दिवाली या दीपावली हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। इस दिन मुख्य तौर पर मां लक्ष्मी, भगवान गणेश, देवी सरस्वती, महाकाली की पूजा होती है। दिवाली हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। दिवाली पूजन प्रदोष काल में किया जाता है। कहते हैं जो व्यक्ति सच्चे मन से दिवाली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा करता है उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं। यहां जानिए दिवाली पूजा विधि विस्तार से।
देशभर में दीपावली के त्योहार की धूम है। हिंदू धर्म में दीपावली बेहद खुशी का पर्व माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह हर साल कार्तिक अमावस्या की तिथि को मनाया जाता है। दीपावली के दिन लोग घर के हर कोने में दीए जलाकर मां लक्ष्मी का स्वागत करते हैं।कार्तिक अमावस्या को ये त्योहार मनाया जाता है। दिवाली इस साल 4 नवंबर को है। दिवाली के दिन घर में मां लक्ष्मी, भगवान श्री गणेश, देवी सरस्वती, कुबेर, मां काली और भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं। शास्त्र के अनुसार इसी दिन मां लक्ष्मी सागर मंथन के दौरान प्रकट हुई थी। ऐसी मान्यता है कि दीपावली के दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आती है। दीपावली की पूजा प्रदोष काल में बेहद शुभ मानी जाती है। ज्योतिष शास्त्र में इसे स्वयं सिद्ध मुहूर्त कहा गया है। यानी इस दिन किए गए उपाय, दान व पूजा आदि कामों से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। जानिए इस दिन के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, आरती व अन्य खास बातें…
दीपावली पूजा का महत्व
मां लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए दीपावली का दिन बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से उनकी कृपा व्यक्ति पर सदैव बनी रहती है। व्यक्ति को धन का कभी अभाव नहीं होता है। शास्त्रों के अनुसार इस रात मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करने आती है। ऐसी मान्यता हैं, कि दीपावली के दिन माता जिस घर में सफाई, प्रकाश व देवी देवताओं की पूजा विधि विधान से करते देखती हैं, वैसे घरों को छोड़कर माता नहीं जाती हैं। मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख और वैभव की कमी कभी नहीं होती हैं।
प्रदोष काल में महालक्ष्मी पूजन का महत्व
कार्तिक अमावस्या तिथि पर महालक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व होता है। दिवाली पर अमावस्या के दिन प्रदोष काल होने पर लक्ष्मी पूजन का विधान होता है। प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को कहा जाता है। यह समय लक्ष्मी पूजन के लिए सबसे उत्तम और श्रेष्ठ माना गया है। इसके अलावा प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न में पूजन करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दौरान जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशि लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए
दिवाली 2021 का पंचांग
दिन: गुरुवार, कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष, अमावस्या तिथि।
दिशाशूल: दक्षिण।
पर्व एवं त्योहार: दिवाली, कार्तिक अमावस्या।
सिंह लग्न: रात्रि के 12:20 बजे से रात्रि 02:34 बजे तक।
महानिशीथ काल: रात्रि के 11:19 बजे से 12:11 बजे तक।
विक्रम संवत 2078 शके 1943 दक्षिणायन, दक्षिणगोल, शरद ऋतु कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या 26 घंटे 45 मिनट तक, तत्पश्चात् प्रतिपदा चित्रा नक्षत्र 07 घंटे 43 मिनट तक, तत्पश्चात् स्वाती नक्षत्र प्रीति योग 11 घंटे 10 मिनट तक, तत्पश्चात् आयुष्मान योग तुला में चंद्रमा।
लक्ष्मी पूजा शुभ मुहूर्त चौघड़ियां मुहूर्त
सुबह 06.35 से 07.59 तक- शुभ
दोपहर 12.10 से 01.34 तक- लाभ
शाम 04.22 से 05.46 तक- चर
शाम 05.46 से 07.22 तक- अमृत
विशेष शुभ मुहूर्त
सुबह 11.48 से 12.33 तक- अभिजीत मुहूर्त
शाम 05.34 से रात 08.10 तक- प्रदोष काल मुहूर्त
