दुनियाभर में कई ऐसे देश है जहाँ मच्छर के काटने से मलेरिया होने वाली जानलेवा बीमारी से लड़ रहे है। दुनिया भर में हर वर्ष लाखों लोग मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारी के कारण मृत्यु हो रही है। कुछ लोग इसे नजरांदाज कर देते है जिससे उन्हें काफी बड़ा खमियाजा भुगतना पड़ता है। जानिए मलेरिया दिवस का इतिहास और क्यों मनाया जाता है मलेरिया दिवस?
दुनिया भर में हर साल 25 अप्रैल को इस बीमारी के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए विश्व मलेरिया दिवस (World Malaria Day) मनाया जाता है. कोविड महामारी के दौर में यह दिवस स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता के महत्व को रेखांकित करता है. विश्व मलेरिया दिवस मलेरिया की रोकथाम, नियंत्रण और उन्मूलन की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाता है. यह दिन मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में लगातार महान उपलब्धियों का भी प्रतीक है। मलेरिया रोग के बारे में बेहतर समझ और इसे कैसे ठीक किया जाए, इसके लिए लोगों को शिक्षा प्रदान करना भी आवश्यक है. मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है जो प्लास्मोडियम परजीवी (Plasmodium Parasites) के कारण होती है।
मलेरिया का इतिहास
‘मलेरिया’ इटालियन भाषा के शब्द ‘माला’+’एरिया’ से बना है, जिसका कि अर्थ ‘बुरी हवा’ होता है। कहा जाता है कि इस बीमारी को सबसे पहले चीन में पाया गया था, जहां इसे उसे समय ‘दलदली बुखार’ कहा जाता था, क्योंकि यह बीमारी गंदगी से पनपती है। साल 1880 में मलेरिया पर सबसे पहला अध्ययन वैज्ञानिक चार्ल्स लुई अल्फोंस लैवेरिन ने किया। यूं तो मलेरिया दिवस की शुरुआत अफ्रीका में हुई थी। अफ्रीका की सरकार, हर साल 25 अप्रैल को, ‘अफ़्रीका मलेरिया दिवस’ यानि ‘Africa Malaria Day‘ के रूप में मनाती थी। और अफ्रीका की सरकार हर साल, 25 अप्रैल 2001 से 2007 तक यह दिवस मनाती रही। मई 2007 में WHO की वर्ल्ड हेल्थ असेंबली के 60 वें अधिवेशन में सर्वसम्मति से यह पारित किया गया कि, 2008 से प्रत्येक वर्ष 25 अप्रैल को विश्व मलेरिया दिवस के रूप में मनाया जायेगा। इस दिन को ‘ मलेरिया की समझ एवं शिक्षा’ के प्रचार- प्रसार के लिए ठहराया गया।
मलेरिया के प्रकार
1) प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम (P. Falciparum) : इस रोग से पीड़ित व्यक्ति एकदम बेसुध हो जाता है।लगातार उल्टियां होने से इस बुखार में व्यक्ति की जान भी जा सकती है।
2) सोडियम विवैक्स (P. Vivax) : विवैक्स परजीवी ज्यादातर दिन के समय काटता है।यह मच्छर बिनाइन टर्शियन मलेरिया पैदा करता है जो हर तीसरे दिन अर्थात 48 घंटों के बाद अपना असर दिखाना शुरू करता है।
3) प्लाज्मोडियम ओवेल मलेरिया (P. Ovale) : मलेरिया का यह रूप बिनाइन टर्शियन मलेरिया उत्पन्न करता है।
4) प्लास्मोडियम मलेरिया (P. malariae) : प्लास्मोडियम मलेरिया एक प्रकार का प्रोटोजोआ है, जो बेनाइन मलेरिया के लिए जिम्मेदार होता है। इस रोग में क्वार्टन मलेरिया उत्पन्न होता है, जिसमें मरीज को हर चौथे दिन बुखार आ जाता है।इसके अलावा रोगी के यूरिन से प्रोटीन निकलने लगते हैं और शरीर में प्रोटीन की कमी होकर सूजन आ जाती है।
5) प्लास्मोडियम नोलेसी ( P. knowlesi) : दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाने वाला एक प्राइमेट मलेरिया परजीवी है। इस मलेरिया से पीड़ित रोगी में सिर दर्द, भूख ना लगना जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
विश्व मलेरिया दिवस 2022 का थीम
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा एक थीम जारी की गयी है. विश्व मलेरिया दिवस 2022 की थीम-“मलेरिया रोग के बोझ को कम करने और जीवन बचाने के लिए नवाचार का उपयोग करें” इस वर्ष का विश्व मलेरिया दिवस वैश्विक उन्मूलन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका नवाचार की ओर ध्यान आकर्षित करेगा। विश्व मलेरिया दिवस का विचार अफ्रीका मलेरिया दिवस से विकसित किया गया था। अफ्रीका मलेरिया दिवस मूल रूप से एक ऐसी घटना है जिसे 2001 से अफ्रीकी सरकारों द्वारा मनाया जा रहा है, जिसे पहली बार 2008 में आयोजित किया गया था। 2007 में, विश्व स्वास्थ्य सभा के 60वें सत्र में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा प्रायोजित एक बैठक में प्रस्तावित किया गया कि अफ्रीका मलेरिया दिवस को विश्व मलेरिया दिवस में बदल दिया जाए।
कैसे होता है मलेरिया?
