मानवता सच्चे अर्थों में सेवा और देने की भावना होती है। मानव सेवा की भावना से जो सुख मिलता है,वह गहरा और सच्चा होता है,जो सुख के साथ साथ हमें मानसिक शांति भी देता है। यह शांति हमे एक दुर्लभ एहसास कराती है,की हम मानव हैं।
“मानवता” शब्द का सरल शब्दों में मतलब है, मानव की एकता , इंसानियत यानि मानवता, हर मानव, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, जाती-पाती का हो, कोई भी देश- शहर का हो, उसका एक मात्र मकसद होना चाहिए : मानव-एकता I देश- विदेशो में सारे संसार में मानव-परिवारों में कई प्रकार की समानताये ओर असमानताए होती है, हर मानव की शक्ल-सूरत, रंग-रूप, शारीरिक बनावट, रहन-सहन , सोच-विचार, बोली- भाषा आदि में समानताये भी होती है ओर उनमे असमानताए भी होती है, लेकिन प्रभु ने हम सब को पांच तत्वों से ही बनाया है, सब मे इस निरंकार-प्रभु का ही नूर होता है, आत्म-भाव से हर मानव एक समान है. अनेक योनियों में जन्म लेने के बाद इंसान को मानव शरीर मिलता है , उन सभी योनियों में मनुष्य योनी को उत्तम समझा जाता है मानव धर्म ने इंसान को इंसान से प्यार करना सिखाया है, मानवता का अर्थ सच्चे मूल्य और आदर्श के साथ जीवन को जीना है। मानवता के गुणों को धारण कर हम इस जीवन में खुशी और आनंद के साथ अपनी जीवन यात्रा का आनंद ले सकते हैं। मानवता सच्चे अर्थों में सेवा और देने की भावना होती है।मानव सेवा की भावना से जो सुख मिलता है, वह गहरा और सच्चा होता है, जो सुख के साथ साथ हमें मानसिक शांति भी देता है। यह शांति हमे एक दुर्लभ एहसास कराती है, कि हम मानव हैं। मानवता की भावना से हमारे मस्तिस्क में नये रसायन और हार्मोन स्रावित होने लगते हैं, जो हमें सुख की अनुभूति करवाते हैं।
मानवता का स्वरूप सेवा
जब हमारे अंदर मानवता का जन्म होता है तभी सच्चे अर्थों में हम धार्मिक और सेवक बन पाते हैं। धर्म का एक अर्थ सेवा भी है, जो हमें जरूरतमंद मानव की तन मन धन से या जो हमारे पास उपलब्ध है उससे सेवा करने की प्रेरोना देती है।
मानवता ही मानव धर्म
मानव ईश्वर की सबसे सर्वोत्तम रचना है। मानव को सर्वोच्च पद उसकी संरचना से नहीं, बल्कि उसके सद्गुणों से प्राप्त होता है। सहयोग, सदाचार, सद्भावना, प्यार, दया की भावना मानव को सर्वश्रेष्ठ और महान बनाती है। इस संसार में मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं और इस धर्म को जाने और अपनाए बिना सुख शांति समृद्धि सफलता धन वैभव आनंद प्रसन्नता के कुछ भी प्राप्ति संभव नहीं हो पाता है। इस मानवता के उजागर के लिए मन मंदिर में ज्ञान के दीप जलाना अति आवश्यक है। मानवता मनुष्य का पहला धर्म है। जब तक मानव इस मानवता के धर्म को धारण नहीं करता तब तक उसकी शुरुआत नहीं हो पाती। जिस तरह पहला कदम चलने से ही हम लाखों कदम चल पाते हैं उसी तरह जब तक हम मानवता के पहले कदम को नहीं बढ़ाते तब तक सफलता हमें परिणाम स्वरूप दिखाई नहीं देती।
मानवता की शिक्षा
जन्म के बाद हम अपनी बुद्धि के विकास के लिए शिक्षा को तो महत्व दे रहे हैं और इसकी वजह से हम बुद्धिमान भी हो रहे हैं, बहुत पैसा, समृद्धि कमा रहे हैं, किंतु इस मानवता की शिक्षा को जो हमें धर्म के मूल से मिलती है, इसके लिए भी हमें ध्यान देना है। हम मानव बन सके, इस शिक्षा को प्राप्त करने के लिए हमें सद्गुरु, सत्य वचन, और हमारे धर्म ग्रंथों से जुड़कर कुछ जीवन जीने की मूल बातों को निरंतर सीखना और जानना आवश्यक है। कमाल की बात है हम चंद्रमा और अंतरिक्ष पर तो हम चलना सीख गए किंतु, मानव के मानवीयता के गुणों को सीख नहीं पाए, पूर्ण मानव बन नहीं पाए। खुश रहने का विज्ञान और जीवन को खुशहाल जीवन जीने का विज्ञान सीखना हर मानव की प्राथमिकता होनी चाहिए। कहीं-कहीं यह भी सुनने को मिलता है कि यह गुण अपने आप ही मानव को प्राप्त हो जाता है, सीखता है, किंतु यह भ्रम हुई बुद्धि मात्र है और कुछ नहीं।
