सोमरस एक ऐसा पेय है, जिसका जिक्र देवताओं के वर्णन के साथ ही आता है। देवताओं से जुड़े हर ग्रंथ, कथा, संदर्भ में देवगणों को सोमरस का पान करते हुए बताया जाता है। इन समस्त वर्णनों में जिस तरह सोमरस का वर्णन किया जाता है, उससे अनुभव होता है कि यह अवश्य ही कोई बहुत ही स्वादिष्ट पेय है। इसके साथ ही कई लोगों को यह भी लगता है कि जिस तरह आज मदिरा यानि शराब का सेवन बड़े ही शौक से किया जाता है, संभवतः यह भी उसी वर्ग का कोई मादक पदार्थ है, जिसके चमत्कारिक प्रभाव हैं। यदि आप भी सोमरस के बारे में जानकारी बढ़ाना चाहते हैं तो आइए, एक नजर डालते हैं इस पर-
धर्म ग्रंथों में सोमरस के बारे में कुछ अलग ही बात लिखी है जिसमे सोमरस में दूध और दही मिलाने की बात की गई है. ऋचाओ में लिखा है कि ‘यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दही मिला हुआ सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इंद्रदेव को प्राप्त हो’. ऋग्वेद में सोमरस के बारे में लिखा हुआ है ‘हे वायुदेव, यह निचोड़ा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिलाकर तैयार किया गया है आइये और इसका पान कीजिये’. तो कहने का मतलब यही है कि धर्म ग्रंथों में जिस सोमरस की बात की गई है वह दूध और दही मिला हुआ होता है और उसका शराब या मद से कोई लेना देना नहीं होता है. प्राचीन ग्रंथों में शराब के लिए मदिरापान शब्द का इस्तेमाल किया गया है जिसका अर्थ होता है नशा या उन्माद. जबकि सोमरस का अर्थ होता है शीतल या अमृत के समान. इसका सीधा सा मतलब यही है कि सोमरस और शराब दोनों ही अलग-अलग चीज़े है और इनका आपस में कोई लेना देना नहीं है।
सोमरस
अक्सर हम वेद पुराणों और धार्मिक टीवी सीरियलस में सोमरस के बारे में सुनते है और हममे से ज्यादातर लोग उसे शराब यानी मदिरा समझने की गलती कर बैठते है. लेकिन आपको बता दें कि सोमरस, मदिरा और सुरापान तीनों अलग अलग है।
सोमरस, मदिरा और सुरापान में अंतर
अगर सोमरस की बात करें तो इसमें सोम का अर्थ शीतल अमृत से होता है जो मन और शरीर को शीतलता प्रदान करता है. वहीँ मदिरा पान से अर्थ है मद का पान, जिसे पीकर व्यक्ति अपनी सूद बुद खो बैठता है और अगर बात सुरापान की करें तो ये एक ऐसा नशीला पदार्थ है जिसे पीने वाला युद्ध और मार पीट करना शुरू कर देता है।
क्या है सोमरस ?
सोमरस के बारे में एक बहुत ही अच्छी बात कही गयी है कि “यह निचौडा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस, सोमरस की प्रबल इच्छा रखने वाले इन्द्रदेव को प्राप्त हो”. बता दें कि सोमरस बहुत तीखा होता है इसीलिए इसमें दूध और दही मिलाकर इसे रेडी किया जाता है. इसीलिए जो लोग सोमरस को मदिरा समझते है तो जान ले कि सोमरस मदिरा कभी नहीं हो सकता.
सोमरस का उपयोग कब होता था ?
