आज 5 दिवसीय दीपावली का दूसरा दिन है, जिसे कि छोटी दीवाली, नरक चतुर्दशी या रूप चौदस कहा जाता है। ये बुराई पर अच्छाई की जीत और प्रकाश के आगमन का प्रतीक है। इस दिन घरों की सफाई, दीप जलाना और भगवान कृष्ण और यमराज की पूजा का विशेष महत्व होता है। ये दिन मानक है खुशियों का, उत्सव का, प्रेम का और उमंग का ….
हर वर्ष जैसे–जैसे धार्मिक पर्व हमारे जीवन में पुनः ऊर्जा, विश्वास और उल्लास लेकर आते हैं, वैसे ही इस वर्ष भी हम कार्तिक मास की कृष्ण‑पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाएंगे — जिसे पारंपरिक रूप से रूप चौदस कहा जाता है। यह त्योहार केवल एक शुभ अवसर नहीं, बल्कि हमारी आस्था, आत्म‑स्वच्छता, सौंदर्य और जीवन‑उपकार की ओर अग्रसर एक पावन प्रेरणा है। इस दिन जब हम स्वयं को सज‑संवरते हैं, स्नान करते हैं, दीपदान करते हैं और दिव्य रूपांतरण की ओर बढ़ते हैं — यह वास्तव में भीतर के “अंधकार” (अज्ञान, पाप, अनिष्ट) से मुक्त होकर “प्रकाश” (ज्ञान, पुण्य, शुभता) की ओर यात्रा का प्रतीक है। आज हम इस पावन पर्व की गहराई में उतरेंगे — इसके इतिहास, उद्देश्य, महत्व, शुभ मुहूर्त, पूजा‑विधि, विशेषताएँ तथा शुभकामनाओं सहित। रूप चौदस को कई नामों से जाना जाता है — नरक चतुर्दशी, काली चौदस व “छोटी दीपावली”।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण‑पक्ष की चतुर्दशी को भगवान नरकासुर नामक असुर का वध किया गया था और उस दिन पाप, अज्ञान व भय से मुक्ति का प्रतीक माना गया।
शुभ रूप से, यह तिथि दिवाली से ठीक पूर्व आती है और पूछा जाता है कि आखिर “रूप” नाम क्यों? मत मान्यताएँ कहती हैं कि इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना (विशेष रूप से “अभ्यंग स्नान”) तथा चंदन‑उबटन आदि लगाना, सौंदर्य, स्वच्छता और शुभता को बढ़ावा देता है। इस प्रकार रूप चौदस एक समन्वित पर्व बन गया है — जिसमें हमारा बाह्य स्वरूप (सौंदर्य, सज‑संवार) और आंतरिक स्वरूप (आध्यात्मिक शुद्धि, भय‑मुक्ति) — दोनों शामिल हैं।
रूप चौदस का महत्व
* सौंदर्य और स्वच्छता – इस दिन अभ्यंग स्नान, हल्दी‑चंदन‑दूध आदि लेप के माध्यम से स्वयं को सज‑संवारने तथा तन‑मन को शुद्ध करने की परंपरा है।
* भय व पाप से मुक्ति – यमराज की पूजा, दीपदान एवं तर्पण द्वारा अकाल मृत्यु तथा नरक के भय से रक्षा की कामना की जाती है।
* प्रकाश का प्रतीक – दीपावली के पूर्व इस दिन दीपदान विशेष रूप से होता है, जो अज्ञान, अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का प्रतीक है।
* यात्रा का आरंभ – यह त्यौहार नए आरंभ, नए संकल्प व नए रूप की ओर हमारे मन को उन्मुख करता है — सुंदरता के साथ‑साथ सत्कर्म, पुण्य और शुद्धता की दिशा में।
रूप चौदस का उद्देश्य
* खुद को बाह्य‑आंतरिक रूप से सज‑संवारकर सशक्त, सकारात्मक एवं ऊर्जावान बनाना।
* पिछले पाप, भय, अज्ञान और अनिष्ट से मुक्ति प्राप्त करना।
* जीवन में प्रकाश, समृद्धि, सौभाग्य और मंगल की वृद्धि की कामना।
* सामाजिक रूप से परिवार, पड़ोस तथा समुदाय में स्वच्छता, सज‑संवार एवं उत्सव की भावना को बढ़ावा देना।
* आध्यात्मिक रूप से स्वयं को नया रूप देना — जिसमें बदलाब, सुधार, पुण्य‑पथ अपनाना शामिल है।