अर्धरात्रि 12.11 से 01.47 तक- निशिथ काल
स्थिर लग्न मुहूर्त
सुबह 07.36 से 09.55 तक- वृश्चिक लग्न
दोपहर 01.42 से 03.09 तक- कुंभ लग्न
शाम 06.10 से रात 08.10 तक- वृषभ लग्न
अर्धरात्रि 12.42 से 02.59 तक- सिंह लग्न
शहरों में लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त:
नई दिल्ली 06:09 PM से 08:04 PM
नोएडा 06:08 PM से 08:04 PM
पुणे 06:39 PM से 08:32 PM
जयपुर 06:17 PM से 08:14 PM
चेन्नई 06:21 PM से 08:10 PM
गुरुग्राम 06:10 PM से 08:05 PM
हैदराबाद 06:22 PM से 08:14 PM
चण्डीगढ़ 06:07 PM से 08:01 PM
मुम्बई 06:42 PM से 08:35 PM
कोलकाता 05:34 PM से 07:31 PM
बेंगलूरु 06:32 PM से 08:21 PM
अहमदाबाद 06:37 PM से 08:33 PM
दिवाली 2021 पूजा सामग्री
लकड़ी की चौकी, देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियां/चित्र, चौकी को ढकने के लिए लाल या पीला कपड़ा, कुमकुम, हल्दी, चंदन, रोली, अक्षत, साबुत नारियल अपनी भूसी के साथ, पान और सुपारी, अगरबत्ती, दीपक के लिए घी, पीतल का दीपक या मिट्टी का दीपक, कपास की बत्ती, पंचामृत, गंगाजल, कलश, पुष्प, फल, आम के पत्ते, जल, कपूर, कलाव, साबुत गेहूं के दाने, दूर्वा घास, धूप, जनेऊ, दक्षिणा (नोट और सिक्के), एक छोटी झाड़ू, आरती थाली।
इस विधि से करें देवी लक्ष्मी व श्रीगणेश की पूजा
– दिवाली पर घर को स्वच्छ कर पूजा-स्थान को भी पवित्र कर लें एवं स्वयं भी स्नान आदि कर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक शाम के समय शुभ मुहूर्त में महालक्ष्मी व भगवान श्रीगणेश की पूजा करें।
– दीपावली पूजन के लिए किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेशजी के दाहिने भाग में माता महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। श्रीमहालक्ष्मीजी की मूर्ति के पास ही एक साफ बर्तन में कुछ रुपए रखें तथा एक साथ ही दोनों की पूजा करें।
– सबसे पहले पूर्व या उत्तर की मुंह करके अपने ऊपर तथा पूजा-सामग्री पर निम्न मंत्र पढ़कर जल छिड़कें-
ऊं अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।
– इसके बाद हाथ में जल और चावल लेकर पूजा का संकल्प करें-
ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथौ वासरे (वार बोलें) गोत्रोत्पन्न: (गोत्र बोलें)/ गुप्तोहंश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदड्त्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।
– ऐसा कहकर संकल्प का जल छोड़ दें। पूजा से पहले नई प्रतिमा की इस विधि से प्राण-प्रतिष्ठा करें। बाएं हाथ में चावल लेकर इस मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन चावलों को प्रतिमा पर छोड़ते जाएं-
ऊं मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ।।
ऊं अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
– सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। इसके बाद कलश पूजन तथा षोडशमातृका (सोलह देवियों का) पूजन करें। इसके बाद प्रधान पूजा में मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें।
– ऊं महालक्ष्म्यै नम:- इस नाम मंत्र से भी पूजा की जा सकती है। विधिपूर्वक श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
सुरासुरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकै-
र्युक्तं सदा यक्तव पादपकंजम्।
परावरं पातु वरं सुमंगल
नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये।।
भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी।।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोस्तु ते।।
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्।।
ऊं महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं समस्कारान् समर्पयामि।
– प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें। पूजा के अंत में कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम। यह बोलकर सभी पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें तथा जल छोड़ें।
देहलीविनायक पूजन