सोमरस मदिरा नहीं है इसका एक उदाहरण ये है कि इसे कई यज्ञों में भी इस्तेमाल किया जाता था और ये देवों का मुख्य पदार्थ भी है. वराहपुराण में लिखा है सोमरस का अधिकार सिर्फ देवताओं को है, लेकिन देवताओं को भी सोमरस पाने के लिए पहले तपस्या करनी पड़ती है और होम के माध्यम से ही उन्हें सोमरस पान करने का अधिकार प्राप्त हो पाता था।
सोमरस से जुडी मान्यताएं :
हमारी धरती पर हर चीज से जुडी अनेकों मान्यताएं भी होती है और सोमरस से जुडी एक ऐसी ही मान्यता के अनुसार पहाड़ों पर सोम नाम की लताएँ मिलती है. मान्यताओं के अनुसार ये पहाड़ियाँ राजस्थान के अर्बुद, विध्यांचल पर्वत, मलय पर्वत और उड़ीसा के हिमाचल की पहाड़ियों पर पायी जाती है. वहीँ कुछ ऐसे विद्वान व्यक्ति भी है जिनका कहना है कि सोम का पौधा भी होता है जोकि अफगानिस्तान के पहाड़ी इलाके में मिलता है. इस पौधे का रंग गहरा बादामी होता है और इसमें कोई पत्तियाँ नहीं होती। सोम से जुडी एक और मान्यता प्रचलित है जिसके अनुसार वैदिक काल में जो लोग होम अनुष्ठान करते थे सिर्फ उन्हें ही सोम की जानकारी थी लेकिन उन्होंने इसकी जानकारी किसी भी आम व्यक्ति को नहीं दी. धीरे धीरे ये लोग और उनके अनुष्ठान खत्म होते गये और सोम की जानकारी भी विलुप्त होती गयी. यही कारण है कि आज सोम को पहचान पाना लगभग नामुमकिन जैसा है।
ऋग्वेद में सोमरस बनाने की विधि :
ऋग्वेद को ज्ञान का भंडार माना जाता है, कहते है जीवन की हर समस्या का हल और ज्ञान ऋग्वेद में छिपा हुआ है और इसीलिए सोम भी ऋग्वेद से अछुता नहीं है।
ऋग्वेद में कहा गया है कि “उच्छिष्टं चम्वोर्भर सोमं पवित्र आ सृज | नि धेहि गोरधि त्वचि ||”
अर्थात – सबसे पहले आप सोमरस को अच्छी तरह कूटकर एक बर्तन में निकाल लें और फिर उसे पवित्र कुशा पर रखें और छान लें।
औषधि : सोम: सुनोते: पदेनमभिशुण्वन्ति | निरुक्त शास्त्र
अर्थात – सोमरस वो औषधि है, जिसे पहले कुटा जाता है और उसे पीसकर उसका रस निकाल लिया जाता है. उसके बाद उस रस में गाय का दूध मिलाते है ताकि वो गवशिरम् बन जाए और अगर आप दही मिलाते है तो वो दध्यशिरम् बन जाता है. फिर इसमें घी या शहद को मिलाया जाता है और इस तरह आपका सोमरस तैयार होता है।
बता दें कि सोमरस का वैदिक यज्ञों में एक बड़ा महत्व रहा है और इसकी 3 अवस्थाओं के बारे में बताया गया है – पेरना, छानना और मिलाना. यज्ञ के दौरान ऋषि मुनि सोमरस को तैयार करते थे और फिर उसे देवी देवताओं को अर्पित करते थे. उसके बाद उस सोमरस को प्रसाद के रूप में खुद ग्रहण करते थे।
सोमरस के गुण :
कहते है कि सोमरस बिलकुल संजीवनी बूटी की तरह काम करता है, इसको पीने वाला व्यक्ति खुद को हमेशा जवान और ताकतर महसूस करता है. जहाँ सोमरस पीने में स्वादिष्ट और मीठा होता है वहीँ ये शरीर को बलशाली और आपको अपराजेय बनाता है. इसीलिए शास्त्रों में इसे बलवर्धक पेय बताया गया है। वहीँ अगर आध्यात्म की बात करें तो कहा जाता है कि सोम वो रस है जो मनुष्य के अंदर, साधना की उच्च अवस्था में पैदा होता है. इसलिए इसे सिर्फ एक औषधि नही माना जाता बल्कि इसे शरीर के भीतर पाया जाने वाला अमृत माना जाता है. इसे ना तो खाया जा सकता है और ना ही इसे पीया जा सकता है, बस इसे पाया जा सकता है।
कब से अस्तित्व में आया सोमरस?
