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हिंदू कालगणना के अनुसार हिंदू वर्ष का चैत्र महीना बहुत ही खास होता है क्योंकि यह माह नववर्ष का पहला महीना होता है। चैत्र माह से नववर्ष आरंभ हो जाता है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि हिंदू नववर्ष का पहला दिन माना जाता है। चैत्र प्रतिपदा तिथि को गुड़ी पड़वा भी कहते हैं। इसके अलावा इस तिथि पर चैत्र नवरात्रि भी आरंभ हो जाते हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को वर्ष प्रतिपदा, उगादि और गुड़ी पड़वा कहा जाता है। वैसे तो पूरी दुनिया अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार नया साल जनवरी के महीने से शुरू हो जाता है, लेकिन वैदिक हिंदू परंपरा और सनातन काल गणना में चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर नववर्ष की शुरुआत होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन ब्रह्राजी ने समस्त सृष्टि की रचना की थी इसी कारण से हिंदू मान्यताओं में नए वर्ष का शुभारंभ होता है। आइए विस्तार से जानते हैं हिंदू नववर्ष से जुड़ी कई जानकारियां इतिहास महत्त्व शुभ मुहूर्त और पूजा विधि विधान….
वैदिक पंचांग के अनुसार हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। साथ ही इस दिन से ही चैत्र नवरात्रि और गुड़ी पड़वा पर्व भी मनाया जाता है। आपको बता दें कि इस साल गुड़ी पड़वा का पर्व 2 अप्रैल को मनाया जाएगा। ये पर्व गोवा, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कई राज्यों में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा को फसल दिवस के रूप में मनाते हैं। इसके साथ ही गुड़ी पड़वा को भारत के दक्षिणी प्रांतों में उगादी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व और शुभ मुहूर्त…
गुड़ी पड़वा का पर्व चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन से हिन्दू नव वर्ष आरंभ होता है। इसे वर्ष प्रतिपदा या उगादि (ugadi) भी कहा जाता है। गुड़ी का अर्थ है विजय पताका, तो वहीं पड़वा प्रतिपदा तिथि को कहा जाता है। इसीलिये इस दिन लोग घरों में गुड़ी फहराते हैं। आम के पत्तों की बंदनवार से घरों को सजाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर भी शुरु होता है। अत: इस तिथि को ‘नवसंवत्सर’ यानि नए साल के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि का आरंभ भी होता है। यह आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र में विशेष रूप से लोकप्रिय पर्व है। कहा जाता है कि महाभारत में युधिष्ठिर का राज्यरोहण इसी दिन हुआ था और इसी दिन विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर विक्रम संवत का प्रवर्तन किया था। किसान इसे रबी के चक्र के अंत के तौर पर भी मनाते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसन्त ऋतु में आती है। इस ऋतु में सम्पूर्ण सृष्टि में सुन्दर छटा बिखर जाती है। विक्रम संवत के महीनों के नाम आकाशीय नक्षत्रों के उदय और अस्त होने के आधार पर रखे गए हैं। सूर्य, चन्द्रमा की गति के अनुसार ही तिथियाँ भी उदय होती हैं। मान्यता है कि इस दिन दुर्गा जी के आदेश पर श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इस दिन दुर्गा जी के मंगलसूचक घट की स्थापना की जाती है। धार्मिक दृष्टि से फल, फूल, पत्तियाँ, पौधों तथा वृक्षों का विशेष महत्व है। चैत्र मास में पेड़-पौधों पर नई पत्तियों आ जाती हैं तथा नया अनाज भी आ जाता है जिसका उपयोग सभी देशवासी वर्ष भर करते हैं, उसको नजर न लगे, सभी का स्वास्थ्य उत्तम रहे, पूरे वर्ष में आने वाले सुख-दुःख सभी मिलकर झेल सकें ऐसी कामना ईश्वर से करते हुए नए वर्ष और नए संवत्सर के स्वागत का प्रतीक है गुड़ी पड़वा इस बार ये तिथि 2 अप्रैल, शनिवार को है। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri 2022) का भी आरंभ होता है। उज्जैन. देश के अलग-अलग हिस्सों में हिंदू नववर्ष अलग-अलग नामों से मनाया जाता है जैसे महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa 2022) और दक्षिण भारत में उगादि (Ugadi 2022) आदि।
