चिकित्सा की दुनिया में अंग प्रत्यर्पण आसान काम नहीं है. दानकर्ता की खोज जिसके अंग को मरीज को लगाया जा सके खोजना बहुत मुश्किल काम होता है. चिकित्सा जगत में हृदय प्रत्यारोपण के साथ हमेशा बड़ी चुनौती रही. एक तो दानकर्ता ऐसा होना चाहिए जिसका मरना निश्चित हो यानि अटल हो, इसके बाद वह दान के लिए वह तैयार हो और वह ऐसे मरीज के लिए उपलब्ध हो जिसके शरीर में दानकार्ता का दिल लगाया जा सके. शायद यही वजह है कि भारत में हृदय प्रत्यारोपण दिवस (Hearth Transplant Day) मनाया जाता है. क्योंकि तमाम तकनीक उन्नतियों के बाद भी हृदय प्रत्यारोपण बहुत ही मुश्किल काम है।
दिल प्रत्यारोपण, या हृदय प्रत्यारोपण एक शल्य प्रतिक्रिया है जिसे ऐसे मरीज पर किया जाता है जो कि हृदय विफलता की अंतिम अवस्था पर हो, या जिसे गंभीर कोरोनरी धमनी की बीमारी हो. इसका सबसे सामान्य तरीका एक काम करते हुए दिल एक तुरंत मरे हुए इंसान के सरीर से निकाल लेते है जो अपना दिल दान करना चाहता था और उसे मरीज के शरीर में लगा देते है मानव की इस जटिल बीमारी को दूर करने का सबसे विवादास्पद समाधान है. आपरेशन के बाद जीवित रहने की अवधि अब औसतन 15 साल है।
पहला हृदय प्रत्यारोपण किसका किया गया?
अमेरिकी सर्जन नॉर्मन सम्वे ने पहला सफल हृदय प्रत्यारोपण एक कुत्ते का किया था। कैलिफोर्निया के स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में यह प्रत्यारोपण 1958 में किया गया था। इसके बाद उन्होंने कई कुत्तों के हृदय का कामयाब प्रत्यारोपण किया। सम्बे ने हृदय प्रत्यारोपण की तकनीक विकसित की जिसका आगे चलकर कई सर्जनों ने इस्तेमाल किया।
पहला सफल मानव हृदय प्रत्यारोपण किसने गया?
3 दिसंबर 1967 को दक्षिण अफ्रीका के कैपटाउन में पहला हृदय प्रत्यारोपण किया गया। दक्षिण अफ्रीका के सर्जन क्रिस्टियन बर्नाड ने इस सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। क्रिस्टियन बर्नाड की टीम में 30 लोग शामिल थे और हृदय प्रत्यारोपण करने में उसे 9 घंटे का वक्त लगा। बर्नाड ने नॉर्मन सम्वे द्वारा विकसित तकनीक का इस्तेमाल किया था। हालांकि 1905 में भी मानव हृदय प्रत्यारोपण की कोशिश की गई थी लेकिन यह कामयाब नहीं हो पाई।
यह प्रत्यारोपण किस मरीज पर किया गया?
पहला मानवीय हृदय प्रत्यारोपण 53 साल के लुइस वाशकांस्काई नामक मरीज का किया गया। उनके हृदय ने काम करना बंद कर दिया था और वह जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे। उनमें 25 साल की डेनिस डरवाल का हृदय प्रत्यारोपित किया था। एक कार दुर्घटना में डेनिस के दिमाग में गंभीर चोटें आई थीं और वह ब्रेन डेड हो गई थीं। डेनिस दूसरों की मदद करने में यकीन करती थीं इसलिए पिता एडवर्ड डरवाल ने अपनी बेटी के अंगदान करने का निर्णय लिया था। डेनिस की किडनी ने दस साल के बच्चे की भी जान बचाई थी।
इस प्रत्यारोपण से मरीज कितने दिन जीवित रहा?
हृदय प्रत्यारोपण के बाद मरीज लुइस के पहले शब्द थे, “मैं अब भी जीवित हूं।” निमोनिया के कारण हृदय प्रत्यारोपण के 18 दिन बाद लुइस की मौत हो गई। डॉक्टर क्रिस्टियन बर्नाड के दूसरे मरीज फिलिप ब्लाईबर्ग करीब दो साल तक जीवित रहे। शुरुआत में जिन मरीजों का हृदय प्रत्यारोपण किया गया, वे अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाए।
इस घटनाक्रम के बाद हृदय प्रत्यारोपण की गति कैसी रही?
हृदय प्रत्यारोपण कराने वाले मरीजों की लंबी आयु न होने के कारण इसमें कमी आई। 1968 में जहां दुनियाभर में 99 हृदय प्रत्यारोपण किए गए, वहीं 1969 में 47, 1970 में 17 और 1971 में 9 हृदय प्रत्यारोपण ही हो पाए। इसके बाद विशेषज्ञों ने मांग की कि इस क्षेत्र में और शोध की जरूरत है।
क्या पहला अंग प्रत्यारोपण हृदय का किया गया था?
