तपिश भरी गर्मी से परेशान हो चुके लोगों को मानसून का बेसब्री से इंतजार है. कुछ लोग केवल गर्मी से राहत पाने के लिए बारिश के मौसम का इंतजार कर रहे हैं, तो कुछ लोगों को मानसून बेहद सुहाना लगता है. जिसको वो जी भरकर इन्जॉय करना चाहते हैं. लेकिन मानसून को इन्जॉय करने के लिए आपका सेहतमंद रहना भी जरूरी है.
दरअसल, मानसून कभी अकेला नहीं आता, वो अपने साथ संक्रमण और एलर्जी जैसी दिक्कतें भी लाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि गर्मी के मौसम में बरकरार तपिश, ठंडे और गीले मौसम में तब्दील हो जाती है. मानसून के आने से पहले ही अपनी बॉडी को मौसम के बदलाव के लिए तैयार किया जाये, जिससे आप किसी भी तरह के इंफेक्शन, एलर्जी और बीमारी से खुद को बचाने में कामयाब हो सकें. इसके लिए ये जानना जरूरी है कि आपको किन चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है।
बारिश जहां सारी धरा को खूबसूरत बनाती है वहीं कई बीमारियों को आमंत्रित भी करती है। इस मास में खाने-पीने से जुड़ी कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यकता होता है, नहीं तो बीमार होने का खतरा बना रहता है। आषाढ़ मास दो ऋतुओं का संधिकाल होता है। ये 2 ऋतुएं हैं ग्रीष्म और वर्षा। ये समय बीमारियों को जन्म देने वाला होता है क्योंकि जब बारिश का जल पेयजल स्त्रोतों में मिलता है तो वह दूषित हो जाता है। ये पानी पीने से पेट से संबंधित बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। इसी समय हैजा व अन्य जानलेवा बीमारियां का प्रकोप बढ़ जाता है। इसलिए इस समय उबला हुआ पानी पीना चाहिए। इस ऋतु में गेहूं, मूंग, दही, अंजीर, छाछ, खजूर आदि का सेवन करना लाभदायक होता है। इससे पेट से संबंधित रोग होने की संभावना बहुत कम रहती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दौरान सूर्य मिथुन राशि में रहता है इस वजह से रोगों का संक्रमण ज्यादा बढ़ता है। बारिश का पानी ग्रीष्म ऋतु से प्रभावित जमीन पर पड़ता है, जिससे दूषित भाप बनती है। जिससे बीमारियां फैलती हैं। सूर्य कर्क राशि में 21 जून को आ जाता है। इस दिन से दक्षिणायन के साथ वर्षा ऋतु भी शुरू हो गई है। अगस्त तक वर्षा ऋतु रहेगी। इस दौरान जल से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए पानी उबालकर पीएं।
वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य-सुरक्षा
वर्षा ऋतु का नमीयुक्त वातावरण जठराग्नि को मंद कर देता है। शरीर में पित्त का संचय व वायु का प्रकोप हो जाता है, जिससे वात-पित्त जनित व अजीर्णजन्य रोगों का प्रादुर्भाव होता है। अपनी पाचनशक्ति के अनुकूल मात्रा में हलका सुपाच्य आहार लेना और शुद्ध पानी का उपयोग करना – इन 2 बातों पर ध्यान देने मात्र से वर्षा ऋतु में अनेक बीमारियों से बचाव हो जाता है । शाम का भोजन 5 से 7 बजे के बीच कर लें। इससे भोजन का पाचन शीघ्र होता है। इस ऋतु में शरीर की रक्षा करने का एक ही मूलमंत्र है कि पेट और शरीर को साफ रखा जाय अर्थात् पेट में अपच व कब्ज न हो और त्वचा साफ और स्वस्थ रखी जाय। आयुर्वेद के अनुसार कुपित मल अनेक प्रकार के रोगों को जन्म देता है । इससे गैस की तकलीफ, पेट फूलना, जोड़ों का दर्द, दमा, गठिया आदि की शिकायत हो जाती है । अशुद्ध और दूषित जल का सेवन करने से चर्मरोग, पीलिया, हैजा, अतिसार जैसे रोग हो जाते हैं ।
बारिश में होनेवाली बीमारियाँ व उनका उपचार
(1) आँत की सूजन : गंदे पानी तथा दूषित खाद्य पदार्थों के सेवन से यह रोग फैलता है । इसमें उलटी, पतले दस्त, बुखार, रसक्षय (शरीर में पानी की कमी) इत्यादि लक्षण उत्पन्न होते हैं ।
