बरसाती मौसम सुहावना होने के साथ ही हमारे लिए अनेक बीमारियों की सौगात भी लेकर आता है। इस स्थिति में अगर सावधानियाँ नहीं बरती गई तो ये खतरनाक मुसीबतें पैदा कर सकती हैं। इसलिए ऐसे मौसम में बीमारियों से बचने के लिए एहतियात बरतना जरूरी है।
वर्षा ऋतु का आगमन देशी महीनों के हिसाब से सावन-भादों में उस समय होता है जब ग्रीष्म ऋतु के कारण चारों ओर त्राहि-त्राहि मच जाती है तथा सब प्राणी भगवान से वर्षा की मांग करने लगते हैं। ग्रीष्म का ताप सारी धरती के स्वरूप को झुलसा दिया करता है। तब धरती, प्रकृति और प्राणी-जगत की प्यास तथा ताप को मिटाने के लिए एकाएक पुरवाई चलकर बादलों के आगमन की सूचना दे जाती है अर्थात् वर्षा प्रारम्भ हो जाती है। चारों ओर पानी-ही-पानी हो जाता है। छोटे-छोटे नदी-नाले आपे से बाहर हो जाते हैं। दादुर की टर-टर, झींगुरों की झंकार तथा जुगनुओं की चमक-दमक से रात्रि में आनन्द छा जाता है। वनों तथा बागों में मोर मस्त होकर नाचने लगते हैं।
इस ऋतु में जहाँ एक ओर सभी के मन में हर्षोल्लास की लहर दौड़ती देखी जाती है वहीं दूसरी ओर हमें कई बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है। चारों ओर मच्छरों की भरमार देखी जाती है जिससे कई जल जनित बीमारियां का फैलाव होता है। इससे बचने के लिए अपने घर के आस पास बने गड्ढों को पाट दें वहां पानी न भरने दें , क्योंकि जमा पानी में मक्खी-मच्छर, पैदा होते हैं, जिनसे डायरिया, हैजा, डेंगू, चिकनगुनिया व त्वचा संबंधी बीमारियां फैलने का डर बना रहता है। वैसे तो ये बीमारियां सभी के लिए घातक हो सकती हैं, लेकिन छोटे बच्चे अगर इन की चपेट में आ जाएं तो बड़ी मुश्किल से बाहर निकल पाते हैं। ऐसे में अपने और बच्चों के खाने का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए।
बच्चों की रोगों से लड़ने की क्षमता यानी रोग प्रतिरोधी शक्ति (इम्यून पावर) अपेक्षाकृत कमजोर होती है, खासतौर पर वर्षा ऋतु में वातावरण में नमी की वजह से रोगाणुओं या जीवाणुओं के संक्रमण का खतरा अधिक होता है। दूसरी तरफ बच्चों को बारिश में भींगना भी अच्छा लगता है। ऐसे में माता पिता को उनकी सेहत का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस प्रकार मानसून का यह मौसम अपने साथ बहुत सारी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी लाता है, खासकर छोटों यानी छोटे बच्चों के लिए। उन की देखभाल की जिम्मेदारी माता पिता पर होती है। इसलिए मातापिता को चाहिए कि मानसून शुरू होते ही वे अपने छोटे बच्चों की देखभाल में कतई लापरवाही न बरतें और उन्हें निम्न बातों का खयाल रखना चाहिए।
बरसात के मौसम में होनेवाले बीमारी से कैसे पाएं निजात ?
