दुर्ग 12 नवंबर । अस्सी के दशक में अपनी माँ के साथ पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सक्खर जिले के रोड़ी शहर से आई तीन बहनों का भारतीय नागरिकता का सपना आज साकार हुआ। जब भारत में वे आईं थीं तो तीनों माइनर थीं, दस बरस छोटी थीं। उस वक्त पासपोर्ट में अपनी माँ के साथ ट्रैवल किया जा सकता था। फ्लाइट से भारत आने के बरसों बाद आज वे उम्र के चालीसवें दशक में हैं और उन्हें नागरिकता मिल पाई है। इन बहनों के भाई विनोद माखीजा ने बताया कि यह हमारे लिए बहुत बड़ा दिन है। हम सबकी चिंता दूर हुई। उल्लेखनीय है कि यह सब आसान तब हुआ जब कलेक्टरों को स्थानीय स्तर पर जांच के पश्चात नागरिकता के नियमों को पूरा करने पर नागरिकता देने का अधिकार केंद्र सरकार द्वारा दिया गया। नागरिकता संबंधी अधिकार मिलने पर इन प्रकरणों पर तेजी से कार्रवाई करने के निर्देश डिप्टी कलेक्टर खेमलाल वर्मा को दिये। इसमें नागरिकता कानून के अनुसार सभी का अभिमत लेते हुए केवल तीन महीनों में कार्रवाई पूरी हुई। इस संबंध में श्री विनोद माखीजा ने बताया कि जिला प्रशासन द्वारा तेजी से निर्णय लिया गया और यह कार्य पूरा हुआ। हमारी शदाणी दरबार से भी काफी मदद की गई। युधिष्ठिर महाराज के मार्गदर्शन में उद्देलाल महाराज ने नागरिकता संबंधी दिक्कतों को लेकर केंद्र सरकार से चर्चा की। राज्य सरकार के संज्ञान में भी यह बातें लाईं। केंद्र द्वारा कलेक्टरों को अधिकार दिये जाने के बाद राज्य सरकार की ओर से तेजी से इस दिशा में कार्य करने का आश्वासन मिला और बहुत जल्दी ही नागरिकता पर निर्णय हो गया। आज कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने इन्हें नागरिकता का सर्टिफिकेट प्रदान किया। प्रतिनिधिमंडल के लिए यह बहुत भावुक क्षण था। उन्होंने शासन के प्रति आभार जताया। शदाणी दरबार की ओर से आये उद्देलाल शदाणी ने बताया कि नागरिकता का मामला बेहद जटिल होता है। केंद्र से क्वेरी आती है फिर जिले से क्वेरी हल कर भेजी जाती है और पत्राचार में काफी समय लगता है। जब कलेक्टर को अधिकार मिले और उन्होंने इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए तेजी से कार्य किये तो यह समस्या शीघ्र हल हो गई। विनोद माखीजा ने बताया कि दिल्ली तक जाना आना भी बहुत मुश्किल कार्य था। संसाधन और समय दोनों नष्ट होते थे। आज हम लोग बहुत खुश हैं। डिप्टी कलेक्टर श्री खेमलाल वर्मा ने बताया कि कलेक्टर के मार्गदर्शन में तेजी से काम किया गया और खुशी है कि इन्हें आज नागरिकता मिल गई। उन्होंने बताया कि इसके लिए शदाणी दरबार के सेवादार नंदलाल ने भी कड़ी मेहनत की। नियमित रूप से संपर्क में रहे और उनकी मेहनत सफल हुई। ऋषि कुमार जब सिंध से भारत आये तो उनकी उम्र 12 साल थी। अब उनकी उम्र 55 साल है। नागरिकता लंबित होने की वजह से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। अब दिक्कत दूर हुई। इसी तरह सलोचनी बाई उनकी बहन हैं उन्हें भी नागरिकता मिली। जब भारत आई तो केवल 5 साल की थीं।
सिंध प्रांत से भारत आए सिंधी भाइयों को मिली आज नागरिकता,,,, दुर्ग कलेक्टर ने सम्मान कर प्रमाण पत्र बांटा,,,,, सालो बाद मिली भारतीय नागरिकता
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