गुड़ी पड़वा या नववर्ष की शुरुआत का महत्व)
* नववर्ष को भारत के प्रांतों में अलग-अलग तिथियों के अनुसार मनाया जाता है। ये सभी महत्वपूर्ण तिथियाँ मार्च और अप्रैल के महीने में आती हैं। इस नववर्ष को प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। फिर भी पूरा देश चैत्र माह से ही नववर्ष की शुरुआत मानता है और इसे नव संवत्सर के रूप में जाना जाता है। गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी (ugadi), चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है। इस विक्रम संवत में नववर्ष की शुरुआत चंद्रमास के चैत्र माह के उस दिन से होती है जिस दिन ब्रह्म पुराण अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की शुरुआत की थी।
* इसी दिन से सतयुग की शुरुआत भी मानी जाती है।
* इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था।
* इसी दिन से नवरात्र की शुरुआत भी मानी जाती है।
* इसी दिन को भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ था और पूरे अयोध्या नगर में विजय पताका फहराई गई थी।
* इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।
* ज्योतिषियों के अनुसार इसी दिन से चैत्री पंचांग का आरम्भ माना जाता है, क्योंकि चैत्र मास की पूर्णिमा का अंत चित्रा नक्षत्र में होने से इस चैत्र मास को नववर्ष का प्रथम दिन माना जाता है।
* इस दिन बर्तन पर भी स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर रखा जाता है।
* लोग इस दिन पारंपरिक वेषभूषा धारण करते हैं।
* माना जाता है कि गुड़ी लगाने से घर में समृद्धि आती है।
* गुड़ी पाड़वा के दिन सूर्यदेव की आराधना को महत्व दिया जाता है।
* सूर्यदेव के अलावा इस दिन सुंदरकांड, रामरक्षास्त्रोत, देवी भगवती के मंत्रों का जाप भी किया जाता है।
* किसान रबी की फ़सल की कटाई के बाद पुनः बुवाई करने की ख़ुशी में इस त्यौहार को मनाते हैं। अच्छी फसल की कामना के लिए इस दिन वे खेतों को जोतते भी हैं।
गुड़ी पड़वा 2022 तिथि, मुहूर्त
गुड़ी पड़वा 2022 तिथि : 2 अप्रैल, 2022 (शनिवार) प्रतिपदा तिथि आरम्भ अप्रैल 1, 2022 को 11:56:15 सेप्रतिपदा तिथि तिथि समाप्तअप्रैल 2, 2022 को 12:00:31 पर
हिंदू नववर्ष से जुड़ी बातें
आप सभी के मन में यह सवाल उठता होगा कि चैत्र महीना जोकि हिंदू नववर्ष का पहला महीना होता है यह होली के त्योहार के बाद शुरू हो जाता है। यानि फाल्गुन पूर्णिमा तिथि के बाद चैत्र कृष्ण प्रतिपदा लग जाती है फिर भी उसके 15 दिन बाद नया हिंदू नववर्ष मनाया जाता है। आखिर इसके पीछे क्या तर्क है। दरअसल चैत्र का महीना होली के दूसरे दिन ही शुरू हो जाता है,लेकिन यह कृष्ण पक्ष होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार कृष्ण पक्ष पूर्णिमा से अमावस्या तिथि के 15 दिनों तक रहता है और कृष्ण पक्ष के इन 15 दिनों में चंद्रमा धीरे-धीरे लगातार घटने के कारण पूरे आकाश में अंधेरा छाने लगता है। सनातन धर्म का आधार हमेशा अंधेरे से उजाले की तरफ बढ़ने का रहा है यानि “तमसो मां ज्योतिर्गमय्”। इसी वजह से चैत्र माह के लगने के 15 दिन बाद जब जब शुक्ल पक्ष लगता और प्रतिपदा तिथि से हिंदू नववर्ष मनाया जाता है। अमावस्या के अगले दिन शुक्ल पक्ष लगने से चंद्रमा हर एक दिन बढ़ता जाता है जिससे अंधकार से प्रकाश होता जाता है। चैत्र माह की प्रदिपदा तिथि पर ही महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन,माह और वर्ष की गणना करते हुए हिंदू पंचांग की रचना की थी। इस तिथि से ही नए पंचांग प्रारंभ होते हैं और वर्ष भर के पर्व, उत्सव और अनुष्ठानों के शुभ मुहूर्त निश्चित होते हैं।
*.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इस वजह से भी चैत्र प्रतिपदा तिथि का इतना महत्व है।
*.इसी दिन से नया संवत्सर भी आरंभ हो जाता है इसलिए इस तिथि को नवसंवत्सर भी कहते हैं।
* इसी के साथ ये भी मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि पर भगवान राम ने वानरराज बाली का वध करके वहां की प्रजा को मुक्ति दिलाई। जिसकी खुशी में प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज फहराए थे।