– दुकान या ऑफिस में दीवारों पर ऊं श्रीगणेशाय नम:, स्वस्तिक चिह्न, शुभ-लाभ सिंदूर से लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दों पर ऊं देहलीविनायकाय नम: इस नाम मंत्र द्वारा गंध-पुष्पादि से पूजा करें।
श्रीमहाकाली (दवात) पूजन
– स्याहीयुक्त दवात (स्याही की बोतल) को महालक्ष्मी के सामने फूल तथा चावल के ऊपर रखकर उस पर सिंदूर से स्वस्तिक बना दें तथा मौली लपेट दें।
ऊं श्रीमहाकाल्यै नम:
– इस नाम मंत्र से गंध-फूल आदि पंचोपचारों से या षोडशोपचारों से दवात तथा भगवती महाकाली की पूजा करें और अंत में इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक प्रणाम करें-
कालिके त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे।
उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये।।
या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तै: समस्तैव्र्यवहारदक्षै:।
जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु।।
लेखनी पूजन
– लेखनी (कलम) पर मौली बांधकर सामने रख लें और-
लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना।
लोकानां च हितार्थय तस्मात्तां पूज्याम्यहम्।।
ऊं लेखनीस्थायै देव्यै नम:
– इस नाममंत्र द्वारा गंध, फूल, चावल आदि से पूजा कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्युयाद्यात:।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव।।
बहीखाता पूजन
– बहीखाता पर रोली या केसर युक्त चंदन से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं एवं थैली में पांच हल्दी की गांठें, धनिया, कमलगट्टा, चावल, दूर्वा और कुछ रुपए रखकर उससे सरस्वती का पूजन करें। सर्वप्रथम सरस्वती का ध्यान इस प्रकार करें-
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।
ऊं वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नम:
इसके बाद गंध, फूल, चावल आदि अर्पित कर पूजा करें।
कुबेर पूजन
– तिजोरी अथवा रुपए रखे जाने वाले संदूक के ऊपर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और फिर भगवान कुबेर का आह्वान करें-
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वद्र्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।
– आह्वान के बाद ऊं कुबेराय नम: इस नाम मंत्र से गंध, फूल आदि से पूजन कर अंत में इस प्रकार प्रार्थना करें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:।।
इस प्रकार प्रार्थना कर हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, रुपए, दूर्वादि से युक्त थैली तिजोरी मे रखें।
तुला (तराजू) पूजन
– सिंदूर से तराजू पर स्वस्तिक बना लें। मौली लपेटकर तुला देवता का इस प्रकार ध्यान करें-
नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता।
साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना।।
– ध्यान के बाद- ऊं तुलाधिष्ठातृदेवतायै नम:
इस नाम मंत्र से गंध, चावल आदि उपचारों द्वारा पूजन कर नमस्कार करें।
दीपमालिका (दीपक) पूजन
– एक थाली में 11, 21 या उससे अधिक दीपक जलाकर महालक्ष्मी के समीप रखकर उस दीपज्योति का ऊं दीपावल्यै नम:इस नाम मंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चनद्रो विद्युदग्निश्च तारका:।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नम:।।
– दीपकों की पूजा कर संतरा, ईख, धान इत्यादि पदार्थ चढ़ाएं। धान का लावा (खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करें।
ऐसे कैसे करें मां लक्ष्मी की आरती
आरती के लिए एक थाली में स्वस्तिक आदि मांगलिक चिह्न बनाकर चावल तथा फूलों के आसन पर शुद्ध घी का दीपक जलाएं। एक अलग थाली में कर्पूर रख कर पूजन स्थान पर रख लें। आरती की थाली में ही एक कलश में जल लेकर स्वयं पर छिड़क लें। पुन: आसन पर खड़े होकर अन्य पारिवारजनों के साथ घंटी बजाते हुए महालक्ष्मीजी की आरती करें-
ऊं जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसिदिन सेवत हर विष्णु-धाता।। ऊं।।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।। ऊं…।।