प्राथमिक उपचार : सफाई का ध्यान रखें। भोजन में चावल का पानी (माँड़) तथा दही में समान भाग पानी मिला के मथकर बनाया हुआ मट्ठा लें। नमक व शक्कर मिलाया हुआ पानी बार-बार पियें, जिससे रसक्षय (डिहाइड्रेशन) न होने पाये। इसमें नींबू भी मिला सकते हैं। मूँग की दाल की खिचड़ी में देशी घी अच्छी मात्रा में डालकर खायें। अच्छी तरह उबाला हुआ पानी पियें। भोजन ताजा, सुपाच्य लें।
(2) दस्त : उपरोक्त अनुसार ।
(3) दमा: वर्षा ऋतु में बादलों के छा जाने पर दमे के मरीजों को श्वास लेने में अत्यधिक पीड़ा होती है । उस समय 20 मि.ली. तिल का तेल गर्म कर पियें । तिल या सरसों के गर्म तेल में थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर छाती व पीठ पर मालिश करें । फिर गर्म रेती की पोटली से सेंक करें ।
(4) सर्दी, खाँसी, ज्वर: वर्षाजन्य सर्दी, खाँसी, जुकाम, ज्वर आदि में अदरक व तुलसी के रस में शहद मिलाकर लेने से व उपवास रखने से आराम मिलता है ।
जठराग्नि को प्रदीप्त करने के उपाय
* भोजन में अदरक, हींग, अजवाइन, काली मिर्च, मेथी, राई, पुदीना आदि का विशेष उपयोग करें । तिल का तेल वात-रोगों का शमन करता है ।
* भोजन में अदरक व नींबू का प्रयोग करें । नींबू वर्षाजन्य रोगों में बहुत लाभदायी है ।
* 100 ग्राम हरड़ चूर्ण में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिला के रख लें । दो-ढाई ग्राम रोज सुबह ताजे जल के साथ लेना हितकर है ।
* हरड़ तथा सोंठ को समभाग मिलाकर 3-4 ग्राम मिश्रण 5 ग्राम गुड़ के साथ सेवन करने से जठराग्नि निरंतर प्रदीप्त रहती है ।
* वर्षाजन्य व्याधियों से रक्षा व रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाने हेतु गोमूत्र सर्वोपरि है । सूर्योदय से पूर्व 20 से 30 मि.ली. ताजा गोमूत्र 8 बार महीन सूती वस्त्र से छानकर पीने से अथवा 20 से 25 मि.ली. गोझरण अर्क पानी में मिलाकर पीने से शरीर के सभी अंगों की शुद्धि होकर ताजगी, स्फूर्ति व कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
सावधानियाँ : वर्षा ऋतु में पानी उबालकर पीना चाहिए या पानी में फिटकरी का टुकड़ा घुमायें, जिससे गंदगी नीचे बैठ जायेगी। शाम को संध्या के समय घर में अँधेरा करने से मच्छर बाहर भाग जाते हैं । थोड़ा-बहुत धूप-धुआँ कर सकते हैं । और सुबह घर में अँधेरा होने से मच्छर अंदर घुसते हैं । उस समय उजाला करने से मच्छरों का प्रवेश रुकता है । गेंदे के फूलों के पौधे का गमला दिन में बाहर व संध्या को कमरे में रखें । गेंदे के फूलों की गंध से भी मच्छर भाग जाते हैं और मच्छरदानी आदि से भी मच्छरों से बचें, जैसे साधक अहंकार से बचता है। इन दिनों में ज्यादा परिश्रम या व्यायाम नहीं करना चाहिए । दिन में सोना, बारिश में ज्यादा देर तक भीगना, रात को छत पर अथवा खुले आँगन में सोना, नदी में स्नान करना और गीले वस्त्र जल्दी न बदलना हानिकारक होता है।
गीले कपड़े पहनने से बचे
बारिश में सूर्य बादलों से ढका रहता है। कपड़े सूखाने में दिक्कत होती है। हम ऐसे ही कपड़े पहनकर काम पर निकल जाते हैं। गीले कपड़े पहनने से बचना चाहिए। ताकि फंगल या बैक्ट्रियल इंफेक्शन न हो। बारिश के मौसम में हल्की ठंड भी रहती है। गर्म पानी से नहाना सही रहता है। वात और बाकी दोषों का प्रकोप न हो। ऐसे में आयुर्वेदिक दवाइयों के अलावा पंचकर्म थेरेपी की मदद ली जा सकती है। ‘स्नेहन’ और ‘स्वेदन’ के साथ ‘बस्ती’ थेरेपी करवाई जा सकती है। फायदा यह है कि यह वात के दोष को कम करता है। इस समय कुछ लोगों का पित्त भी बिगड़ा रहता है।