*.अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास मार्च या अप्रैल के महीने में आता है इस दिन को महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा तथा आंध्र प्रदेश में उगादी पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
* चैत्र प्रतिपदा के दिन महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत की शुरुआत, भगवान झूलेलाल की जयंती, चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ, गुड़ी पड़वा,उगादी पर्व मनाए जाते हैं।
* विक्रम संवत 2079 शनिवार से शुरू हो रहा है और इसके राजा शनि होंगे। इस वर्ष का मंत्री मण्डल के पद इस प्रकार है। राजा-शनि, मंत्री-गुरु, सस्येश-सूर्य,दुर्गेश-बुध,धनेश-शनि, रसेश-मंगल,धान्येश-शुक्र,नीरसेश-शनि,फलेश-बुध,मेघेश-बुध होंगे। साथ ही संवत्सर का निवास कुम्हार का घर और समय का वाहन घोड़ा होगा।
*.चैत्र प्रतिपदा नवरात्रि पर शक्ति की आराधना और साधना की जाती है। इसमें मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है। नवमी तिथि पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्मोत्सव और फिर चैत्र पूर्णिमा पर भगवान राम के सबसे प्रिय भक्त हनुमान की जयंती मनाई जाती है।
*.शास्त्रों के अनुसार सभी चारों युगों में सबसे पहले सतयुग का प्रारम्भ इसी तिथि यानी चैत्र प्रतिपदा से हुआ था। यह तिथि सृष्टि के कालचक्र प्रारंभ और पहला दिन भी माना जाता है।
*.महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना भी भी चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि पर किया गया था।
गुड़ी पड़वा से जुडी पौराणिक कथा
दोस्तों, दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा का त्यौहार काफी लोकप्रिय है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक सतयुग में दक्षिण भारत में राजा बालि का शासन था। जब भगवान श्री राम को पता चला की लंकापति रावण ने माता सीता का हरण कर लिया है तो उनकी तलाश करते हुए जब वे दक्षिण भारत पहुंचे तो यहां उनकी उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव ने श्रीराम को बालि के कुशासन से अवगत करवाते हुए उनकी सहायता करने में अपनी असमर्थता जाहिर की। इसके बाद भगवान श्री राम ने बालि का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को उसके आतंक से मुक्त करवाया। मान्यता है कि वह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का था। इसी कारण इस दिन गुड़ी यानि विजय पताका फहराई जाती है।
एक अन्य कथा
एक अन्य कथा के मुताबिक शालिवाहन ने मिट्टी की सेना बनाकर उनमें प्राण फूंक दिये और दुश्मनों को पराजित किया। इसी दिन शालिवाहन शक का आरंभ भी माना जाता है। इस दिन लोग आम के पत्तों से घर को सजाते हैं। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व महाराष्ट्र में इसे लेकर काफी उल्लास होता है।
गुड़ी पाड़वा के प्रारम्भ होने पर क्या करें?
* नया संवत्सर प्रारम्भ होने पर भगवान की पूजा करके प्रार्थना करनी चाहिए।
* दुर्गा जी की पूजा के साथ नूतन संवत् की पूजा करें।
* घर को ध्वजा, पताका, तोरण, बंदनवार, फूलों आदि से सजाएँ व अगरबत्ती, धूप आदि से सुगंधित करें।
* दिनभर भजन-कीर्तन कर शुभ कार्य करते हुए आनंदपूर्वक दिन बिताएँ।
* कलश स्थापना और नए मिट्टी के बरतन में जौ बोए और अपने घर में पूजा स्थल में रखें।
* स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए नीम की कोंपलों के साथ मिश्री खाने का भी विधान है। इससे रक्त से संबंधित बीमारी से मुक्ति मिलती है।
* सभी जीव मात्र तथा प्रकृति के लिए मंगल कामना करें।
* नीम की पत्तियाँ खाएँ भी और खिलाएँ भी।
* ब्राह्मण की अर्चना कर लोकहित में प्याऊ स्थापित करें।
* इस दिन नए वर्ष का पंचांग या भविष्यफल ब्राह्मण के मुख से सुनें।
* इस दिन से दुर्गा सप्तशती या रामायण का नौ-दिवसीय पाठ आरंभ करें।
* आज से परस्पर कटुता का भाव मिटाकर समता-भाव स्थापित करने का संकल्प लें।
गुड़ी पाड़वा पर्व कैसे मनाते हैं?
