दिवाली का त्यौहार बहुत सी जगहों पर 5 दिनों तक मनाया जाता है। ऐसे में दिवाली का चौथा दिन गोवर्धन पूजा के लिए निर्धारित किया गया है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। बहुत सी जगहों पर इस दिन अन्नकूट पूजा और बलि पूजा भी की जाती है। दिवाली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा का यह पर्व प्रकृति और मानव जीवन के बीच सीधा और स्पष्ट संबंध स्थापित करता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार भगवान कृष्ण ने गोकुल वासियों को गोवर्धन पूजा के लिए प्रेरित किया था। इस पर्व पर गौ माता की पूजा का भी विशेष महत्व है।
दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा या अन्न कूट का पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व की खास रौनक मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना, नंदगांव में देखने को मिलती है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार भगवान कृष्ण ने गोकुल वासियों को गोवर्धन पूजा के लिए प्रेरित किया था। गोवर्धन पूजा के दिन गौ माता की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में गाय को माँ का दर्जा प्राप्त है और गाय के बारे में शास्त्रों में ही यह भी उल्लेखित है कि गौ माता माँ गंगा के निर्मल जल की ही तरह पवित्र और पावन होती हैं। यूं तो गोवर्धन पूजा का पर्व दिवाली के अगले दिन ही मनाया जाता है लेकिन कभी कभार इन दोनों पर्वों के बीच 1 दिन का अंतर भी जाता है। जानिए कैसे की जाती है गोवर्धन पूजा।
गोवर्धन पूजा 2021 मुहूर्त:
गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त – 06:36 AM से 08:47 AM
अवधि – 02 घण्टे 11 मिनट
गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त – 03:22 PM से 05:33 PM
अवधि – 02 घण्टे 11 मिनट
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 05, 2021 को 02:44 AM बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त – नवम्बर 05, 2021 को 11:14 PM बजे
गोवर्धन पूजा विधि
लोग अपने घर में गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर उसे फूलों से सजाते हैं। गोवर्धन पर्वत के पास ग्वाल-बाल और पेड़ पौधों की आकृति भी मनाई जाती है। इसके बीच में भगवान कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है। इसके बाद षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है। गोवर्धन पूजा सुबह या फिर शाम के समय की जाती है। पूजन के समय गोवर्धन पर धूप, दीप, जल, फल, नैवेद्य चढ़ाएं जाते हैं। तरह-तरह के पकवानों का भोग लगाया जाता है। इसके बाद गोवर्धन पूजा की व्रत कथा सुनी जाती है और प्रसाद सभी में वितरित करना होता है। इस दिन गाय-बैल और खेती के काम में आने वाले पशुओं की पूजा होती है। पूजा के बाद गोवर्धन जी की सात परिक्रमाएं लगाते हुए उनकी जय बोली जाती है। परिक्रमा हाथ में लोटे से जल गिराते हुए और जौ बोते हुए की जाती है।
कैसे की जाती है गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा के लिए आपको क्या करना है, सुबह जल्दी उठकर पूजन सामग्री के साथ में आप पूजा स्थल पर बैठ जाइए और अपने कुल देव का, कुल देवी का ध्यान करिए और पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत तैयार कीजिए. इसे लेटे हुए पुरुष की आकृति में बनाया जाता है. इसके बाद इन्हें फूल, पत्ती, टहनियों एवं गाय की आकृतियों से या फिर आप अपनी सुविधा के अनुसार इसे किसी भी आकृति से सजा लीजिए। गोवर्धन पर्वत की आकृति तैयार कर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है, ध्यान रखिए कि गोवर्धन जी की आकृति के मध्य यानी नाभि स्थान पर एक कटोरी जितना हिस्सा खाली छोड़ा जाता है. और वहां एक कटोरि या मिट्टी का दीपक रखा जाता है फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद और बतासे इत्यादि डालकर पूजा की जाती है और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
गोवर्धन पूजा का महत्व
मान्यता है जो गोवर्धन पूजा करने से धन, संतान और गौ रस की वृद्धि होती है। गोवर्धन पूजा प्रकृति और भगवान श्री कृष्ण को समर्पित पर्व है। इस दिन कई मंदिरों में धार्मिक आयोजन और अन्नकूट यानी भंडारे होते हैं। पूजन के बाद लोगों में प्रसाद बांटा जाता है। इस दिन आर्थिक संपन्नता के लिए गाय को स्नान कराकर उसका तिलक करें। गाय को हरा चारा और मिठाई खिलाएं। फिर गाय की 7 बार परिक्रमा करें। इसके बाद गाय के खुर की पास की मिट्टी एक कांच की शीशी में लेकर उसे अपने पास रख लें। मान्यता है ऐसा करने से धन-धान्य की कभी कमी नहीं होगी।
कैसे हुई गोवर्धन पूजा की शुरुआत?
