प्रतिवर्ष को 11 फरवरी को विज्ञान में महिलाओं व बालिकाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day of Women and Girls in Science) मनाया जाता है। इस दिवस को संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिवर्ष 2015 से मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका पर प्रकाश डालना है।
विश्व भर में 11 फरवरी को विज्ञान में महिलाओं और बालिकाओं का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. ये दिन विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की समान सहभागिता और भागीदारी सुनिश्चित करने और इन क्षेत्रों में कार्य कर रही महिलाओं और बालिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से मनाया जाता है. इस दिन को पहली बार 2016 में विश्व स्तर पर मनाया गया था। इस दिवस को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व भर में विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं को बढ़ावा देने वाले संगठनों के साथ मिलकर मनाया जाता है। महिलाओं व बालिकाओं को विज्ञान व प्रौद्योगिकी क्षेत्र में बढ़ावा देना अति आवश्यक है। वर्तमान में विश्व में महिलाओं अनुसंधानकर्ता केवल 30% है। STEM (Science, Technology, Engineering and Mathematics) क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों की अपेक्षा कम है।
इस दिन को मनाने का उद्देश्य
विज्ञान में महिलाओं और बालिकाओं का अंतर्राष्ट्रीय दिवस- को विश्व स्तर पर मनाए जाने का उद्देश्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को चिन्हित करना है. साथ ही विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की समान सहभागिता और भागीदारी सुनिश्चित करना है.
ऐसे हुई शुरुआत
वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 11 फरवरी को विज्ञान में महिलाओं और बालिकाओं का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने के तौर पर अपनाया गया था. इस दिन को मनाने की शुरुआत वर्ष 2016 में हुई थी. यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा इसको लागू किया गया. इसमें अंतर सरकारी एजेंसियों और संस्थानों के साथ-साथ नागरिक समाज का भी साथ रहा ताकि महिलाओं और लड़कियों को विज्ञान के क्षेत्र में पुरुषों के मुकाबले, भागीदारी के लिए पूर्ण और समान रूप से बढ़ावा दिया जा सके.
ये भी है वजह
इंटरनेशनल डे ऑफ वीमेंस एंड गर्ल्स इन साइंस के इस दिन को मनाये जाने की वजह एक अध्य्यन भी रही. 14 देशों में कराए गए अध्ययन से पता चला, कि विज्ञान से जुड़े क्षेत्र में बैचलर्स डिग्री, मास्टर्स डिग्री और डॉक्टर्स डिग्री करने वाली महिला छात्राओं का प्रतिशत 18, 8 और 2 है. जबकि पुरुष छात्रों का प्रतिशत 37,18 और 6 है. यूनेस्को के आंकड़ों के (वर्ष 2014-16) के अनुसार, लगभग 30 प्रतिशत महिलाएं उच्च शिक्षा में एसटीईएम (STEM : Science, Technology Engineering and Mathematics) से संबंधित क्षेत्रों का चयन करती हैं. इस क्षेत्र में महिलाएं और बालिकाएं भी आगे बढ़ सकें इसलिए इस दिन को मनाया जाता है. आपको बता दें सतत विकास 2030 के घोषित लक्ष्यों में विज्ञान और लैंगिक समानता दोनों ही महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ दशकों में विज्ञान में महिलाओं और लड़कियों की भूमिका को बढ़ाने हेतु काफी सारे प्रयास किए गए हैं लेकिन अभी भी महिलाओं और लड़कियों की भूमिका विज्ञान क्षेत्र में काफी सीमित है।
वर्ष 2021 की थीम ‘कोविड-19 के खिलाफ संघर्ष में अग्रणी महिला वैज्ञानिक
उल्लेखनीय है कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में विभिन्न चरणों के दौरान महिला शोधकर्ताओं/ वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया है। उदाहरण के लिए वायरस पर ज्ञान को आगे बढ़ाना, कोरोनावायरस के परीक्षण करने की तकनीक विकसित करना एवं वैक्सीन विकसित करने इत्यादि में महिला वैज्ञानिकों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है।हालांकि कोविड-19 महामारी का महिला वैज्ञानिकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है विशेष रुप से उन महिलाओं की जिनका करियर प्रारंभिक अवस्था में था। इस प्रकार महामारी के कारण विज्ञान में व्याप्त लैंगिक अंतराल और बढ़ गया है। अतः ऐसे समय में विज्ञान जगत में महिलाओं और लड़कियों की भूमिका को बढ़ाने हेतु नीतियों, पहलों और वर्तमान तंत्र को संबोधित करने की आवश्यकता है। इसी क्रम में इस वर्ष की थीम कोविड-19 महामारी के अनुरूप रखी गई है।
विज्ञान में महिलाओं और लड़कियों की भूमिका से संबंधित आकड़ें
वैश्विक आकड़ें
* वर्ष 1901 से 2019 के मध्य फिजिक्स, केमिस्ट्री और मेडिसिन के क्षेत्र में 616 लोगों को कुल 334 नोबेल पुरस्कार दिए गए एवं इनमें सिर्फ 20 महिलाएं शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि फ्रांस की महान वैज्ञानिक मैरी क्यूरी को दो बार यह पुरस्कार मिला है।
