भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हर साल गणपति धूमधाम से घर-घर विराजित होते हैं. 10 दिन तक बप्पा की उपासना की जाती है. 31 अगस्त 2022 को गणेश चतुर्थी पर गणेश जी का जन्मोत्सव मनया गया. अब भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी का पर्व मनाया जाएगा. इस साल अनंत चतुर्दशी तिथि 9 सितंबर 2022 को है. इस दिन भगवान गणेश को उत्साह के साथ विदा किया जाता है, शुभ मुहूर्त में उनकी प्रतिमा का जल में विसर्जन होता है. अनंत चतुर्दशी तिथि भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है. आइए जानते हैं अनंत चतुर्दशी पर गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त और क्यों किया जाता है गणपति विसर्जन।
हर साल की तरह इस साल भी गणपति बप्पा के विसर्जन का समय समीप आ गया है. अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन की परंपरा है. 10 दिन तक चलने वाले गणपति महोत्सव का ये आखिरी दिन होता है. इस बार अनंत चतुर्दशी तिथि 9 सितंबर 2022, दिन शुक्रवार को पड़ रही है. अनंत चतुर्दशी के दिन न सिर्फ भगवान गणेश को पवित्र समुद्र या नदी में विसर्जित किया जाता है बल्कि इस दिन भगवान विष्णु के अंनत रूपों की भी पूजा का विशेष विधान है.
अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत देव की पूजा की जाती हैं, इसे विप्पति से उभारने वाला व्रत कहा जाता हैं. इस दिन भगवान अनंत देव को सूत्र चढ़ाया जाता हैं, पूजा के बाद उस सूत्र को रक्षासूत्र अथवा अनंत देव के तुल्य मानकर हाथ में पहना जाता है. माना जाता हैं कि यह सूत्र रक्षा करता हैं। अनंत चतुर्दशी के दिन धूमधाम से गणपति बप्पा को विदाई दी जाती है. सम्मानपूर्वक उनका जल में विसर्जन किया जाता है. साथ ही गजानन से अगले बरस जल्द आने की कामना की जाती है. इस बार अनंत चतुर्दशी पर बेहद शुभ योग बन रहा है, जो आपको श्री हरी विष्णु भगवान की कृपा के साथ साथ भगवान गणेश का विशेष आशीर्वाद भी प्राप्त करने में सहायक साबित होगा। ऐसे में आइए जानते हैं अनंत चतुर्दशी के शुभ मुहूर्त और शुभ योगों के बारे में।
अनंत चतुर्दशी / गणेश विसर्जन कब मनाई जाती हैं
यह भादो मास शुक्ल पक्ष की चौदस को मनाया जाता हैं, इस दिन अनंत देव की पूजा की जाती हैं. अनंत देव भगवान विष्णु का रूप माने जाते हैं. इस पूजा में अनंत सूत्र का महत्व होता हैं, जिसे स्त्री बायें एवम पुरुष दायें हाथ में पहनती हैं. इस सूत्र से सभी कष्टों का निवारण होता हैं।
अनंत चतुर्दशी / गणेश विसर्जन 2022 में कब है
इस वर्ष में अनंत चतुर्दशी 9 सितंबर को मनाई जायेगी।
अनंत चतुर्थी की तारीख : 9 सितम्बर
अनंत चतुर्थी पूजा समय : 06:12 से 19:05
मुहूर्त का कुल समय : 12 घंटे 53 मिनट
इस दिन गणेश विसर्जन भी होता हैं, यह अनंत चतुर्दशी महाराष्ट्र में हर्षोल्लास से मनाई जाती हैं एवम जैन धर्म ने इस दिन को पर्युषण पर्व का अंतिम दिवस कहा जाता है, इस दिन को संवत्सरी के नाम से जाना जाता हैं. इसे क्षमा वाणी भी कहा जाता हैं।
अनंत चतुर्दशी 2022 शुभ मुहूर्त
अनंत चतुर्दशी तिथि का शुभारंभ 8 सितंबर 2022, दिन गुरुवार को शाम के 9 बजकर 2 मिनट से होगा. वहीं, इस तिथि का समापन 9 सितंबर 2022, दिन शुक्रवार को शाम 6 बजकर 7 मिनट पर होगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, अनंत चतुर्दशी 9 सितंबर के दिन मनाई जाएगी। इसके अतिरिक्त पूजा मुहूर्त की बात करें तो, वह 9 सितंबर की सुबह 6 बजकर 10 मिनट से आरंभ होगा और शाम 6 बजकर 7 मिनट पर समाप्त होगा. यानी कि पूजा की अवधि 11 घंटे 58 मिनट तक रहेगी।
