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अप्रैल के महीने से वित्तीय साल की शुरुआत होती है. बता दें कि अप्रैल महीने के लिए बिजनेस के लिए, इन्वेस्टर और टैक्सपेयर के लिए काफी मायने रखता है. अगर अप्रैल महीने की पहली तारीख का दिन कई मायने में अहम होता है. व्यापार जगत के लिए यह बेहद ही खास होता है. ऐसे में आइए आज जानते हैं आखिर क्यों 1 अप्रैल से फाइनेंशियल ईयर की शुरुआत होती है जबकि नया साल तो एक जनवरी से शुरू होती है। आप सभी के मन में यह आ रहा हूं ना कि वित्त वर्ष 1 अप्रैल से ही क्यों शुरू होता है। 1 जनवरी को क्यों शुरू नहींं होता। आइए जानते हैं।
हम भारतीय कई तरह के नव वर्ष मनाते हैं? जैसे ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी से शुरू होने वाला वर्ष। हिंदू मान्यताओं के अनुसार चैत्र से शुरू होने वाला विक्रम संवत, इसी तरह कई हिंदू परिवारों में शक संवत की मान्यता है। तो इस्लाम के अनुयायियों के बीच हिजरी कैलेंडर के हिसाब से चलने वाला साल लोकप्रिय होता है।इसी तरह भारत में एक और वर्ष बहुत ज्यादा प्रचलन में है। वित्त वर्ष। ऐसा वर्ष जो सीधे-सीधे हमारे जेब के रास्ते, हमारी फ्यूचर प्लानिंग से लेकर हमारी लाइफ-स्टाइल तक हर पहलू पर अपना दखल रखता है। लेकिन क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की है कि वित्त वर्ष की शुरुआत अप्रैल और समाप्ति अगले मार्च में ही क्यों होती है? यदि हां तो ये रिपोर्ट आपके काम की है।दरअसल इसके सीधे तार अंग्रेजी हुकूमत से जुड़ते हैं। गौरतलब है कि अंग्रेज ग्रेगोरियन से पहले जूलियन कैलेंडर का इस्तेमाल करते थे। इस कैलेंडर के मुताबिक साल का आखिरी दिन 25 मार्च होता था। इसलिए ब्रिटिशर्स नए साल के साथ मार्च में ही नए वित्त वर्ष की शुरुआत की थी। करते थे, लेकिन ग्रेगोरियन कैलेंडर, जूलियन कैलेंडर से दस दिन आगे चलता है। इसलिए जब जनवरी से दिसंबर तक चलने वाला ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया गया तो अंग्रेजों का वित्त वर्ष 5 अप्रैल से शुरू होने लगा (क्योंकि जूलियन वर्ष 25 अप्रैल को खत्म होता था)। जानकारों के मुताबिक इस तरह अंग्रेज साल के चौथे महीने यानी अप्रैल से वित्त वर्ष की शुरुआत करने लगे। हालांकि जब नए साल का आरंभ जनवरी से मान लिया गया तो अंग्रेजों ने वित्त वर्ष की शुरुआत जनवरी से क्यों नहीं मानी। इसके जवाब में कुछ इतिहासकार मानते हैं कि ऐसा करने पर लोगों का ध्यान क्रिसमस और नया साल मनाने की बजाय वित्तीय प्रबंधनों से जुड़ी जटिलताओं में ही उलझा रहता। इसलिए इस विचार को छोड़ दिया गया। इसलिए कहा जा सकता है कि बाकी चीजों के लिए भले ही ब्रिटिश ग्रेगोरियन कैलेंडर का इस्तेमाल करने लगे, लेकिन अकाउंटिंग के लिए वे अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, जूलियन कैलेंडर पर ही निर्भर रहे। और ब्रिटेन का उपनिवेश रहने की वजह से भारत में भी यही व्यवस्था लागू कर दी गई, जो आज तक कायम है। इस व्यवस्था को हिंदू नव वर्ष से भी जोड़कर देखा जाता है. हिंदी कैलेंडर का पहला महीना चैत्र, मार्च-अप्रैल में पड़ता है. कुछ जानकारों के अनुसार जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आई तो अंग्रेजों को इस बात का पता चला। इसलिए अंग्रेजों ने अपने व्यापार को भारतीयों से जोड़ने के लिए अप्रैल को ही वित्त वर्ष की शुरुआत के लिए चुना।
