संपूर्ण भवन में त्रिदेव महत्वपूर्ण शक्ति है। जिनमें ब्रह्मा विष्णु महेश विराजमान है और भगवान शिव तीनों शक्तियों में सर्वश्रेष्ठ एवं प्रभावशाली हैं। भगवान शिव के विवाह तथा भगवान शिव निराकार से साकार अर्थात रूद्र रूप में प्रकट होते हैं। इसी रात्रि को शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए। इस दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। शिवरात्रि का अत्यधिक महत्व है। शिवरात्रि के दिन से प्रकृति में काफी बदलाव देखने को मिलते और शिव भक्त अपने प्रभु भगवान शिव की पूजा आराधना कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। और उनसे आशीर्वाद की अपेक्षा रखते हैं।
हमारे हिंदू ग्रंथों के अनुसार “ब्रह्मा विष्णु महेश” त्रिदेव में भगवान शिव महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। भगवान शिव की पूजा आराधना हर सोमवार को की जाती है। इसके अतिरिक्त शिव भक्त शिवजी की आराधना प्रत्येक क्षण करते हैं। भगवान शंकर की वार्षिक पूजा आराधना महाशिवरात्रि के दिन की जाती है। बसंत ऋतु के फाल्गुन मास की चतुर्दशी को शिवरात्रि मनाई जाती है। वर्ष 2022 में शिवरात्रि मंगलवार 1 मार्च 2022 को मनाई जाएगी। शिवरात्रि के दिन भक्त अपने शिव के रूप में विराजमान प्रतिमा शिवलिंग की विधि पूर्वक पूजा करते हैं। आस्था रखते हुए व्रत धारण करते हैं। आइए जानते हैं, महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है? महाशिवरात्रि का महत्व क्या है? महाशिवरात्रि पूजा विधि क्या है? महाशिवरात्रि 2022 में कब है? महाशिवरात्रि के दिन पूजा कैसे करें? महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा क्यों होती है? महाशिवरात्रि के दिन पूजा कैसे की जाती है तथा व्रत धारण करने की विधि? महाशिवरात्रि शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि की विस्तृत जानकारी आप इस लेख में जाने वाले हैं। इसलिए शिवरात्रि से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी को ध्यानपूर्वक जरूर पढ़ें।
महाशिवरात्रि कब है?
इस वर्ष महाशिवरात्रि मंगलवार 1 मार्च 2022 को मनाई जाएगी।
महाशिवरात्रि का महत्व |
इस वर्ष महाशिवरात्रि 1 मार्च 2022 मंगलवार फाल्गुन मास की चतुर्दशी को मनाई जाएगी। शिवरात्रि के दिन शिव भक्त अपने प्रभु की पूजा आराधना करते हैं पंचामृत अभिषेक कर भगवान शिव को चंदन का तिलक लगाया जाता है। भगवान शिव की पूजा आराधना उनके द्वारा स्थापित ज्योतिर्लिंग अर्थात शिवलिंग को साक्षी मानकर की जाती है। हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिदेव इस संपूर्ण सृष्टि की महत्वपूर्ण शक्ति हैं। ब्रह्मा इस संसार की उत्पत्ति करते हैं। विष्णु संसार का पालन करते हैं और भगवान शिव संसार का संहार करते हैं। भगवान शिव को उनके भक्त कई नामों से पुकारते हैं:- जैसे भगवान शंकर, भोलेनाथ, त्रिभुवन पति, त्रिनेत्र धारी, बाबा शिव, कैलाशपति, बाबा अघोरी, नीलकंठ, महादेव, शंभू, शंकरा, रुद्रा,आदि कई नामों से विख्यात हैं।
महाशिवरात्रि कैसे मनाया जाता है?