इस वर्ष 2025 में शुभ मुहूर्त
इस वर्ष 2025 में रूप चौदस की चतुर्दशी तिथि 19 अक्टूबर 2025 को दोपहर 1 : 51 बजे प्रारंभ होगी और 20 अक्टूबर 2025 दोपहर 3 : 44 बजे तक रहेगी।
अभ्यंग स्नान तथा सज‑संवार का सर्वाधिक शुभ मुहूर्त 20 अक्टूबर 2025 को प्रातः 05 : 13 से 06 : 25 तक माना गया है।
विशेष योग: इस वर्ष “अमृतसिद्धि योग” और “सर्वार्थसिद्धि योग” निर्माण में हैं, जिन्हें पूजा‑अर्चना व नए कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
पूजा‑विधि
स्वयं की तैयारी – सुबह सूर्योदय से पहले उठें। हल्दी, चन्दन, केसर आदि से उबटन तैयार करें और स्नान‑पूर्व में इसे लगाएँ।
अभ्यंग स्नान – तिल या सरसों के तेल से मालिश करके स्नान करें। कथाएँ कहती हैं कि इस दिन इस प्रकार स्नान करने से सौंदर्य, स्वास्थ्य और शुभता स्थायी बनती है।
यमराज‑पूजन व दीपदान – शाम को या चतुर्दशी तिथि के अंतर्गत, यम राज की पूजा करें, जल‑तिल‑कुशा से तर्पण करें, दीपदान करें।
दीपावली‑पूर्व सज‑संवार – घर, आंगन, पूजा‑स्थान को साफ‑सुथरा करें। दिये‑मिट्टी के घर‑सज्जा करें। बाजार में भी उत्साह दिखता है।
प्रार्थना एवं संकल्प – पूजा के बाद भगवान, देवी‑देवताओं से समृद्धि, सौभाग्य, स्वास्थ्य और मानव‑कल्याण की प्रार्थना करें। अपने भीतर परिवर्तन, बेहतर व्यवहार व सामाजिक उत्तरदायित्व की दिशा में संकल्प लें।
भोजन व वितरण – त्योहार की भावना में गरीब‑जरूरतमंद को दान‑भोजन देना, मिठाइयाँ बाँटना शुभ रहता है।
मित्र‑परिवार के साथ उत्सव – सज‑संवारकर, दीप जलाकर, मिल‑जुलकर इस दिन को उल्लास सहित मनाना चाहिये।
शुभयोग एवं विशिष्टताएँ
* इस वर्ष रूप चौदस‑नरकचतुर्दशी पर बनने वाला अमृतसिद्धि‑योग व हस्ता नक्षत्र तथा अन्य शुभ संयोग अत्यंत लाभदायक हैं।
* बाजार‑व्यापार में इस दिन विशेष खरीद‑फरोख्त होती है — सजावटी वस्तुएँ, घरेलू सामान, दिये‑दीपक आदि की माँग रहती है।
* रूप चौदस केवल बाह्य सज‑संवार का दिवस नहीं — यह आत्म‑सुधार, भौतिक‑भौगोलिक विकास एवं सामाजिक‑आध्यात्मिक उन्नति का दिवस भी है।
* यह पर्व यह संदेश देता है कि सुंदरता = सिर्फ रूप नहीं, बल्कि सुन्दर आत्मा, स्वच्छ मन और शुभ कर्म भी है।
*। यह त्यौहार हमारे जीवन में प्रकाश‑उत्सव की शुरुआत का संकेत है — दिवाली से पहले अंधकार को हटाना, पवित्रता को आमंत्रित करना।
रूप चौदस हमें याद दिलाता है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक अद्भुत शक्ति है — वह शक्ति जो हमें स्वयं को सुधारने, सज‑संवारने, प्रकाश फैलाने और दूसरों के लिए प्रेरणा बनने को कहती है। इस वर्ष जब हम 19‑20 अक्टूबर 2025 को इस पावन पर्व को मनाएँगे, तब यह केवल एक आध्यात्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि जीवन को नया रूप देने, अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होने, और सौंदर्य व पुण्य से पूर्ण जीवन जीने का अवसर है।
आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ —
रूप चौदस 2025 की मंगलकामनाएँ!
सौंदर्य, शांति, समृद्धि एवं मंगल आपका मार्गदर्शन करें।
“इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”