विशेषज्ञों के अनुसार इस अमरूद की खेती में समान्य अमरूदों की तुलना में कम खर्च आता है. इसकी खेती के लिए लिए ठंड मौसम ज्यादा मुफीद माना जाता है. औषधीय गुणों की वजह से इसके फलों में कीट और रोग लगने की संभावनाएं भी काफी कम हो जाती है. काले अमरूद की खेती के लिए जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है. खेती-किसानी में नए-नए फसलों की तरफ किसान तेजी से रुख करने लगे हैं. इस बीच दुर्लभ और नकदी फसलों की खेती की तरफ भी किसान दिलचस्पी दिखा रहे हैं. इसी कड़ी में किसानों के मध्य काले अमरूद की खेती करने की लोकप्रियता बढ़ी है।
भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। ऐसे में अगर आप खेती किसानी के जरिए मोटी कमाई करना चाहते हैं तो आज हम आपके लिए एक बेहतर आइडिया लेकर आए हैं। यहां किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए नए-नए बदलाव किए जा रहे हैं। किसानों को भी महंगी, दुर्लभ और नकदी फसलों की खेती के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। ऐसी ही दुर्लभ और मंहगी फसल में शामिल है काला अमरूद की खेती। पिछले कुछ सालों से काले अमरूद की खेती का चलन तेजी से बढ़ा है। काले अमरूद में ढेर सारे औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसमें जरूरी पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट्स मौजूद होते हैं, जो शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि ये बुढापे के लक्षणों को रोकने में मददगार है। इस काम के लिए काले अमरूद में एंटी एजिंग गुण भी मौजूद है। ऐसे में किसान चाहें तो कम लागत में इसकी खेती करके मोटी कमाई कर सकते हैं।
काले अमरूद की खेती
रिपोर्ट्स के मुताबिक, काले अमरूद की किस्म बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बनाई है। जिसके बाद देशभर के ज्यादातर किसानों ने इसकी बागवानी शुरू कर दी है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के कोलर क्षेत्र में काले अमरूद की खेती शुरू हुई है। यहां उत्तर प्रदेश की सहारनपुर नर्सरी से पौधों को खरीदकर रोपाई का काम किया गया है। उत्तर प्रदेश और बिहार में कई जगह इसकी खेती की जा रही है।
किसी अजूबे से कम नहीं
यह अमरूद किसी अजूबे से कम नहीं है। इसकी पत्तियां और अंदर गूदे का रंग भी गहरा लाल या महरून होता है। काले अमरूद के फल का वजन लगभग 100 ग्राम तक होता है। ये दिखने में सामान्य अमरूदों के मुकाबले ज्यादा आकर्षक लगते हैं। इसकी खेती में ज्यादा लागत नहीं आती है। सबसे अच्छी बात तो यह है कि इसकी खेती ठंड प्रदेशों में ही की जाती है। और इसके फलों में कीट-रोगों की भी अधिक संभावना नहीं रहती है।
औषधीय गुणों से भरपूर काले अमरूद
शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसके एंटी-एजिंग फैक्टर और रोग प्रतिरोधक क्षमता सामान्य फलों से ज्यादा होने की वजह से लोग इसे पसंद करेंगे। अमरूद की यह किस्म एंटीऑक्सीडेंट, मिनरल्स और विटामिन से भरपूर होती है। 100 ग्राम अमरूद में लगभग 250 मिलीग्राम विटामिन-सी, विटामिन-ए और बी, कैल्शियम और आयरन के अलावा अन्य मल्टीविटामिन और मिनरल्स होते हैं। कुछ मात्रा में प्रोटीन और दूसरे फायदेमंद तत्व भी शामिल हैं। इस फल से लोगों के ’एंटीएजिंग’ पर असर पड़ेगा। काले अमरूद में औषधीय गुण, जरूरी पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर की रोगप्रतिरोधी क्षमता बढ़ाकर बीमारियों के खिलाफ एक ढाल का काम करते हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि ये बुढ़ापे के लक्षणों को रोकने में मददगार है।
देश कुछ हिस्सों में किसानों ने शुरू कर दी काले अमरूद की खेती
बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित काले अमरूद की किस्म की खेती देशभर के कुछ हिस्सों में किसानों ने शुरू कर दी। जिसमें हाल ही में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के कोलर क्षेत्र में इसकी खेती शुरू हुई है। साथ ही हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में इस अमरूद की खेती बड़े पैमाने पर होने लगी है। उत्तर प्रदेश की सहारनपुर नर्सरी से पौधों को खरीदकर रोपाई का काम किया गया है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार के कई किसान भी प्रयोग के तौर पर इसकी खेती कर रहे हैं।
जलनिकासी वाले खेत उपयुक्त
काले अमरूद की खेती के लिए जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है. इसकी खेती करने से पहले मिट्टी की जांच जरूर करा लें. इससे शुरुआती स्तर पर फसल खराब होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं. विशेषज्ञों की मानें तो यह फसल कम लागत में बंपर मुनाफा दे सकता है।
व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त
विशेषज्ञों के अनुसार काले अमरूद में कई गुना पोषण लाभ और वाणिज्यिक उत्पादन और निर्यात की बहुत संभावनाएं हैं। देशभर के बाजारों में अभी तक सिर्फ पीले अमरूद और हरे अमरूद का ही दबदबा रहा है, लेकिन काले अमरूद की व्यावसायिक खेती करके एक नया बाजार खड़ा कर सकते हैं। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यहां की जलवायु और मिट्टी इस अमरूद के लिए उपयुक्त है। उनका मानना है कि इस अमरूद के व्यवसायिक इस्तेमाल होने से मांग बढ़ेगी। उन्होंने संभावना जताते हुए कहा कि भविष्य में हरे अमरूद की तुलना में इसका व्यवसायिक मूल्य ज्यादा होगा, जिससे किसानों को कम मेहनत में अधिक फायदा मिल सकेगा।
कब करें तुड़ाई
अन्य किस्मों के अमरूद के पौधों की तरह इसकी भी मजबूत और सही वृद्धि के लिए कटाई और छंटाई की जरूरत होती है. कटाई -छंटाई से इसके पौध के तने मजबूत होते हैं. अमरूद के पौधें की रोपाई के दो से तीन वर्ष बाद पौधे में फल लगने शुरू हो जाते है. फलो की तुड़ाई पूरी तरह से पकने के बाद करें।
होगी मोटी कमाई
देशभर के बाजारों में अभी तक सिर्फ पीले अमरूद और हरे अमरूद का ही दबदबा बना हुआ है। ऐसे में काले अमरूद की व्यावसायिक खेती के जरिए एक नया बाजार खड़ा कर सकते हैं। इससे बंपर कमाई कर सकते हैं।
काले अमरूद को लेकर डॉक्टर्स का क्या है कहना
जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (JLNMCH) में फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी के एचओडी डॉ. संदीप लाल ने कहा कि नए विकसित काले अमरूद ने मेडिकल से जुड़े लोगों का भी ध्यान खींचा है और इसी के मद्देनजर आगे रिसर्च की जरूरत है। एंटीऑक्सिडेंट, विटामिन और मिनरल्स से भरपूर होने कि वजह से ये फल कई बीमारियों का मुकाबला करने में सहायक हो सकते हैं। डॉ लाल ने कहा कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) को रिसर्च में बीएयू के साथ सहयोग करना चाहिए और काले अमरूद के बारे में जागरूकता पैदा करनी चाहिए।
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