड़ने मे सक्षम हो सके इसके लिए टीका शरीर में एंटीबॉडी बनाता है. लेकिन चूंकि टीके में केवल कमजोर या मृत रोगाणु होते हैं उससे शरीर संक्रमित नहीं होता है. टीका दवाई या उपचार से कई गुना बेहतर होता है क्योंकि इससे इंसान की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। इस साल देश में राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस की थीम, “वैक्सीन वर्क फॉर एवरी”वन यानी “टीका हरएक के लिए काम करे” रखी गई है. इसके तहत इस बात पर जोर दिया जाएगा कि लोग समझें कि टीका कैसे बनता, उसे कौन लोग बनाते हैं, सभी तक उसे पहुंचाने में किन लोगों की भूमिका होती है और उसका महत्व बहुत ही ज्यादा क्यों होता है क्योंकि टीकाकरण का लक्ष्य पूरा होने में जरा सी कमी पूरी मेहनत को बेकार कर सकती है।
हमारे आसपास मौजूद वायरस और बैक्टीरिया अक्सर हमें अपने चपेट में लेकर बीमार कर देते हैं। ऐसे में टीकाकरण इन संक्रामक बीमारियों से हमें सुरक्षा प्रदान करता है। वैक्सीन वायरस या बैक्टीरिया के खिलाफ हमारी रक्षा करते हुए हमें कई गंभीर बीमारियों से बचाती है। ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि हम सब अपने लिए जरूरी वैक्सीन जरूर लगवाएं।