नहीं। सबसे पहले किडनी का प्रत्यारोपण डॉक्टर जोसफ ई मरे की टीम ने किया था। 23 दिसंबर 1954 को अमेरिकी के बोस्टन में दो जुड़वा भाइयों के बीच किडनी प्रत्यारोपण हुआ। गंभीर रूप से बीमार रिचर्ड हेरिक को उसके भाई रोनल्ड ने अपनी एक किडनी दी थी। 1962 में रिचर्ड की मौत हो गई। इसके बाद 1966 में पहला पेनक्रिया और 1967 में पहला लिवर प्रत्यारोपण किया गया। चिकित्सा के क्षेत्र में यह अहम पड़ाव थे।
हृदय प्रत्यारोपण के बाद औसतन कितनी उम्र बढ़ जाती है?
युनाइटेड स्टेट्स नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अंग नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नॉलजी इन्फर्मेशन में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार, हृदय प्रत्यारोपण के बाद 87 प्रतिशत लोगों की जीवन दर एक साल, 77 प्रतिशत लोगों की जीवन दर 5 साल और 57 प्रतिशत लोगों की जीवन दर 10 साल बढ़ जाती है। लोगों की औसतन उम्र में 9.1 साल का इजाफा हो जाता है। लेकिन हृदय प्रत्यारोपण की शुरुआत में यह दर काफी निम्न थी।
इस वक्त हृदय प्रत्यारोपण की वैश्विक दर क्या है?
इस समय दुनियाभर में हर साल करीब 3,500 हृदयों का प्रत्यारोपण किया जा रहा है। सबसे ज्यादा प्रत्यारोपण अमेरिका में किए जा रहे हैं। यहां हर साल करीब 2000-2300 लोगों के हृदय का प्रत्यारोपण किया जा रहा है। विश्व भर में हृदय प्रत्यारोपण के लिए मांग और आपूर्ति में भारी अंतर है। इसी वजह से कई जरूरतमंदों को समय पर हृदय नहीं मिल पाते।
भारत में हृदय प्रत्यर्पण कब से शुरू हुआ?
भारत में हृदय प्रत्यारोपण के प्रयास तो बहुत पहले से चलते रहे, लेकिन पहला सफल हृदय प्रत्यारोपण 3 अगस्त 1994 को हुआ था. इसीलिए इसबड़ी उपलब्धि को देखते हुए हर साल 3 अगस्त को ही भारत में हृदय प्रत्यारोपण दिवस मनाया जाता है. भारत में पहला हृदय प्रत्यर्पण 3 अगस्त 1994 को दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में सर्जन पी. वेणुगोपाल ने किया था। इस सफल सर्जरी में 20 सर्जन ने योगदान दिया और 59 मिनट में यह सर्जरी की गई। यह सर्जरी देवी राम नामक शख्स की गई थी। सर्जरी के बाद 15 साल तक वह जीवित रहे। इससे पहले हृदय प्रत्यारोपण के लिए विदेश जाना पड़ता था।
बहुत मुश्किल थे हालात
इस सफल प्रत्यर्पण के बाद डॉ पी वेणुगोपाल ने कहा था कि सभी भारतीय सर्जन को इस तरह के ऑपरेशन के लिए काम आने वाली जानकारी के साथ तैयार रहने की सलाह दी थी. उन दिनों हृदय प्रत्यारोपण के लिए मरीजों को देश बाहर जाना पड़ता था. तब विदेशों में भी प्रत्यारोपण के लिए हृदय हासिल करना बहुत मुश्किल काम हुआ करता था।
कानून लागू होने के एक ही महीने के भीतर
प्रत्यारोपण के कानून इस प्रत्यारोपण के करीब एक महीने पहले ही यानि 7 जुलाई 1994 को ही लागू हुआ था. हमारे देश के सर्जन इस कानून का ही इंतजार कर रहे थे और प्रत्यर्पण की तैयारी भी पहले से चल रही थी. इस कानून में मानव अंगों को चिकित्सकीय उद्देश्यों के लिए निकालने, उनके भंडारण और और प्रत्यारोपण के अधिकार और कानूनी सीमाओं से संबंधित प्रावधान हैं।
हृदय प्रत्यारोपण में सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
सबसे बड़ी चुनौती अंगदान करने वालों की सीमित संख्या है। हालांकि भारत में अंगदान को कई संस्थाओं और सरकारों द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है लेकिन फिर भी पर्याप्त संख्या में लोग अंगदान खासकर हृदय दान करने के लिए सामने नहीं आ रहे हैं। भारत में हर साल 50,000 लोगों को हृदय प्रत्यारोपण की जरूरत होती है। केवल दिल्ली में ही हर साल 1,000 हृदय प्रत्यारोपण की जरूरत होती है। लेकिन साल 2016 तक महज 350 हृदय ही प्रत्यारोपण किए गए हैं। भारत में दस लाख लोगों में करीब 0.03 लोग ही अंगदान करते हैं। स्पेन में यह दर प्रति दस लाख 34 अंगदान है।