कहा जाता है कि सूर्य पुत्र अश्विनी कुमारों ने बहुत लंबे समय तक ब्रह्मा जी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। फलस्वरूप ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर उन्हें सोमरस का अधिकारी बनाया, जो शक्तिवर्द्धक, आयुवर्द्धक और चिरयुवा रखने में सक्षम था। वराह पुराण के अनुसार सोमरस प्राप्ति का प्रमाण सोमरस का पान था। यह केवल देवताओं को दिया गया वरदान था। जो भी व्यक्ति देवत्व की प्राप्ति कर लेता था, उसे यज्ञ के बाद सोमरस का पान करने का अधिकार मिल जाता था।
कहां होता है सोमरस का उपयोग
सोमरस का उपयोग देवताओं के लिए विशेष रूप से किया जाता है इसीलिए यह देवताओं का प्रमुख पान है। इसीलिए यज्ञ के आयोजन में सोमरस का उपयोग विशेष रूप से किया जाता था। कहा जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनि यज्ञ में सोमरस की आहूति देते थे और फिर प्रसाद रूप में इसे ग्रहण करते थे। ऋग्वेद के अनुसार सोमरस के गुण संजीवनी बूटी की तरह हैं। यह बलवर्द्धक पेय है जो व्यक्ति को चिर युवा रखता है। इसे पीने वाला अपराजेय हो जाता है। ऋग्वेद में इसे बहुत ही मीठा और स्वादिष्ट पेय बताया गया है। साथ ही गुणों की तीव्रता के कारण इसे कम मात्रा में लिए जाने का भी विधान ज्ञात होता है।
क्या मशरूम का रस था सोमरस :
एक यूरोपीय शोधकर्ता के अनुसार प्राचीन भारतीय साहित्य में देवताओं का पसंदीदा पेय ‘सोमरस’ क्या मशरूम का रस था। गार्डन वास्सन ने वेदों पर शोध के बाद लिखा है कि सोमरस में सोम और कुछ नहीं, बल्कि खास मशरूम था। सोम डिवाइन मशरूम ऑफ इमार्टेलिटी नामक पुस्तक में उन्होंने लिखा है सोम एक मशरूम था, जिसे लगभग 4000 वर्ष पहले यानी 2000 ईसा पूर्व उन लोगों द्वारा धार्मिक कर्मकांडों में प्रयोग में लाया जाता था, जो खुद को आर्य कहते थे। वास्सन का निष्कर्ष है कि इस मशरूम में पाया जाने वाला हेलिसोजेनिक तत्व मस्तिष्क के ग्वेद में उल्लिखित परमोल्लास का कारक था। महाराष्ट्र के अमरावती विश्वविद्यालय में जैव प्रौद्योगिकी विषय की शोधकर्ता अल्का करवा ने कहा कि मशरूम का सेवन स्वास्थ्य के लिए बड़ा गुणकारी है। इसमें अद्भुत चिकित्सकीय गुण मौजूद हैं। यह एड्स, कैंसर, रक्तचाप और ह्रदयरोग जैसी गंभीर बीमारियों में काफी लाभदायी है, क्योंकि यह रोगी की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ता है। इसी कारण से इसे अंग्रेजी में ‘एम्यूनो बूस्टर’ भी कहा जाता है।करवा जैसे कुछ मशरूम विशेषज्ञों का कहना है कि भारत और चीन जैसे कुछ देशों में इसका सेवन अच्छे स्वास्थ्य, अच्छे सौभाग्य और अमरत्व का प्रतीक माना जाता रहा है। उन्होंने कहा कि लोगों का यह विश्वास इस बात पर आधारित है कि मशरूम का सेवन शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने वाला तथा लंबी उम्र प्रदान करने वाला माना जाता रहा है। मशरूम में