महाशिवरात्रि प्रत्येक वर्ष बसंत रितु के फाल्गुन मास की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा आराधना की जाती है। शिव भक्त अपने प्रभु की आराधना हेतु शुभ मुहूर्त में जलाभिषेक, पंचामृत अभिषेक तथा फूल पुष्प आदि समर्पित कर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसी के साथ भगवान शिव को चंदन का टीका लगाकर उन्हें धतूरा, बेल पत्र अन्य प्रकार के पुष्प एवं फल अर्पित किए जाते हैं। महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त 1 मार्च 2022 को प्रातः 3:00 बजे से शुरू होकर 2 मार्च 2022 सुबह 10:00 बजे तक रहेगा। शिव भक्त भगवान शिव की आराधना चारों पहर में शुभ अमृत एवं लाभ के चौघड़िया में शिव पूजा करते हैं। देश में जितने भी शिव मंदिर हैं वहां पर शिवरात्रि के दिन मंगल गान गाए जाते हैं। भजन कीर्तन आदि किए जाते हैं।
शिवरात्रि क्यों मनाया जाता है |
प्रथम मान्यता:- भगवान शिव की पूजा आराधना को विशेष त्यौहार शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इसके मनाने के पीछे हिंदू ग्रंथों में दर्ज जानकारी यह बताती है, कि भगवान शिव का इस दिन माता पार्वती से विवाह हुआ था। इसी दिन को भक्तगण आराधना व आस्था स्वरूप मध्यमान कर भगवान शिव की पूजा करते हैं। भगवान शिव को पूजने के लिए वैसे तो कोई विशेष अवसर की आवश्यकता नहीं है। परंतु वार्षिक अवसर के रूप में बसंत ऋतु के फाल्गुन मास की चतुर्दशी को भगवान शिव का विवाह संपन्न हुआ था। इसी विवाह संपन्न तिथि को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। ग्रंथ मान्यताओं के आधार पर भगवान शिव की पूजा आराधना करना उन्हें अतिशय प्रसन्न करती है। शिवरात्रि के दिन पूजा आराधना करने के साथ-साथ व्रत धारण करने पर विवाह संबंधी हो रहे अड़चनें भी दूर हो जाती है।
द्वितीय मान्यता:- भगवान शिव वैसे तो आदि अनादि हैं। परंतु मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव इस दिन शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे और प्रथम पूजा ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने की थी। इन्हीं मान्यताओं के चलते शिवरात्रि को भगवान शिव के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है।
तृतीय मान्यता:- भगवान शिव की पूजा आराधना महाशिवरात्रि के दिन तो होती ही है। इसी के साथ वर्ष में जितने भी कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष आते हैं। उन्हें शिवरात्रि के रूप में ही देखा जाता है। इसी के साथ भगवान शिव मध्य रात्रि को निराकार स्वरूप को त्याग कर साकार स्वरूप अथार्त रूद्र अवतार में प्रकट होते हैं।
महाशिवरात्रि शुभ मुहूर्त |
बसंत ऋतु के फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। 1 मार्च 2022 मंगलवार को शिवरात्रि पर्व मनाया जाएगा। विद्वान पंडितों के अनुसार महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त निकाले गए हैं। जो इस प्रकार हैं:-
महाशिवरात्रि शुभ मुहूर्त 1 मार्च को सुबह 3 बजकर 16 मिनट से शुरू होकर 2 मार्च को सुबह 10 तक रहेगा।
अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11:47 से दोपहर 12:34 तक
विजय मुहूर्त : दोपहर 02:07 से दोपहर 02:53 तक
गोधूलि मुहूर्त : शाम 05:48 से 06:12 तक
सायाह्न संध्या मुहूर्त : शाम 06:00 से 07:14 तक
निशिता मुहूर्त : रात्रि 11:45 से 12:35 तक
पहले प्रहर का मुहूर्त-:1 मार्च शाम 6 बजकर 21 मिनट से रात्रि 9 बजकर 27 मिनट तक रहेगा।
दूसरे प्रहर का मुहूर्त-: 1 मार्च रात्रि 9 बजकर 27 मिनट से 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा।
