आम जिंदगी में इंसान जो भोजन करते हैं उसमें अधिकांश चावल सम्मिलित होता है। यही नहीं यदि खाना पकाने का मन न भी करे तो भी हम फटाफट बनने वाले चावल की ओर ही लालायित होते हैं। ऐसे में सोचिए यदि आपको इंस्टेंट राइस मिल जाएं तो खाने का मजा ही दोगुना हो जाएगा। हम आपको ऐसे ही इंस्टेंट राइस के बारे में इस लेख में बताने जा रहे हैं।
दरअसल असम राज्य में पाई जाने वाली यह वैरायटी धान की एक ऐसी अनोखी वैरायटी है जिसे पकाने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि यह खुद ही पककर तैयार हो जाती है। कोमल साइल नियमित रूप से चावल के लिए एक विचित्र और टिकाऊ विकल्प के रूप में उभर रहा है जब ऊर्जा संरक्षण हर जगह प्राथमिकता तौर पर उभर रहा है।
यह चावल मैजिक चावल के रूप में उभर रहा है क्योंकि इसे पारंपरिक तरीके से नहीं पकाया जाता है। इसे पकाने के लिए सिर्फ 10-15 मिनट तक गर्म पानी में गलाना पड़ता है या फिर ठंडे पानी में आधे घंटे के लिए भिगोने पर यह खाने के लिए तैयार हो जाता है।
40 से 60 रुपए किलो क़ीमत है
Magic Rice चावल की खेती में लागत भी बहुत कम लगती है और खाद के भी पैसे बच जाते हैं। इस चावल की खेती करने के 5 से 6 महीने के अंदर यह तैयार हो जाता है और बाक़ी चावल की अपेक्षा इसकी क़ीमत भी आपको अच्छी मिल जाएगी। चावल को बाज़ार में 40 से 60 रुपए प्रति किलो बेचा जाता है।
24 घंटे में तैयार मैजिक राइस
असम में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसे मजुली में चिपचिपे चावल के रूप में उगने वाले बोरा साल को प्रसंस्कृत कर बनाया गया कोमल साल ही वह मैजिक राइस है जिसे इंस्टेंट राइस के रूप में जाना जाता है। यह ट्रांसफार्मेशन तभी संभव है जब कटे हुए धान को एक रात के लिए भिगोकर उबाला जाए और फिर धूप में सुखाया जाए। इस पूरी प्रक्रिया में 24 घंटे का समय लगता है।
वास्तविकता से परे
असम में पाई जाने वाली यह वैरायटी वास्तविकता से परे है क्योंकि इसे अभी तक वो दर्जा प्राप्त नहीं है जो इसे मिलना चाहिए। कोमल साॅल का उपभोग स्थानीय लोगों द्वारा ही किया जाता है। स्थानीय लोग इसे रातभर भिगोकर रखते हैं और अगले दिन इसे सरसों के तेल, प्याज या आलू के भर्ते या फिर अचार के साथ खाते हैं। इसे दही या क्रीम के साथ, गुड या केले के पाउडर के साथ ब्रेकफास्ट के तौर पर खाया जाता है। यही नहीं इससे जालपान नामक स्वादिष्ट मिठाई भी बनाई जाती है। यही नहीं इसे ज़ान्डो, शीरे या मूरी के साथ भी मिलाकर भी खाया जाता है।
4-5 प्रतिशत ही है अमायलोज़
आपको बता दें कि इस मैजिक चावल के इतने मुलायम व कोमल होने की वजह है इसमें मौजूद अमायलोज़। दरअसल चावल में मौजूद अमायलोज़ जो कि एक स्टार्च कंपोनेंट होता है, की वजह से ही चावल ठोस या मुलायम होता है। आमतौर पर चावलों में 20-25 प्रतिशत अमायलोज़ पाया जाता है लेकिन मैजिक चावल में सिर्फ 4-5 प्रतिशत अमायलोज़ ही पाया जाता है।
चावल शुगर फ्री है
वैसे तो यह कहा जाता है कि जिस व्यक्ति को शुगर की बीमारी होती है उसे चावल खाना मना होता है। लेकिन यह एक ऐसा मैजिक चावल है जो बिल्कुल ही शुगर फ्री होता है। शुगर फ्री होने के साथ-साथ इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन की मात्रा भी सामान्य चावल की तुलना में अधिक पाई जाती है।
पचने में आसान
कोमल साल की खासियत यह है कि हल्का होने के कारण यह आसानी से पच जाता है। इसका अपना कोई फ्लेवर न होने की वजह से यह जिस भी अन्य सामग्री के साथ मिलाया जाता है उसका स्वाद ले लेता है। इससे कई तरह की अलग-अलग डिश व मिठाई बनाई जा सकती हैं।
मिला जियोग्राफिकल टैग
इंडिकेशंस (GI) टैग भी मिला हुआ है। ये टैग उस वस्तु को मिलता है, जो देश में विशिष्ट होती है। ये टैग इस वस्तु को कानूनी अधिकार देता है। कड़कनाथ मुर्गा, कोल्हापुरी चप्पल, बनारसी साड़ी जैसी चीजों को भी ये टैग मिला हुआ है।
अन्य राज्यों में भी संभावना
सेंट्रल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट, कटक के वैज्ञानिकों ने अगोनीबोरा नाम का कोमल साॅल के परिवार का ही एक प्रकार का धान उगाया था। अगोनीबोरा की उत्पत्ति इसलिए की गई ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह असम के अलावा अन्य राज्यों में भी उगाया जा सकता है या नहीं।
आपको यह जानकर हैरानी होगी यह चावल देश के अन्य राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल में भी आसानी से उगाया जा सकता है क्योंकि इन राज्यों का मौसम भी असम के समान ही है।
बाजार में होगा जल्द उपलब्ध
गुवाहाटी की ग्रीन कवर ओवरसीज कंपनी जो कि मसालों व हब्र्स के एक्सपोर्ट व ट्रेडिंग में डील करती है, ने इंस्टेंट राइस कप बाजार में उतारने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। इंस्टेंट कप नूडल्स की तर्ज पर ही यह इंस्टेंट राइस कप भी जल्द ही बाजार में उपलब्ध होंगे। इसमें सिर्फ गर्म पानी मिलाने से यह खाने के लिए तैयार हो जाएंगे। कंपनी ने इसमें पुलाव व वेजीटेबल राइस का फ्लेवर मिक्स किया है।
ऊर्जा खपत में आएगी कमी
अधिकांश चावल खाने व चावल खाना पसंद करने वाले व्यक्तियों को इस बात की चिंता हमेशा सताती है कि कहीं हम इससे अधिक ऊर्जा तो नहीं ग्रहण कर रहे हैं। आपको बता दें कि इसमें कार्बोहाइड्रेट व वसा की मात्रा बहुत कम होती है जिससे मोटापा नहीं बढ़ता। पकाने में बहुत ही आसान होने की वजह से इसमें ईंधन व अन्य ऊर्जा स्रोतों की खपत बहुत कम होती है। यही नहीं इससे प्रदूषण में भी कमी आएगी।