हिंदू धार्मिक मान्यताओं अनुसार जब इंद्र ने अपना मान जताने के लिए ब्रज में तेज बारीश की थी तब भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर ब्रज वासियों की मूसलाधार बारिश से रक्षा की थी। जब इंद्रदेव को इस बात का ज्ञात हुआ कि भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं तो उनका अहंकार टूट गया। इंद्र ने भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगी। गोवर्धन पर्वत के नीचे सभी गोप-गोपियाँ, ग्वाल-बाल, पशु-पक्षी सुख पूर्वक और बारिश से बचकर रहे। कहा जाता है तभी से गोवर्धन पूजा मनाने की शुरुआत हुई।
गोवर्धन पूजा मुहूर्त
गोवर्धन पूजा का सुबह का मुहूर्त 06:36 AM से हो गया है शुरू इसकी समाप्ति 08:47 AM पर होगी। इस शुभ मुहूर्त में भगवान गोवर्धन की पूजा संपन्न करें।
गोवर्धन की इस पौराणिक कथा से जानिए कैसे श्री कृष्ण ने देवराज इंद्र का तोड़ा था अहंकार
धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार देव राज इंद्र को अपनी शक्तियों का घमंड हो गया था। इंद्र के इसी घमंड को दूर करने के लिए भगवान कृष्ण ने लीला रची। एक बार गोकुल में सभी लोग तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और हर्षोल्लास के साथ नृत्य-संगीत कर रहे थे। यह देखकर भगवान कृष्ण ने अपनी मां यशोदा जी से पूछा कि आप लोग किस उत्सव की तैयारी कर रहे हैं? भगवान कृष्ण के सवाल पर मां यशोदा ने उन्हें बताया हम देव राज इंद्र की पूजा कर रहे हैं। तब भगवान कृष्ण ने उनसे पूछा कि, हम उनकी पूजा क्यों करते हैं?