अनंत चतुर्दशी 2022 शुभ योग
इस साल अनंत चतुर्दशी पर बेहद शुभ योग का संयोग बन रहा है, जो इस दिन के महत्व को और भी कई अधिक बढ़ा रहा है. इस दिन सुकर्मा और रवि योग बन रहे हैं. मान्यता है कि सुकर्मा योग में किए गए शुभ कार्य में सफलता जरूर मिलती है. साथ ही रवि योग में भगवान विष्णु की पूजा करने से पाप नष्ट हो जाते हैं. जहां एक तरफ, सुकर्मा योग 8 सितंबर 2022 को रात 9 बजकर 41 मिनट से 9 सितंबर 2022 शाम 6 बजकर 12 मिनट तक रहेगा. वहीं दूसरी तरफ, रवि योग 9 सितंबर 2022 को सुबह 6 बजकर 10 मिनट से 11 बजकर 35 मिनट तक रहने वाला है।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
पौराणिक युग में सुमंत नाम का एक ब्राम्हण था, जो बहुत विद्वान था. उसकी पत्नी भी धार्मिक स्त्री थी, जिसका नाम दीक्षा था. सुमंत और दीक्षा की एक संस्कारी पुत्री थी, जिसका नाम सुशीला था. सुशीला के बड़े होते होते उसकी माँ दीक्षा का स्वर्गवास हो गया। सुशीला छोटी थी, उसकी परवरिश को ध्यान में रखते हुए सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह किया. कर्कशा का व्यवहार सुशीला के साथ अच्छा नहीं था, लेकिन सुशीला में उसकी माँ दीक्षा के गुण थे, वो अपने नाम के समान ही सुशील और धार्मिक प्रवत्ति की थी। कुछ समय बाद जब सुशीला विवाह योग्य हुई, तो उसका विवाह कौण्डिन्य ऋषि के साथ किया गया. कौण्डिन्य ऋषि और सुशीला अपने माता पिता के साथ उसी आश्रम में रहने लगे. माता कर्कशा का स्वभाव अच्छा ना होने के कारण सुशीला और उनके पति कौण्डिन्य को आश्रम छोड़ कर जाना पड़ा। जीवन बहुत कष्टमयी हो गया. ना रहने को जगह थी और ना ही जीविका के लिए कोई भी जरिया. दोनों काम की तलाश में एक स्थान से दुसरे स्थान भटक रहे थे. तभी वे दोनों एक नदी तट पर पहुँचे, जहाँ रात्रि का विश्राम किया. उसी दौरान सुशीला ने देखा वहाँ कई स्त्रियाँ सुंदर सज कर पूजा कर रही थी और एक दुसरे को रक्षा सूत्र बाँध रही थी. सुशीला ने उसने उस व्रत का महत्व पूछा. वे सभी अनंत देव की पूजा कर रही थी और उनका रक्षा सूत्र जिसे अनंत सूत्र कहते हैं वो एक दुसरे को बाँध रही थी, जिसके प्रभाव से सभी कष्ट दूर होते हैं और व्यक्ति के मन की इच्छा पूरी होती हैं. सुशीला ने व्रत का पूरा विधान सुनकर उसका पालन किया और विधि विधान से पूजन कर अपने हाथ में अनंत सूत्र धारण किया और अनंत देव से अपने पति के सभी कष्ट दूर करने की प्रार्थना की। समय बीतने लगा ऋषि कौण्डिन्य और सुशीला का जीवन सुधरने लगा. अनंत देव की कृपा से धन धान्य की कोई कमी ना थी। अगले वर्ष फिर से अनंत चतुर्दशी का दिन आया. सुशीला ने भगवान को धन्यवाद देने हेतु फिर से पूजा की और सूत्र धारण किया.