दुर्ग 07 अक्टूबर । जिला एवं सत्र न्यायाधीश अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग के राजेश श्रीवास्तव के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत पैन इंडिया आउटरीच कार्यक्रम के तहत दुर्ग जिले में स्थित शासकीय स्कूलों में न्यायाधीशगणों द्वारा विधिक जागरूकता शिविर आयोजित की गई। जिसमें श्रीमती मधु तिवारी अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, श राकेश वर्मा अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, श्रीमती नीरू सिंह अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, श्रीमती ममता भोजवानी अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने बताया कि बच्चे शरीर और मन से कोमल होने की वजह से आसानी से शोषण का शिकार हो जाते हैं। इसी वजह से उनकी हिफाजत करने के लिए कानूनों में ढेरों प्रावधान किए गए हैं। बच्चों को संरक्षित करने के लिए कानून में कई तरह के प्रावधान किए गए हैं। 14 साल से कम उम्र वाले किसी बच्चे से मजदूरी करवाने पर पाबंदी है। कानून में 18 तरह के कामों 14 साल के कम उम्र वाले बच्चों से नहीं करवाया जा सकता।बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार मूल अधिकार है और इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 21 ए के तहत प्रावधान है कि 6 साल से 14 साल के बच्चों को शिक्षा अनिवार्य तौर पर दी जाए। एक मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बच्चे की मां को निर्देश दिया था कि बच्ची को स्कूल से वापस न लें। स्कूल से बच्चों को वापस लेना एक अपराध की तरह है। 6 से 14 साल तक के बच्चों की फ्री शिक्षा का प्रावधान है। साथ ही इस कानून में कहा गया है कि हर प्राइवेट स्कूल अपनी 25 फीसदीे सीटें समाज के कमजोर तबके के बच्चों और विकलांग बच्चों से भरे। राइट आफ चिल्ड्रन टु फ्री एंड कंपलसरी एजुकेशन एक्ट 2009 के तहत नियम बच्चों की बेसिक एजुकेशन के लिहाज से बनाया गया है। अगर कोई स्कूल इन नियमों को नहीं मानता तो उसके खिलाफ संबंधित शिक्षा विभाग से शिकायत की जा सकती है। वहां भी सुनाई न होने पर हाई कोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है।आईपीसी के सेक्शन 82 के तहत अगर बच्चे की उम्र 7 साल काम है तो उस पर किसी अपराध के लिए कहीं भी केस नहीं चलाया जा सकता। आईपीसी के सेक्शन 83 में बताया गया है कि 7 से 12 साल की उम्र तक अपराध होने पर जज यह तय करें कि वह मानसिक रूप से कितना मेच्योर है। अगर जज उनके तो मानसिक तौर पर मेच्योर पाता है तो जज जेजे एक्ट के तहत उस पर कार्रवाई हो सकती है। नाबालिक का मामला जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने पेश किया जाता है और अगर अपराधी साबित हो जाता है तो जेल न भेजकर अधिकतम 3 साल के लिए सुधार गृह में भेजा जाता है।
न्यायाधीशगणों द्वारा शासकीय स्कूलों के बच्चों को बाल मजदूरी पर रोक,,,,, पढ़ाई का अधिकार एवं अन्य कानूनों की जानकारियां दी
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