गोवर्धन जी की आरती
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज, तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े, तोपे चढ़े दूध की धार।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरी सात कोस की परिकम्मा, और चकलेश्वर विश्राम
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे गले में कण्ठा साज रहेओ, ठोड़ी पे हीरा लाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे कानन कुण्डल चमक रहेओ, तेरी झांकी बनी विशाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण। करो भक्त का बेड़ा पार
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
गोवर्धन पूजा पर इस विधि से करें आरती
गोवर्धन पूजा सुबह और शाम दो समय की जाती है। सुबह में जहां भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की धूप, फल, फूल, खील-खिलौने, मिष्ठान आदि से पूजा-अर्चना और कथा-आरती करते हैं, तो शाम को इनको अन्नकूट का भोग लगाकर आरती की जाती है। इस वर्ष गोवर्धन पूजा के लिए सुबह का शुभ मुहूर्त प्रात: 06 बजकर 36 मिनट से प्रात: 08 बजकर 47 मिनट तक है। तो शाम की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त दोपहर 03 बजकर 22 मिनट से शाम 05 बजकर 33 मिनट तक का है।
गोवर्धन का वैज्ञानिक दृष्टि से महत्व
गोवर्धन का यह त्यौहार वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्व रखता है। ग्रामीण इलाकों में या कच्चे मकानों में लोग इस दिन भी इस दिन गाय के गोबर से अपने घरों को लीपते हैं। दरअसल बारिश के दौरान बहुत से बैक्टीरिया या कीटाणु पैदा हो जाते हैं, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है और गाय के गोबर में इन बैक्टीरिया से लड़ने की ताकत होती है, लिहाजा गाय के गोबर से घर को लिपने से सारे बैक्टीरिया या कीटाणु अपने आप मर जाते हैं और किसी प्रकार की बीमारी का खतरा भी नहीं रहता।
ऐसे शुरू हुई 56 भोग की परंपरा
मान्यता के अनुसार इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए और इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था। इंद्र अपनी शक्ति से लगातार 7 दिनों तक ब्रज में मूसलाधार बारिश कराते रहे। तब भगवान कृष्ण ने लगातार सात दिनों तक भूखे-प्यासे रहकर अपनी उंगली पर गोर्वधन पर्वत को उठाएं रखा। इसके बाद उन्हें सात दिनों और आठ पहर के हिसाब से 56 व्यंजन खिलाए गए थे, तभी से ये 56 तरह के भोग लगाने की शुरूआत हुई।
क्या होता है अन्नकूट? गोवर्धन पूजा में क्या है इसका महत्व
अन्नकूट कई तरह के अन्न और सब्जियों के समूह को कहा जाता है। इस दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार 21, 51, 101 और 108 सब्ज़ियों को मिलाकर एक तरह की मिक्स सब्ज़ी बनाई जाती है जिसको विशेष तौर पर गोवर्धन पूजा के दिन भगवान को भोग लगाने के लिए बनाया जाता है। इसके साथ ही तरह-तरह के अन्न से तैयार पकवान और मिठाइयों से भी भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाने की परम्परा है।
गोवर्धन पूजा से जुड़ी खास बातें-
गोवर्धन पूजा दिवाली के अगले दिन की जाती है। इस दिन मथुरा में गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा भी की जाती है। घरों में गोबर से गोवर्धन पर्वत बना कर उसका पूजन करने की भी परंपरा है। गोवर्धन पर अन्न और नई फसल का भी पूजन किया जाता है. इसी कारण इसे अन्नकूट भी कहा जाता है।
गाय के गोबर से बनाएं गोवर्धन पर्वत की आकृति, इन बातों का रखें खास ख्याल
इस दिन सुबह पूजन सामग्री के साथ में पूजा स्थल पर अपने कुल देव और कुल देवी का ध्यान करिए पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत तैयार कीजिए। इसको लेटे हुए पुरुष की आकृति में बनाया जाता है। प्रतीक रूप से गोवर्धन रूप में तैयार करें। इसके आसपास फूल, पत्ती, टहनियों और गाय की आकृतियों आदि से सजा लीजिए।
गोवर्धन की आकृति तैयार करके उसके बीच में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति रखते हैं। आकृति में नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्ढा बना लें और दूध, दही, गंगाजल, शहद और बतासे इत्यादि डाल दें। बनाए हुए गोवर्धन पर्वत की धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। साथ ही अन्नकूट, मिष्ठान आदि का भोग लगाए।
अन्नकूट का भोग बनाते समय न कें ये गल्तियां, नाराज हो जाएंगी माता अन्नपूर्णा
– अन्नकूट का भोग बनाते समय पवित्रता का विशेष ध्यान रखें।
– नहा-धोकर खाना बनाएं और सब्जी बनाने के दौरान चप्पल ना पहनें।
– साथ ही जूठे मसालों का उपयोग ना करें।
कैसे करें अन्नकूट गोवर्धन पूजा?