नदी तट से वापस आई. ऋषि कौण्डिन्य ने हाथ में बने सूत्र के बारे में पूछा, तब सुशीला ने पूरी बात बताई और कहा कि यह सभी सुख भगवान अनंत के कारण मिले हैं. यह सुनकर ऋषि को क्रोध आ गया, उन्हें लगा कि उनकी मेहनत के श्रेय भगवान को दे दिया और उन्होंने धागे को तोड़ दिया. इस तरह से अपमान के कारण अनंत देव रुष्ठ हो गए और धीरे- धीरे ऋषि कौण्डिन्य के सारे सुख, दुःख में बदल गए और वो वन- वन भटकने को मजबूर हो गए. तब उन्हें एक प्रतापी ऋषि मिले, जिसने उन्हें बताया कि यह सब भगवान के अपमान के कारण हुआ हैं. तब ऋषि कौण्डिन्य को उनके पाप का आभास हुआ और उन्होंने विधि विधान से अपनी पत्नी के साथ अनंत देव का पूजन एवम व्रत किया. यह व्रत उन्होंने कई वर्षो तक किया, जिसके 14 वर्ष बाद अनंत देव प्रसन्न हुये और उन्होंने ऋषि कौण्डिन्य को क्षमा कर उन्हें दर्शन दिये. जिसके फलस्वरूप ऋषि और उनकी पत्नी के जीवन में सुखों ने पुनः स्थान बनाया। अनंत चतुर्दशी व्रत की कहानी भगवान कृष्ण ने पांडवो से भी कही थी, जिसके कारण पांडवो ने अपने वनवास में प्रति वर्ष इस व्रत का पालन किया था जिसके बाद उनकी विजय हुई थी।अनंत चतुर्दशी का पालन राजा हरिशचन्द्र ने भी किया था, जिसके बाद उनसे प्रसन्न होकर उन्हें अपना राज पाठ वापस मिला था।
अनंत चतुर्दशी व्रत का पालन कैसे करें
* इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता हैं।
* कलश की स्थापना की जाती हैं, जिसमे कमल का पुष्प रखा जाता हैं और कुषा का सूत्र चढ़ाया जाता हैं।
* भगवान एवम कलश को कुम कुम, हल्दी का रंग चलाया जाता हैं।
* हल्दी से कुषा के सूत्र को रंगा जाता हैं।
* अनंत देव का आव्हान कर उन्हें दीप, दूप एवम भोग लगाते हैं।
* इस दिन भोजन में पूरी खीर बनाई जाती हैं।
* पूजा के बाद सभी को अनंत सूत्र बाँधा जाता हैं।
इस प्रकार अपने कष्टों को दूर करने हेतु सभी इस व्रत का पालन करते हैं. इस दिन देश के कई हिस्सों में गणेश विसर्जन किया जाता हैं. गणेश चतुर्थी और विनायक चतुर्थी के दिन गणेश जी को 10 दिनों तक घर में बैठाकर इस दिन उनकी विदाई की जाती हैं. खासतौर पर यह गणेश विसर्जन महाराष्ट्र में किया जाता हैं जो पुरे देश में प्रसिद्द हैं।
जो लोग नौ दिनों तक बप्पा को अपने घर रखते हैं, वे 10वें दिन चतुर्दशी को हर्षोल्लास के साथ विदा करते हैं. गणेश जन्मोत्सव मनाने के बाद अनंत चतुर्दशी को गणपति बप्पा की विदाई करते हैं और विधि विधान से गणेश जी का विसर्जन (Ganesh Visarjan) करते हैं, ताकि वे फिर अगले बरस आएं. इस साल गणेश विसर्जन 09 सितंबर दिन शुक्रवार को अनंत चतुर्दशी के दिन होगा. अनंत चतुर्दशी को प्रातः बप्पा की नियमित पूजा करें. उसके बाद शुभ मुहूर्त में उनकी विदाई करें।
गणेश चतुर्थी के दिन से भगवान गणेश अपने भक्तों के घरों और पंडालों में विराजमान हैं. 10 दिनों तक गणेश जन्मोत्सव मनाने के बाद आज अनंत चतुर्दशी को गणपति बप्पा की विदाई करते हैं और विधि विधान से गणेश जी का विसर्जन करते हैं. गणेश जी को लोग डेढ़ दिन, तीन दिन, पांच दिन, सात दिन और नौ दिन के लिए स्थापित करते हैं और फिर शुभ मुहूर्त में विदा कर देते हैं. जो लोग नौ दिनों तक बप्पा को अपने घर रखते हैं, वे आज 10वें दिन चतुर्दशी को हर्षोल्लास के साथ विदा करते हैं, ताकि वे फिर अगले बरस आएं। गणेश जी ने लगातार 10 दिनों तक महाभारत की रचना की थी, जिससे उनका शरीर तपने लगा था, तब वेद व्यास जी उनको एक जल स्रोत के पास ले गए और वहां पर उनको जल में स्नान कराया. इससे गणेश जी को बहुत आराम मिला. उस दिन अनंत चतुर्दशी थी. तब से इस तिथि पर गणेश जी का विसर्जन होने लगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब हम देवी-देवताओं को मूर्ति के स्वरूप में प्राण प्रतिष्ठित करते हैं तो उनको उनके लोक से बुलाते हैं और जब पूजा का समापन हो जाता है तो उनको विसर्जित करते हैं, विदा कर देते हैं ताकि वे फिर से अपने लोक में जाकर स्थापित हों।
