भिलाई 1 मई (सीजी संदेश)विशेष लेख बृजमोहन सिंह पूर्व साडा अध्यक्ष एवं वरिष्ठ कांग्रेसी नेता,,,
बोरे बासी—आज जब हम पुनः प्रकृति की ओर लौटने का प्रयास कर रहे हैं गैस के बने बर्नर से बेहतर चूल्हे पर बने भोजन को मान रहे हैं रासायनिक खाद से बेहतर गोबर खाद को मान रहे हैं ,तब ऐसे समय अपने पारम्परिक भोजन की ऒर लौट आना हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होगा, बोरे बासी छत्तीसगढ़ के पारम्परिक आहार का आधार स्तम्भ है ,इसे बनाने के लिए किसी प्रक्रिया की आवश्यकता नही होती।ताजे बने चांवल को ठंडाकर पानी डालकर कुछ समय के बाद खाने पर यह बोरे कहलाता है,इसे दही,मही,कच्चे प्याज़,हरी मिर्च,आम का अचार ,टमाटर-आम की चटनी, हरी भाजी,या अन्य सब्जियों के साथ खाया जाता है ,रात के बचे चांवल को पानी मे डालकर यदि ढककर सुबह तक छोड़ दिया जाए तो बासी तैयार हो जाती है ,इसे भी इन्ही सब चीज़ों के साथ खाया जाता है बोरे और बासी में बेहतर स्वाद के लिए चुटकी भर नमक अवश्य मिला लेना चाहिए ,यदि मिट्टी के बर्तन में बोरे बासी बनाई जाती है तो इसका स्वाद कई गुना बढ़ जाता है।बासी से एक फायदा और होता है यह समय का अनुमान भी लगाती है –बासी खाये के बेरा हो गे-तो इसका मतलब है दोपहर के 1-2 बज रहे हैं।इसी प्रकार अगर कोई पूछे कि कितने बजे काम पर जाओगे ,और सामने वाला कहे कि–बासी खा के निकलहूँ –मतलब है कि सुबह 8 बजे के आसपास निकलेगा—जय छत्तीसगढ़–जय जय छत्तीसगढ़