भगत सिंह भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक है। छात्रों, युवाओं और नेताओं समेत पूरा देश शहीद भगत सिंग से प्रेम करता है। भगत सिंह ने कभी किसी धर्म, जाति आयु और लिंग में भेदभाव नहीं किया। शहीद भगत सिंह एकमात्र ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें हर पार्टी के नेता अपना आदर्श मानते हैं। 28 सितंबर 2022 को भगत सिंह की 115वीं जयंती मनाई जा रही है।
शहीद भगत सिंह जी का जन्म पंजाब के दोआब जिले में 28 सितंबर 1907 को हुआ था लेकिन कुछ विद्वानों के अनुसार उनके जन्म की तारीख 27 सितंबर को तो कुछ जगहों पर अक्टूबर में भी बताया जाता है। हालंकि शहीद भगत सिंह की जयंती हर साल 28 सितंबर को पूरे भारतवर्ष में जोश और उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस साल भी शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का 115वां जन्मदिन 28 सितंबर 2022 को बुधवार के दिन मनाया जा रहा है।
शहीद भगतसिंह के बारे में जानकारी
नाम : भगत सिंह (Bhagat Singh)
जन्म : 28 सितंबर 1907, बंगा ब्रिटिश भारत
माता-पिता : विद्यावती – सरदार किशन सिंह
संगठन : नौजवान भारत सभा, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
पहचान : भारतीय क्रांतिकारी, शहीद-ए-आज़म
मृत्यु : 23 मार्च 1931, लाहौर सेंट्रल जेल (उम्र: 23 वर्ष)
स्मारक : हुसैनीवाला, राष्ट्रीय शहीद स्मारक
भगत सिंह कौन थे?
शहीद-ए-आजम भगत सिंह (28 सितंबर 1907 – 23 मार्च 1931) भारत के एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, क्रांतिकारी विचारधारा और उग्र वामपंथी व्यक्तित्व वाले महान देशभक्त थे। साथ ही वे एक महान कवि, विचारक, लेखक तथा दूरदृष्टा भी थे जिन्होंने हसरत मोहानी के नारे ‘इंकलाब जिन्दाबाद’ को सच कर दिखाया। इस अमर शहीद के बारे में हमारी यह धारणा ब्रिटिश रिकार्ड के आधार पर बनी जिसे हमने अपने स्वतंत्र विचारों से परखने का प्रयास नहीं किया। भगत सिंह ने लगभग 23 वर्ष और कुछ महीनों का छोटा लेकिन यादगार जीवन जिया, इतनी कम आयु में उन्होंने वैचारिक परिपक्वता और लक्ष्य के प्रति जो दृढ़ता हासिल की वह सराहनीय थी, है और रहेगी। इन्ही असाधारण और महान कारणों की बदौलत भारत माता का यह वीर सपूत इतनी अल्पायु में फांसी पर चढने के बाद भी हम करोडों हिन्दुस्तानियों के दिलों में आज भी जिन्दा है।
भगत सिंह की जीवनी
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब (ब्रिटिश भारत) के लायलपुर जिले के बंगा गाँव में हुआ (जो अब पाकिस्तान में है)। यह एक संधू जाट खानदान था और पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में शामिल था उनके पिता, और दोनों चाचा उस समय के लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे। भगत सिंह जी के पिता का नाम सरदार किशन सिंह था जो गांधीवादी विचारधारा वाले स्वतंत्रता सेनानी थे और उनकी माता का नाम ‘विद्यावती’ था। तथा उनके चाचा का नाम सरदार अजीत सिंह और स्वरण सिंह था।
विवाह : 19 साल की उम्र में ही भगत सिंह के माता-पिता ने उनका विवाह करना चाहा लेकिन वह उस समय घर छोडकर चले गए और अपने माता-पिता के लिए एक पत्र छोड़ दिया जिसमें उन्होंने लिखा: ‘‘मेरा जीवन एक महान उद्देश्य के लिए समर्पित है और वह उद्देश्य देश की आजादी है। इसलिये मुझे तब तक चैन नहीं है। ना ही मेरी ऐसी को सांसारिक सुख की इच्छा है.. जो मुझे ललचा सके।’’ लोग आज भी उनकी इतनी कम उम्र मे इतने बड़े संकल्प और दृढ़ निश्चयता की सराहना करते है। वह कोई साधारण युवा नहीं थे, उन्होंने सिर्फ बारहवीं पास की और उसके बाद घर से भाग कर चन्द्रशेखर आजाद की क्रांतिकारी पार्टी को Join कर लिया।
भगत सिंह ने देश के लिए क्या किया?
भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया और हंसते हंसते देश के लिए शहीद हो गए। उन्होंने 14 साल की उम्र में ही भारत की स्वतंत्रता के लिए आंदोलनों और रेलियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह को झकझोर कर रख दिया, जिसके बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम की ओर रुख किया और देश की स्वतंत्रता के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की।शुरुआत में वे गांधी जी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे और वर्ष 1920 में उन्होंने गांधीजी के विदेशी सामानों के बहिष्कार के आंदोलन में हिस्सा लिया और 14 वर्ष की उम्र में ही विदेशी कपड़ों की होली जलाई।हालांकि 1921 में चोरा-चोरी हत्याकांड के बाद किसानों का साथ ना देने के कारण वे गांधी जी से निराश होकर चंद्रशेखर आजाद की गदर पार्टी में शामिल हो गए जो क्रांतिकारियों की पार्टी थी।
काकोरी कांड : उन्होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई आंदोलन किए, इस दौरान 1925 में उन्होंने काकोरी कांड को अंजाम दिया जिसमें उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल और अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर सरकारी खजाने को लूट लिया था। वर्ष 1928 में साइमन कमीशन के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान ब्रिटिश हुकूमत द्वारा लाठीचार्ज किए जाने से लाला लाजपत राय की मौत हो गई, जिसका बदला लेने के लिए चंद्रशेखर आजाद की मदद से उन्होंने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अफसर जेपी सांडर्स को मार दिया।
असेंबली में बम विस्फोट : 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह अपने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली स्थित सेंट्रल असेंबली के सभागार में अंग्रेजी सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके और अपनी गिरफ्तारी भी दी। उन्हें गिरफ्तार किए जाने के बाद उन पर मुकदमा चला और ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई जिसके बाद 23 मार्च 1931 को 23 वर्ष की आयु में उन्हें फांसी दे दी गई। उनकी पुण्यतिथि आज भी शहीद दिवस के रूप में मनाई जाती है।
भगत सिंह की क्रांतिकारी विचारधारा
* जब भगत सिंह जवान थे, तभी से उन्होंने यूरोपीय क्रांतिकारी आंदोलनों और ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ गहन अध्ययन किया और क्रांतिकारी विचारों से प्रेरित होनें के बाद इन्होंने क्रन्तिकारी बनने का फैसला किया।
* भगत सिंह अपने पिता और चाचा के विचारों से प्रभावित हुए और उन्होंने हमेशा लोगों को अंग्रेजों का विरोध करने के लिए प्रेरित किया। देश के प्रति निष्ठा और इसे अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने का द्रढ़ संकल्प भगत सिंह में जन्मजात था। देशभक्त परिवार में पैदा होने के कारण यह उनके नसों में खून बनकर दौड़ रहा था।
* बहुत कम उम्र में ही क्रन्तिकारी स्वतंत्रता सेनानी के रूप में स्वतंत्रता के संघर्ष में शामिल होने के कारण अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत करते हुए इंकलाब जिंदाबाद के नारे के साथ वे केवल 23 वर्ष की आयु में शहीद हो गए।
* भगत सिंह अपने वीरता और क्रांतिकारी विचारधारा के लिए आज भी लोकप्रिय हैं।
* इसके साथ ही बहुत ज्यादा पढ़ा लिखा न होने के बावजूद भी भगत सिंह ने ‘‘मैं नास्तिक क्यों हूं’’ सहित जो कुछ भी लिखा उससे उनकी वैचारिक गहराइयों का अनुमान लगाया जा सकता है।
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शहीद भगत सिंह पर बनी ये बॉलीवुड फिल्में
बॉलीवुड में भी समय-समय पर कई ऐसी फिल्में बनीं जिससे उन्हें याद किया जा सके और युवाओं में देशभक्ति की आग जलती रहे. आइए जानते हैं भगत सिंह पर बनी ऐसी ही कुछ फिल्मों के बारे में …
‘शहीद-ए-आजाद भगत सिंह’ : आजादी के कुछ सालों बाद 1954 में रिलीज हुई. भगत सिंह के निधन के बाद ये पहली फिल्म थी जो उन पर बनी थी. मूवी का डायरेक्शन जगदीश गौतम ने किया. इसके अलावा फिल्म में प्रेम आबिद, जयराज, स्मृति विश्वास और अशिता मजूमदार मुख्य भूमिका में नजर आए. फिल्म का गाना ‘रफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ आते ही लोगों की जुबान पर चढ़ गया. ‘शहीद-ए-आजाद भगत सिंह’ फिल्म के जरिए ही लोग पहली बार बड़े पर्दे पर भगत सिंह की कहानी को देख पाए थे।
इसके ठीक 9 साल बाद 1963 में रिलीज हुई ‘शहीद भगत सिंह : ‘ इस मूवी में अभिनेता शम्मी कपूर ने फ्रीडम फाइटर का किरदार निभाया था. हालांकि, उस दौरान यह फिल्म लोगों के मन में खास जगह नहीं बना पाई और फ्लॉप साबित हुई।
1965 में आई ‘शहीद’ : अभिनेता मनोज कुमार ने इस फिल्म स्वतंत्रता सेनानी भगत की भूमिका निभाई. फिल्म में एक्टर की भूमिका को काफी सराहा गया और शहीद को तीन-तीन नेशनल अवॉर्ड से भी नवाजा गया. इसके अलावा फिल्म से लता मंगेशकर, मुकेश, मोहम्मद रफी और मन्ना डे के गाने ए वतन, सरफरोशि की तमन्ना, ओ मेरा रंग दे बसंती चोला, पगड़ी संभाल जट्टा भी काफी हिट हुए थे।