गणेश विसर्जन 2022 शुभ मुहूर्त
पंचांग के मुताबिक भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ गुरुवार, 08 सितंबर 2022 को शाम 4:30 बजे से होगा और इसकी समाप्ति शुक्रवार, 09 सितंबर 2022 को शाम 01 बजकर 30 मिनट पर होगी। ऐसे में ज्योतिष अनुसार 9 सितंबर को गणेश विसर्जन के लिए तीन शुभ मुहूर्त हैं-
गणेश विसर्जन के लिए सुबह का मुहूर्त- 06:03 बजे से 10:44 बजे तक
गणेश विसर्जन के लिए दोपहर का मुहूर्त- 12:18 बजे से 01:52 बजे तक
गणेश विसर्जन के लिए शाम का मुहूर्त- 5.00 बजे से 06:31 बजे तक
गणेश विसर्जन पूजा विधि
* अनंत चतुर्दशी को प्रातः बप्पा की नियमित पूजा करें. उसके बाद शुभ मुहूर्त में उनकी विदाई करें।
* गणेश उत्सव के समय बप्पा की विधि विधान से पूजा की जाती है. उसी प्रकार विसर्जन के दिन गजानन की उपासना करें. इस दिन लाल, पीले रंग के वस्त्र पहनें।
* एक चौकी पर या फिर लकड़ी के पटरे को पवित्र करें. उस पर पीले रंग का या लाल रंग का कपड़ा बिछा दें और उस पर स्वस्तिक भी बना दें।
* अब आप गणेश जी को ढोल-नगाड़ों और जयकारों की गूंज के साथ पूजा स्थान से उठाकर चौकी या पटरे पर विराजमान करा दें।
* पूजा में उनकी पसंदीदा वस्तु जैसे दूर्वा, मोदक, लड्डू, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, हल्दी, नारियल, फूल, इत्र, फल, अर्पित करें. पूजा के समय ॐ श्री विघ्नराजाय नमः। मंत्र का जाप करें।
*.घर या पंडाल जहां गणपति स्थापित किए हो वहां आरती और हवन करें. अब एक पाट पर गंगाजल छिड़कें. उसपर स्वास्तिक बनाकर लाल कपड़ा बिछाएं।
* गणपति प्रतिमा और उन्हें अर्पित की सभी सामग्री पाट पर रखें और फिर ढोल, नगाड़ों के साथ झूमते, गाते, गुलाल उड़ाते हुए विसर्जन के लिए निकलेंनदी, तालाब के तप पर विसर्जन से पूर्व दोबारा गणेश जी की कपूर से आरती करें. उनसे गणेश उत्सव के दौरान जाने-अनजाने में हुई गलती की माफी मांगे. अगले वर्ष पुन: पधारने की कामना करें।
*.गणेश विसर्जन में इस मंत्र (Ganesh Visarjan mantra) का जाप करते हुए सम्मानपूर्वक धीरे-धीरे उन्हें जल में विसर्जित करें. ॐ गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ, स्वस्थाने परमेश्वर। यत्र ब्रह्मादयो देवाः, तत्र गच्छ हुताशन ।
* गणेश जी के साथ उन्हें अर्पित की चीजें सुपारी, पान, लौंग, इलायची और नारियल भी विसर्जित करना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार 10 दिन तक गणपति जी की पूजा में जो नारियल रखते हैं उसे फोड़ना नहीं चाहिए. साथ ही घर में विसर्जन के लिए बड़े बर्तन का उपयोग करें, उसमें इतना पानी भरें कि प्रतिमा पूरी डूब जाए. इस पानी को बाद में गमले या पवित्र वृक्ष जैसे शमी यां आंक के पेड़ में डाल दें।
* नदी तट या तालाब के किनारे जब जाएं. वहां पर बप्पा की आरती करें और उनसे मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आशीष मांगे. फिर बप्पा से कहें कि जिस प्रकार से इस साल आकर आपने जीवन में खुशियां दी हैं, वैसे ही अगले साल भी आप हमारे घर पधारें. पूजा में हुई कमियों और गलतियों के लिए माफी मांगें. फिर उनको जल में विसर्जित कर दें।