दुर्गारूप निरंजनि, सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, रिद्धि-सिद्धि धन पाता।। ऊं…।।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधिकी त्राता।। ऊं…।।
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता।
सब संभव हो जाता, मन नहिं घबराता।। ऊं…।।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता।। ऊं…।।
शुभ-गुण-मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता।। ऊं…।।
महालक्ष्मी(जी) की आरती, जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता।। ऊं…।।
– दोनों हाथों में कमल आदि के फूल लेकर हाथ जोड़ें और यह मंत्र बोलें-
ऊं या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां ह्रदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्।।
ऊं श्रीमहालक्ष्म्यै नम:, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयमि।
– ऐसा कहकर हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें। प्रदक्षिणा कर प्रणाम करें, पुन: हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि।।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
सरजिजनिलये सरोजहस्ते धनलतरांशुकगंधमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्वभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।
– पुन: प्रणाम करके ऊं अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मी: प्रसीदतु। यह कहकर जल छोड़ दें। ब्राह्मण एवं गुरुजनों को प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करें।
– इसके बाद चावल लेकर श्रीगणेश व महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं पर चावल छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जित करें-
यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनरागमनाय च।।
इस प्रकार दीपावली पर पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
दीपावली पूजा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव में साहूकार रहता था। उसकी बेटी प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाकर पूजा किया करती थी। जिस पीपल पर जल चढ़ाते थी उस पीपल पर साक्षात मां लक्ष्मी निवास करती थी। एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा, मैं तुम्हारी मित्र बनना चाहती हूं। तब लड़की ने यह बात अपने पिता से जाकर कहीं और उसने अपने पिता से पूछा कि क्या मैं उसे अपना मित्र बना सकती हूं। पिता ने उसे हां कह कर भेज दिया। दूसरे दिन साहूकार की बेटी ने मां लक्ष्मी से मित्रता करने की बात स्वीकार कर ली। दोनों मित्र बनकर खूब बातचीत करने लगें। एक दिन मां लक्ष्मी साहूकार की बेटी को अपने घर ले गई और वहां उसका खुद स्वागत सत्कार किया। उसे तरह-तरह के भोजन करवाएं। जब साहूकार की बेटी वापस घर लौट रही थी, तो मां लक्ष्मी ने उससे पूछा कि तुम मुझे अपने घर कब ले जाओगी। साहूकार की बेटी ने अपने घर की आर्थिक स्थिति को देखकर बहुत उदास हो गई। उसे लगा कि वह शायद मां लक्ष्मी का स्वागत ठीक से नहीं कर पाएगी। यह देख साहूकार दुखी हो गया और वह समझ गया कि उसकी बेटी क्यों उदास हैं। तब उसने अपने बेटी से कहा, कि तुम तुरंत मिट्टी से चौका लगाकर सफाई करो और चार बत्ती के मुख वाला दिया जलाकर लक्ष्मी माता का नाम लेकर वहां बैठकर उनका पूजन करों। पिता की यह बात सुनकर उसने वैसा ही किया। उसी समय एक चील किसी रानी का नौलखा हार लेकर उड़ रहा था। अचानक वह हार सहूकार की बेटी के सामने गिर गया। तब साहूकार की बेटी ने जल्दी से वह हार बेचकर भोजन की तैयारी की। थोड़ी देर बाद भगवान श्री गणेश के साथ मां लक्ष्मी साहूकार की बेटी के घर आई। साहूकार की बेटी ने दोनों की खूब सेवा की। उसकी सेवा को देखकर मां लक्ष्मी बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने उसकी सारी पीड़ा को दूर कर दिया। इस तरह से साहूकार और उसकी बेटी अमीरों की तरह जीवन व्यतीत करने लगी।
”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”