* इसके अलावा भारतीय जलवायु भी इसकी एक वजह है। भारत में कृषि के मुख्य रूप से दो चक्र चलते हैं। इनमें से एक चक्र में खरीफ और दूसरे में रबी की फसल उगाई जाती है। जहां खरीफ की फसल की कटाई अक्टूबर-नवंबर में, वहीं रबी की फसल की कटाई मार्च-अप्रैल में की जाती है।
* कृषि प्रधान देश होने की वजह से फसल काटने के बाद का ही वक्त ऐसा होता है जब किसानी और उससे जुड़े व्यापारियों-कारोबारियों के पास पैसा होता है और वे सरकार द्वारा लगाए कर चुका सकते हैं। चूंकि भारत उत्सव प्रधान देश भी है और हमारे यहां ज्यादातर बड़े त्यौहार अक्टूबर-नवंबर में ही पड़ते हैं इसलिए इस दौरान कर की मांग करना शासन के खिलाफ नाराजगी का सबब बन सकता है। इस तरह मार्च-अप्रैल का समय ही इसके लिए सबसे उपयुक्त साबित होता है। माना जाता है कि इस वजह से भी अंग्रेजों के लिए भारत में एक अप्रैल से वित्तीय वर्ष की शुरुआत करना सहूलियत भरा था।
* हालांकि संविधान में वित्तवर्ष को अप्रैल से ही शुरू करने का प्रावधान नहीं है। बल्कि ये परिपाटी सामान्य प्रावधान अधिनियम 1897 के तहत चली आ रही है। यही कारण है कि निजी कंपनियां और कारोबारी संगठन सरकारी वित्त वर्ष के मुताबिक ही अपना लेखा-जोखा रखने के लिए पाबंद नहीं हैं।
कुछ अन्य दिलचस्प जानकारियां
* भारत का पहला बजट 7 अप्रैल 1860 को पेश किया गया था। जबकि 1867 तक वित्त वर्ष की गणना 1 मई से 30 अप्रैल तक मानी जाती रही। हालांकि वर्ष 1867 में ब्रिटिश सरकार के साथ समन्वय स्थापित करने के लिहाज से भारत में भी वित्त वर्ष का समय बदलकर अप्रैल से मार्च कर दिया गया।
* हालांकि 1865 में सुझाव दिया गया था कि- भारत में वित्तवर्ष की शुरुआत जनवरी से की जाए। ये सुझाव देने वालों में 1865 में बने भारतीय खाता जांच आयोग के सदस्य असिस्टेंट पेमास्टर जनरल फॉस्टर और डिप्टी अकाउंटेंट जनरल व्हिफेन ने दिया था। लेकिन भारत के तत्कालीन सचिव इससे सहमत नहीं हुए। उनका मानना था कि ऐसा करने से भारत शासन और ब्रिटिश साम्राज्य के बीच तालमेल गड़बड़ा जाएगा। इसलिए खाता आयोग की सिफारिश को नकार दिया गया।
* इसके बाद वर्ष 1913 में भी इसी तरह का प्रस्ताव रखा गया। तब भारतीय वित्त एवं मुद्रा पर सुझाव के लिए गठित शाही आयोग, जिसे चैम्बरलिन आयोग के नाम से भी जाना जाता है, ने भी कहा था कि- वित्तीय नजरिये से अप्रैल महीने से वित्त वर्ष की शुरुआत करना असुविधाजनक महसूस होता है। इसलिए वित्तवर्ष की शुरुआत 1 अप्रैल के बजाय 1 नवंबर या 1 जनवरी से की जाए। साथ ही चैम्बरलिन आयोग ने इस बात की हिदायत दी थी कि उसकी सलाह को अमल में लाने में कुछ प्रशासनिक कठिनाइयां जरूर आएंगी, लेकिन आगे चलकर ये कदम उल्लेखनीय सुधार लाने वाला साबित होगा।