तीसरे प्रहर का मुहूर्त-: 1 मार्च रात्रि 12 बजकर 33 मिनट से सुबह 3 बजकर 39 मिनट तक रहेगा।
चौथे प्रहर का मुहूर्त-: 2 मार्च सुबह 3 बजकर 39 मिनट से 6 बजकर 45 मिनट तक रहेगा।
व्रत पारण समय-: 2 मार्च को सुबह 6 बजकर 45 मिनट के बाद है।
सनातन धर्म के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे प्रहर में दही, तीसरे प्रहर में घृत और चौथे प्रहर में मधु, यानी शहद से स्नान करना चाहिए। चारों प्रहर में शिवलिंग स्नान के लिये मंत्र भी हैं-
प्रथम प्रहर में- ‘ह्रीं ईशानाय नमः’
दूसरे प्रहर में- ‘ह्रीं अघोराय नमः’
तीसरे प्रहर में- ‘ह्रीं वामदेवाय नमः’
चौथे प्रहर में- ‘ह्रीं सद्योजाताय नमः’।।
मंत्र का जाप करना चाहिए।
खास संयोग
धनिष्ठा नक्षत्र में परिघ योग रहेगा। धनिष्ठा के बाद शतभिषा नक्षत्र रहेगा। परिघ के बाद शिव योग रहेगा। सूर्य और चंद्र कुंभ राशि में रहेंगे।
ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग
पंचांग के अनुसार पंडित राकेश झा ने बताया कि शिव योग और धनिष्ठा नक्षत्र में शिव की पूजा करना शुभ व फलदायी है। महाशिव रात्रि पर मकर राशि के बारहवें भाव में पंचग्रही महायोग बन रहा है। पंच ग्रही योग का निर्माण मंगल, बुध, शुक्र, चंद्रमा और शनि के मिलने से हुआ है। सूर्य पुराण के अनुसार भगवान शिव शिवरात्रि के दिन पृथ्वीलोक पर भ्रमण करने निकलते हैं। इस दिन विधि-विधान के साथ पूजन करने से शिव भक्तों को सैकड़ों यज्ञ का पुण्य मिलता है।
पूजा सामग्री
महाशिवरात्रि की पूजा सामग्री विशेष होती है. पूजा सामग्री में उन चीजों को प्रयोग में लाया जाता है जो भगवान शिव की प्रिय होती हैं. पूजा सामग्री में शुद्धता और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए. महाशिवरात्रि की पूजा में दही, मौली, अक्षत(चावल), शहद, शक्कर, पांव प्रकार के मौसमी फल, गंगा जल, जनेऊ, वस्त्र, इत्र, कुमकुम, पुष्प, फूलों की माला, खस, शमी का पत्र, लौंग, सुपारी, पान, रत्न, आभूषण, परिमल द्रव्य, इलायची, धूप, शुद्ध जल के साथ-साथ इन चीजों को भी शामिल करते हैं- बेलपत्र भांग मदार धतूरा गाय का कच्चा दूध चंदन रोली कपूर केसर आदि।
महाशिवरात्रि के दिन करें ये कार्य
महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद पाने के लिए कई चीजों का ध्यान रखना चाहिए। जानें इस दिन क्या कार्य अवश्य करने चाहिए।
1. यदि आप महाशिवरात्रि का व्रत कर रहे हैं तो इस दिन सुबह जल्दी उठकर घर की सफाई करें।
2. महाशिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत के अनुष्ठान के लिए साफ कपड़े धारण करें।
3. पूजा मुहूर्त में ही पूजा करें।
4. रुद्राभिषेक शुद्ध मन और भक्ति पूर्वक करें।
5. महाशिवरात्रि के दिन उपवास के नियम का पालन करें।
6. भोलेनाथ से लंबी आयु की इच्छा प्राप्त करने के लिए शिवलिंग पर दुर्वा घास अवश्य चढ़ाएं।
महाशिवरात्रि के दिन ना करें ये कार्य
1. महाशिवरात्रि के दिन उपवास रख रहे हैं तो देर तक ना सोएं।
2. महाशिवरात्रि के दिन भूल कर भी शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा ना करें।
3. महाशिवरात्रि के दिन भक्तों को कभी भी मांस, तंबाकू या शराब का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से भोलेनाथ नाराज हो सकते है।
4. महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ की पूजा करते समय शिवलिंग या मूर्ति पर कुमकुम, हल्दी या नारियल का पानी ना चढ़ाएं। महाशिवरात्रि के व्रत में इन नियमों को अपनाने से भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होते हैं।
