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हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। यूं तो हर साल कुल चार नवरात्रि आते हैं, लेकिन चैत्र व शारदीय नवरात्रि खास होते हैं। चैत्र नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। मां जगदंबे को प्रसन्न करने के लिए भक्त व्रत रखते हैं और उनकी विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि में घटस्थापना की जाती है। चैत्र नवरात्रि के आखिरी दिन रामनवमी मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन ही भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। नवमी से ठीक एक दिन पहले दुर्गा अष्टमी मनाते हैं।
चैत्र नवरात्रि अब अंतिम पड़ाव पर हैं। आज यानी 9 अप्रैल 2022, शनिवार को मां दुर्गा के आठवें स्वरूप की पूजा की जाती है। नवरात्रि की अष्टमी तिथि को मां दुर्गा के मां महागौरी स्वरूप की उपासना की जाती है। मां महागौरी का रंग पूर्णता गोरा होने के कारण ही इन्हें महागौरी या श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है । मान्यता है कि मां महागौरी की पूजा करने से धन व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार इनके तेज से संपूर्ण जगत प्रकाशमय है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शुंभ और निशुंभ से पराजित होने के बाद सभी देवी देवताओं ने गंगा नदी के तट पर मां भगवती के इस स्वरूप से ही अपनी रक्षा की प्रार्थनी की थी। माता की चारो भुजाओं में त्रिशूल और डमरू विराजमान है, इनकी उपमा शंख, चंद और कुंद के फूल से की गई है।माता को सफेद रंग अत्यंत प्रिय है, इस दिन माता को गुड़हल का फूल अर्पित करने और मिठाइयों का भोग लगाने से सुख समृद्धि के साथ सौभाग्य की प्राप्ति होती है। तथा सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। माता के इस स्वरूप को अन्नपूर्णा, ऐश्वर्य, प्रदायिनी और चैतन्यमय भी कहा जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं महागौरी की पूजा विधि, मंत्र, आरती और पौराणिक कथा के बारे में संपूर्ण जानकारी।
दुर्गा अष्टमी पर बन रहा ये शुभ योग
हिंदू पंचांग के अनुसार, 10 अप्रैल 2022 को देर रात 01 बजकर 23 मिनट तक अष्टमी तिथि रहेगी। इसके बाद नवमी तिथि लग जाएगी। वहीं, 9 अप्रैल को सुबह 11 बजकर 25 मिनट के बाद सुकर्मा योग लग जाएगा। सुकर्मा योग को ज्योतिष शास्त्र में शुभ योगों में गिना जाता है। इस योग में किए गए कार्यों में सफलता प्राप्त होने की मान्यता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, सुकर्मा योग में किसी नौकरी को ज्वॉइन करना व मांगलिक कार्य करना बेहद उत्तम रहता है।
चैत्र नवरात्रि अष्टमी महत्व
शास्त्रों के अनुसार, अष्टमी तिथि के दिन मां दुर्गा की विधि-विधान के साथ पूजा करने से सुख-शांति व समृद्धि की प्राप्ति होती है। मां दुर्गा की कृपा से भक्तों को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
नवरात्रि अष्टमी शुभ मुहूर्त 2022
शुक्ल पक्ष अष्टमी 08 अप्रैल को रात 11 बजकर 05 मिनट से शुरू होगी, जो कि 10 अप्रैल को सुबह 01 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी। अभिजीत मुहूर्त 09 अप्रैल को दोपहर 12 बजकर 03 मिनट से 12 बजकर 53 मिनट तक रहेगा। अमृत काल 09 अप्रैल को सुबह 01 बजकर 50 मिनट से 03 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04 बजकर 39 मिनट से सुबह 05 बजकर 27 मिनट तक रहेगा।
कन्या पूजन मुहूर्त अष्टमी तिथि
चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि को दिन का शुभ मुहूर्त 11 बजकर 58 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक है। इस समय कन्या पूजन किया जा सकता है।
तिथि विशेष
आज महाअष्टमी व्रत और माहागौरी पूजन, जिसे महामंगलागौरी पूजन भी कहते है।
आज ही महानिशा पूजन भी है।
नवमी की भी पूजा आज ही कि जाएगी।
हवन पूजन 10 अप्रैल को रात्रि 12:08 के पहिले तक ही कर लें।
आज का पञ्चाङ्ग
विक्रम संवत:-2079(राक्षस नामक)
शक संवत:-1944
सूर्य:-उत्तरायण