पोटाशियम, सोडियम, मैगनेशियम, कैल्शियम और कुछ लौह तत्व जैसे खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में हैं। इसमें विटामिन ए, डी, के, ई और बी काम्प्लैक्स के सारे विटामिन पाए जाते हैं। मशरूम में फैटी एसिड की कमी होती है। इसके अलावा इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा लगभग पत्ता गोभी के मात्रा के बराबर होती है। इसके अतिरिक्त इसमें फाइबर पदार्थ होते हैं। यह कम कैलोरी वाला भोज्य पदार्थ है, जिसमें कोई कॉलेस्ट्रॉल नहीं होता। जो अनसेचुरेटेड फैट की मात्रा अलसी में पाई जाती है, वह मशरूम में भी उपलब्ध है।
सोमरस के बारे में रोचक तथ्य :
प्राचीन मान्यता के अनुसार जो मनुष्य सोमरस का सेवन उचित समय और उचित मात्रा में करता था वह अनंतकाल तक जीवित रहता था। आओ जानते हैं सोमरस के बारे में कुछ रोचक तथ्य।
सोम नाम की लता : ऋग्वेद की ऋचाओं के अनुसार सोम नाम की एक लता होती है जिसमें दही और दूध को मिलाने की बात कही गई है।
पंचामृत के समान : सबसे अधिक सोमरस पीने वाले इन्द्र और वायु हैं। पूषा आदि को भी यदा-कदा सोम अर्पित किया जाता है, जैसे वर्तमान में पंचामृत अर्पण किया जाता है।
हरी पत्तियां बादामी रंग : मान्यता है कि सोम नाम की लताएं पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जाती हैं। राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेन्द्र गिरी, हिमाचल की पहाड़ियों, विंध्याचल, मलय आदि अनेक पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाए जाने का उल्लेख मिलता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह बिना पत्तियों का गहरे बादामी रंग का पौधा है।
स्वर्ग और पार्थिव पर्वत : सोम को, स्वर्गीय लता का रस और आकाशीय चन्द्रमा का रस भी माना जाता है। सोम की उत्पत्ति के दो स्थान हैं- ऋग्वेद अनुसार सोम की उत्पत्ति के दो प्रमुख स्थान हैं- 1.स्वर्ग और 2.पार्थिव पर्वत। सोम की उत्पत्ति का पार्थिव स्थान मूजवंत पर्वत (गांधार-कम्बोज प्रदेश) है’। -(ऋग्वेद अध्याय सोम मंडल- 4, 5, 6)। स्वर्ग अर्थात हिमालय के केंद्र में।
अमरत्व : वेदों के अनुसार सोम का संबंध अमरत्व से भी है। वह पितरों से मिलता है और उनको अमर बनाता है। कण्व ऋषियों ने मानवों पर सोम का प्रभाव इस प्रकार बतलाया है- ‘यह शरीर की रक्षा करता है, दुर्घटना से बचाता है, रोग दूर करता है, विपत्तियों को भगाता है, आनंद और आराम देता है, आयु बढ़ाता है और संपत्ति का संवर्द्धन करता है। इसके अलावा यह विद्वेषों से बचाता है, शत्रुओं के क्रोध और द्वेष से रक्षा करता है, उल्लासपूर्ण विचार उत्पन्न करता है, पाप करने वाले को समृद्धि का अनुभव कराता है, देवताओं के क्रोध को शांत करता है और अमर बनाता है’। सोम विप्रत्व और ऋषित्व का सहायक है। सोम अद्भुत स्फूर्तिदायक, ओजवर्द्धक तथा घावों को पलक झपकते ही भरने की क्षमता वाला है, साथ ही अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति कराने वाला है।