गणेश विसर्जन के दौरान इस मंत्र का जाप करें-
ॐ यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च॥
भगवान गणेशजी के अनसुने आश्चर्यजनक तथ्य
भगवान श्रीगणेश बुद्धि और कौशल के देवता हैं। उनकी आराधना कर अर्थ, विद्या, बुद्धि, विवेक, यश, प्रसिद्धि, सिद्धि सहजता से प्राप्त हो जाते है। गणपतिजी की आराधना को लेकर कुछ ऐसे तथ्य हैं, जिनसे आप अब तक अंजान रहे। इन्हें जानने के बाद आप दुगुनी श्रद्धा और भक्ति के साथ गणपतिजी की आराधना में जुट जाएंगे। जानिए क्या है विश्व के अन्य स्थानों पर श्रीगणेश की पूजन परंपराएं और उनके विषय में प्रचलित मान्यताएं इन रोचक तथ्यों के आधार पर।
* भगवान श्री गणेश हमारे देश की पूरी लंबाई और चौड़ाई में सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवता के रुप में जाने जाते हैं. विशेष रूप से महाराष्ट्र, आंध्र व तेलंगाना जैसे राज्यों में दस से ग्यारह दिनों तक विशेष उत्सव का आयोजन किया जाता है, लेकिन प्रथम पूज्य होने के कारण हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों में सर्वाधिक पूज्य देवता के रुप में जाने जाते हैं. यही एक ऐसे देवता हैं, जिनकी प्रतिमा हर मंदिर में देखी जा सकती है।
* श्री गणेश त्वरित निर्णय, ज्ञान, घटनाओं के तेज और विस्तृत दृष्टिकोण, बाधा निवारण के प्रतीक के रुप में पूजे जाते हैं. शुभता की आभा जगाने वाले देवता हैं. गणेश देवताओं, गणों, विद्वानों, द्रष्टाओं द्वारा भी पूजनीय हैं।
* श्री गणेश किसी भी नई परियोजना या कार्य के पहले पूजित देवता हैं. इसीलिए बोलचाल की भाषा में काम शुरू करने को काम का श्री गणेश करना कहा जाता है।
* श्री गणेश की ऊँ (ओम) के साथ समानता है. अगर आप ओम के प्रतीक को ध्यान से देखेंगे और अक्षर के ऊपरी भाग पर अपनी नजर ले जाएंगे तो वह हाथी के सिर जैसा दिखता है. पिछला भाग हाथी के दांत जैसा, निचला भाग भगवान गणेश के पेट जैसा और भगवान द्वारा खाये गये मोदक जैसा दिखता है।
* श्री गणेश भगवान का ‘स्वर’ या ‘ओंकार मातृ’ प्रणव मंत्र के उनके निराकार गुण का प्रतीक है. भगवान को ‘ऋद्धि’ और ‘सिद्धि’ देवी के पति के रुप में जाना जाता है, जो अपनी अच्छी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भगवान का स्मरण करके इमानदारी से काम करता है तो उसे सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों सुख प्राप्त होते हैं।
*.श्री गणेश भगवान के परिवार में पत्नी ऋद्धि और सिद्धि रहती हैं. भगवान गणेश के पुत्र के रूप में शुभ व लाभ को लोग जानते हैं. भगवान गणेश को सिद्धि से ‘क्षेम’ और ऋद्धि से ‘लाभ’ नाम के दो पुत्र हुए. लोक-परंपरा में इन्हें ही ‘शुभ-लाभ’ के नाम से जाना जाता है. जिन भक्तों को गणपति का आशीर्वाद मिल जाता है उनके पास भौतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की तरक्की मिलनी तय मानी जाती है।
* श्री गणेश के साथ लक्ष्मी की पूजा का प्राविधान है. गणेश वैदिक काल से प्राचीन भारत के 5 मुख्य देवताओं में से एक हैं. दुनिया के प्रथम धर्मग्रंथ ऋग्वेद में भी भगवान गणेशजी का जिक्र मिलता है. ऋग्वेद में गणपति शब्द आया है. इसके साथ साथ यजुर्वेद में भी इनका उल्लेख है।
* जापान में भगवान गणपतिजी के 250 मंदिर हैं।