रात्रि के अंधकार में नववर्ष का स्वागत नहीं होता। नया वर्ष सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है।
* हिंदू लोग इस दिन गुड़ी का पूजन करते हैं
* नववर्ष के ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण कर दिया जाता है।
* घर को ध्वज, पताका और तोरण से सजाया जाता है।
* पर्व की खुशी में विभिन्न क्षेत्रों में विशेष प्रकार के व्यंजन भी तैयार किये जाते हैं।
* पूरनपोली नाम का मीठा व्यंजन इस पर्व की खासियत है। महाराष्ट्र में श्रीखंड भी विशेष रूप से बनाया जाता है। वहीं आंध्रा में पच्चड़ी को प्रसाद रूप मे बनाकर बांटने का प्रचलन भी गुड़ी पाड़वा के पर्व पर है।
* बेहतर स्वास्थ्य की कामना के लिये नीम की कोपलों को गुड़ के साथ खाने की परंपरा भी है। मान्यता है कि इससे सेहत ही नहीं बल्कि संबंधों की कड़वाहट भी मिठास में बदल जाती है।
* ब्राह्मण, कन्या, गाय, कौआ और कुत्ते को भोजन कराया जाता है।
* सभी एक-दूसरे को नववर्ष की बधाई देते हैं। एक दूसरे को तिलक लगाते हैं। मिठाइयाँ बाँटते हैं। नए संकल्प लिए जाते हैं।
गुड़ी पड़वा के पूजन-मंत्र
गुड़ी पड़वा पर पूजा के लिए आगे दिए हुए मंत्र पढ़े जा सकते हैं। कुछ लोग इस दिन व्रत-उपवास भी करते हैं।
प्रातः व्रत संकल्प: ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे अमुकनामसंवत्सरे चैत्रशुक्ल प्रतिपदि अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकनामाऽहं प्रारभमाणस्य नववर्षस्यास्य प्रथमदिवसे विश्वसृजः श्रीब्रह्मणः प्रसादाय व्रतं करिष्ये।
शोडषोपचार पूजा संकल्प: ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे अमुकनामसंवत्सरे चैत्रशुक्ल प्रतिपदि अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकनामाऽहं प्रारभमाणस्य नववर्षस्यास्य प्रथमदिवसे विश्वसृजो भगवतः श्रीब्रह्मणः षोडशोपचारैः पूजनं करिष्ये।
पूजा के बाद व्रत रखने वाले व्यक्ति को इस मंत्र का जाप करना चाहिए: ॐ चतुर्भिर्वदनैः वेदान् चतुरो भावयन् शुभान्।
ब्रह्मा मे जगतां स्रष्टा हृदये शाश्वतं वसेत्।।
विभिन्न स्थलों में गुड़ी पड़वा पर्व का आयोजन
देश में अलग-अलग जगहों पर गुड़ी पड़वा पर्व को भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है।
* गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो नाम से मनाता है।
* कर्नाटक में यह पर्व युगाड़ी नाम से जाना जाता है।
* आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में गुड़ी पड़वा को उगाड़ी नाम से मनाते हैं।
* कश्मीरी हिन्दू इस दिन को नवरेह के तौर पर मनाते हैं।
* मणिपुर में यह दिन सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा कहलाता है।
* इस दिन चैत्र नवरात्रि भी आरम्भ होती है।
गुड़ी पड़वा से जुडी खास बातें
* गुड़ी पड़वा को महाराष्ट्रियन लोग नये साल की शुरुआत मानते हैं। इस दिन लोग नयी फसल की पूजा करते हैं।
* गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घरों की विशेष साफ-सफाई करने के बाद घरों में रंगोली बनाते हैं। आम के पत्तों से बंदनवार बनाकर सभी घरों के आगे लगाते हैं। महिलाएं घरों के बाहर सुदंर और आकर्षक गुड़ी लगाती हैं।
* गुड़ी पड़वा के मौके पर खासतौर पर पूरन पोली नामक पकवान बनता है। यानि मीठी रोटी, इसे गुड और नीम, नमक, इमली के साथ बनाया जाता है।
* गुड़ी पड़वा के दिन ऐसा माना जाता है कि गुड़ी को घर में लाने से बुरी आत्मा दूर रहती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है।
* पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन रावण को हराने के बाद भगवान राम अयोध्या लौटे थे।
* विक्रम संवत हिंदू पंचांग के अनुसार इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था।
* वीर मराठा छत्रपति शिवाजी जी ने युद्ध जीतने के बाद पहली बार गुड़ी पड़वा को मनाया था। इसी के बाद हर साल मराठी लोग इस परंपरा का अनुसरण करते हैं।
* अधिकतर लोग इस दिन कड़वे नीम की पत्तियों को खाकर दिन की शुरूआत करते हैं। कहा जाता है कि गुड़ी पड़वा पर ऐसा करने से खून साफ होता है और शरीर मजबूत बनता है।
* इस दिन को विभिन्न राज्यों में उगादी (ugadi), युगादी, छेती चांद आदि अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।
* इस दिन सोना, वाहन या मकान की खरीद या किसी काम की शुरुआत करना शुभ माना जाता है।
गुड़ी पड़वा का शुभ मुहूर्त
तिथि- 2 अप्रैल 2022, शनिवार
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 1 अप्रैल, शुक्रवार सुबह 11 बजकर 54 मिनट से शुरू
प्रतिपदा तिथि समाप्त- 2 अप्रैल, शनिवार को रात 11 बजकर 59 मिनट तक। इस साल गुड़ी पड़वा का पर्व 2 अप्रैल को मनाया जाएगा।