मलेरिया बुखार मच्छरों से होने वाला एक तरह का संक्रामक रोग है. जो प्लाज्मोडियम वीवेक्स नामक वायरस के कारण होता है. यह वायरस मानव शरीर में मादा मच्छर एनोफिलीज के काटने से प्रवेश करके उसे कई गुना बढ़ा देता है. जिसके बाद यह जीवाणु लिवर और रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करके व्यक्ति को बीमार बना देती हैं. बता दें, मलेरिया फैलाने वाली इस मादा मच्छर में जीवाणु की 5 जातियां होती हैं।
मलेरिया रोग के लक्षण
मलेरिया के लक्षण मादा मच्छरों के काटने के छह से आठ दिन बाद शुरू हो सकते हैं
– ठंड लगकर बुखार का आना और बुखार के ठीक होने पर पसीने का आना।
– थकान, सिरदर्द।
– मांसपेशियों के दर्द, पेट की परेशानी।
– उल्टियां होना।
– बेहोशी आना।
– एनीमिया, त्वचा की पीली रंग की विकृति।
तो हमने देखा कि मलेरिया रोग मादा मच्छर के काटने से होता है. जिसके कारण रक्त में प्लास्मोडियम नामक परजीवी फैल जाता है और इससे जान भी जा सकती है।
मलेरिया से बाचव
मलेरिया से बाचव का सबसे अच्छा उपाय है मच्छरदानी में सोना और घर के आसपास जमा पानी से छुटकारा पाना. इसके अलावा रुके हुए पानी में स्थानीय नगर निगम कर्मियों या मलेरिया विभाग द्वारा दवाएं छिड़कवाना, गंबूशिया मछली के बच्चे छुड़वाना आदि उपाय भी जरूरी है. यह मछली मलेरिया के कीटाणु मानव शरीर तक पहुंचाने वाले मच्छरों के लार्वा पर पलती ही है।
मलेरिया का इलाज
ऊपर बताए गए लक्षण नजर आने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। सभी लक्षण गंभीर रूप ले सकते हैं। वहीं, यह जानना जरूरी है कि मलेरिया के परजीवी भी शरीर में 1 साल तक निष्क्रिय रह सकते हैं। ऐसे में समय-समय पर चेकअप कराना भी जरूरी है। बच्चों और गर्भवती महिलाओं के मामले में अतिरिक्त सावधानी की जरूरत होती है। जानकारों के अनुसार, मलेरिया से बाचव का सबसे अच्छा उपाय है मच्छरदानी में सोना और घर के आसपास जमा पानी से छुटकारा पाना। इसके अलावा रुके हुए पानी में स्थानीय नगर निगम कर्मियों या मलेरिया विभाग द्वारा दवाएं छिड़कवाना, गंबूशिया मछली के बच्चे छुड़वाना आदि उपाय भी जरूरी है। यह मछली मलेरिया के कीटाणु मानव शरीर तक पहुंचाने वाले मच्छरों के लार्वा पर पलती है।
*.मलेरिया का निदान लैब टेस्ट के जरिए होता है. मलेरियल पैरासाइट और मलेरियल एंटीजेन टेस्ट किया जाता है. इन्हीं टेस्ट के जरिए लैब वाले बताते हैं कि किस प्रकार के मलेरिया से व्यक्ति ग्रस्त है. यदि नॉर्मल मलेरिया हुआ है, तो इलाज सही तरीके से हो, तो व्यक्ति तीन से पांच दिन में ठीक हो सकता है. यदि दवा सही है, डोज पहले से ही दिया जाए और रेजिस्टेंट मलेरिया नहीं है, तो व्यक्ति जल्दी ही स्वस्थ हो सकता है. यदि सीवियर फैल्सीपेरम मलेरिया हुआ है और इसका इलाज सही से ना किया जाए, तो मौत भी हो सकती है।
मलेरिया से निपटने के लिए घरेलू तरीके