* जापान में श्रीगणेश को ‘कंजीटेन’ के नाम से जाना जाता है। वे वहां सौभाग्य और खुशियां लाने वाले देवता है।
* ऑक्सफॉर्ड में छपे एक पेपर के अनुसार श्रीगणेश प्राचीन समय में सेंट्रल एशिया और विश्व की अन्य जगहों पर पूजे जाते थे।
* गणेशजी की मूर्तियां अफगानिस्तान, ईरान, म्यान्मार, श्रीलंका, नेपाल, थायलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, चाइना, मंगोलिया, जापान, इंडोनेशिया, ब्रुनेई, बुल्गारिया, मेक्सिको और अन्य लेटिन अमेरिकी देशों में मिल चुकी हैं।
* श्रीगणेश की मूर्तियों और चित्रों की प्रदर्शनी दुनिया के लगभग सभी खास म्यूजियम और आर्ट गैलरियों में लग चुकी हैं। खासतौर पर यूके, जर्मनी, फ्रांस और स्वीट्जरलैंड में।
* यूरोप के कई देशों, कनाडा और यूएसए में कई सफल बिजनेसमैन, लेखक और आर्टिस्ट अपने ऑफिसों और घरों में भगवान गणेश की प्रतिमाएं और चित्र रखते हैं।
* हाल ही में बुल्गारिया के सोफिया के पास एक गांव में भगवान गणेशजी की एक प्रतिमा जमीन में से मिली। भारतीयों की तरह रोमन लोग श्रीगणेश की पूजा के साथ सभी काम शुरू करते थे।
* आयरिश लोगों का गणेशजी द्वारा भाग्य अच्छा रखने में विश्वास है।
* नई दिल्ली स्थित आयरलैंड एंबेसी में प्रवेश द्वार पर ही श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित की गई है। आयरलैंड की एंबेसी पहली ऐसी एंबेसी है जहां श्रीगणेशजी के आर्शीवाद लिया जाता है।
* यूएसए की सिलीकॉन वेली में श्रीगणेश में सायबरस्पेस टेक्नोलॉजी का देवता माना जाता है।
* श्रीगणेश ज्ञान के देव हैं और उनका वाहन मूषक है। सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी माउस (मूषक) का इस्तेमाल करते हैं। इसके माध्यम से ही उनके विचार और आइडिया मूर्त रूप लेते हैं। इस वजह से कम्प्यूटर इंडस्ट्री ने गणेशजी को सिलीकॉन वेली में मुख्य देवता माना।
* गणेशजी ग्रीक सिक्के पर भी हैं। हाथी के सिर वाले भगवानों की तस्वीरें भारतीय-ग्रीक सिक्कों पर मिलीं। ये सिक्के करीबी प्रथम और तीसरी सेंचुरी बीसी के आसपास के थे।
* इंडोनेशिया के करेंसी के नोटों पर भी श्रीगणेश की तस्वीर होती है।
* वैदिक मान्यताओं के अनुसार, श्रीगणेशजी करीब 10,000 साल पहले प्रकट हुए। वेदों में उन्हें ‘नमो गणेभ्यो गणपति’ के साथ पुकारा गया। वे मुश्किलें खत्म करने वाले देवता हैं।
* महाभारत में उनके स्वरूप और उपनिषदों में उनकी शक्ति का वर्णन किया गया है।
* गणेशजी के 12 नाम सर्वाधिक प्रचलित हैं, जिनमें सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र, विघ्नराज, द्वैमातुर, गणाधिप, हेरम्ब, गजानन. इसके साथ साथ इनके कई अन्य नाम भी हैं, जिसमें चतुर्बाहु, अरुणवर्ण, गजमुख, अरण-वस्त्र, त्रिपुण्ड्र-तिलक, मूषकवाहन शामिल हैं।
* आधुनिक भारत में घर-घर होने वाली गणेश चतुर्थी की पूजा को सार्वजनिक उत्सव में बदलने और इसे एक प्रमुख उत्सव बनाने के लिए लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक आगे आए. मुख्य रूप से महाराष्ट्र के पूरे क्षेत्र में यह बड़े उत्सव के साथ मनाया जाता है. इसकी शुरुआत बालगंगाधर तिलक द्वारा विदेशी अंग्रजी सत्ता के खिलाफ लड़ने और स्वराज प्राप्त करने के लिए महाराष्ट्र के लोगों को एकजुट करने के लिए शुरू की गयी थी. बाद में धार्मिक तौर पर पूरे देश में मनाया जाने लगा।
”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”