डांस केवल मनोरंजन का एक साधन नहीं है बल्कि यह भावनाओं को अभिव्यक्त करने का साधन भी रहा है. आप अपने हर भाव को दूसरों तक पहुंचाने के लिए डांस का सहारा ले सकते हैं. यही नहीं, डांस के माध्यम से समाज में जागरुकता फैलाने का काम भी बरसों से किया जाता रहा है. तो आइए जानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस का इतिहास क्या है और इसका क्या महत्व है।
भारत में नृत्य की परंपरा सदियों पुरानी है| ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग में नृत्य की उत्पत्ति हुई थी| वर्तमान में भी भारत में कई तरीके के नृत्य प्रसिद्ध हैं जैसे भरतनाट्यम, ओडिसी, कुच्चीपुड़ी कथककली, आदि| भारत समेत विश्व में नृत्य की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक दिन अंतराष्ट्रीय नृत्य दिवस के रूप में मनाया जाता है| आइये जानते हैं अंतराष्ट्रीय नृत्य दिवस कब मनाया जाता है (World dance day) और क्या इस दिन का इतिहास:
अंतराष्ट्रीय नृत्य दिवस कब मनाया जाता है
अंतराष्ट्रीय नृत्य दिवस हर साल 29 अप्रैल को मनाया जाता है| इसकी शुरुआत इंटरनेशनल थिएटर इंस्टिट्यूट की डांस कमिटी ने वर्ष 1982 में करी थी| इस वर्ष 40 वां अंतराष्ट्रीय नृत्य दिवस मनाया जाएगा| 29 अप्रैल को आधुनिक बैले डांस के निर्माता जीन-जॉर्जेस नोवारे (1727-1810) का जन्मदिन होता है| अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस का उद्देश्य नृत्य का जश्न मनाना, इस कला रूप की सार्वभौमिकता में आनंद लेना, सभी राजनीतिक, सांस्कृतिक और जातीय बाधाओं को पार करना, और लोगों को नृत्य की भाषा से एक साथ लाना है| अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस, अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (आईटीआई) की नृत्य समिति द्वारा बनाया गया था, जो यूनेस्को की प्रदर्शन कलाओं के लिए मुख्य भागीदार है| यह दिन उन लोगों के लिए एक उत्सव का दिन है जो कला के रूप “नृत्य” के मूल्य और महत्व को समझते हैं, और सरकारों, राजनेताओं और संस्थानों के लिए एक वेक-अप-कॉल के रूप में कार्य करते हैं जिन्होंने अभी तक लोगों और व्यक्ति के लिए डांस के मूल्य को मान्यता नहीं दी है और अभी तक आर्थिक विकास के लिए नृत्य की क्षमता का एहसास नहीं किया है|
अंतराष्ट्रीय नृत्य दिवस कैसे मनाते हैं
1982 में अपने निर्माण के बाद से, अंतर्राष्ट्रीय नृत्य समिति और अंतर्राष्ट्रीय थिएटर संस्थान हर साल अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस के लिए एक संदेश लिखने के लिए एक उत्कृष्ट नृत्य व्यक्तित्व का चयन करते हैं| अंतराष्ट्रीय नृत्य दिवस पर हर साल एक उत्कृष्ट कोरियोग्राफर या डांसर से एक संदेश दुनिया भर में प्रसारित किया जाता है| संदेश के लेखक का चयन आईटीआई की अंतर्राष्ट्रीय नृत्य समिति और आईटीआई की कार्यकारी परिषद द्वारा किया जाता है| संदेश का कई भाषाओं में अनुवाद किया जाता है और विश्व स्तर पर उसे प्रसारित किया जाता है| इस साल 2022 में अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस की 40वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। इस साल 2022 का संदेश कोरियाई राष्ट्रीय बैले की आर्टिस्टिक डायरेक्टर ‘डांसर कांग सू-जिन‘ ने लिखा है। इसके अलावा आपको बता दें, कि अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस 1986 में यह मैसेज पहली बार भारतीय नर्तकी ‘चेतना जालान‘ ने लिखा था। इस साल की सन्देश लेखक कांग-सुई-जिन द्वारा लिखा गया है| जो कि “Dance is the hidden language of the soul” है|
अंतराष्ट्रीय नृत्य दिवस का लक्ष्य
अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस के लक्ष्य हैं-