मानवता किसे कहते हैं
मनुष्य को भगवान से मनुष्य जीवन मिला है | मनुष्य को अपने मानवता धर्म को निभाना चाहिए | सब के प्रति दया भावना रखनी चाहिए | मानव सेवा ही सच्ची सेवा है | मनुष्य पैसों से अमीर नहीं बनता, अपनी मानवता दूसरों के प्रति दया, सेवा से अमीर बनता है | मानव का जन्म अच्छे कर्म और मानवता की सेवा के लिए हुआ है। मानव को सब के साथ प्यार प्रेम के साथ रहना चाहिए | हमें पशु-पक्षी बेजुवानों की भी सेवा करनी चाहिए | मुसीबत के समय में सबकी मदद करनी चाहिए | मानवता धर्म का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप है।हम सच्चे अर्थ में मानव तभी बनते हैं जब हम मानव होने के गुणों को धारण करते हैं। कमाल की बात है हम परमात्मा को तो मानते हैं पर धर्मशास्त्र और परमात्मा की बातों को नहीं मानते जिसकी वजह से हम पूर्ण मानव नहीं बन पाते।
मानवता ही विश्व सत्य
हमारे शास्त्रों में मानवीयता को मनुष्य का आभूषण स्वरूप माना गया है।मानवीयता की सुंदरता उसके सुख दुख में खुश रहने से मानी जाती है।मानवता की सुरक्षा का अर्थ है हम सब मानव होने के गुण मानवता को समझें क्योंकि इस भावना की समझ मात्र से सारा विश्व एक दूसरे के सहयोग की भावना से एक दूसरे के विकास की राह पर चल सकता है।
मानवता पर विचार
* उस मनुष्य का दर्जा समाज में हमेशा ऊंचा होता है जो मानवता की भलाई के लिए कार्य करता है।
* मनुष्य की मानवता उसे वक्त समाप्त हो जाती है जिस क्षणों वह दूसरे मनुष्यों के दुख का कारण बनता है।
* मानवता का एक अर्थ मदद के लिए तैयार होना भी है।
* मानवता से सारे विश्व के मानव की बुनियादी जरूरतें पूरी होती है।
* मानवता को जानने से दुर्बल को कमजोर पर अत्याचार बंद कर, उनकी भी समान भावना से सहयोग देकर उन्हें ऊपर उठाने की भावना जागृत होती है।
* मानवता इंसान को समाजिक भ्रष्टाचार और बुराई का विरोध करने की शक्ति और जागृति देती है।
* मानवता इंसान को शिक्षित होने की प्रेरणा देती है मानवता इंसान को पर्यावरण की रक्षा का बहुत पसंद आती है
मानवता के गुण
मानवता के गुण जब मनुष्य में भरते हैं दिखाई देते हैं तब मनुष्य का यह स्वरूप सामने आता है वह बुद्धिमान कुलीन और अच्छे व्यवहार वाला दिखाई देता है स्वर ज्ञान के विचारों से परिपूर्ण होता है मन को संयमित रखने वाला पराक्रमी कम बोलने वाला दान करने वाला कृतज्ञता की भावना रखने वाला दूसरों का उपकार याद रखने वाला इन शब्दों की वजह से वह मनुष्य अपने क्षेत्र का नेतृत्व में भी करता है जीवन को भी खुशियों से जी पाता है बहादुर होता है और निर्भय होकर और चुनौतियों का सामना करता है दया प्यार और दयालुता की भावना यह बोलती मानवता की कामना करने पर दिखाई देते हैं |
मानवता क्या देती है
मानवता हमें लाखों लोगों की दुआ से उजागर करती है हम अपने आप में दरबान विद महसूस करने लगते हैं खुशियों से हमारा मन लबालब भर जाता है और यह भावना है हमें और समाज के प्रति जागृत करते हैं मानवता मनुष्य के जीवन को प्रभावित करने वाला प्रधान कारण है जब तक हम मानव बनने के गुणों को नहीं समझ पाते जीवन जीने का आनंद हम उठा नहीं पाए मानवता के प्रति कर्तव्य मानव होने का सौभाग्य मानव होने का मूल्य जाने पर कि हम सुख और खुशी का अनुभव करते हैं
हम मानवता कैसे दिखा सकते है?
