भिलाई नगर । श्री राधाकृष्ण मंदिर प्रांगण, नेहरू नगर में 11 जनवरी तक शाम 4 बजे से शाम 5.30 बजे तक चलने वाले दुर्लभ सत्संग के पांचवे दिन ऋषिकेश, उत्तराखंड से पधारे प्रवचनकर्ता स्वामी श्री विजयानन्द गिरी ने कहा कि मानव हर प्रतिकूल परिस्थितियों की जगह अनुकूल परिस्थतियों की कामना करता है, किन्तु परिस्थितियों को अनुकूल बनाने का प्रयास करने से प्रत्येक प्रतिकूल परिस्थिति अनुकूल हो जाएगी। मानव जिह्वा के स्वाद के लिए पशु-पक्षियों आदि का वध कर देते हुए है, ऐसा कृत्य कदापि नहीं करें। कुछ गुरू, संत रूपी पाखंडी भी केवल सिध्दी प्राप्ति के लिए छोटे-छोट बच्चों की बलि दे रहे हैं। हम सब ईश्वर की संतान है इसलिए कोई भी जननी रूपी ईश्वर इस प्रकार के बलि से प्रसन्न होने वाले नही है।
स्वामी जी ने कहा कि गुरू को नहीं, गुरू की मानो। जो हमसे कुछ भी अपेक्षा रखता है वह हमारा गुरू नहीं हो सकता। गुरू शरीर नहीं होता, गुरू एक तत्व होता है। गुरूवों की सबसे बड़ी सेवा है, उनकी बात मानना। उनके कहे बचनों के अनुसार अपने जीवन को सावर-सुधार लेना ही गुरू की परम सेवा है। गुरू के नाम पर आजकल पाखंड का दौर चल रहा है, सभी स्वयं भगवान बनकर बैठ गए है। ईश्वर की जगह वे अपनी पूजा करवा रहे हैं। मै गुरू की नहीं बल्कि पाखंड की निंदा कर रहा हू। जो अपने कर्म करते हुए मन, वाणी से ईश्वर की कृपा की ओर देखते रहे,
भगवान आनंद के सागर है। उसकी एक बूंद से तीनो लोक आनंदित हो जाते हैं। ऐसे ईश्वर के पास दुख कहां से आएगा, जो आपको देंगे। हम ईश्वर के संतान है और कोई भी अपने संतान को दुख नहीं देता। ईश्वर का सबसे दुलारा मानव ही है। ईश्वर ने संसार की रचना भले ही जीवों के लिए किया हो, लेकिन इंसान की रचना ईश्वर ने स्वयं के लिए किया है। ईश्वर को भी प्रेम की भूख है और प्रेम के आदान-प्रदान के लिए ईश्वर ही मानव शरीर धारण कर धरती पर भिन्न-भिन्न अवतारों में प्रकट होकर अनेक लीलाएं करतेे हैं।जब कोई विपत्ति आए तो समझ लेना भगवान की आप पर बहुत बड़ा कृपा है। तीन प्रकार के कर्म होते शुक्ल, कृष्ण और शुक्ल-कृष्ण मिश्रित कर्म होते हैं। यदि हमने अच्छे अर्थात् शुक्ल कर्म किए होंगे तो अनूकूल, कृष्ण कर्म किए होंगे तो प्रतिकूल और शुक्ल-कृष्ण मिश्रित कर्म किए होगे तो अनूकूल-प्रतिकूल मिश्रित परिस्थितियां आएंगी। मानव को हर स्थिति में परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ेगा। सुख, भगवान की दया और दुख, भगवान की कृपा है। हम जीवन में सुख चाहते हैं लेकिन नहीं मिलता, हम दुख नहीं चाहते किन्तु फिर भी दुखों का आना भगवान की कृपा की ओर इशारा करता है। पुण्य के बदले सुख मिलता है, अर्थात् सुख मिलने से पुण्य नष्ट हो जाते हैं। उसी प्रकार प्रतिकूलता से मानव के पाप नष्ट हो जाते है। ईश्वर अपने चहेते के पापों का नष्ट करने के लिए ही उन्हें प्रतिकूलता अर्थात् कष्ट देते हैं। कलयुग में परमात्मा के नाम की बड़ी महिमा है। श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान के नाम को जिह्वा में स्थान देने मात्र ही मानव का कल्याण सुनिश्चित है। जो निरंतर व सदैव भगवान के नाम का जाप करना, कल्याण हेतु बीमा कराने की तरह ही है। जिसे हम अपना मान लेते हैं उनकी याद स्वमेंव ही आ जाती है, उन्हें याद करने की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए ईश्वर को अपना मान ले, उनकी याद स्वमेंव ही आ जाएगी। लाभ-हानि, जन्म-मरण आदि आने-जाने वाले हैं, इन्हें सहन करने वाला ही महान है। आयोजक समिति के प्रमुख बृजमोहन उपाध्याय ने कथा स्थल पर गीता प्रेस के स्टाॅल में उपलब्ध धार्मिक साहित्यों के लाभ लेने की अपील की है।
गुरू को नहीं, गुरू की मानोः स्वामी विजयानंद गिरी,,,,,,,दुर्लभ सत्संग का पांचवा दिनः ईश्वर अपने चहेते के पापों का नष्ट करने के लिए ही उन्हें देते है कष्ट सत्संग स्थल पर उपस्थित श्रोतागण
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