1) हल्दी : भारतीय घरों में हल्दी का इस्तेमाल रोजाना किया जाता है। इसमें मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं। हल्दी शरीर से टॉक्सिन को बाहर निकालने में मदद करती हैं, जो प्लास्मोडियम संक्रमण के कारण बनते हैं। हल्दी मलेरिया पैरासाइट को खत्म करने में मदद करते हैं। इसके एंटी इंफ्लामेटरी गुण मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द को कम करने में मदद करते हैं, जो मलेरिया में आम हैं। मलेरिया से निपटने के लिए रोज रात को एक गिलास हल्दी वाला दूध पिएं।
2) अदरक : अदरक में एंटीइंफ्लामेटरी और एंटी माइक्रोबियल गुण होते हैं। अदरक दर्द से राहत दिलाने में मदद कर सकता है। इसी के साथ जी-मिचलाने की समस्या में भी अदरक मदद कर सकता है। इसके लिए गर्म पानी में अदरक डालें और फिर इसमें शहद मिलाकर दिन में दो बार पिएं।
3) संतरे का जूस : मलेरिया से संक्रमित होने पर आप अपने खाने में संतरे का जूस शामिल कर सकते हैं। संतरे के जूस में मौजूद विटामिन सी इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है। संतरे का रस बुखार को कम करने में भी मदद कर सकता है। अगर आप मलेरिया से संक्रमित हैं तो आप 2 से 3 गिलास फ्रेश संतरे का जूस ले सकते हैं।
4) दालचीनी : दालचीनी में एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सीडेंट और एंटीमाइक्रोबियल गुण मलेरिया के लक्षणों से निपटने में मदद करते हैं। गर्म पानी में दालचीनी और काली मिर्च पाउडर डालें और इसे दिन में एक या दो बार पियें।
5) सरसों का तेल : रिपोर्ट्स की मानें तो सरसों के तेल में खाना पकाने से मलेरिया से संक्रमित व्यक्ति को मदद मिल सकती है। सरसों के तेल से संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती है।
6) तुलसी : तुलसी में युजीनाल नामक बेहद महत्वपूर्ण तत्व निहित होता है, जो बैक्टीरियल संक्रमण को समाप्त करता है, और मलेरिया की घातकता को कम करता है. तुलसी का उपयोग काढ़ा या चाय के अलावा काली मिर्च एवं एक बतासे के साथ भी किया जा सकता है।
7) मेथी : मलेरिया के मरीज शारीरिक रूप से कभी कमजोरी महसूस करते हैं, क्योंकि उनकी इम्युनिटी काफी कमजोर हो जाती है. मेथी के बीज को रात्रि में पानी में भिगोकर सुबह खाया जा सकता है, इसके अलावा मेथी को उबालकर उसके पानी का सेवन भी मलेरिया के मरीजों के लाभप्रद साबित हो सकता है।
मलेरिया में क्या खाएं
1) संतुलित आहार है जरूरी : आपका खानपान जितना पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होगा, मलेरिया से जल्द ठीक होने की संभावना भी उतनी ही अधिक बढ़ जाती है. खानपान में मरीज को संतुलित आहार देना चाहिए. संतुलित आहार में अनाज, दालें, सब्जियां, फल, तरल पदार्थ खाने के लिए दें. ये सभी आवश्यक न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होते हैं, साथ ही शरीर में फ्लूड बैलेंस को बनाए रखते हैं।
2) मरीज को हाइड्रेटेड रखें : मरीज को हाइड्रेट रखना बहुत जरूरी है. नारियल पानी, नींबू पानी, छाछ, लस्सी, सूप, दाल का सूप, सेब का जूस, एलेक्टोरल वाटर आदि तरल पदार्थों का खूब सेवन कराएं।
3) हेल्दी प्रोटीन शामिल करें : मलेरिया से ग्रस्त मरीज को पर्याप्त मात्रा में हेल्दी प्रोटीन युक्त चीजें खाने के लिए दें. इसमें हल्की दालें, चिकन और फिश स्ट्यिू, चिकन सूप, स्किम्ड मिल्क और इससे बने पदार्थ खिलाएं.