* दुनिया भर में अपने सभी रूपों में नृत्य को बढ़ावा देना।
* लोगों को डांस के सभी रूपों के मूल्य के बारे में जागरूक करना।
* नृत्य समुदाय को व्यापक पैमाने पर अपने काम को बढ़ावा देने में सक्षम बनाने के लिए, ताकि सरकारें और नेता नृत्य के सभी रूपों के मूल्य और महत्व के बारे में जान सकें और और इसका समर्थन करें।
* खुद के लिए, नृत्य के सभी रूपों का आनंद लेना।
* दूसरों के साथ नृत्य की खुशी साझा करना।
इंटरनेशनल डांस डे से जुड़े फैक्ट्स
* अन्तर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस यानि इंटरनेशनल डांस डे को सर्वप्रथम 1982 में मनाया गया था।
* इस दिवस को मनाने का श्रेय आईटीआई (इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट) की इंटरनेशनल डांस कमेटी को जाता है।
* यह दिवस 19 वीं सदी के फ्रैंच डांसरJean Georges Noverre को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है।
* यह इंटरनेशनल स्तर पर तय की गई निर्धारित थीम द्वारा मनाया जाता है।
* इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य दुनियाभर में डांस की विधाओं को प्रसिद्ध करना और दुनियाभर के डांसरों को प्रोत्साहित करना है।
* डांस एक ऐसी क्रिया है जिसका प्रयोग शरीर को रोगों से दूर रखने के लिए भी किया जाता है।
* डांस सबके मन को भाता है और शारीरिक ही नहीं हमारे मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है इसीलिए डांस को महत्व देना महत्वपूर्ण है।
* यदि हम डांस की उत्पत्ति की बात करें तो 2000 साल पहले ब्रह्मा जी द्वारा नृत्य वेद तैयार किया गया था। जिसके माध्यम से नृत्य की उत्पत्ति हुई थी।
* दुनिया भर में इंटरनेशनल डांस डे के दिन नुक्कड़ नाटक, प्रदर्शनी और सभी प्रकार के नृत्य विधाओं की सुसज्जित शाम तथा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
नृत्य के फायदे
* रेगुलर नाचने से मांसपेशियां मजबूत होती है।
* वजन कम करने में सहायक है।
* आत्मविश्वास (कॉन्फिडेंस) बढ़ता है।
* एकाग्रता (फोकस)।
* डांस एक एंटी एजिंग का काम करता है।
* यह एक तरह कि एक्सरसाइज ही होती है।
* थकान और आलस दूर होता है
*.तनावमुक्त नींद आती है।
नृत्य वेद की उत्पत्ति
कहा जाता है कि आज से 2000 वर्ष पूर्व त्रेतायुग में देवताओं की विनती पर ब्रह्माजी ने नृत्य वेद तैयार किया, तभी से नृत्य की उत्पत्ति संसार में मानी जाती है। इस नृत्य वेद में सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद व ऋग्वेद से कई चीजों को शामिल किया गया। जब नृत्य वेद की रचना पूरी हो गई, तब नृत्य करने का अभ्यास भरत मुनि के सौ पुत्रों ने किया।
भारत
में नृत्य दिवस बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है
भारत समेत पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, साथ ही इस दिन नृत्य कलाओं एवं डांस कंपटीशन आदि का आयोजन किया जाता है।अंतर्राष्ट्रीय डांस दिवस के ख़ास मौके पर स्कूलों में नाच पर निबंध और चित्रकारी के कॉम्पटीशन के आयोजित किए जाते हैं। या फिर कोई विशेष नृत्य पुरस्कार समारोह का इवेंट भी किया जा सकता है।भारत में कुछ ऐसे डांसर हैं जिनका देश और दुनिया भर में लोहा माना जाता है और भारत में इसका इतिहास कई युगों पुराना है।
भारत की कुछ मशहूर मृत्य कलाएं