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा आराधना कैसे करें |
महाशिवरात्रि की विधि-विधान से विशेष पूजा निशिता या निशीथ काल में होती है। हालांकि चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं। साथ ही महाशिवरात्री के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है। महाशिवरात्रि पर शिवलिंग की पूजा होती है। इस दिन मिट्टी के पात्र या लोटे में जलभरकर शिवलिंग पर चढ़ाएं इसके बाद उनके उपर बेलपत्र, आंकड़े के फूल, चावल आदि अर्पित करें। जल की जगह दूध भी ले सकते हैं।
महाशिवरात्रि पूजा विधि :- शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा आराधना आस्था के साथ की जाती है, तथा इस दिन व्रत धारण कर मनोवांछित फलों की प्राप्ति हेतु प्रार्थना की जाती है। ऐसी मान्यताएं भी है, कि जो कुंवारे लड़के या लड़की महाशिवरात्रि का व्रत धारण करते हैं। तो उनके विवाह संबंधी हो रही अड़चनें दूर हो जाती है तथा कन्या को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।
* शिवरात्रि के दिन जातक सवेरे जल्दी स्नान कर महाशिवरात्रि की पूजा तैयारी करते हैं।
* सर्वप्रथम शिवलिंग पर पंचामृत अभिषेक किया जाता है।
* पंचामृत अभिषेक के बाद भगवान शिव को फूल पुष्प एवं फल आदि समर्पित किए जाते हैं।
* भगवान शिव को चंदन का तिलक लगाया जाता है।
* यथासंभव मंत्र उच्चारण कर भगवान शिव को प्रसन्न किया जाता है।
पूजा करते समय आप इन सभी मंत्रों का उच्चारण कर सकते हैं।
ओम नमः शिवाय,
ॐ सर्वेशेवराय नमः
ओंकार आए नमः
नीलकंठ महादेवाय नमः
‘ओम अघोराय नम:।।
ओम तत्पुरूषाय नम:।।
ओम ईशानाय नम:।।
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय’
इसी के साथ पूजा समाप्त होने के बाद शिव चालीसा का भी पाठ किया जा सकता है। शिव चालीसा पाठ पूर्ण करने के पश्चात भगवान शिव के समक्ष शिवरात्रि के व्रत का संकल्प लेना चाहिए तथा इससे विधि विधान के साथ पूर्ण और अंत में व्रत पारण करना चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
शिव आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
शिवरात्रि व्रत धारण कैसे करें
महाशिवरात्रि व्रत विधि:- महाशिवरात्रि का व्रत प्रत्येक शिव भक्तों को रखना चाहिए। इसी के साथ जो भी जातक किसी भी देव को भजते हैं। उन्हें महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक दुग्ध अभिषेक और यदि संभव हो तो पंचामृत अभिषेक जरूर करना चाहिए। सभी विधियां पूर्ण करने के पश्चात व्रत धारण कर सकते हैं। व्रत धारण करते समय संकल्प जरूर लें और चतुर्दशी या फिर अगले दिन सुबह शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें।
महा शिवरात्रि व्रत की कथा
एक बार भगवान विष्णु एवम ब्रह्मा जी के बीच मत भेद हो जाता हैं. दोनों में से कौन श्रेष्ठ हैं इस बात को लेकर दोनों के बीच मन मुटाव हो जाता हैं. तभी शिव जी एक अग्नि के सतम्भ के रूप में प्रकट होते हैं और विष्णु जी और ब्रह्माजी से कहते हैं कि मुझे इस प्रकाश स्तम्भ कोई भी सिरा दिखाई नहीं दे रहा हैं. तब विष्णु जी एवं ब्रह्मा जी को अपनी गलती का अहसास होता हैं. और वे अपनी भूल पर शिव से क्षमा मांगते हैं. इस प्रकार कहा जाता हैं कि शिव रात्रि के व्रत से मनुष्य का अहंकार खत्म होता हैं.मनुष्य में सभी चीजों के प्रति समान भाव जागता हैं. कई तरह के विकारों से मनुष्य दूर होता हैं l
शिव चालीसा पढ़ते समय ध्यान रखें
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की वंदना व शिव चालीसा का जाप भक्त कभी भी कर सकते हैं लेकिन ये शुद्ध तन और मन से करना चाहिए। साथ ही शिव चालीसा को पढ़ने में त्रुटि न करें। इससे इस जाप का पूर्ण फल नहीं मिलता है।