सूर्योदय:-प्रातः05:46
सूर्यास्त:-शायं 06:14
ऋतु:-बसन्त
माह:-चैत्र
पक्ष:-शुक्ल
तिथि:-अष्टमी
नक्षत्र:-पुनर्वसु
योग:-अतिगण्ड
करण:-विष्टि तदुपरान्त बव
शुभमुहूर्त:-प्रातः 07:18से 08:53तक
राहूकाल:-प्रातः09:00 से 10:30 तक
दिशाशूल:-पूर्व
शुभदिशा:-पश्चिम
दिशाशूल बचाव:-आज काला तिल, काली उड़द या अदरक खा कर यात्रा करें।
मां महागौरी की पूजा विधि
सूर्योदय से पहले स्नान कर साफ और सुंदर वस्त्र धारण करें। सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गंगा जल छिड़ककर शुद्ध करें, फिर माता की मूर्ती स्थापित करें। माता को पंचामृत से स्नान कराएं। गणेश पूजन और कलश पूजन के बाद मां महागौरी की पूजा प्रारंभ करें। माता को गुड़हल का फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर, पान, सुपारी आदि अर्पित करें और माता का श्रंगार कर मिठाई का भोग लगाएं। इसके बाद धूप, दीप, अगरबत्ती कर महागौरी की पूजा का पाठ करें। फिर अंत में माता की आरती करें।
* मां की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।
* मां को सफेद रंग के वस्त्र अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां को सफेद रंग पसंद है।
* मां को स्नान कराने के बाद सफेद पुष्प अर्पित करें।
* मां को रोली कुमकुम लगाएं।
मां को मिष्ठान, पंच मेवा, फल अर्पित करें।
*.मां महागौरी को काले चने का भोग अवश्य लगाएं।
* मां महागौरी का अधिक से अधिक ध्यान करें।
* मां की आरती भी करें।
*.अष्टमी के दिन कन्या पूजन का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन कन्या पूजन भी करें।
मां महागौरी का स्वरूप- इनका ऊपरी दाहिना हाथ अभय मुद्रा में रहता है और निचले हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू जबकि नीचे वाला हाथ शांत मुद्रा में है।
भोग- अष्टमी तिथि के दिन मां महागौरी को नारियल या नारियल से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है।
मां महागौरी का प्रिय पुष्प- मां का प्रिय पुष्प रात की रानी है। इनका राहु ग्रह पर आधिपत्य है, यही कारण है कि राहुदोष से मुक्ति पाने के लिए मां महागौरी की पूजा की जाती है।
मां महागौरी के लिए मंत्र-सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोsस्तुते।।
स्तोत्र मंत्र- सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।
कन्या पूजन का महत्व
देवी मां की पूजा के साथ ही कुमारियों और ब्राह्मणों को भोजन भी कराना चाहिए। विशेष रूप से कुमारियों को घर पर आदर सहित बुलाकर उनके हाथ-पैर धुलवाकर, उन्हें आसन पर बिठाना चाहिए और उन्हें हलवा, पूड़ी और चने का भोजन कराना चाहिए। भोजन कराने के बाद कुमारियों को कुछ न कुछ दक्षिणा देकर उनके पैर छूकर आशीर्वाद भी लेना चाहिए। इससे देवी मां बहुत प्रसन्न होती हैं और मन की मुरादें पूरी करती हैं।
कन्या पूजा की विधि
पूजन से पहले सभी कन्याओं को एक दिन पहले ही उनके घर जाकर निमंत्रण दिया जाता है. घर में सभी नौ कन्याओं का प्रवेश होने पर उन्हें आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाएं. सभी के पैरों को दूध से भरे थाल में रखकर अपने हाथों से उनके पैर स्वच्छ पानी से धोएं. कन्याओं के माथे पर अक्षत, फूल या कुमकुम लगाएं फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं. भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें।
कन्या पूजन के समय रखें इन बातों का ख्याल
* कन्या पूजन के समय ध्यान रखें कि कन्याओं की उम्र 2 वर्ष से कम और 10 वर्ष से ज्यादा ना हो.
* कन्या पूजन के दौरान सभी कन्याओं को पूर्व की ओर मुख करके बैठाएं.
* कन्या पूजन के दौरान एक लड़के को अवश्य बैठाएं. पूजन के दौरान लड़का भैरव बाबा का रूप माना जाता है.
* कन्या पूजन के दौरान बनने वाले प्रसाद में प्याज और लहसुन का इस्तेमाल नहीं किया जाता.
* ध्यान रहें कि कन्या पूजन के लिए बनने वाला खाना बिल्कुल ताजा हो.
* कन्या पूजन के दौरान सभी कन्याओं के पैर धोएं. उन्हें आसन पर बिठाएं और उन्हें टीका लगाएं. इसके बाद उनके पैस छूकर आशीर्वाद लें.