भारत में नृत्य कला कितना प्राचीन और समृद्ध है, इसका अनुमान आप इस बातें ही लगा सकते हैं कि स्वयं भगवान शिव तांडव नृत्य करते थे। स्वर्ग लोक में भी इंद्र के दरबार की कार्यवाही अप्सराओं द्वारा नृत्य की प्रस्तुति के बाद ही होती थी, जिसके बाद यह परंपरा राजा महाराजाओं के दौर में भी देखने को मिली। जैसा की आप सभी को मालूम है भारत के इतिहास में त्योहारों, शादी समारोह इत्यादि में विशेष नृत्य कला केवल आज से नहीं बल्कि काफी समय से देखी जा रहे हैं, और इसके कई हजारों सबूत लेखो में मिलते है, जिस प्रकार विश्व का सबसे पुराना धर्म सनातन धर्म में उसी प्रकार भारत की नृत्य कला की सबसे पुरानी है।भारतीय नृत्य कला को केवल भारत में नहीं बल्कि देश विदेश में भी काफी पसंद किया जाता है, और आज भी हमे हजारों साल पुराने नृत्य कला इसमें भरतनाट्यम, कथकली, कुचिपुड़ी, मोहिनीअट्टम, मणिपुरी, बिहु नृत्य, भांगड़ा, कत्थक सबसे मुख्य है वह आज भी देखने को मिल जाती है। लेकिन वही दूसरी और से विकास के साथ-साथ भारतीय नृत्य कला धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है। इसका मुख्य कारण है कि भारत के लोग वेस्टर्न कल्चर को काफी तेज़ी से अपना रहे है। लेकिन हमे और आपको अपनी नृत्य कला की विरासत को बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस मौके पर लोगो भारतीय संस्कृति और नृत्य कला के प्रति जागरूक करना होगा।
कथकली : कथकली नृत्य 17 वीं शताब्दी में केरल राज्य से आया। इस नृत्य में आकर्षक वेशभूषा, इशारों व शारीरिक थिरकन से पूरी एक कहानी को दर्शाया जाता है। इस नृत्य में कलाकार का गहरे रंग का श्रृंगार किया जाता है, जिससे उसके चेहरे की अभिव्यक्ति स्पष्ट रूप से दिखाई दे सके।
मोहिनीअट्टम : मोहिनीअट्टम नृत्य कलाकार का भगवान के प्रति अपने प्यार व समर्पण को दर्शाता है। इसमें नृत्यांगना सुनहरे बॉर्डर वाली सफेद सा़ड़ी पहनकर नृत्य करती है, साथ ही गहने भी काफी भारी-भरकम पहने जाते हैं। इसमें सादा श्रृंगार किया जाता है।
ओडिसी : उ़ड़ीसा राज्य का यह प्रमुख नृत्य भगवान कृष्ण के प्रति अपनी आराधना व प्रेम दर्शाने वाला है। इस नृत्य में सिर, छाती व श्रोणि का स्वतंत्र आंदोलन होता है। भुवनेश्वर स्थित उदयगिरि की पहा़ड़ियों में इसकी छवि दिखती है। इस नृत्य की कलाकृतियाँ उड़ीसा में बने भगवान जगन्नाथ के मंदिर पुरी व सूर्य मंदिर कोणार्क पर बनी हुई हैं।
कथक : इस नृत्य की उत्पत्ति उत्तरप्रदेश से की गई, जिसमें राधाकृष्ण की नटवरी शैली को प्रदर्शित किया जाता है। कथक का नाम संस्कृत शब्द कहानी व कथार्थ से प्राप्त होता है। मुगलराज आने के बाद जब यह नृत्य मुस्लिम दरबार में किया जाने लगा तो इस नृत्य पर मनोरंजन हावी हो गया।
भरतनाट्यम : यह शास्त्रीय नृत्य तमिलनाडु राज्य का है। पुराने समय में मुख्यतः मंदिरों में नृत्यांगनाओं द्वारा इस नृत्य को किया जाता था। जिन्हें देवदासी कहा जाता था। इस पारंपरिक नृत्य को दया, पवित्रता व कोमलता के लिए जाना जाता है। यह पारंपरिक नृत्य पूरे विश्व में लोकप्रिय माना जाता है।
कुचिपुड़ी : आंध्रप्रदेश राज्य के इस नृत्य को भगवान मेला नटकम नाम से भी जाना जाता है। इस नृत्य में गीत, चरित्र की मनोदशा एक नाटक से शुरू होती है। इसमें खासतौर से कर्नाटक संगीत का उपयोग किया जाता है। साथ में ही वायलिन, मृदंगम, बांसुरी की संगत होती है। कलाकारों द्वारा पहने गए गहने ‘बेरुगू’ बहुत हल्के लक़ड़ी के बने होते हैं।
मणिपुरी : मणिपुरी राज्य का यह नृत्य शास्त्रीय नृत्यरूपों में से एक है। इस नृत्य की शैली को जोगाई कहा जाता है। प्राचीन समय में इस नृत्य को सूर्य के चारों ओर घूमने वाले ग्रहों की संज्ञा दी गई है। एक समय जब भगवान कृष्ण, राधा व गोपियाँ रासलीला कर रहे थे तो भगवान शिव ने वहाँ किसी के भी जाने पर रोक लगा दी थी, लेकिन माँ पार्वती द्वारा इच्छा जाहिर करने पर भगवान शिव ने मणिपुर में यह नृत्य करवाया।
नृत्य प्रकृति है, जिसमें आप अपने दिल की सुनो, नृत्य अपनी लय के साथ नृत्य करता है। शास्त्रीय नृत्य और संगीत में जाने वाली सबसे बड़ी चीज है कि आपको अपने दिमाग और आत्मा के बीच संतुलन लाना है।