* इसी तरह आजादी के बाद वर्ष 1958 में लोकसभा की अनुमान समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में वित्त वर्ष की शुरुआत की तारीख बदलने का प्रस्ताव सदन के समक्ष रखा था। समिति ने वित्तवर्ष की शुरुआत 1 अप्रैल के बजाय 1 अक्टूबर से करने की सलाह दी थी।
* वहीं, प्रशासनिक सुधारों के लिए गठित पहले आयोग ने 1966 में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में भी वित्त वर्ष को 1 अप्रैल से शुरू करने के विरोध में राय दी थी। आयोग के वित्तीय प्रशासन अध्ययन दल ने 1 अक्टूबर से नया वित्त वर्ष शुरू करने के पक्ष में तर्क दिए थे।
* वित्त, लेखा एवं अंकेक्षण पर पेश चौथी रिपोर्ट में भी कहा गया था कि 1 अप्रैल से वित्त वर्ष की शुरुआत न तो भारत की परंपराओं पर आधारित है और न ही यह हमारे देश की जरूरत पर आधारित है। हमारी अर्थव्यवस्था अब भी मूलत: कृषि पर आधारित है, ऐसे में वास्तविक वित्त वर्ष राजस्व का सटीक आकलन करने में सहयोग देने वाला और कामकाजी मौसम के अनुरूप होना चाहिए। वर्ष 1983-84 में राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक के बाद तत्कालीन वित्त मंत्री ने एक बार फिर इस मुद्दे को उठाते हुए राज्यों के मुख्यमंत्रियों से उनकी सलाह मांगी। इस पर अपनी बात रखने वाले लगभग सभी मुख्यमंत्रियों ने वित्त वर्ष में बदलाव का समर्थन किया। यह अलग बात है कि वित्त वर्ष के नए समय को लेकर उनकी राय बंटी हुई थी। उनमें से कई मुख्यमंत्रियों ने कहा कि मॉनसून के बाद खरीफ की उपज को लेकर अनुमान लगाना अधिक आसान होता है। वहीं कुछ मुख्यमंत्रियों ने नए साल के साथ ही वित्त वर्ष की भी शुरुआत करने का समर्थन किया। कुछ लोगों का कहना था कि 1 जुलाई से वित्त वर्ष शुरू होने से विकास कार्यों को तेजी दे पाना आसान होगा।
* इन सुझावों पर विचार के लिए गठित एल के झा समिति ने वर्ष 1984 में पेश अपनी रिपोर्ट में 1 जनवरी से वित्त वर्ष शुरू करने का प्रस्ताव रखा था। वित्त मंत्री को लिखे पत्र में कहा था, हमें ऐसा लगता है कि वित्त वर्ष को जनवरी-दिसंबर करना काफी लाभप्रद होगा क्योंकि इससे बजट को नवंबर में पेश किया जा सकेगा। उस समय तक खरीफ फसल की उपज के बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध होती है और रबी फसल के बारे में भी अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसा करने से न केवल राष्ट्रीय लेखा के लिए सांख्यिकी आंकड़े जुटाए जा सकेंगे बल्कि अंतरराष्ट्रीय परंपरा के भी अनुकूल होगा। इसके अलावा वित्त वर्ष और कैलेंडर साल अलग-अलग होने से पैदा होने वाला भ्रम भी दूर होगा।
* हालांकि इन सुझावों को नकारते हुए सरकार ने दलील दी थी कि वित्त वर्ष में बदलाव से कुछ खास फायदे नहीं होंगे और आंकड़ा जुटाने में भी समस्या होगी। इसलिए इसका लागू नहीं किया जा सका था।
वित्तीय वर्ष क्या हैं?