जानिए गुड़ी पड़वा का महत्व
गुड़ी पड़वा में ‘गुड़ी’ शब्द का अर्थ ‘विजय पताका’ और पड़वा का अर्थ प्रतिपदा तिथि से है। आपको बता दें कि चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गुड़ी पड़वा पर्व के मौके पर प्रत्येक घर में विजय के प्रतीक स्वरूप गुड़ी सजाई जाती है। कहा जाता है कि इस दिन अपने घर को सजाने और गुड़ी फहराने से घर में सुख समृद्धि आती है और बुराइयों का नाश होता है। वहीं कुछ लोग इस दिन नीम की पत्तियां भी खाते हैं। मान्यता ये है कि इस समय प्रकृति में बदलाव होता है, इसलिए नीम की पत्तियां खाने से खून साफ होता है। शरीर रोगों के संक्रमण से बचा रहता है और अंदर से मजबूत बनता है।
ये बन रहे हैं विशेष योग
वैदिक पंचांग के अनुसार इस साल गुड़ी पड़वा पर इंद्र योग, अमृत सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है।
* अमृत सिद्धि योग एवं सर्वार्थ सिद्धि योग 1 अप्रैल को सुबह 10 बजकर 41 मिनट से 2 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 11 मिनट तक हैं।
* वहीं 2 अप्रैल को इंद्र योग सुबह 8 बजकर 32 मिनट तक है।
* वहीं नक्षत्र की बात करें तो, रेवती नक्षत्र गुड़ी पड़वा को दिन में 11 बजकर 22 मिनट तक है। उसके बाद अश्विनी नक्षत्र शुरू हो जाएगा। इसलिए इस त्योहार का महत्व और भी बढ़ गया है।
आज से नवरात्र का पर्व प्रारंभ, माता रानी को प्रसन्न करने के लिए जानें पूजा विधि, मंत्र, आरती और कथा
चैत्र नवरात्रि का पावन पर्व आज यानि 2 अप्रैल से प्रारंभ हो गया है। इन 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा का विधान है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है। मां शैलपुत्री को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करुणा और ममता का स्वरूप माना जाता है। अगर आप भी नवरात्रि का व्रत रख रहे हैं तो यहां जानें तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त।
भारत में चैत्र नवरात्रि का पावन पर्व हर्षोल्लास और श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाता है। इन 9 दिनों में मां शक्ति के नौ स्वरूपों की पूजा विधि अनुसार की जाती है। वैसे तो वर्ष में कुल 4 बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्रि का महत्व अधिक है। मान्यताओं के अनुसार, देवी दुर्गा की विधि अनुसार पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है। मां शैलपुत्री को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करुणा और ममता का स्वरूप माना जाता है। कहा जाता है कि जो भक्त विधि अनुसार और श्रद्धा भाव से मां दुर्गा की आराधना करता है उसे यश, वैभव, सुख, समृद्धि, ज्ञान और स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। देवी दुर्गा की पूजा करने से शत्रुओं का विनाश होता है और हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। अगर आप भी देवी दुर्गा को समर्पित चैत्र नवरात्रि का व्रत रख रहे हैं तो यहां जानें इस वर्ष चैत्र नवरात्रि कब से प्रारंभ हो रही है। इसके साथ इस लाइव ब्लॉग के जरिए चैत्र नवरात्रि की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, उपाय, मंत्र, आरती आदि नोट कर लें।
नवरात्र पर बन रहे हैं यह शुभ मुहूर्त
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त: सुबह 6:03 से 8:31 तक
अभिजीत मुहूर्त: 12:13 am से 12:51 pm तक
विजय मुहूर्त: 02:29 pm से 03:17 pm तक
गोधुली मुहूर्त: 05:54 pm से 06:28 pm तक
ब्रह्म मुहूर्त: 04:38 am से 05:24 am तक
अमृत काल: 08:53 am से 10:32 am तक
मां दुर्गा जी की आरती
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
मांग सिंदूर विराजत, टीको जगमद को।
उज्जवल से दो नैना चन्द्रवदन नीको।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी।।
ओम जय अम्बे गौरी
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति।।
ओम जय अम्बे गौरी।
शुंभ निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
ब्रम्हाणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शव पटरानी।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
तुम ही जग की माता, तुम ही भरता।
भक्तन की दुख हरता सुख संपत्ति करता।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।।
ओम जय अम्बे गौरी।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे।।
ओम जय अम्बे गौरी।।
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
चैत्र नवरात्रि पर क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त