हैजा
यह संक्रामक बीमारी खासकर दूषित पानी व भोजन से होती है।
सीवर लाइन के जरिए घरों में पेयजल की सप्लाई होती है, वहाँ कालरा फैलने की संभावना ज्यादा होती है।
खासकर बच्चों के लिए यह बीमारी जानलेवा बन सकती है। ई0 कोलाई नामक बैक्टीरिया की वजह से यह होती है।
लक्षण – पेट दर्द, उल्टी, दस्त साथ-साथ शुरू होना, भूख का न लगना।
उपचार व बचाव – घर के आसपास गंदगी न जमा होने दें। पानी उबालकर पीएँ,
हैजा होने पर बच्चों को ओआरएस का घोल पिलाएँ, बाहर के खाद्य पदार्थों का सेवन कदापि न करें। (rainy season diseases)
पीलिया
यह विषाणुजन्य संक्रामक रोग है। गंदे भोजन व पानी के सेवन से होता है।
विषाणु खून के जरिए लिवर में चले जाते हैं, जिससे लिवर संक्रमित हो जाता है।
लक्षण – हल्का बुखार, बदन में दर्द, आँख व नाक से पानी बहना, उल्टी होना और आगे चलकर आँख व पेशाब का पीला हो जाना।
बचाव व उपचार – बासी भोजन न करें, पानी उबालकर पीएँ, मरीज का जूठा न खाएँ, आराम करें, ग्लूकोज का प्रयोग करें।
मलेरिया
यह मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से होता है।
मच्छर के काटने से प्लाज्मोडियम मरीज के रक्त में चला जाता है। जिससे आरबीसी (RBC – Red Blood Cells) नष्ट होने लगती हैं।
आगे चलकर लिवर व प्लीहा प्रभावित हो जाते हैं और रोगी की मृत्यु हो जाती है।
लक्षण – सिर दर्द, जाड़ा देकर तेज बुखार, थकावट।
बचाव व उपचार – मच्छरों से बचाव करें, लार्वा पैदा न होने दें, मच्छरदानी का प्रयोग करें।
चिकनपाॅक्स
इसे छोटी माता भी कहते हैं। यह नरम व गरम से होता है।
विषाणुजन्य संक्रामक बीमारी होने से यह तेजी से फैलती है।
लक्षण – बुखार, शरीर में दर्द, आँख व नाक से पानी का गिरना, पूरे बदन में लाल-लाल दाने निकल जाते हैं।
उनमें पानी भर जाता है। इलाज न करने पर मवाद बनने लगती है।
बचाव व उपचार – पानी में नीम के पत्ते उबालकर नहाएँ। मरीज को अलग रखें, घाव को न फोड़ें और प्लेटलेट्स की जाँच कराएँ।
अन्य दवाओं के साथ मरीज को क्रोसीन दी जा सकती है। (rainy season diseases)
डेंगू बुखार
यह एक संक्रामक बुखार है। जो मादा मच्छर ‘एडिस एजिप्टी’ से फैलता है।
इसके लार्वा साफ पानी में ही पलते हैं। खास बात तो यह है कि इसके मच्छर दिन में ही काटते हैं।
लक्षण – अचानक तेज बुखार का आना, सिर, बदन, आँख और जोड़ों में दर्द का होना, शरीर में लाल चिकते का निकलना,
गंभीर हालत में नाक, मुँह व दाँतों से रक्तस्राव होना।
बचाव व उपचार – घर में या उसके आसपास पानी न जमा होने दें, मच्छरदानी का प्रयोग करें।
मरीज के पास ज्यादा देर तक न ठहरें। रक्तस्राव होने की दशा में ही प्लेटलेट्स चढ़वाएँ।
घमौरी
उष्ण और नमीयुक्त वातावरण में घमौरियाँ होती हैं। सामान्यतः त्वचा की मृत कोशिकाएँ निरंतर झड़ती रहती है,
परन्तु वर्षा ऋतु में वातावरण की नमी के कारण ये मृत कोशिकाएँ झड़ नहीं पाती, जिससे रोमकूपों का अवरोध हो जाता है।
इसके उपचारार्थ शीतल वातावरण में रहना तथा ठंडे पानी की पट्टियाँ रखना लाभकर है।
घमौरियों को नाखून से खुजलाना अथवा नोंचना नहीं चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है
और उपचार कठिन हो जाता है। (rainy season diseases)
जापानी इन्सेफलाटिस
यह एक विषाणुजन्य रोग है, जो मच्छरों से फैलता है।
खासकर यह बीमारी दलदल क्षेत्रों में ज्यादा होती है।
लक्षण – सिर दर्द, झटके आना, बुखार होना और बेहोश हो जाना।
बचाव व उपचार – गंदे पानी को आसपास इक्ट्ठा न होने दें, सुअरों से दूर रहें, मच्छरों को न पनपने दें।
बरसात के मौसम में आहार –
इस ऋतु में भोजन पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि वर्षा ऋतु आते ही शरीर को दुर्बल कर देती है।
हमें वैसे ही पदार्थों का सेवन करना चाहिए, जो जल्दी पच सके।
क्योंकि भोजन हल्का, ताजा, गर्म और शीघ्र पचने वाला होने से स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है।
जौ, गेहूँ, चावल, साठी तथा लाल चावल, मक्का के भूट्टे, मूँग, अरहर, उड़द की दाल आदि का सेवन हितकर है।