* एक वित्तीय वर्ष 12 महीने की अवधी है जिसका उपयोग सरकार अपनी व्यवसाय और अन्य संगठनों से बजट के लाभ और हानि की गणना के लिए उपयोग किया जाता है। इसे शॉर्ट फॉर्म में YS भी कहा जाता है।
* Financial year जिसका हिंदी में अर्थ होता है वित्तीय वर्ष । इनकम टैक्स की लैंग्वेज में वित्तीय वर्ष उस साल भर भरने की अवधि को कहते हैं। जिसके दौरान आप कमाई और खर्च दोनों करते हैं। भारत में यह वर्ष में 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है। सरकार अपनी आमदनी और खर्च काफी कैलकुलेशन लगाती है। सरकार गणना की इसी अवधि को सरकार वित्त वर्ष के रूप में मनाती है। सरकार बजट भी इसी अवधि के लिए बनाता है। और लागू करता है।
असेसमेंट वर्ष
Aseesment year इसका अर्थ हिंदी में मूल्यांकन वर्ष या गणना (आकलन) वर्ष होता है। यह वित्त वर्ष खत्म होने की ठीक अगली तारीख से चालू होता है। आपने वित्त वर्ष के अंदर कमाया गया धन और उस पर निकलने वाला टैक्स बनता है। इसका निर्धारण वित्त वर्ष पूरा होने के बाद ही हो पाता है। assesment year में आप अपना बचा वाला टेक्स इसकी समय अवधि में करना पड़ता है। इसके बाद है रिटर्न् दाख़िल करना होगा है। जिसमें आपको टैक्स और कमाया गया धन का इंफॉर्मेशन देना होता है। इसे शॉर्ट फॉर्म में AY लिखा जाता है।
वित्त वर्ष 1 अप्रैल से ही क्यों शुरू होता है।
* जैसा कि आप जानते हैं भारत में अंग्रेजों का लंबे समय तक शासन रहा है। जो कि ब्रिटेन से आए थे ब्रिटेन में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 30 मार्च तक होता है भारत के आजाद होने के बाद भी शासन उनके बहुत से नियम और तरीके लागू रहे।
* हिंदू कैलेंडर के हिसाब से भी नए साल की शुरुआत चैत्र के महीने नवरात्रि से शुरू होती है। यह प्रायः प्रायः मार्च के अंत में और अप्रैल की शुरुआत में ही पड़ती है। इससे भी अप्रैल का नए वित्त वर्ष का पहला महीना मानते हैं। इसी आधार पर वित्तीय वर्ष का पहला महीना माना जाता है।
* कई देशों की वित्तीय प्रणाली अलग-अलग होती है। क्योंकि यह वहां की मौसम और इलेक्शन के हिसाब से तय की गई है। जैसे कि अमेरिका में वित्त वर्ष 1 अक्टूबर से 30 सितंबर तक होता है। और वही ऑस्ट्रेलिया का वित्तीय वर्ष 1 जुलाई से 30 जून तक होता है।
याद रखने योग्य बातें
●Financial year को हिंदी में वित्त वर्ष भी कहा जाता है।
●Short में financial year को FY कहा जाता हैं।
●हमारे देश में फाइनेंसियल ईयर 1 अप्रैल से शुरू होकर 31 मार्च को समाप्त हो जाता है।
●वित्त वर्ष में कमाया गया धन उस का निर्धारण assessment year में किया जाता है।
1 अप्रैल से लागू हो सकते हैं ये बदलाव; आपकी जेब पर ऐसे होगा असर
1 अप्रैल से देश में नया वित्त वर्ष 2022-23 शुरू होने वाला है। नए वित्त वर्ष के साथ ही देश में कुछ नए नियम या यूं कहें कि कुछ बदलाव लागू हो जाएंगे हैं। इन बदलावों का असर देश के आम आदमी से लेकर अमीरों तक पर पड़ने वाला है। 1 अप्रैल से देश में जो बदलाव लागू होने वाले हैं, उनमें बैंकिंग, टैक्स, कार कीमतों से जुड़े बदलाव आदि शामिल हैं। कुछ बदलाव वे हैं, जिनकी घोषणा बजट 2022 के दौरान हुई थी। आइए डालते हैं एक नजर इन सभी बदलावों पर।