इफेड्रा : माना जाता है कि सोमपान की प्रथा केवल ईरान और भारत के वह इलाके जिन्हें अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान कहा जाता है यहीं के लोगों में ही प्रचलित थी। कुछ वर्ष पहले ईरान में इफेड्रा नामक पौधे की पहचान कुछ लोग सोम से करते थे। इफेड्रा की छोटी-छोटी टहनियां बर्तनों में दक्षिण-पूर्वी तुर्कमेनिस्तान में तोगोलोक-21 नामक मंदिर परिसर में पाई गई हैं। इन बर्तनों का व्यवहार सोमपान के अनुष्ठान में होता था। यद्यपि इस निर्णायक साक्ष्य के लिए खोज जारी है। हलांकि लोग इसका इस्तेमाल यौन वर्धक दवाई के रूप में करते हैं।
संजीवनी बूटी : कुछ विद्वान इसे ही ‘संजीवनी बूटी’ कहते हैं। सोम को न पहचान पाने की विवशता का वर्णन रामायण में मिलता है। हनुमान दो बार हिमालय जाते हैं, एक बार राम और लक्ष्मण दोनों की मूर्छा पर और एक बार केवल लक्ष्मण की मूर्छा पर, मगर ‘सोम’ की पहचान न होने पर पूरा पर्वत ही उखाड़ लाते हैं। दोनों बार लंका के वैद्य सुषेण ही असली सोम की पहचान कर पाते हैं। यदि हम ऋग्वेद के नौवें ‘सोम मंडल’ में वर्णित सोम के गुणों को पढ़ें तो यह संजीवनी बूटी के गुणों से मिलते हैं इससे यह सिद्ध होता है कि सोम ही संजीवनी बूटी रही होगी। ऋग्वेद में सोमरस के बारे में कई जगह वर्णन है। एक जगह पर सोम की इतनी उपलब्धता और प्रचलन दिखाया गया है कि इंसानों के साथ-साथ गायों तक को सोमरस भरपेट खिलाए और पिलाए जाने की बात कही गई है।
सोमरस बनाने की विधि : ।।उच्छिष्टं चम्वोर्भर सोमं पवित्र आ सृज। नि धेहि गोरधि त्वचि।। (ऋग्वेद सूक्त 28 श्लोक 9) अर्थात : उलूखल और मूसल द्वारा निष्पादित सोम को पात्र से निकालकर पवित्र कुशा के आसन पर रखें और अवशिष्ट को छानने के लिए पवित्र चर्म पर रखें। ।।औषधि: सोम: सुनोते: पदेनमभिशुण्वन्ति।- निरुक्त शास्त्र (11-2-2) अर्थात : सोम एक औषधि है जिसको कूट-पीसकर इसका रस निकालते हैं। सोम को गाय के दूध में मिलाने पर ‘गवशिरम्’ दही में ‘दध्यशिरम्’ बनता है। शहद अथवा घी के साथ भी मिश्रण किया जाता था। सोम के डंठलों को पत्थरों से कूट-पीसकर तथा भेड़ के ऊन की छलनी से छानकर प्राप्त किए जाने वाले सोमरस के लिए इंद्र, अग्नि ही नहीं और भी वैदिक देवता लालायित रहते हैं, तभी तो पूरे विधान से होम (सोम) अनुष्ठान में पुरोहित सबसे पहले इन देवताओं को सोमरस अर्पित करते थे।
सोमरस पीने के फायदे :
वैदिक ऋषियों का चमत्कारी आविष्कार : सोमरस एक ऐसा पदार्थ है, जो संजीवनी की तरह कार्य करता है। यह जहां व्यक्ति की जवानी बरकरार रखता है वहीं यह पूर्ण सात्विक, अत्यंत बलवर्धक, आयुवर्धक व भोजन-विष के प्रभाव को नष्ट करने वाली औषधि है। शास्त्रों में सोमरस लौकिक अर्थ में एक बलवर्धक पेय माना गया है, परंतु इसका एक पारलौकिक अर्थ भी देखने को मिलता है। साधना की ऊंची अवस्था में व्यक्ति के भीतर एक प्रकार का रस उत्पन्न होता है जिसको केवल ज्ञानीजन ही जान सकते हैं।