4) खट्टे फल खिलाएं : फल खिलाने से व्यक्ति की इम्यूनिटी मजबूत होगी, इसके लिए खट्टे फलों जैसे नींबू, संतरा, अंगूर, कीवी आदि खाने के लिए दें।
5) लो फाइबर फूड्स दें : प्रारंभिक अवस्था में कम फाइबर वाले आहार को शामिल करना चाहिए जैसे खिचड़ी, हल्की मूंग दाल के साथ उबले हुए नर्म चावल, दलिया आदि खिलाएं।
6) मलेरिया में क्या न खाएं : अधिक मात्रा में फाइबर युक्त आहार, तले हुए खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए, क्योंकि इससे मतली, उल्टी और गैस्ट्रिक की समस्या उत्पन्न हो सकती है. डिब्बाबंद और प्रसंस्कृत भोजन जैसे बाहरी खाद्य पदार्थों को बिल्कुल खाने के लिए ना दें. घर का बना हुआ खाना ही मरीज को खिलाएं. भोजन बनाते समय अधिक तेल-मसाले के प्रयोग से बचना चाहिए. मलेरिया होने पर कब और क्या कितनी मात्रा में खिलाना चाहिए, इस बारे में आप डॉक्टर और आहार विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं. यदि इन बातों को खानपान में सही तरीके से फॉलो किया जाए, तो मरीज जल्दी रिकवर कर सकता है. उसकी शारीरिक कमजोरी भी दूर हो सकती है।
भारत में रेजिस्टेंट मलेरिया का जोन
कई मलेरिया काफी खतरनाक होते हैं, जिससे मरीज की मौत हो जाती है. भारत में रेजिस्टेंट मलेरिया का जोन है. दूसरा जो और भी ज्यादा खतरनाक मलेरिया है, वो है फैल्सीपेरम मलेरिया (falciparum malaria).ये बहुत ही ज्यादा खतरनाक मलेरिया होता है, जिसमें मरीज कोमा में जा सकता है, किडनी और लिवर का डिस्फंक्शन हो सकता है यानी ये दोनों अंग फेल हो सकते हैं. ब्लड प्रेशर कम हो सकता है. इसमें भी लक्षण समान ही होते हैं, लेकिन फैल्सीपेरम मलेरिया बहुत ज्यादा गंभीर हो जाता है. इसमें व्यक्ति को हॉस्पिटल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ती है और जल्द से जल्द प्रॉपर इलाज ना दिया जाए, तो मरीज की मौत भी हो सकती है. कई तरह की दवाओं से इलाज किया जाता है।
भारत में मलेरिया की स्थिति
मलेरिया भारत में भी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है. हालांकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आंकड़ों के अनुसार, देश में मलेरिया के मामले नब्बे के दशक से कम हुए हैं. 90 के दशक के अंत में देश में दो मिलियन से ज्यादा सालाना मामले थे पर 2020 में यह संख्या घटकर 0.12 मिलियन सालाना हो गई है. इसी तरह मलेरिया से होने वाली मौतों की संख्या 1995 में सालाना 1,151 से घटकर 2020 में केवल 93 रह गई।
मलेरिया उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय रणनीतिक योजना
यह योजना स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी। इस योजना को मलेरिया की वैश्विक तकनीकी रणनीति (2016-2030) के आधार पर तैयार किया गया है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने हाल ही में घोषणा की कि, 2020 में, 116 भारतीय जिलों में शून्य मलेरिया के मामले दर्ज किए गए।
भारतीय राज्यों की 5 महत्वपूर्ण पहलें
1) यूपी सरकार का ‘दस्तक अभियान’: उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में संचारी रोगों (कम्यूनिकेबल डीजीज) को खत्म करने और 2030 तक इसे मलेरिया मुक्त बनाने की दिशा में काम कर रही है. इसलिए राज्य सरकार ने मलेरिया सहित संचारी रोगों के प्रसार को रोकने के लिए ‘दस्तक अभियान’ शुरू किया है. आशा और आंगनबाडी कार्यकर्ताओं को जल और मच्छरों से होने वाली विभिन्न बीमारियों के बारे में लोगों को जागरूक करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