क्रिप्टोकरेंसी पर लगेगा टैक्स
बजट 2022 में ऐलान हो चुका है कि क्रिप्टोकरेंसी समेत वर्चुअल डिजिटल एसेट्स की बिक्री/ट्रान्सफर से होने वाली कमाई 30 फीसदी टैक्स के दायरे में आएगी। साथ ही वर्चुअल डिजिटल एसेट्स के ट्रान्सफर के दौरान अगर पेमेंट एक वित्त वर्ष में 10,000 रुपये से ज्यादा का रहा तो 1 फीसदी टीडीएस कटेगा। क्रिप्टोकरेंसी की बिक्री से होने वाले गेन पर 30 फीसदी टैक्स का नियम 1 अप्रैल 2022 से प्रभावी होगा, वहीं 10000 रुपये से ज्यादा के लेनदेन पर 1 फीसदी टीडीएस का नियम 1 जुलाई 2022 से लागू होगा। यह भी प्रस्ताव है कि क्रिप्टो पेमेंट पर टीडीएस के लिए थ्रेसहोल्ड लिमिट विशिष्ट व्यक्तियों के लिए 50,000 रुपये प्रति वर्ष होगी। इन खास लोगों में ऐसे व्यक्ति/एचयूएफ शामिल हैं जिनके लिए आयकर अधिनियम के तहत अपने खातों का ऑडिट कराना आवश्यक है।
एक्सिस बैंक का नया नियम
एक्सिस बैंक ने सेविंग्स अकाउंट के लिए एवरेज मंथली बैलेंस की लिमिट को 10000 रुपये से बढ़ाकर 12,000 रुपये कर दिया है। बैंक के ये नियम 1 अप्रैल 2022 से लागू हो जाएंगे। एक्सिक बैंक ने मेट्रो/अर्बन शहरों में ईजी सेविंग्स एंड इक्विलेंटट स्कीम्स की मिनिमम बैलेंस लिमिट को बढ़ाया है। यह बदलाव उन्हीं स्कीमों पर लागू होगा, जिनमें एवरेज बैलेंस 10000 रुपये जरूरी है।
होम लोन लेने वालों को झटका
सरकार ने बजट 2019 में आयकर कानून में नया सेक्शन 80EEA जोड़ा था। इस सेक्शन के तहत प्रावधान किया गया कि पहली बार घर खरीदने वालों को होम लोन के ब्याज पेमेंट पर 1.5 लाख रुपये तक की अतिरिक्त टैक्स कटौती का फायदा दिया जाएगा। यह फायदा सेक्शन 24 के अंतर्गत होम लोन के ब्याज पर मैक्सिमम 2 लाख रुपये तक के टैक्स डिडक्शन क्लेम के फायदे के इतर है। तब प्रावधान किया गया था कि सेक्शन 80EEA का फायदा केवल वही लोग ले सकेंगे, जिन्होंने अप्रैल 2019 से मार्च 2020 के बीच लोन लिया हो। इसके बाद बजट 2020 में सरकार ने इस डेडलाइन को मार्च 2021 तक के लिए बढ़ाया और फिर बजट 2021 में इस राहत को और एक साल के लिए बढ़ा दिया गया। लेकिन बजट 2022 में इस सेक्शन को आगे के लिए एक्सटेंड नहीं किया गया है और न ही अभी तक कोई नया अपडेट आया है। इसलिए हो सकता है कि 31 मार्च 2022 के बाद सेक्शन 80EEA का फायदा न मिले।
दवाइयां हो जाएंगी महंगी
अगले माह से दवाइयों के और महंगा होने के लिए तैयार रहें। पेन किलर, एंटीबायोटिक्स, एंटी-वायरस जैसी कई दवाइयों की कीमतें बढ़ने वाली हैं। चुनिंदा दवाइयों की कीमतों में 1 अप्रैल 2022 से 10 फीसदी से ज्यादा का इजाफा होने वाला है। सरकार के इस फैसले के बाद करीब 800 से ज्यादा दवाइयों के दाम बढ़ जाएंगे।
डाकघर सेविंग्स स्कीम्स से जुड़ा नियम