शहीद-ए-आजम (2002) : ‘शहीद’ के बाद साल 2002 में सोनू सूद की फिल्म ‘शहीद ए आजम’ रिलीज हुई. फिल्म को कुमार नायर ने डायरेक्ट किया था. इसमें शमा सिकंदर भी मुख्य भूमिका नजर आईं. हालांकि, उस समय यह फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर खास कमाल नहीं कर पाई थी।
23 मार्च 1931, शहीद (2002) : सोनू के बाद बॉलीवुड में फिर ‘शहीद’ मूवी आई, जिसमें बॉबी देओल ने भगत सिंह का किरदार निभाया. फिल्म को धर्मेंद्र ने प्रोड्यूस किया था. हालांकि, पहले के मुकाबले 2002 में आई इस फिल्म का बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कलेक्शन नहीं रहा।
द लीजेंड ऑफ भगत सिंह (2002) : साल 2002 में भगत सिंह पर बनी ये तीसरी फिल्म थी. इस बार अजय देवगन फ्रीडम फाइटर का किरदार निभाते नजर आए.7 जून 2002 में रिलीज हुई राजकुमार संतोषी द्वारा डायरेक्ट की गई इस फिल्म को दर्शकों का भरपूर प्यार मिला. फिल्म में दमदार ऐक्टिंग के लिए अजय देवगन को नैशनल अवॉर्ड से भी नवाजा गया था।
रंग दे बसंती (2006) : 2006 में आई आमिर की फिल्म ‘रंग दे बसंती’ने युवांओ के बीच काफी लोकप्रियता पाई. फिल्म में साउथ सिनेमा के सुपरस्टार सिद्धार्थ भगत के रूप में दिखे. लोगों को फिल्म का डायलॉग ‘मेरी दुल्हन तो आजादी है’ भी खूब पसंद आया. इसे अलावा ‘रंग दे बसंती’ को कई अवार्ड से भी नवाजा गया।
अमर शहीद भगत सिंह के जीवन की अनजानी बातें
* देश की सरकार भगत सिंह को शहीद नहीं मानती है, जबकि आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले भगत सिंह हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसते हैं।
* भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला।
* लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने 1920 में भगत सिंह महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे, जिसमें गांधी जी विदेशी समानों का बहिष्कार कर रहे थे।
* 14 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह ने सरकारी स्कूलों की पुस्तकें और कपड़े जला दिए। इसके बाद इनके पोस्टर गांवों में छपने लगे।
* उन्होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया।
* 9 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया गया। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है।
* इस घटना को अंजाम भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों ने साथ मिलकर अंजाम दिया था।
* काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारियों की धरपकड़ तेज कर दी और जगह-जगह अपने एजेंट्स बहाल कर दिए।
* भगत सिंह और सुखदेव लाहौर पहुंच गए। वहां उनके चाचा सरदार किशन सिंह ने एक खटाल खोल दिया और कहा कि अब यहीं रहो और दूध का कारोबार करो।
* वे भगत सिंह की शादी कराना चाहते थे और एक बार लड़की वालों को भी लेकर पहुंचे थे।
* भगतसिंह कागज-पेंसिल ले दूध का हिसाब करते, पर कभी हिसाब सही मिलता नहीं। सुखदेव खुद ढेर सारा दूध पी जाते और दूसरों को भी मुफ्त पिलाते।
* भगत सिंह को फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना काफी पसंद था। वे राजगुरु और यशपाल के साथ जब भी मौका मिलता था, फिल्म देखने चले जाते थे। चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थीं। इस पर चंद्रशेखर आजाद बहुत गुस्सा होते थे।
* भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी।
* क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे।
* भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशीरल विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे।
* उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था।
* हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे।
* भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने ‘अकाली’ और ‘कीर्ति’ दो अखबारों का संपादन भी किया।
* जेल में भगत सिंह ने करीब दो साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख व परिवार को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं।
* अपने लेखों में उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है।
* उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’?
* जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे।
* 23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई।
* फांसी पर जाने से पहले वे ‘बिस्मिल’ की जीवनी पढ़ रहे थे जो सिंध (वर्तमान पाकिस्तान का एक सूबा) के एक प्रकाशक भजन लाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिंध से छापी थी।
* पाकिस्तान में शहीद भगत सिंह के नाम पर चौराहे का नाम रखे जाने पर खूब बवाल मचा था। लाहौर प्रशासन ने ऐलान किया था कि मशहूर शादमान चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक किया जाएगा। फैसले के बाद प्रशासन को चौतरफा विरोध झेलना पड़ा था।
यह देश शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का हमेशा आभारी रहेगा, जिन्होंने भारत के बेहतर भविष्य के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. उनका नाम भारतीय इतिहास के पन्नों में हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा. सरकार और पूरा राष्ट्र, भारत को आजादी दिलाने के लिए किए गए स्वतंत्रता संग्राम में उनके अमूल्य योगदान को स्वीकार करता है।