।।स्वादुष्किलायं मधुमां उतायम्, तीव्र: किलायं रसवां उतायम।
उतोन्वस्य पपिवांसमिन्द्रम, न कश्चन सहत आहवेषु।।– ऋग्वेद (6-47-1)
अर्थात : सोम बड़ी स्वादिष्ट है, मधुर है, रसीली है। इसका पान करने वाला बलशाली हो जाता है। वह अपराजेय बन जाता है।
* शास्त्रों में सोमरस लौकिक अर्थ में एक बलवर्धक पेय माना गया है, परंतु इसका एक पारलौकिक अर्थ भी देखने को मिलता है। साधना की ऊंची अवस्था में व्यक्ति के भीतर एक प्रकार का रस उत्पन्न होता है जिसको केवल ज्ञानीजन ही जान सकते हैं।
सोमं मन्यते पपिवान् यत् संविषन्त्योषधिम्।
सोमं यं ब्रह्माणो विदुर्न तस्याश्नाति कश्चन।। (ऋग्वेद–10-85-3))
अर्थात : बहुत से लोग मानते हैं कि मात्र औषधि रूप में जो लेते हैं, वही सोम है ऐसा नहीं है। एक सोमरस हमारे भीतर भी है, जो अमृतस्वरूप परम तत्व है जिसको खाया-पिया नहीं जाता केवल ज्ञानियों द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
*.कण्व ऋषियों ने मानवों पर सोम का प्रभाव इस प्रकार बतलाया है- यह शरीर की रक्षा करता है, दुर्घटना से बचाता है, रोग दूर करता है, विपत्तियों को भगाता है, आनंद और आराम देता है, आयु बढ़ाता है और संपत्ति का संवर्द्धन करता है। इसके अलावा यह विद्वेषों से बचाता है, शत्रुओं के क्रोध और द्वेष से रक्षा करता है, उल्लासपूर्ण विचार उत्पन्न करता है, पाप करने वाले को समृद्धि का अनुभव कराता है, देवताओं के क्रोध को शांत करता है और अमर बनाता है।
*.सोम विप्रत्व और ऋषित्व का सहायक है। सोम अद्भुत स्फूर्तिदायक, ओजवर्द्धक तथा घावों को पलक झपकते ही भरने की क्षमता वाला है, साथ ही अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति कराने वाला है।
बाइबल में भी सोम की चर्चा
बाइबल में भी सोम की चर्चा है। फ़र्क सिर्फ यह है कि वेदों और पारसियों के धार्मिक ग्रंथ ‘जेंदावेस्ता’ में सोम पेय के रूप में मौजूद है, वहीं बाइबल का सोम शरीर या काया है। मगर ऐसा लगता है कि बाइबल के सोम से भारत-ईरानी कुटुम्ब वाले सोम यानी होम का भाषिक साम्य नहीं है। सोम के बारे में चाहे जितनी अस्पष्टता हो, मगर एक बात तय है कि यह नशीला पेय न होकर उत्तेजक पेय था। वैदिक युग के बाद के दौर में जब सोमौषधि के बारे में लोगों की कोई याद बाक़ी न रही, तो उसे सुरा यानी शराब के समकक्ष पेय माना जाने लगा। वैदिक साहित्य में सोम के ज़रिये सात्विक खान-पान की अहमियत बताई गई है। एक अनजानी पहचान वाली वनस्पति के बार-बार जिक्र के चलते ही हमारे ऋषियों-वैद्यों ने विभिन्न जाति के पौधों का परीक्षण शुरू किया और हमने आयुर्वेद में अनेक शोध किए। कुल मिलाकर लगता है कि सोम की असली महिमा वनस्पति आधारित आहार पद्धति में, निरोगी जीवन में है।
”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”