मां महागौरी पूजा मंत्र
श्वेते वृषे समरूढ़ा श्वेताम्बराधरा शुचि:
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।
ओम देवी महागौर्यै नम:।।
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वीनाम्।।
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थिता अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्।
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्।।
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कतं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्या मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्।
कवच मंत्र
ओंकार: पातुशीर्षोमां, हीं बीजंमां ह्रदयो।
क्लींबीजंसदापातुन भोगृहोचपादयो।।
ललाट कर्णो हूं बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों।
कपोल चिबुकोफट् पातुस्वाहा मां सर्ववदनो।
मां महागौरी आरती
जय महागौरी जगत की माया।
जय उमा भवानी जगत की महामाया।
हरिद्वार कनखल के पासा।
महागौरी तेरा वहां निवासा।
चंद्रकली और ममता अम्बे।
जय शक्ति जय जय मां जगदम्बे।
भीमा देवी विमला माता।
कोशकी देवी जग विख्याता।
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा।
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा।
सती संत हवन कुंड में था जलाया।
उसी धुएं ने रूप काली बनाया।
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया।
तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया।
तभी मां ने महागौरी नाम पाया।
शरण आने वाले संकट मिटाया।
शनिवार की तेरी पूजा जो करता।
मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता।
भक्त बोलो तो सच तुम क्या रहे हो।
महागौरी मां तेरी हरदम ही जय हो।
महागौरी की पौराणिक कथा
मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी को लेकर दो पौराणिक कथाएं काफी प्रचलित हैं। पहली पौराणिक कथा के अनुसार पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के बाद मां पार्वती ने पति रूप में भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। तपस्या करते समय माता हजारों वर्षों तक निराहार रही थी, जिसके कारण माता का शरीर काला पड़ गया था। वहीं माता की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मां पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया और माता के शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर अत्यंत कांतिमय बना दिया, माता का रूप गौरवर्ण हो गया। जिसके बाद माता पार्वती के इस स्वरूप को महागौरी कहा गया।
दूसरी पौराणिक कथा
वहीं दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार कालरात्रि के रूप में सभी राक्षसों का वध करने के बाद भोलनाथ ने देवी पार्वती को मां काली कहकर चिढ़ाया था। माता ने उत्तेजित होकर अपनी त्वचा को पाने के लिए कई दिनों तक कड़ी तपस्या की और ब्रह्मा जी को अर्घ्य दिया। देवी पार्वती से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने हिमालय के मानसरोवर नदी में स्नान करने की सलाह दी। ब्रह्मा जी के सलाह को मानते हुए मां पार्वती ने मानसरोवर में स्नान किया। इस नदी में स्नान करने के बाद माता का स्वरूप गौरवर्ण हो गया। इसलिए माता के इस स्वरूप को महागौरी कहा गया। आपको बता दें मां पार्वती ही देवी भगवती का स्वरूप हैं।
नवरात्रि में अष्टमी के 8 शुभ उपाय
1. हवन : कई लोगों के यहां सप्तमी, अष्टमी या नवमी के दिन व्रत का समापन होता है तब अंतिम दिन हवन किया जाता है। अष्टमी के दिन हवन करना शुभ होता है।
2. कन्या भोज : जब व्रत के समापन पर उद्यापन किया जाता है तब कन्या भोज कराया जाता है। अष्टमी पर 9 कन्याओं को भोजन कराने के बाद छोटी कन्याओं को छोटे-छोटे पर्स में दक्षिणा रखकर लाल रंग के किसी भी गिफ्ट के साथ भेंट करें।3
. संधि पूजा : इस दिन माता रानी की प्रात: आरती, दोपहर आरती, संध्या आरती और संधि आरती करते हैं।
4. लाल चुनरी : माता को इस दिन लाल चुनवरी अर्पित करना चाहिये। आप चाहे तो आरती और पूजा के दौरान इस दिन पांच प्रकार के सूखे मेवे लाल चुनरी में रखकर माता रानी को अर्पित करें।
5. लाल ध्वज : देवी मंदिर में लाल रंग की ध्वजा (पताका, परचम, झंडा) किसी भी दिन जाकर चढ़ाएं।
6. देव को लभाएं भोग : अष्टमी के दिन माता के मंदिर में जाकर लाल चुनरी में मखाने, बताशे के साथ सिक्के मिलाकर देवी को अर्पित करें। इसके साथ ही देवी को मालपुए और खीर का भोग लगाएं।
7. शनि मुक्ति के लिए करें पूजा : अष्टमी और नवमी तिथि पर शनि का भी प्रभाव रहता है। इस दिन माता की अच्छे से आराधना करने से शनि के प्रभाव से माता रक्षा करती है।
8. सुहागिनों के दें श्रृंगार का सामान : किसी सुहागिन स्त्री को चांदी की बिछिया, कुमकुम से भरी चांदी की डिबिया, पायल, अंबे माता का चांदी का सिक्का और अन्य श्रृंगार की सामग्री भेंट करें।
”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”