– इस दिन सुबह उठकर शरीर पर तेल की मालिश करें और फिर स्नान करें।
– घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाएं।
– इस के बीचो बीच भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति स्थापित करें।
– ग्वाल बाल और गोवर्धन पर्वत का षोडशोपचार विधि से पूजन करें।
– इन्हें बनाए गए पकवानों का भोग लगाएँ।
– फिर गोवर्धन पूजा की व्रत कथा सुने और आरती करें।
गोवर्धन पूजा पर अन्नकूट उत्सव…
गोवर्धन पूजा के दिन मंदिरों में अन्न कूट का आयोजन किया जाता है। अन्न कूट यानि कई प्रकार के अन्न का मिश्रण, जिसे भोग के रूप में भगवान श्री कृष्ण को चढ़ाया जाता है। कुछ स्थानों पर इस दिन बाजरे की खिचड़ी बनाई जाती है, साथ ही तेल की पूड़ी आदि बनाने की परंपरा है। अन्न कूट के साथ-साथ दूध से बनी मिठाई और स्वादिष्ट पकवान भोग में चढ़ाए जाते हैं।
संतान प्राप्ति के लिए गोवर्धन पूजा मानी जाती है विशेष
मान्यताओं के अनुसार गोवर्धन पूजा संतान प्राप्ति के लिए विशेष मानी गई है। कहते हैं इस दिन भगवान कृष्ण को शंख में पंचामृत भरकर अर्पित करने से संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी हो जाती है।
भगवान कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करने के राशिनुसार उपाय
मेष राशि: मेष राशि के लोगों को भगवान श्री कृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठाते हुए स्वरूप की पूजा करनी चाहिए और उन्हें पीले पुष्प अर्पित करना चाहिए।
वृषभ राशि: वृषभ राशि के लोगों को श्वेत पुष्पों से और चांदी की बांसुरी भगवान श्री कृष्ण को भेंट स्वरूप अर्पित करने चाहिए।
मिथुन राशि: मिथुन राशि के लोगों को भगवान श्री कृष्ण को हरे रंग के वस्त्र पहनाने चाहिए और राधे कृष्ण की उपासना करनी चाहिए।
कर्क राशि: कर्क राशि के जातकों को भगवान श्री कृष्ण को दुग्ध अर्पित करना चाहिए और ओम क्लीं कृष्णाय नमः मंत्र का जाप करना चाहिए।
सिंह राशि: सिंह राशि के लोगों को लाल पुष्पों से भगवान श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए और कृष्ण जी के योगीराज स्वरूप का ध्यान करना चाहिए।
कन्या राशि: कन्या राशि के लोगों को कृष्ण जी के साथ राधा रानी की भी पूजा करनी चाहिए और गौमाता को भोजन देना चाहिए।
तुला राशि: तुला राशि के लोगों को चांदी के चम्मच और कटोरी से भगवान को खीर का भोग लगाना चाहिए।
वृश्चिक राशि: वृश्चिक राशि के लोगों को भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करनी चाहिए और भगवान को छप्पन भोग अर्पित कर चाहिए।
धनु राशि: धनु राशि के लोगों को पीले पुष्पों से भगवान विष्णु जी की उपासना करनी चाहिए और उनके कृष्ण स्वरुप के गोवर्धन स्वरुप की पूजा करनी चाहिए
मकर राशि: मकर राशि के लोगों को भगवान कृष्ण को नीले रंग के पुष्प और नीले रंग के वस्त्र बनाकर उनकी पूजा करनी चाहिए।
कुम्भ राशि: कुंभ राशि के लोगों को हरे रंग के वस्त्र पहनाकर भगवान को मोर पंख अर्पित करना चाहिए।
मीन राशि: मीन राशि के लोगों को भगवान श्री कृष्ण के मूल मंत्र का जाप करना चाहिए और उनके साथ राधा रानी और बलराम जी की भी पूजा करनी चाहिए।
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