जब कोई व्यक्ति डाकघर की मंथली इनकम स्कीम (MIS), सीनियर सिटीजन सेविंग्स स्कीम (SCSS) या डाकघर टाइम डिपॉजिट (TD) में निवेश करता है, तो उन्हें उनके द्वारा चुने गए विकल्प के अनुरूप मासिक, तिमाही या सालाना आधार पर नियमित ब्याज प्राप्त होता है। डाक विभाग ने कहा है कि 1 अप्रैल, 2022 से इन बचत योजनाओं पर अर्जित ब्याज, केवल स्कीम से लिंक खाताधारक के डाकघर बचत खाते या बैंक खाते में ही जमा किया जाएगा। यदि कोई खाताधारक 31.03.2022 तक अपने बचत खाते को एमआईएस/एससीएसएस/टीडी खातों से लिंक करने में सक्षम नहीं है और एमआईएस/एससीएसएस/टीडी विविध कार्यालय खातों में ब्याज जमा किया जाता है, तो बकाया ब्याज का भुगतान केवल क्रेडिट के माध्यम से डाकघर बचत खाते में किया जाना चाहिए या चेक द्वारा किया जाना चाहिए। 1 अप्रैल 2022 से एमआईएस/एससीएसएस/टीडी विविध कार्यालय खाते से नकद में ब्याज भुगतान की अनुमति नहीं होगी।
म्यूचुअल फंड में निवेश के नियम
1 अप्रैल से म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए भुगतान, चेक, बैंक ड्राफ्ट या अन्य किसी भौतिक माध्यम से नहीं कर पाएंगे। म्यूचुअल फंड ट्रांजेक्शन एग्रीगेशन पोर्टल एमएफ यूटिलिटीज (एमएफयू) 31 मार्च 2022 से चेक-डिमांड ड्राफ्ट आदि के जरिए पेमेंट सुविधा को बंद करने जा रहा है। 1 अप्रैल, 2022 से म्यूचुअल फंड में पैसे लगाने के लिए आपको सिर्फ यूपीआई या नेटबैंकिंग के जरिए ही भुगतान करना होगा।
दो एक्सप्रेसवे पर टोल से जुड़ा नियम
1 अप्रैल से कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेसवे पर सफर करना महंगा हो जाएगा। एचएसआई आईडीसी ने दूरी के हिसाब से वाहनों को श्रेणी में बांटकर नई टोल दरें तय की हैं। ये दरें 31 मार्च रात 12 बजे के बाद से लागू हो जाएंगी। कार, जीप व वैन के लिए टोल पर पर करीब 15 पैसे प्रति किलोमीटर की बढ़ोतरी की गई है। टोल दरों में औसतन 8-9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस वे पर 1 अप्रैल 2021 से चल रहा मुफ्त सफर अब थम गया है। वाहन चालकों को अब 1 अप्रैल 2022 से इस एक्सप्रेस वे पर टोल टैक्स चुकाना पड़ेगा। दिल्ली से डासना तक टोल नहीं देना होगा पर दिल्ली से मेरठ तक पूरे मार्ग का टोल चुकाना होगा।
वाहन होने जा रहे महंगे
कुछ वाहन कंपनियों ने 1 अप्रैल से अपने व्हीकल के दामों में बढ़ोतरी का ऐलान किया है। टाटा मोटर्स ने कहा है कि वह अपने वाणिज्यिक वाहनों की कीमतें 1 अप्रैल से 2 से 2.5 फीसदी तक बढ़ाएगी। मर्सिडीज बेंज इंडिया ने भी कहा है कि वह एक अप्रैल से अपने वाहनों की कीमत तीन फीसदी तक बढ़ाएगी। टोयोटा 1 अप्रैल 2022 से अपनी गाड़ियों की कीमतों को 4 फीसदी तक बढ़ा देगी। बीएमडब्ल्यू कीमतों में 3.5 फीसदी की बढ़ोतरी करेगी।
महाराष्ट्र में सीएनजी सस्ती
महाराष्ट्र में 1 अप्रैल से सीएनजी सस्ती (CNG) हो जाएगी। महाराष्ट्र सरकार ने सीएनजी पर वैट घटाने की अधिसूचना जारी कर दी है। सीएनजी पर अभी 13.5 प्रतिशत वैट लगता है, जिसे महाराष्ट्र सरकार 1 अप्रैल से घटाकर 3 प्रतिशत कर रही है। 11 मार्च को विधानसभा में बजट पेश करते हुए महाराष्ट्र के वित्तमंत्री अजीत पवार ने इस बारे में ऐलान किया था।
GST से जुड़ा नया नियम
20 करोड़ रुपये से अधिक टर्नओवर वाले व्यवसायों को एक अप्रैल से बी2बी (व्यवसाय से व्यवसाय) लेनदेन के लिए इलेक्ट्रॉनिक चालान काटना होगा। माल एवं सेवा कर (GST) कानून के तहत बी2बी लेनदेन पर 500 करोड़ रुपये से अधिक टर्नओवर वाली कंपनियों के लिए एक अक्टूबर 2020 से ई-चालान अनिवार्य कर दिया गया था। बाद में इसे 100 करोड़ रुपये से अधिक टर्नओवर वाली कंपनियों के लिए अनिवार्य बना दिया गया।