कब जरूरी है हार्ट ट्रांसप्लांट
* यदि किसी व्यक्ति का हृदय विफलता के अंतिम चरण में पहुंच गया हो, इस्कीमिक हृदय रोग ( Ischemic heart disease), कार्डियोमायोपैथी (Cardiomyopathy), जन्मजात हृदय विकार (Congenital heart disease) आदि।
* यदि किसी व्यक्ति में हृदय प्रत्यारोपण के बिना जीने की संभावना एक साल से ज्यादा न हो।
* व्यक्ति को ऐसी दूसरी परेशानियां न हों जिससे उसकी जिंदगी पर असर पड़े।
* यदि डॉक्टर को इस बात का पूरा विश्वास हो कि उसके मरीज के हृदय प्रत्यारोपण के बाद पहले के मुकाबले ज्यादा अच्छी जिंदगी जी सकता है।
* कुछ केन्द्रों पर हृदय प्रत्यारोपण कराने वाले मरीजों को सर्जरी से 4 से 6 महीने पहले धूम्रपान और एल्कोहल का सेवन न करने की शख्त हिदायत भी दी जाती है।
हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद
एक बार हृदय प्रत्यारोपण के बाद स्वास्थ्य की प्रकिया हृदय की बाकी सर्जरी के जैसी ही चलती है। इस सर्जरी के बाद आपको 1 से 2 हफ्ते अस्पताल में ही डॉक्टर और नर्स की देखभाल में बिताने होते हैं। इसके अलावा आपको और कितने दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ सकता है यह आपके खुद के स्वास्थ्य और स्थिति पर निर्भर करता है। अस्पताल में रहने के दौरान ही आप कार्डियक पुनर्वास कार्यक्रम शुरू कर सकते हैं। इसके बाद जब डॉक्टर निश्चिंत हो जाए कि आपके शरीर ने आपके हृदय को स्वीकार कर लि या है और अब वह उसके साथ सक्रिय हो रहा है तो डॉक्टर आपको घर जाने की इजाजत दे देंगे। इसके बाद आप खुशी-खुशी घर जा सकते हैं।
कार्डियक पुनर्वास
कार्डियक पुनर्वास वह प्रकिया है, जिसमें आप सर्जरी के बाद धीरे-धीरे सामान्य होने की तरफ बढ़ते हैं। हालांकि आपका हृदय शुरुआत में आपके कार्यों के प्रति थोड़ा अलग तरह से व्यवहार कर सकता है। हो सकता है कि आपके हृदय का स्पंदन पहले की तरह ना बढ़े और हो सकता है कि इसका स्पंदन स्तर ज्यादा सहज हो जाए। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि जो तंत्रिकाएं आपके हृदय को पहले नियंत्रित करती थी सर्जरी के दौरान उन्हें काट दिया गया हो।
जोख़िम या दुष्प्रभाव
* शरीर द्वारा किसी और के हृदय को अस्वीकार कर देना।
* कहीं हृदय को अस्वीकार तो नहीं कर दिया गया है इसके लिए डॉक्टर को लगातार मरीज के हृदय के उत्तकों की जांच (बायोप्सी), इकोकार्डियोग्राफी (ECG, EKG) या रक्त की जांच द्वारा करनी पड़ती है। इस स्थिति में यदि शरीर, हृदय को स्वीकार नहीं कर पाता तो मरीज को नियमित तौर पर इम्यूनोसप्रेससेंट्स या स्टेरॉयड (Immunosuppressants or steroids) दवाई का प्रयोग करना पड़ता है। इन दवाइयों के जोख़िम भी बहुत गंभीर हो सकते हैं।
यदि किसी व्यक्ति का हृदय बिलकुल भी ठीक से काम न कर पा रहा हो और व्यक्ति मरणासन्न अवस्था में पहुंच गया हो ऐसे में हार्ट ट्रांसप्लांट के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता। इसके अतिरिक्त हृदय में जन्मजात दोष और बेहद गंभीर बीमारी की हालत में भी हार्ट ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। लेकिन हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद भी व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है।
डिस्क्लेमर: यह जानकारी केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है और इसका उद्देश्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर द्वारा चिकित्सा उपचार का विकल्प नहीं है। व्यक्तिगत जरूरतों के कारण, पाठक को पाठक की स्थिति के लिए जानकारी की उपयुक्तता निर्धारित करने के लिए अपने चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।