आज से चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गई है। इस दिन सुबह 06 बजकर 03 मिनट से 08 बजकर 31 मिनट तक शुभ मुहूर्त रहने वाला है। इस दौरान घटस्थापना करने के साथ मां दुर्गा और मां शैलपुत्री की पूजा करें। अगर आप इस मुहूर्त में घटस्थापना नहीं कर पाए तो अभिजित काल में 11:48 से 12:37 तक कलश स्थापना जरूर कर ले
माता शैलपुत्री की पौराणिक कथा, मां शैलपुत्री की कहानी
मां शैलपुत्री को माता पार्वती का स्वरूप माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी देवताओं व राजा महाराजाओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव का औघड़ रूप होने के कारण उन्हें आमंत्रित नहीं किया। जब देवी सती को अपने पिता द्वारा आयोजित इस विशाल यज्ञ के बारे में पता चला तो उनका मन यज्ञ में शामिल होने के लिए व्याकुल होने लगा। उन्होंने भोलेनाथ से अपनी इच्छा जताई, भोलेनाथ ने कहा कि किसी कारण रुष्ट होकर राजा दक्ष ने हमें यज्ञ में शामिल होने का न्योता नहीं दिया है। इसलिए बिना आमंत्रण के यज्ञ में शामिल होना कदाचित उचित नहीं है।लेकिन देवी सती लगातार यज्ञ में शामिल होने के लिए भगवान शिव से कहती रही, माता सती के आग्रह पर भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में शामिल होने की अनुमति दे दी। जब माता सती यज्ञ में पहुंची तो उन्होंने देखा के राजा दक्ष भगवान शिव के बारे में अपशब्द कह रहे थे। पति के इस अपमान को देख माता सती ने यज्ञ में कूदकर अपने प्रांण त्याग दिए। इसके बाद माता सती ने दूसरा जन्म शैलपुत्री के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर लिया।
मां शैलपुत्री के मंत्र
ओम् ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:।
ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।
ध्यान मंत्र
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
कलश स्थापना आज सुबह 6 बजकर 1 मिनट से सुबह 8 बजकर 31 मिनट के बीच कर सकते हैं। इसके अलावा अभिजित मुहूर्त में दोपहर 12 बजे से लेकर 12 बजकर 50 मिनट के बीच घटस्थापना कर सकते हैं।
मां शैलपुत्री की आरती
शैलपुत्री मां बैल पर सवार, करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि सिद्धि परवान करे तू। दये करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती जिसने तेरी उतारी।
उसकी सगरी आस जगा दो। सगरे दुख तकलीफ मिटा दो।
घी का सुंदर दीप जलाकर। गोला गरी का भोग लगा कर।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी। शिव मुख चंद चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
शैलपुत्री की पूजा से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है
सफेद वस्त्र धारण किए हुए माता के दाहिने हांथ में त्रिशूल और बाएं हांथ में कमल का फूल शोभायमान है तथा माथे पर चंद्रमा सुशोभित है। माता बैल पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान हैं। माता को सफेद रंग अत्यंत प्रिय है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को सफेद रंग का फूल चढ़ाने से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है। धार्मिक ग्रंथों की मानें तो मां शैलपुत्री सभी जीव जंतुओं की रक्षक मानी जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती ने शैलपुत्री के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया था।
मां शैलपुत्री की पूजा विधि
मां शैलपुत्री को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करुणा और ममता का स्वरूप माना जाता है। माता अत्यंत सरल एवं सौम्य स्वभाव की हैं। पूर्व जन्म में मां शैलपुत्री राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थी। मान्यता है कि नवरात्रि के पहले दिन विधि विधान से मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और सभी कष्टों का निवारण होता है। तथा माता का आशीर्वाद अपने भक्तों पर सदैव बना रहता है।
पहले दिन होती है मां शैलपुत्री की पूजा
नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित होता है। मार्केण्डय पुराण के अनुसार मां शैलपुत्री। पर्वतराज यानी शैलराज हिमालय की पुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने की वजह से उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। कहा जाता है कि माता शैलपुत्री का वाहन बैल है। जिसकी वजह से उन्हें वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। मां शैलपुत्री का स्वरूप बहुत अद्भुत माना गया है जो बैल की सवारी करती हैं। उनके बाएं हाथ में कमल और दाएं हाथ में त्रिशूल होता है। जो भक्त मां शैलपुत्री की पूजा करता है वह भयमुक्त रहता है। इसके साथ उसे शांति, यश, कीर्ति, धन, विद्या और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