खाने-पीने का रखें विशेष ख्याल
हमेशा ताजे फल, सब्जी और घर में बना ही खाना चाहिए। बासी खाने से बचे। पानी उबाल और छानकर पीना ज्यादा बेहतर होगा। गर्म पानी से शरीर में जितने भी दोष होते हैं वह दूर होते हैं और अग्नि की शक्ति धीरे – धीरे बढ़ती है। इससे हम जो भी आहार ग्रहण करते हैं, उसे पचने में कोई दिक्कत नहीं होती। इस मौसम में फंगल इंफेक्शन के खतरे भी ज्यादा होते हैं। रोज शरीर पर तेल लगाना चाहिए। प्रतिदिन मुश्किल हो तो हफ्ते में एक बार नीम और तिल का मिक्स तेल जरूर लगाएं।
क्या खाएं क्या ना खाएं
सावन का मौसम खुशगवार होता हैl चारों तरफ फैली हरियाली और रिमझिम गिरती फुहारे मन को प्रसन्न चित्त कर देती है मौसम अच्छा होने के कारण खाने पीने की चीजें मन को आकर्षित करती हैं, पर आयुर्वेद के अनुसार सावन के महीने (वर्षा ऋतु) में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए l अगर आप कुछ भी कभी भी खा लेते हैं तो जरा संभल कर, यह आपकी सेहत को बिगाड़ सकता हैl भोजन संबंधी कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखें l
सावन (वर्षा ऋतु)में भोजन कैसा हो
* आयुर्वेद के अनुसार हमें ताजा, सात्विक और सुपाच्य भोजन करना चाहिएl
* बांसी, गरिष्ठ और ज्यादा तला भुना भोजन इस मौसम में नहीं करना चाहिएl विशेषकर रात्रि में हल्का भोजन ही करना चाहिएl
सब्जियां कौन सी खाएं
* लौकी, तोरई, परवल, कुंदरू, टिंडे, कद्दू आदि सब्जियां खाना इस मौसम में लाभप्रद हैl
* पुदीना धनिया की चटनी खाएं जो भोजन के स्वाद को बढ़ाती है और भोजन को हजम करने में भी मददगार होती है l
* मिट्टी के अंदर होने वाली सब्जियों को अच्छी तरह धोकर खाना चाहिए जैसा आलू, अदरक, अरबी, गाजर वगैरहl
* हरी पत्तेदार सब्जियों को भी नमक के पानी से धोकर खाया जाना चाहिए क्योंकि बारिश में पत्तों पर कीट पैदा हो जाते है, जिन्हें देख पाना कई बार सम्भव नहीं हो पाता, अतः साग का उपयोग कम से कम करना चाहिए lपालक, करेला, साग आदि का सेवन नहीं करना चाहिएl
* फलों में सेब, केला, जामुन, नाशपाती, अनार, आम का सेवन करेंl आम खाने के बाद दूध का सेवन फायदेमंद है पर मैंगो शेक ना पिए यह गरिष्ठ होता है और देर से पचता हैl
सलाद में खीरा, ककड़ी खा सकते हैं पर इसके साथ दही का सेवन ना करेंl
* खाना खाने के पश्चात छाछ का सेवन करेंl
* इस मौसम में भुट्टा खाना बहुत ही फायदेमंद होता है l
* खट्टे पदार्थ जैसे इमली, अचार, खट्टे फलों का सेवन कम से कम करें।
* पित्त प्रवृत्ति वाले लोग भोजन के पश्चात हरण का सेवन करेंl एक चम्मच हरण में एक चौथाई चम्मच सेंधा नमक मिलाकर गुनगुने पानी के साथ लेने से भोजन डाइजेस्ट हो जाता हैl
* इस मौसम में पानी पीने का विशेष ध्यान रखें फ्रिज का ठंडा पानी न पीए lमौसम में नमी के कारण प्यास कम लगती है, पर पानी 7-8 गिलास जरूर पिये l
* डिब्बा बंद जूस की जगह घर का बना जूस और सूप पियें। ज़्यादा चाय पीने की जगह हर्बल चाय एक अच्छा विकल्प है।
ये चीजें ना खाएं
* कफ प्रवृत्ति वाले लोग दही का सेवन बिल्कुल ना करेंl
* कटे-फटे फल और सब्जियों का सेवन बिल्कुल ना करेंl
* खरबूजा, तरबूज आदि फल न खाएं l खट्टी चीजें न खाएं।
* सब्जी में बैगन, पालक, साग, करेला न खाए।
इन बातों का रखें ख्याल
* शरीर पर तेल की मालिश करें।
उसके एक घंटे बाद गर्म पानी से नहाएं ।
* हल्का गुनगुना पानी पीएं।
* ठंडा पानी नुकसान कर सकता है।
* हल्का भोजन करें ज्यादा तैलीय खाने से बचें ।
सावधानी अवश्य बरते और सावन के मौसम का भरपूर आनंद लेंl