* वर्तमान में शोधकर्ता महिलाओं की हिस्सेदारी 30% से भी कम है।
* स्टैम/STEM विषयों में महिलाओं द्वारा प्रकाशित शोध की संख्या कम है, उन्हें अपने शोध का मेहनताना भी कम मिलता और पुरुष सहकर्मियों की तुलना में वे करियर में उतना आगे नहीं बढ़ पातीं।
* यूनेस्को के आंकड़ों (2014 से 2016) पर हम नजर डालें तो हमें पता चलता है कि कुल महिला छात्रों में से मात्र 30% महिलाएं उच्च शिक्षा में STEM(विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिकी और गणित -एसटीईएम या स्टेम) क्षेत्रों का चयन करती हैं।
* अगर हम STEM क्षेत्र में महिलाओं का नामांकन देखे तो निम्न तथ्य सामने आते हैं-आईसीटी (3 प्रतिशत), प्राकृतिक विज्ञान, गणित और सांख्यिकी (5 प्रतिशत) और इंजीनियरिंग, विनिर्माण और निर्माण (8 प्रतिशत)।
* 2015 के ‘जेंडर बायस विदाउट स्टडीज’की रिपोर्ट के अनुसार STEM क्षेत्रों की नौकरियों में महिलाओं का हिस्सा मात्र 12% था।
* 2016 के केली ग्लोबल वर्कफोर्स इनसाइट सर्वेक्षण के अनुसार स्टेम में नामांकित पूर्व स्नातक छात्र-छात्राओं का प्रतिशत 46 है, लेकिन आगे चलकर बड़ी संख्या में महिलाएं इसे करियर नहीं बनातीं।
* 2016 में हुए केली ग्लोबल वर्कफोर्स इनसाइट सर्वेक्षण के अनुसार स्टेम के क्षेत्रों में नौकरी कर रही महिलाओं में 81 प्रतिशत का मानना है कि प्रदर्शन आकलन में पुरुषों की तुलना में उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
* इस प्रकार हमारे सामने जो निष्कर्ष आता है वह यही दर्शाता है कि विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका काफी कम है एवं इसे बढ़ाने के लिए इस दिशा में सभी को सम्मिलित प्रयास करना होगा।
भारतीय आकड़ें
* दुनिया 28. 8 प्रतिशत महिला शोधकर्ता के विपरीत भारत में केवल 13.9 फीसदी महिला शोधकर्ता हैं।
* नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 में ग्रेजुएट कोर्स में 9.3% छात्राओं ने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया था एवं 4.3 % महिलाओं ने चिकित्सा विज्ञान में दाखिला लिया। मास्टर और डॉक्टरेट स्तर पर महिलाओं का पंजीकरण और भी कम रहा।
* नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार आईआईटी, एनआईटी, इसरो और डीआरडीओ सहित 620 से अधिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में महिला वैज्ञानिक और प्रशासनिक कर्मचारियों की संख्या की स्थिति भी काफी चिंतनीय है। इन संस्थानों में महिला वैज्ञानिकों की संख्या 20 प्रतिशत, पोस्ट डॉक्टरेट में 28.7 फीसदी और पीएचडी महिलाओं की संख्या 33.5 प्रतिशत है।
विज्ञान क्षेत्र में महिलाओं और लड़कियों की कम भूमिका के प्रमुख कारण
* लैंगिक रूढ़िवादी दृष्टिकोण
* रोल मॉडल का अभाव
* सहयोग न देने वाली या प्रतिरोधी नीतियां
* पितृसत्तात्मक मानसिकता
* बच्चों के पालन-पोषण इत्यादि दोहरे पारिवारिक दायित्व के कारण नौकरी छोड़ना
* प्रदर्शन आकलन में पुरुषों की तुलना में उनके साथ भेदभाव
विज्ञान क्षेत्र में महिलाओं और लड़कियों की भूमिका बढाने हेतु भारत सरकार के प्रयास
विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिकी और गणित (एसटीईएम या स्टेम) में महिलाओं की कम हिस्सेदारी को देखते हुए भारत सरकार के द्वारा छात्राओं में इन क्षेत्रों के प्रति रुचि विकसित करने और इन विषयों के अध्ययन के लिए कई सारी योजना समय-समय पर लाई गई है
विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने हेतु महत्वपूर्ण कार्यक्रम निम्न है:
* ‘किरण’ (तालीम के माध्यम से अनुसंधान विकास में ज्ञान भागीदारी) योजना
* ‘क्यूरी’ (महिला विश्वविद्यालयों में नवाचार और उत्कृष्टता के लिए अनुसंधान कार्यों का समेकन) कार्यक्रम
* महिला वैज्ञानिक योजना (WOS)
* STEMM में महिलाओं के लिए इंडो-यूएस फैलोशिप
* इंस्पायर योजना और इंस्पायर अवार्ड मानक योजना
* बायो-टेक्नोलॉजी करियर एडवांसमेंट एंड रेओरिएंटशन (बायो -केयर ) स्कीम;
21 वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए, हमें अपनी पूरी क्षमता का दोहन करने की आवश्यकता है। इसके लिए लैंगिक रूढ़ियों को खत्म करने की आवश्यकता है। इसका अर्थ है महिला वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के करियर का समर्थन करना। लड़कियां और लड़के विज्ञान और गणित में समान रूप से अच्छा प्रदर्शन करते हैं – लेकिन उच्च शिक्षा में केवल महिला छात्रों का एक अंश विज्ञान का अध्ययन करने के लिए चुनते हैं। विज्ञान में महिलाओं और लड़कियों के इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर, आइए हम विज्ञान में लैंगिक असंतुलन को समाप्त करने का संकल्प लें।