कुछ चीजें सस्ती, कुछ महंगी
बजट 2022 में कई चीजों पर कस्टम ड्यूटी, आयात शुल्क समेत तमाम शुल्क बढ़ाए और घटाए जाने की घोषणा हुई थी। घोषणा के अनुरूप 1 अप्रैल 2022 से कुछ चीजें महंगी हो सकती हैं और कुछ चीजों के दाम घट सकते हैं। बजट 2022 में चमड़ा, कपड़ा, खेती का सामान, पैकेजिंग के डिब्बे, मोबाइल फोन चार्जर और जेम्स एंड ज्वैलरी, मेंथा ऑयल, फ्रोजन मसल्स, फ्रोजन स्क्विड, हींग, कोको बीन्स, मिथाइल अल्कोहल, एसिटिक एसिड, सेल्युलर मोबाइल फोन के लिए कैमरा लेंस आदि पर शुल्क घटाने का ऐलान किया गया था। वहीं कैपिटल गुड्स, विदेशी छाता, इमिटेशन ज्वैलरी, लाउडस्पीकर, हेडफोन और ईयरफोन, स्मार्ट मीटर, सोलर सेल, सोलर मॉड्यूल, एक्स-रे मशीन, इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों के पुर्जे आदि भी महंगे हो सकते हैं।
1 अप्रैल से नियम में हो रहा है बड़ा बदलाव, जानिए 5 प्रमुख बातें
* अगर किसी प्रोविडेंट फंड सब्सक्राइबर का सालाना कंट्रीब्यूशन 2.5 लाख से ज्यादा होगा तो उसका दो अलग-अलग अकाउंट बनाया जाएगा. पहले पीएफ अकाउंट में 2.5 लाख रुपए जमा किए जाएंगे. उससे ज्यादा की राशि दूसरे अकाउंट में जमा की जाएगी. इससे टैक्स का कैलकुलेशन आसान होगा.
* प्रोविडेंट फंड को लेकर यह नियम 1 अप्रैल 2022 से लागू हो रहा है. सरकार का अनुमान है कि 1 लाख 23 हजार हाई इनकम इंडिविजुअल्स पर बदले नियम का असर होगा. सरकार के मुताबिक, ये लोग अब तक एक साल में औसतन 50 लाख से ज्यादा टैक्स फ्री इंट्रेस्ट कमा रहे थे. अब इनलोगों की ऐसी कमाई पर रोक लगेगी.
* बजट 2021-22 पेश करते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा था कि 2.5 लाख की लिमिट में एंप्लॉयी और एंप्लॉयर दोनों का कंट्रीब्यूशन शामिल है. बेसिक सैलरी का 10 या 12 फीसदी एंप्लॉयी जमा करता है. एंप्लॉयर अपने हिस्से में से 3.67 ईपीएफ में जमा करता है, जबकि EPS में 8.33 फीसदी जमा किया जाता है.
* टैक्स का कैलकुलेशन आसान करने के लिए एक पीएफ कंट्रीब्यूटर के लिए दो पीएफ अकाउंट बनाए जाएंगे. इसके लिए इनकम टैक्स एक्ट में जरूरी बदलाव किए गए हैं. इसके बाद ही CBDT की तरफ से नोटिफिकेशन जारी किया गया था. इस नोटिफिकेशन के मुताबिक, 1 अप्रैल 2021 से जो वित्त वर्ष जारी है उसमें दोनों अकाउंट के लिए अलग-अलग इंट्रेस्ट का कैलकुलेशन किया जाएगा. हालांकि, इस नियम को 1 अप्रैल 2022 से प्रभाव में लाया जाएगा.
* जिसका पीएफ कंट्रीब्यूशन 2.5 लाख से ज्यादा है उसके अकाउंट को पहले ही दो हिस्सों में बांटा जा चुका है. 1 अप्रैल से लागू होने का मतलब है कि चालू वित्त वर्ष में 2.5 लाख के अलावा एडिशनल कंट्रीब्यूशन पर जो इंट्रेस्ट इनकम हुई है, वह टैक्सेबल होगी. बता दें कि पीएफ में निवेश करने पर 80सी के तहत डिडक्शन का लाभ मिलता है जिसकी लिमिट 1.5 लाख रुपए है. इंट्रेस्ट इनकम पूरी तरह टैक्स फ्री है. नए नियम में केवल 2.5 लाख तक निवेश पर ही इंट्रेस्ट इनकम टैक्स फ्री होगी. इसके अलावा मैच्योरिटी पूरी तरह टैक्स प्री होता है।