एक बढ़िया वकील कोई केस लड़ने के लिए लाखों रूपए चार्ज करते हैं और एक क्लाइंट अपनी हैसियत के हिसाब से यह रकम दे भी देता है| और न्याय पाने के लिए इसमें कोई गलत भी नहीं है| लेकिन दूसरी ओर क्या गरीब और कमजोर वर्ग, जिसके पास इतना पैसा नहीं है, कभी अपनी न्यायिक लड़ाई नहीं लड़ सकता| कई सालों तक हमारा समाज इन तमाम समस्याओं से जूझता रहा और इस प्रकार असमानता फैलती गई| इसी को ध्यान में रखते हुए लीगल सर्विसेज अथॉरिटी एक्ट लागू किया गया| इसके लागू होने की तारीख को आज हम राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस के रूप में मनाते हैं| आइये जानते हैं कब मनाते हैं राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस (National Legal Services Day 2022) और क्या है इसका उद्देश्य।
भारत में हर साल 9 नवंबर को राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1994 संशोधन अधिनियम के बाद कानून प्राधिकरण अधिनियम 1987, 9 नवंबर 1995 को प्रभाव में आया। जिसके बाद से ही राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस 9 नवंबर को मनाया जाने लगा। इस दिन की शुरुआत भारत के सर्वोच्चय न्यायालय द्वारा की गई थी। कानून प्राधिकरण अधिनियम 1987 के प्रभाव में आने वाले दिन को चिन्हित करने के लिए इसे राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस के रूप में घोषित किया गया। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य देश में न्याय व्यवस्था, अधिकारों और कानून को लेकर जागरूकता फैलाना है। इसी के साथ सभी लोगों में न्याय सुनिश्चित करना, गरीब और कमजोर वर्ग के लिए मुफ्त कानून सहायता और सलाह देना भी शामिल है। हर परिस्थिति में नागरिक न्याय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाता है और उम्मीद करता है कि उसे न्याय बिना किसी भेदभाव के प्राप्त होगा। लोगों का कोर्ट में विश्वास बने रहे इसी लिए राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस को मनाया जाता है ताकि लोगों में कानून के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सकें। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस के बारे में विस्तार से बताएंगे।
क्यों खास है ये दिवस
इस दिन को विधिक सेवा के तहत प्राधिकरण अधिनियम और वादिकारियों के अधिकार को विभिन्न प्रावधानों से अवगत कराने के लिए मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों के लोगों के लिए नि: शुल्क, प्रवीण और कानूनी सेवाओं की पेशकश करना है. यह कमजोर वर्गों के लोगों को मुफ्त सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ-साथ उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने का प्रयास भी करता है।
राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस मनाने का उद्देश्य
हर साल 9 नवंबर को पूरा देश राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस मनाता है| इस दिवस का उद्देश्य कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के साथ-साथ वादियों (मुकदमेबाजी में शामिल कोई व्यक्ति) के अधिकारों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना है| 1987 के कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम के अनुसार, विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए लोक अदालतों की व्यवस्था करने और समाज के गरीबऔर कमजोर तबकों को मुफ्त कानूनी सेवाएं प्रदान करने के लिए नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (NALSA) की स्थापना की गई थी|
कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987
राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस के इतिहास के बारे में जानने से पहले आपके लिए ये जानना आवश्यक है कि कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 क्या है, क्योंकि राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस कि शुरुआत के पिछे इस अधिनियम की महत्वपूर्ण भूमिका है।
एनएएलएसए की भूमिका
राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस को मनाने में एनएएलएसए ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है तो ये मुमकिन ही नहीं कि हम राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस के इतिहास के बारे में बात करें और एनएएलएसए के बारे में और उसके रोल के बारे में बात न की जाए। आइए आपको इसके बारे में संक्षेप में बताएं। राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण को शॉर्ट में एनएएलएसए भी कहा जाता है। इस अथॉरिटी की स्थापना न्यायमूर्ति आर.एन. मिश्रा द्वारा 5 दिसंबर 1995 में की गई थी। इसकी स्थापना कानून सेवा प्राधिकरण 1987 के तहत की गई थी। एनएएलएसए या नालसा भारत में अदालतों के बैकलॉग को कम करने के लिए और इसके साथ जरूरतमंदों को न्याय दिलाने का एक प्रयीस है। इस प्राधिकरण में आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों आदि को मुफ्त कानून सहायता, सलाह के साथ- साथ मध्यस्थता और मामलों का सौहार्दपूर्ण निपटारन आदि गितिविधियों को अंजाम देना शामिल है।
राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस का इतिहास और महत्व
कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 ए और इसकी समिति की सिफारिशों पर केंद्र सरकार द्वारा 11 अक्टूबर 1987 में अधिनियमित किया गया था। ये अधिनियम 9 नवंबर 1995 में प्रभाव में लाया गया है या यूं कहें की इस लागू किया गया। कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 के प्रभाव में आने की तिथि को चिन्हित करने के लिए राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस को हर साल 9 नवंबर को मनाने का फैसला लिया गया और भारत के सर्वोच्चय न्यायालय द्वारा 1995 में इस दिन राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस को रूप में घोषित किया। इस दिवस के माध्यम से लोगों में जागरूकता फैलाने का प्रयास किया जाता है। चाहें व्यक्ति गरीब हो, महिला हो, किसी आरक्षित श्रेणी का हो या विकलांग हो या किसी अन्य परेशानी से पीड़ित हो इन सभी के पास न्याय प्राप्त करने के समान अवसर हैं। इन्हें न्याय की प्राप्ति हो, इस सुनिश्चित करने के लिए मुफ्त कानूनी सहायता और मुफ्त कंसल्टेशन दिया जाता है। लोगों को न्याय के प्रति और न्याय पाने के उनके अधिकार के प्रति जागरूक करने के लिए इस दिवस को हर साल मनाया जाता है।
मुफ्त विधिक सेवाएं कौन-कौन सी हैं
1. किसी कानूनी कार्यवाही में कोर्ट फीस और अन्य सभी प्रकार प्रभार अदा करना।
2. कानूनी कार्यवाही में वकील उपलब्ध करवाना।
3. कानूनी कार्यवाही में आदेशों की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करना।
4. कानूनी कार्यवाही में अपील एवं दस्तावेज के अनुवाद और छपाई सहित पेपर बुक तैयार करवाना।
निःशुल्क कानूनी सेवाएंँ प्राप्त करने के लिये पात्र व्यक्ति
1. महिलाएंँ और बच्चे
2. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्य
3. औद्योगिक कामगार
4. सामूहिक आपदा, हिंसा, बाढ़, सूखा, भूकंप, औद्योगिक आपदा के शिकार।
5. दिव्यांग व्यक्तियों
6. हिरासत में उपस्थित व्यक्ति
7. वे व्यक्ति जिनकी वार्षिक आय संबंधित राज्य सरकार द्वारा निर्धारित राशि से कम है, अगर मामला सर्वोच्च न्यायालय से पहले किसी अन्य अदालत के समक्ष है, यदि मामला 5 लाख रुपए से कम का है तो वह सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष जाएगा।
8. मानव तस्करी के शिकार या बेगार में संलग्न लोग।
इनको मिला मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार
भारत के संविधान अनुच्छेद 39 ए और इसकी समिति द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा कानून सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 को अधिनियमित किया गया था. इस अधिनियम को 1994 के संशोधन अधिनियम के बाद 9 नवंबर 1995 में लागू किया गया. इसके बाद से मुख्य अधिनियम के लिए कई संशोधन पेश किए. आपको बता दें कि इस अधिनियम के माध्यम से पिछडे़ हुए वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, विकलांग व्यक्तियों को मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है. अधिनियम के कारण किसी भी प्राकर से किसी विकलांग या आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति को न्याय से वंचित नहीं रखा जा सकता है. न्याय प्राप्त करने का जिनता अधिकार एक अमीर व्यक्ति या किसी समान्य वर्ग के व्यक्ति को है उतना ही अधिकार एक आम व्यक्ति को है. न्याय प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं है, सभी को उसके समान अवसर दिए जाना इस अधिनियम के अंतर्गत शामिल किया गया है।
निःशुल्क विधिक सेवाएं प्रदान करने वाले विधिक सेवा संस्थान
राष्ट्रीय स्तर पर- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण।
राज्य स्तर पर- राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण. इसकी अध्यक्षता राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है जो इसका मुख्या संरक्षक भी होता है. उच्च न्यायालय के एक सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश को इसके कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नामांकित किया जाता है।
जिला स्तर पर- राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण. जिला न्यायाधीश इसका कार्यकारी अध्यक्ष होता है।
तालुका स्तर पर- तालुक विधिक सेवा प्राधिकरण. इसकी नेतृत्व वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश करता है।
उच्च न्यायालय- उच्च न्यायालय विधिक सेवा प्राधिकरण।
सर्वोच्च न्यायालय- सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा प्राधिकरण.
इन संस्थानों के माध्यम से हर वर्ग का व्यक्ति कानूनी सेवा प्राप्त कर सकता है और अपने हक की लड़ाई लड़ सकता है।
विधिक सेवा प्राधिकरणों के निष्पादन की निगरानी करने के लिए, नालसा को सभी राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों (एसएलएसए) से मासिक गतिविधि रिपोर्ट प्राप्त होती है जिसमें किसी विशेष माह में किए गए सभी कार्यकलापों पर प्रकाश डाला जाता है। मासिक गतिविधि रिपोर्टों के अलावा, नालसा सभी एसएलएसए से वार्षिक रिपोर्ट भी प्राप्त करता है और अपनी स्वयं की वार्षिक रिपोर्ट तैयार करता है, जिसे भारत की संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाता है|