चुगली की शुरुआत ही किसी मसालेदार या चटपटी ख़बर से होती है, इसलिए बाल मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चो को ऐसी कोई भी बात बहुत रोचक लगती है, और वो इन्हें उच्च श्रेणी की कहानी मान लेते हैं। यदि आपके बच्चे भी अपने आसपास की चटपटी ख़बरें, वो भी नमक-मिर्च लगाकर सुना रहे हों, तो आप एकदम सजग हो जायें। ये आदत आपके बच्चे के पूरे व्यक्तित्व को खराब कर सकती है और उनको कल्पना की ऐसी दुनिया में ले जाएगी जो बहुत ही अवसाद वाली होगी जहां वास्तविकता तो मुश्किल से एक प्रतिशत भी नहीं होगी और मसाला तथा झूठ सौ प्रतिशत। बच्चे का नजरिया बिगड़ने लगेगा वो सच को अनदेखा करना सीख जायेगा चुगलखोरी उसको बेसिर पैर की बातें बनाना सिखा देगी। यह बहुत ही जोखिम भरा स्वभाव है जो बच्चे में तब ही विकसित होता है जब माता पिता उसमें रूचि लेते हैं, क्योंकि इनके द्वारा बताई जानेवाली ख़बरों का अंदाज बहुत ही रोचक होता है भले ही आधार ख़ुद बच्चे को भी मालूम नहीं होता।
ऐसी बातों को अहमियत न दें वरना बच्चे का सोचने का तरीका बेढंगा होगा और भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। बालमन बहुत ही उत्सुक हुआ करता है। अक्सर बच्चों की आदत होती ही है वे अपने तथा औरों के घर की बातें आते-जाते कान लगाकर सुनने की कोशिश करते हैं। ऐसे में कोशिश कीजिए कि आप जब भी कोई ऐसी बात कर रहे हों तो सामान्य बनकर करें ताकि बच्चे में कान लगाने वाली आदत विकसित न हो।
तैश मे आकर बगैर कुछ सोचे समझे अडो़स -पड़ोस, नाते रि-श्तेदार सबकी बातें बच्चों के सामने बेहिचक न करें। आपकी बातें सुनकर उसके बच्चों के मन मे भी संबंधित व्यक्ति के लिए बहुत ही गलत भावना पैदा होने लगेगी। बहुत से लोग किसी से नाराज होकर अपना मन हलका करना हो तो यह नहीं सोचते कि बच्चे तो बिलकुल अबोध है उन पर इसका गलत असर पडे़गा। मन मे जब गुस्से का जहर भरा हुआ होता है तब कुछ भी समझ नहीं आता कि क्या बोलें और क्या नहीं. पर यह तो हमारे हाथ मे ही है कि किसी भी तरह की चुगली आदि से बच्चों को दूर ही रखें वो हमारा भविष्य हैं।
किसी ने कहा है कि “निंदा रस में बड़ा मजा आता है, परंतु यह निंदा रस आप के अंदर तो नकारात्मकता भरता ही है, कई बार दूसरों के सामने भी आप की स्थिति को खराब कर देता है. कहा जाता है कि दीवारों के भी कान होते हैं, इसलिए आज आप के द्वारा दूसरों के बारे में कही गई बात कभी न कभी सामने वाले के पास पहुंच ही जाएगी. ऐसे में आप के संबंध बिगड़ते देर नहीं लगेगी.”
हमको अपना जीवन सहजता से जीना चाहिए हर इंसान मे कुछ न कुछ कमी तो होती ही है कमी की तरफ ध्यान देते रहेंगे तो बार बार चुगली करने का ही मन होगा और कभी न कभी वो बात अपने बच्चों के सामने भी कह देंगे बस वहीं से बच्चों की आदत भी वैसे ही ढलने लगेगी। जब भी किसी से नाराजगी हो तो उसी समय अपनी दो चार खराब आदतें भी याद कर लेनी चाहिए ताकि हम संतुलित होकर रहे और कम से कम हमारे मुंह से गलत बात निकलकर बच्चों के कान मे तो नहीं जायेगी।
बच्चे अपनी मां की विचारधारा से बहुत प्रभावित रहते हैं। वो वैसे ही बनना चाहते हैं जैसी उनकी मां है। अगर वो बार- बार अपनी मां को चुगली करते हुए सुनेंगे तो खुद भी वैसे ही बनना चाहेंगे। अगर ऐसा हुआ तो बहुत मुश्किल होगी। चुगली, पर निंदा, दूसरों के चटपटे किस्से, फालतू गपशप मे बहुत रस आता है और फोन वगैरह पर यह सब बार बार बच्चों के सामने दोहराया जाता है तो हौले हौले वो भी स्कूल कालोनी आदि मे हर किसी मे अनुकरणीय बातों की बजाय हमेशा कुछ चटपटे से किस्से् खोजने लगते हैं यही उनका सबसे पसंदीदा काम बन जाता है।
इसका दुष्परिणाम यह होता है कि बच्चों की सोच संकुचित होने लगती है। उनका विकास अवरूद्ध होता है जो बहुत ही घातक है। केवल जीवन जी लेना ही सब कुछ नहीं होता है इससे भी महत्वपूर्ण होता है अच्छी विचारधारा का पालन करना इसको अपनी नियमित आदत बनाना। दिमाग को खूबसूरत सोचने के लिए यथासंभव प्रेरित करना चाहिए यह बहुत आसान है और बडा ही लाभदायक भी. चुगली करने वाले व्यक्ति के मन में चुगली के साथ-साथ झूठ बोलना, बुराई करना, मतभेद करवाना, निंदा करना आदि अनेक बुरी आदतें भी जन्म ले लेती है.इससे वह इन सब से बच नहीं पाता और समय के साथ-साथ अपना अस्तित्व खो बैठता है. न तो वह भरोसे के काबिल रहता है न किसी मान सम्मान के।
हर किसी का जीवन एक ही तरह से नही गुजरता है, इसलिए कहीं किसी के निजी जीवन मे कुछ अटपटा है तो एक व्यक्ति की बात मसालेदार बनाकर उसको अन्य लोगों तक फैलाना और उनके मध्य मनमुटाव पैदा करने के उद्देश्य से कहना बहुत ही विस्फोटक काम है।
आमतौर पर देखा जाता है कि बच्चों में अपने परिवार के किसी सदस्य की बोली के अंदाज़ मे ही चुगली करने की बुरी आदत हौले हौले बनती रहती है. यह आदत बच्चों को समाज और व्यक्तित्व से पूर्णतया अलग कर देती है। मुंह से निकली हुई बात बहुत लंबा सफर तय करती है। दिमाग की ऊर्जा को सही जगह पर लगाना चाहिए।
बच्चों को प्रगति करते हुए देखना चाहते हैं तो घर पर किसी की भी चुगली मत कीजिये. मन मे शीतलता, स्फूर्ति, गतिशीलता वाली बातें ही साझा करें। कुदरती तौर पर बच्चे बहुत ही संवेदनशील होते है, कोमल हृदय के होते हैं। आपके मुँह से बार बार चुगली, निंदा आदि से उनको अनावश्यक तनाव हो सकता है और उनकी पढ़ाई मे बाधा आ सकती है. अपनी जुबान को बेवजह खराब न करें। आत्मविश्वास ही दिमाग की खुराक है, चुगली नहीं बल्कि सहयोग, सामूहिकता, सबके साथ निरंतर प्रसन्नता ही इसकी असली सुगंध है।