भगवान विश्वकर्मा को ब्रह्मा जी का पुत्र कहा जाता है. इन्होनें स्वर्ग लोक, पुष्पक विमान, द्वारिका नगरी, यमपुरी, कुबेरपुरी आदि का निर्माण किया था. श्रीहरि भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र और भोलेनाथ के लिए त्रिशूल भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था. इसके साथ ही सतयुग का स्वर्गलोक, त्रेता की लंका और द्वापर युग की द्वारका की रचना भी भगवान विश्वकर्मा ने ही की थी. इसीलिए भगवान विश्वकर्मा को संसार का सबसे पहला और बड़ा इंजीनियर कहा जाता है. इस दिन सभी कारखानों और औद्योगिक संस्थानों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा हर साल कन्या संक्रांति के दिन होती है
विश्वकर्मा पूजा कारोबारियों के लिए विशेष महत्व रखती है। कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण किया था। इस दिन विशेष रुप से औजार, मशीन तथा सभी औद्योगिक कंपनियों, दुकानों आदि पूजा करने का विधान है। पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएं भी भगवान विश्रकर्मा द्वारा ही बनाई गई हैं। कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है। आइए जानते है विश्वकर्मा पूजा से जुड़ी पूरी जानकारी…
विश्वकर्मा पूजा कथा
प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियां थी। उन सभी का निर्माण विश्वकर्मा जी के द्वारा ही किया गया था।यहां तक की सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेतायुग की लंका, द्वापर की द्वारिका और कलियुग का हस्तिनापुर सभी विश्वकर्मा जी के द्वारा ही रचित थे। सुदामापुरी की रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता भी विश्वकर्मा जी ही थे। इससे यह पता चलता है कि धन धान्य की अभिलाषा करने वालों को भगवान विश्वकर्मा की पूजा अवश्य करनी चाहिए। विश्वकर्मा जी को देवताओं के शिल्पी के रूप में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।
भगवान विश्वकर्मा की एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में काशी में रहने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपने कार्य में निपुण तो था लेकिन स्थान- स्थान पर घूमने पर भी वह भोजन से अधिक धन प्राप्त नहीं कर पाता था। उसके जीविकापर्जन का साधन निश्चित नहीं था। इतना ही नहीं उस रथकार की पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहा करती थी। पुत्र प्राप्ति के लिए दोनों साधु और संतों के पास जाते थे। लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी। तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार से कहा तुम दोनों भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ। तुम्हारी सभी इच्छाएं अवश्य ही पूरी होंगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा का महत्व सुनों। इसके बाद अमावस्या को रथकार की पत्नी ने भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जिससे उसे धन धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वह सुखी जीवन व्यतीत करने लगे।
विश्वकर्मा पूजा 2021 मंत्र
विश्वकर्मा पूजा के दिप प्रात: स्नान आदि से निवृत होकर आपको साफ कपड़े पहनने चाहिए। फिर आपको रुद्राक्ष की माला से नीचे दिए गए मंत्र का जाप एक माला यानी 108 बार करनी चाहिए. इस बात का ध्यान रहे कि आप मंत्र का उच्चारण सही करें अन्यथा आपको इस मंत्र जाप का लाभ नहीं मिलेगा।
बन रहा यह योग
विश्वकर्मा पूजा के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. इस योग में इस पर्व को मनाया जाना अपने आप में बेहद खास है।
पूजा के बाद करें ये प्रार्थना
विश्वकर्मा पूजा वाले दिन मशीनों और औजारों की पूजा करके भगवान विश्वकर्मा जी से प्रार्थना की जाती है कि हे प्रभु हमारी मशीनें और औजार निरन्तर, बिना किसी रूकावट के चलती रहें, उसमें किसी प्रकार की कोई बाधा न आने पाए और हमारे उद्योग देश की प्रगति में सहायक बने और लोगों को रोजी-रोजगार देते रहें।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व
कहा जाता है भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यक्ति की शिल्पकला का विकास होता है. जिससे व्यक्ति को अपने काम में सफलता हासिल होती है. विश्वकर्मा पूजा के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा के साथ ही औजारों, मशीनों, वाहन, इलेक्ट्रॉनिक समान की भी पूजा की जाती है. इस मौके पर प्रसाद भी बांटने का विधान है।