शिव चालीसा का पाठ कैसे करें?
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु शिव चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए। इस पाठ को करते समय भगवान शिव का ध्यान अवश्य करें। अपने आराध्य भगवान शिव के प्रति अपने भक्ति भाव को प्रकट करें। नीचे दी गई चालीसा पाठ को ध्यान पूर्वक मदद करें और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करें।
दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देखि नाग मन मोहे ॥
मैना मातु की हवे दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा । सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला । जरत सुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो ॥
मात-पिता भ्राता सब होई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु मम संकट भारी ॥
धन निर्धन को देत सदा हीं । जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । शारद नारद शीश नवावैं ॥
नमो नमो जय नमः शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई । ता पर होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा जोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा । ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
दोहा
नित्त नेम कर प्रातः ही,पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु,संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,पूर्ण कीन कल्याण ॥
12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान
1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, गुजरात
2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आंध्र प्रदेश
3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश
4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश
5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंड
6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र
7. विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तर प्रदेश
8. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र
9. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, झारखंड
10. नागेश्वल ज्योतिर्लिंग, गुजरात
11. रामेश्वर ज्योतिर्लिंग, तमिलनाडु
12. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र
भाग्योदय के लिए उपाय
महाशिवरात्रि के मौके पर जागरण करना अत्यंत लाभदायक माना गया है। इस दिन शिवमंत्रों का जाप करने से सोया हुआ भाग्य भी जग जाता है। ऐसा करने से भगवान शिव की कृपा बनी रहती है और घर में सुख शांति रहती है। इस दिन शिवभक्त रात्रि जागरण कर भगवान शंकर की पूजा और जाप करते हैं।
परिवार की सुख समृद्धि के लिए उपाय
महाशिवरात्रि पर शिव और पार्वती की पूजा करना अनिवार्य बताया गया है। इस दिन सवा लाख बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से परिवार में सुख व समृद्धि बढ़ती है। ऐसा माना जाता है कि इससे भय से मुक्ति मिलने के साथ-साथ भोलेनाथ का आशीर्वाद भी मिलता है।
इस दिशा में स्थापित करें भोलेनाथ की मूर्ति
भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत पर है, जो कि उत्तर दिशा में है। इसलिए ध्यान रखें कि भोलेनाथ की मूर्ति उत्तर दिशा में स्थापित करें। साथ ही भगवान शिव की क्रोध मुद्रा वाली प्रतिमा स्थापित नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इसे विनाश का प्रतीक माना जाता है।
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह ज़रूर लें… धन्यवाद्