2) दमन का कार्यक्रम : ओडिशा में साल 2017 में दमन- दुर्गामा अंचल रे मलेरिया निराकरण (या दूरदराज की जगहों पर मलेरिया का नियंत्रण) नामक एक कार्यक्रम शुरू किया. इस अभियान के तहत, राज्य के दुर्गम और दूरस्थ इलाकों में साल में दो बार अप्रैल-जून और सितंबर-अक्टूबर में ‘मलेरिया कैंपस’ में सामूहिक स्क्रीनिंग आयोजित की जाती है। दमन के तहत, दूरदराज के इलाकों की पूरी आबादी का मलेरिया टेस्ट होता है. भले ही किसी को बुखार या मलेरिया के लक्षण हों या न हो. साथ, गरों के अंदर मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए एक खास तरह का स्प्रे भी घरों का दीवारों और छतों पर किया जाता है।
3. फ्राइडे-ड्राईडे : आंध्र प्रदेश को केंद्र सरकार से मलेरिया उन्मूलन में बेहतरीन प्रयासों के लिए बेस्ट परफॉर्मर का पुरस्कार और सराहना मिली है. यह पुरस्कार विश्व मलेरिया दिवस कार्यक्रम में राज्य सरकार को दिया जाएगा. राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने पंचायत राज, ग्रामीण जल आपूर्ति और नगर प्रशासन विभागों के साथ ग्राम और वार्ड सचिवालय स्तर पर फ्राइडे-ड्राईडे (शुक्रवार-शुष्क दिवस) जैसे कार्यक्रमों को लागू करने के लिए सहयोग किया। इससे राज्य में मलेरिया के मामलों की संख्या कम हुई है. राज्य सरकार ने निर्देश दिया है कि प्रत्येक शुक्रवार को सभी लोग अपने आसपास साफ-सफाई करें और मच्छरों के प्रजनन को नियंत्रित करें. इस साल अब तक राज्य में मलेरिया के केवल 117 मामले सामने आए हैं।
4) छत्तीसगढ़ में मलेरिया मुक्त बस्तर अभियान : दक्षिण छत्तीसगढ़ के जिलों में माओवाद के अलावा मलेरिया भी राज्य सरकार के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है. इस मुद्दे से निपटने के लिए, छत्तीसगढ़ सरकार ने जनवरी 2020 में ‘मलेरिया मुक्त बस्तर अभियान’ (मलेरिया मुक्त बस्तर अभियान) शुरू किया. बस्तर में अभियान की सफलता के बाद, सरकार ने इस कार्यक्रम को राज्य के बाकी हिस्सों में भी शुरू कर दिया. इस साल, छत्तीसगढ़ को मलेरिया के खिलाफ अपने सफल अभियान के लिए विश्व मलेरिया दिवस के अवसर पर नई दिल्ली में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया है।
5. मलेरिया के खिलाफ तेलंगाना की लड़ाई : तेलांगना टुडे के मुताबिक, राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NVBDCP), स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (DGHS) और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MOHFW), नई दिल्ली की भारत में मलेरिया उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय रूपरेखा (NFMEI) पहल के हिस्से के रूप में, तेलंगाना राज्य ने 2015 और 2021 के बीच मलेरिया को खत्म करने के महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं. जिनके लिए राज्य को राष्ट्रीय मान्यता और प्रशंसा मिली है. पिछले कुछ वर्षों में राज्य भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं, नगर पालिकाओं और पंचायत विभागों को शामिल करते हुए अंतर-क्षेत्रीय सहयोग से राज्य में मलेरिया के मामलों की संख्या कम हुई है।
नहीं निकल सका है इसका कोई व्यापक टीका
लेकिन राहत की बात कह सकते हैं कि यह बीमारी केवल मच्छरों से ही लोगों में फैलती है. अभी तक इस बीमारी की इलाज तो निकले हैं लेकिन इसका कोई टीका नहीं निकल सका है. कई टीकों पर कार्य चल रहा है, लेकिन ये टीके व्यापक तौर पर मलेरिया को काबू करने में सक्षम नहीं हैं इस बीमारी को उन उपायों से रोका जाता सकता है जिससे आसपास मच्छरों के पनपने की संभावना ही खत्म हो जाए. यह तरीका डेंगू चिकगुनिया जैसी अन्य बीमारियों में भी बहुत कारगर होता है।
जागरुकता की ज्यादा जरूरत
हर साल मलेरिया ग्रामीण इलाके के लोगों को ज्यादा होता है. यह रोग अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका में ज्यादा होता है क्योंकि यहां की जलवायु इसके मच्छर को पनपने के लिए अनुकूल होती है. ग्रामीण इलाकों में अगर साफ सफाई का ख्याल रखा जाए और मच्छरों के न पनपने के उपायों पर जोर दिया जाए तो इस रोग से बचा जा सकता है।