देवी दुर्गा का घोड़े पर सवार होकर आने का मतलब
कहा जाता है कि जब देवी दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आती हैं तब युद्ध और विभीषिका जैसे हालात उत्पन्न होते हैं। और जब वह भैंस पर सवार होकर आती हैं तब कष्ट, रोग और प्रकृति के प्रकोप के प्रभाव बढ़ते हैं। वहीं, जब मां दुर्गा हाथी की सवारी से प्रस्थान करती हैं तब बरसात ज्यादा होती है। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि जब मां शक्ति नौका पर आती हैं तब यह समय बहुत उत्तम माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब वह डोली में आती हैं और महामारी का अंदेशा होता है और जय माता रानी मुर्गा पर सवार होकर आती हैं तब दुख और कष्ट बढ़ता है। मान्यता के अनुसार, जब वह मनुष्य की सवारी से जाती हैं तब सुख-शांति बनी रहती है।
यहां जानें क्या है चैत्र नवरात्रि का महत्व
मां दुर्गा को समर्पित नवरात्रि के 9 दिन बेहद शुभ माने जाते हैं। कहा जाता है नवरात्रि का व्रत रखने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है। मां दुर्गा की पूजा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है और सुख, समृद्धि, यश, वैभव, धन, सफलता आदि का वरदान मिलता है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, जो भक्त नवरात्रि के 9 दिन व्रत रखता है उसका तन,मन और आत्मा शुद्ध हो जाती है। नवरात्रि का व्रत रखने वाले लोगों को उत्तम लोक की प्राप्ति होती है।
घोड़े पर सवार होकर आ रहीं माता
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष चैत्र नवरात्रि का पावन पर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होता है। वर्ष 2022 में चैत्र नवरात्रि 02 अप्रैल से शुरू हो रही है जो पूरे 9 दिन तक चलेगी। मां दुर्गा को समर्पित इन 9 दिनों में उनके नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि व्रत रखने से तथा देवी दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मां भगवती की साधना के लिए उत्तम चैत्र नवरात्र 2 अप्रैल से शुरू होकर 10 अप्रैल को समाप्त हो जाएगा। नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित होता है, इस दिन लोग मां दुर्गा के साथ उनके पहले स्वरूप की भी पूजा करते हैं। कहा जा रहा है कि इस वर्ष मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आने वाली हैं और भैंस पर उनकी विदाई होगी।
माता शैलपुत्री की पौराणिक कथा, मां शैलपुत्री की कहानी
मां शैलपुत्री को माता पार्वती का स्वरूप माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी देवताओं व राजा महाराजाओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव का औघड़ रूप होने के कारण उन्हें आमंत्रित नहीं किया। जब देवी सती को अपने पिता द्वारा आयोजित इस विशाल यज्ञ के बारे में पता चला तो उनका मन यज्ञ में शामिल होने के लिए व्याकुल होने लगा। उन्होंने भोलेनाथ से अपनी इच्छा जताई, भोलेनाथ ने कहा कि किसी कारण रुष्ट होकर राजा दक्ष ने हमें यज्ञ में शामिल होने का न्योता नहीं दिया है। इसलिए बिना आमंत्रण के यज्ञ में शामिल होना कदाचित उचित नहीं है।लेकिन देवी सती लगातार यज्ञ में शामिल होने के लिए भगवान शिव से कहती रही, माता सती के आग्रह पर भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में शामिल होने की अनुमति दे दी। जब माता सती यज्ञ में पहुंची तो उन्होंने देखा के राजा दक्ष भगवान शिव के बारे में अपशब्द कह रहे थे। पति के इस अपमान को देख माता सती ने यज्ञ में कूदकर अपने प्रांण त्याग दिए। इसके बाद माता सती ने दूसरा जन्म शैलपुत्री के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर लिया।
करें मां दुर्गा के मंत्र का जाप
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि इस वर्ष 2 अप्रैल से प्रारंभ हो रही है। ऐसे में घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 2 अप्रैल को सुबह 6:10 से लेकर 8: 31 तक रहेगा। इसके साथ कलश स्थापना के लिए दोपहर में 12:00 से 12:50 तक भी शुभ मुहूर्त रहने वाला है। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विधान होता है। इस दिन मां दुर्गा के साथ उनके पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा भी की जाती है।
पहला दिन – 2 अप्रैल 2022: घटस्थापना/प्रतिपदा तिथि
नवरात्रि का पहला दिन घटस्थापना से प्रारंभ होता है, इस दिन धर्म शास्त्रों के अनुसार लाल रंग का महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि लाल रंग जुनून, शुभता और बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। यह रंग मां शैलपुत्री का भी प्रिय माना गया है।