सरसों, खीरा, कुल्थी आदि भी स्वास्थ्य के अनुकूल है। सब्जियों में बैंगन, परवल, भिण्डी, टमाटर, पपीता, कद्दू आदि उत्तम है।
फलों में आप मौसमी फल आम, जामुन तथा अन्य सेवनीय फल जैसे- अनार, नाशपाती, केला, सेब आदि का सेवन कर सकते हैं।
यदि आप फलों के राजा ‘आम’ का सेवन इस मौसम में करते हैं, तो दूध के साथ सेवन करें। यह शरीर के लिए अत्युत्तम है।
इस ऋतु में घी, हरी धनिया, पुदीना, गुड़, सेंधा नमक, दूध आदि भी सेवन कर सकते हैं।
इस ऋतु में मधु का सेवन बहुत लाभदायक है। मधु का प्रयोग आप खाने-पीने की वस्तुओं में कर सकते हैं।
यह स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम है।
इस मौसम में यदि लस्सी में लौंग, त्रिकटु (सोंठ, पिप्पली और काली मिर्च),
सेंधा नमक, काला नमक तथा अजवायन मिला कर सेवन करें, तो पाचन-शक्ति को मजबूत करता है।
आप जो भी आहार करते हैं, उसमें आप ध्यान यह अवश्य रखें कि वस्तुओं में पेस्टिसाइट का प्रयोग हुआ है या नहीं।
यदि कीटनाशक दवाइयों (जहर) का प्रयोग हुआ है, तो ध्यान पूर्वक उसे धोकर या गर्म जल में भिगोकर प्रयोग करें।
बरसात के मौसम में अपथ्य आहार –
इस ऋतु में आप ज्यादा वात प्रकोपक, कड़वे, ठंडे तथा रूखे पदार्थों का सेवन न करें।
क्योंकि इस ऋतु में स्वाभाविक रूप से वात का प्रकोप पड़ता है, जिससे कई रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
जल युक्त सत्तू, पत्तेदार सब्जियाँ, चना, मटर, गोभी, करेला, सिंघाड़ा, मसूर, कटहल, आलू, जौ, गाजर, ककड़ी, खरबूज आदि पदार्थों कर सेवन नहीं करना चाहिए।
इस ऋतु में वर्षा अधिक होने से जल किसी गढ्ढे में भर जाता है।
जिसमें पानी गन्दा होकर सड़ने लगता है और मच्छर व कीड़े उससे पैदा होने लगते हैं।
इसलिए आस-पास के इन गढ्ढे को साफ रखा करें। जब इस ऋतु में वर्षा कम होती है, तो पित्त का भी प्रकोप बढ़ जाता है।
इसलिए आप खट्टे, तले हुए, नमकीन, बेसन से बने खाद्य पदार्थों तथा मिर्च- मसालों का सेवन अधिक न करें।
पानी पीयें तो उबाल कर के ही पीयें।
बरसात के मौसम में पथ्य विहार –
इस ऋतु में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। वर्षा होने से गन्दगी ज्यादा फैल जाती है।
नदी, तालाब, कुआँ, बावलियाँ आदि की धूल-मिट्टी पड़ने से मलीन हो जाते हैं। इसलिए जल को उबाल कर ही पीयें।
यदि हो सके तो उसमें तुलसी के पत्ते या फिटकरी डालकर शुद्ध कर लें फिर सेवन करें।
तथा शहद को जल में मिलाकर भी आप सेवन कर सकते हैं। यह स्वास्थ्य के लिए हितकर है।
सरसों के तेल का मालिश इस ऋतु में आपको बल प्रदान करता है। इसलिए तेल का मालिश अवश्य किया करें।
साफ-सफाई का विशेष ध्यान देते हुए रात्रि विश्राम में मच्छरदानी का प्रयोग अवश्य किया करें।
क्योंकि इस ऋतु में मच्छरों का प्रकोप काफी बढ़ जाता है। वर्षा में ज्यादा भींगें नहीं।
बाहर जाना हो तो बरसाती या छतरी का प्रयोग करें। भींग जाने पर तुरन्त कपड़े को बदल दें और साफ-सुथरे कपड़ों का ही प्रयोग करें।
रात्रि में कहीं यदि जाना पड़े तो जूता पहनकर जाना हितकर होगा।
साथ ही अन्धेरे में टार्च की व्यवस्था अवश्य रखें, क्योंकि वर्षा के पानी भरने से विषैले जीव बाहर आ जाते हैं।
जिससे नुकसान पहुँचने की सम्भावना रहती है।
बरसात के मौसम में अपथ्य विहार
बिना मच्छरदानी का प्रयोग किये आप सोयें नहीं। दिन में निद्रा के अभ्यासी न बने।
मैथुन क्रियादि का तो अवश्यमेव त्याग करें। अपने आस-पास के क्षेत्रा को साफ-सुथरा रखें।
यदि हो सके तो यज्ञादि कार्य किया करें। इससे वातावरण शुद्ध रहता है, यह मच्छर आदि का प्रकोप नहीं होता।
नीम की पत्तियों को जलाकर धुएँ के रूप में प्रयोग करने से भी कीट, मच्छरों का प्रकोप नहीं होता है।
धूप से अवश्य बचें। तथा जब भूख लगे तभी भोजन किया करें।
इस ऋतु में मच्छर के ज्यादा पनपने से टाइफाइड, मलेरिया आदि रोग होने का डर रहता है,
इसलिए गन्दे जल से बचें तथा जल को अच्छी तरह ढ़ककर ही रखें।
इस तरह ध्यानपूर्वक आप चलें तो सम्भवतः स्वस्थ रह जीवन का आनन्द ले सकते हैं।