प्राचीन काल की इन राजधानियों का किया निर्माण
मान्यता है कि प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी, उनका निर्माण भगवान विश्वकर्मा के द्वारा ही किया गया . सतयुग का ‘स्वर्ग लोक’, त्रेता युग की ‘लंका’, द्वापर की ‘द्वारिका’ या फिर कलयुग का ‘हस्तिनापुर’ हो. ‘सुदामापुरी’ की तत्क्षण रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे।
क्यों की जाती है इस दिन कारखानों में पूजा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पकार और वास्तुकार थे. उन्हें दुनिया का पहला इंजीनियर भी कहा जाता है. इस दिन उद्योग-फैक्ट्रियों की मशीनों समेत सभी तरह की मशीनों की पूजा की जाती है।
विश्वकर्मा पूजा मंत्र
ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:, ॐ अनन्तम नम:, ॐ पृथिव्यै नम
इन बातों का खास ख्याल रखे
* विश्वकर्मा पूजा के दिन अपने कारखाने, फैक्ट्री बंद रखनी चाहिए।
* विश्वकर्मा पूजा के दिन अपनी मशीनों, उपकरणों और औजारों की पूजा करने से घर में बरकत होती है।
* विश्वकर्मा पूजा के दिन औजारों और मशीनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
* विश्वकर्मा पूजा के दिन तामसिक भोजन (मांस-मदिरा) का सेवन नहीं करना चाहिए।
* अपने रोजगार में वृद्धि के लिए गरीबों और असहाय लोगों को दान-दक्षिणा जरूर दें।
* अपने बिजली उपकरणों और गाड़ी की सफाई भी करें।
विश्विकर्मा पूजा विधि
* सुबह उठकर स्नानादि कर पवित्र हो जाएं। फिर पूजन स्थल को साफ कर गंगाजल छिड़क कर उस स्थान को पवित्र करें।
* इसके बाद परिवार के साथ इस पूजा को शुरू करें।
* अगर पति-पत्नी इस पूजा को एक साथ करते हैं तो और भी अच्छा है।
* एक चौकी लेकर उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं।
* पीले कपड़े पर लाल रंग के कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं।
* पूजा के हाथ में चावल लें और भगवान विश्वकर्मा का ध्यान लगायें।
* इस बीच भगवान विश्वकर्मा को सफेद फूल अर्पित करें।
* भगवान गणेश का ध्यान करते हुए उन्हें प्रणाम करें। इसके बाद स्वास्तिक पर चावल और फूल अर्पित करें। फिर चौकी पर भगवान विष्णु और ऋषि विश्वकर्मा जी की प्रतिमा या फोटो लगाएं।
* एक दीपक जलाकर चौकी पर रखें। भगवान विष्णु और ऋषि विश्वकर्मा जी के मस्तक पर तिलक लगाएं।
* इसके बाद धूप, दीप, पुष्प अर्पित करते हुए हवन कुंड में आहुति दें।
* इस दौरान अपनी मशीनों और औजारों की भी पूजा करें।
* फिर भगवान विश्वकर्मा को भोग लगाकर प्रसाद सभी को बांट दें।
* विश्वकर्मा जी और विष्णु जी को प्रणाम करते हुए उनका स्मरण करें। साथ ही प्रार्थना करें कि वे आपके नौकरी-व्यापार में तरक्की करवाएं।
विश्वकर्मा जी के मंत्र का 108 बार जप करें। फिर श्रद्धा से भगवान विष्णु की आरती करने के बाद विश्वकर्मा जी की आरती करें। आरती के बाद उन्हें फल-मिठाई का भोग लगाएं. इस भोग को सभी लोगों में बांटें।
हवन सामग्री
हवन कुंड, तिल, गुड़, जौ, कमलगट्टा, शहद, पंचमेवा, ऋतु फल, दही, फूल, दूब घास, तुलसी की पत्ते, फूलों की माला, दूध, प्रसाद के लिए मिठाई।
पूजा के लिए शुभ मुहूर्त
17 सितंबर दिन शुक्रवार की सुबह 6 बजकर 07 मिनट से 18 सितंबर दिन शनिवार को 3 बजकर 36 मिनट तक पूजन कर सकते हैं. केवल राहुकल के समय पूजा निषिद्ध मानी गई है. 17 सितंबर को राहुकाल सुबह 10 बजकर 30 मिनट से दोपहर 12 बजे तक रहेगा. बाकी समय पूजा का शुभ योग रहेगा।
विश्वकर्मा की पूजा के लिए ज़रूरी सामग्री लिस्ट
रोली, पीला अष्टगंध चंदन, लाल सिंदूर, पीला सिंदूर, हल्दी, बड़ी सुपारी, हल्दी (साबुत), लौंग, जनेऊ, इलायची, इत्र, सूखा गोला, जटादार पानी वाला नारियल, धूपबत्ती, अक्षत, रुई की बत्ती, कपूर, देसी घी, कलावा, लाल चुनरी, लाल वस्त्र, बताशा या मिश्री, पीला कपड़ा, लकड़ी की चौकी, दोना, मिट्टी का कलश, मिट्टी की दियाली, हवन कुण्ड, माचिस, आम की लकड़ी, नवग्रह समिधा आदि।
विश्विकर्मा आरती
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥
यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।