मां शैलपुत्री के मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:
मां शैलपुत्री जी की आरती
शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
चैत्र नवरात्रि पूजा सामग्री
चौकी, लाल कपड़ा, लाल झंडा, कलश, कपूर, जौ, कुमकुम, लौंग, बताशे, आम के पत्ते, कलावा, नारियल, केले, घी, धूप, माचिस, जयफल, मिश्री, ज्योत, मिट्टी, मिट्टी का बर्तन, एक छोटी चुनरी, पान-सुपारी, एक बड़ी चुनरी, दीपक, माता का श्रृंगार का सामान, देवी की प्रतिमा या फोटो, फूलों का हार, उपला, सूखे मेवे, मिठाई, अगरबत्ती, लाल फूल, गंगाजल और दुर्गा सप्तशती या दुर्गा स्तुति आदि।
बाल भी कटवाने से बचना चाहिए : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवदुर्गा के 9 दिन बाल और सेविंग भी नहीं कटवानी चाहिए। क्योंकि बाल कटवाने से ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव भी व्यक्ति के ऊपर पड़ता है। इसलिए बाल कटवाने से बचना चाहिए।
लहसुन- प्याज भी नहीं खाना चाहिए: नवदुर्गा के 9 दिन लहसुन और प्याज भी नहीं खाना चाहिए। क्योंकि ये चीजें तामसिक होती हैं, तो व्यक्ति के अंदर आलस्य और क्रूरता पैदा करते हैं। नवरात्रि के दौरान तामसी खाद्य पदार्थों का सेवन करना अच्छा नहीं माना जाता।
हिंदू धर्म में नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इन दिनों लोग मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की आराधना और पूजा- अर्चना करते हैं। साथ ही माता का आह्वान होने पर मां किस वाहन पर सवार होकर आएंगी ये भी विशेष महत्वपूर्ण होता है। माता का वाहन शुभ− अशुभ फल का सूचक भी होता है। इस बार माता घोड़े पर सवार होकर आएंगी। आपको बता दें कि मां दुर्गा के अलग- अलग वाहन का महत्व होता है। वहीं इस साल चैत्र नवरात्रि 2 अप्रैल से शुरू हो रहीं हैं और यह पर्व 11 अप्रैल तक मनाया जाएगा। आइए जानते हैं माता के वाहन का महत्व और क्या है मान्यता…
ये है मान्यता
मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा का आगमन कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर होता है। पृथ्वी पर भक्त मां दुर्गा की आराधना-पूजा, जप, तप और साधना करके उनकी कृपा पाने का प्रयास करते हैं। देवी मां जब कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर आती हैं तो वह किसी न किसी वाहन पर सवार होकर आती हैं और जाते समय भी किसी वाहन पर जाती हैं। वहीं देवी के आगमन का वाहन नवरात्रि प्रारंभ होने के दिन से तय होता है और जाने का वाहन नवरात्रि समाप्त होने के दिन से तय होता है। इसके लिए देवी भागवत पुराण में एक श्लोक दिया गया है –
शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौ शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता।
अर्थात – सोमवार या रविवार को घट स्थापना होने पर मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। शनिवार या मंगलवार को नवरात्रि प्रारंभ होने पर देवी का वाहन घोड़ा होता है। गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्रि शुरू होने पर देवी डोली में बैठकर आती हैं। बुधवार से नवरात्रि शुरू होने पर मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आती हैं।
जानिए आगमन के वाहन का क्या फल होता है
देवी के आगमन के वाहन से शुभ-अशुभ का विचार किया जाता है। मान्यता है माता दुर्गा जिस वाहन से पृथ्वी पर आती हैं, उसके अनुसार आगामी छह माह में होने वाली घटनाओं का आंकलन किया जाता है। इसके लिए भी देवी भागवत पुराण में एक श्लोक है-
गजे च जलदा देवी क्षत्र भंग स्तुरंगमे।
नौकायां सर्वसिद्धिस्या दोलायां मरणंधुवम्।।
अर्थात – देवी जब हाथी पर सवार होकर आती हैं तो वर्षा ज्यादा होती है। घोड़े पर आती हैं तो पड़ोसी देशों से युद्ध की आशंका बढ़ जाती है। देवी नौका पर आती हैं तो सभी के लिए सर्वसिद्धिदायक होता है और डोली पर आती हैं तो किसी महामारी से मृत्यु का भय बना रहता हैं।
माता के विदाई वाहन का भी है महत्व
आपको बता दें कि आगमन की तरह मां दुर्गा की विदाइ भी अलग अलग वाहन से होती है। रविवार या सोमवार को माता रानी भैंसे की सवारी से प्रस्थान करती हैं। जिससे देश में रोग और कष्ट बढ़ता है। शनिवार या मंगलवार को मां जगदम्बा मुर्गे पर सवार होकर जाती हैं। जिससे जनता में दुख और कष्ट बढ़ने की मान्यता है। बुधवार या शुक्रवार को देवी आदि शक्ति हाथी पर सवार होकर प्रस्थान करती हैं। इससे बारिश ज्यादा होने की संभावना होती है। साथ ही गुरुवार को महागौरी मनुष्य की सवारी से जाती हैं। इसका अर्थ है कि सुख-शांति बनी रहेगी।
”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”