असहाय, दीन दुखी लोगों की मदद करके : यदि हम दूसरे लोगों की मदद करते हैं तो हम मानवता का धर्म निभाते हैं। भूखे को खाना खिलाकर, अंधे व्यक्ति को सड़क पार करा कर, सड़क पर दुर्घटना में घायल किसी व्यक्ति को अस्पताल पहुंचा कर- इस तरह के कई काम करके हम मानवता दिखा सकते हैं। याद रखें मनुष्य का जन्म दूसरों की मदद के लिए ही हुआ है। हमें अपने अनमोल जीवन का पूरा उपयोग करना चाहिए।
मांसाहार छोड़कर शाकाहारी बनकर : आज हमारा समाज मांसाहार की तरफ बढ़ रहा है। अखबार, टीवी, सोशल मिडिया में मांसाहार प्रोडक्ट जैसे चिकन बर्गर जैसे विज्ञापनों की भरमार है, पर क्या आपने सोचा है कि मांसाहार करने से आप पशु पक्षियों के प्रति कैसा व्यव्हार करते है? उनकी निर्मम तरीके से हत्या करके उनका मीट आपको बेच दिया जाता है। प्रोटीन के नाम पर लोग मांसाहार का सेवन करते हैं, पर प्रोटीन प्राप्त करने के अन्य स्रोत भी हैं। यदि हम पशु पक्षियों के प्रति मानवता दिखाते हैं तो हमें मांसाहार छोड़कर शाकाहार की ओर बढ़ना चाहिए।
समाज में प्रेम का संदेश देकर : हमें समाज में प्रेम का संदेश देना चाहिए। नफरत भुलाकर एक दूसरे से मिलना चाहिए। दुश्मन को भी गले लगाना चाहिए। समाज के कई वर्ग में आज लोग परेशान हैं। वे पीड़ित हैं। उनके पास खाने को भोजन नहीं है, रहने को मकान नहीं है, पहनने को कपड़े नहीं है। हमें उन जैसे लोगों की मदद करनी चाहिए। समाज में नफरत नहीं पर आनी चाहिए। दूसरे लोगों से लड़ाई झगड़ा मारपीट नहीं करनी चाहिए। हमें जाति धर्म लिंग भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए।
लोगों को क्षमा करके : कई बार जब किसी व्यक्ति के साथ दूसरे लोग कुछ गलत काम कर देते हैं तो वह बदला लेने का प्रयास करता है। ऐसे में हमें लोगों को क्षमा कर देना चाहिए। मन में किसी भी तरह की शिकायत शिकवा नहीं रखनी चाहिए। दूसरों को माफ करने से हम और महान बन जाते हैं। माफ करने से मन में एक संतुष्टि का भाव भी पैदा होता है।
ईश्वर को धन्यवाद देकर : कई बार हमारे पास रुपए, पैसे, गाड़ी, बंगला जैसी सारी चीजें होती है। उसके बावजूद भी हम ईश्वर को कोसते रहते हैं कि उसमें हमारे जीवन में कई तरह के समस्याएं पैदा कर दी। पर जब हम अपने से गरीब लोगों को देखते हैं तो पता चलता है कि हमारी स्थिति तो दूसरे लोगों की तुलना में अच्छी है।इसलिए कभी भी अपनी स्थिति पर शिकायत नहीं करनी चाहिए। जो हमें ईश्वर ने दिया है उसके लिए हमें ईश्वर का धन्यवाद देना चाहिए। अपने मन में संतोष रखना चाहिए। इस तरह हम मानवता दिखा सकते हैं
मानवता का आदर्श उदाहरण “मदर टेरेसा”
आप लोगों ने मदर टेरेसा के बारे में अवश्य सुना होगा। प्रथम विश्व युद्ध में अनेक लोग मारे गए। इसे देखकर मदर टेरेसा के मन में बहुत पीड़ा उत्पन्न हुई। उन्होंने दीन दुखियों की सेवा के लिए “मोडालिति” नामक एक संस्था बनाई। वह सन्यासी बन गई और लोगों की सेवा करने लगी। मदर टेरेसा ने कोलकाता में गरीब और असहाय लोगों की मदद करने के लिए “मिशनरीज ऑफ चैरिटी” नामक संस्था बनाई थी। कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए उन्होंने 1950 में शांति नगर की स्थापना की। भारत सरकार ने उनको “पद्मश्री” का पुरस्कार दिया था। 19 अक्टूबर 2003 को मदर टेरेसा को संत की उपाधि दी गई थी। उन्होंने आजीवन असहाय, दीन दुखी लोगों की सेवा की और मानवता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया। हम सबको मदर टेरेसा के जीवन से मानवता की शिक्षा लेनी चाहिए।
क्या दुनिया से मानवता विलुप्त हो गई है?
कई बार तो ऐसा लगता है कि दुनिया से मानवता खत्म हो चुकी है। अखबार, टीवी न्यूज चैनल्स अपराध की खबरों से भरे पड़े हैं। हर जगह भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी हो रही है। लोग अपना काम ठीक से नहीं करते। मौका मिलने पर पैसों का घोटाला कर देते हैं। समाज में बेईमानी, मक्कारी, बढ़ती जा रही है। महिलाओं और बच्चों के साथ विभिन्न तरह के अपराध किए जाते हैं। ये देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि दुनिया से मानवता समाप्त हो गई है, पर यह सच नहीं है। आज भी दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने मानवता की रक्षा की है। महात्मा गांधी, नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, बराक ओबामा, मदर टेरेसा जैसे बहुत से उदाहरण हमारे सामने हैं। इन सभी ने मानवता को बचाने का भरपूर प्रयास किया है। कैलाश सत्यार्थी ने अपने प्रयास से 80000 बाल मजदूरों को देश के विभिन्न भागों से आजाद करवाया और उन्हें एक नई जिंदगी प्रदान की। उन्होंने “बचपन बचाओ आंदोलन” नाम से एक एनजीओ की शुरुआत की है जो बंधुआ मजदूरों को आजाद करने के लिए काम करती है।
सुख, समृद्धि एवं शांति से परिपूर्ण जीवन के लिए सच्चरित्र तथा सदाचारी होना पहली शर्त है, जो उत्कृष्ट विचारों के बिना संभव नहींहै। हमें यह दुर्लभ मानव जीवन किसी भी कीमत पर निरर्थक और उद्देश्यहीन नहीं जाने देना चाहिए। लोकमंगल की कामना ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। केवल अपने सुख की चाह हमें मानव होने के अर्थ से पृथक करती है। मानव होने के नाते जब तक दूसरे के दु:ख-दर्द में साथ नहीं निभाएंगे तब तक इस जीवन की सार्थकता सिद्ध नहीं होगी। वैसे तो हमारा परिवार भी समाज की ही एक इकाई है, किंतु इतने तक ही सीमित रहने से सामाजिकता का उद्देश्य पूरा नहीं होता। हमारे जीवन का अर्थ तभी पूरा हो सकेगा जब हम समाज को ही परिवार मानें। मानवता में ही सज्जानता निहित है, मनुष्य की यही एक शाश्वत पूंजी है। मनुष्य भौतिकता के वशीभूत होकर जीवन की जरूरतों को अनावश्यक रूप से बढ़ाता रहता है, जिसके लिए सभी से भलाई-बुराई लेने को भी तैयार रहता है, लेकिन उसके समीप होते हुए भी वह अपनी शाश्वत पूंजी को स्वार्थवश नजरअंदाज करता रहता है।