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भारत सरकार ने वर्ष 2006 से प्रत्येक वर्ष 21 अप्रैल को ‘सिविल सेवा दिवस’ के रूप में सिविल सेवकों को स्वयं को नागरिकों के लिए पुनर्समर्पित करने तथा लोक सेवा और कार्य में उत्कृष्टता हेतु अपनी वचनबद्धता को पुनर्सज्जित करने के लिए एक अवसर के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
भारतीय सिविल सेवा भारत सरकार की ओर से नागरिक सेवा तथा स्थायी नौकरशाही है। सिविल सेवा देश की प्रशासनिक मशीनरी की रीढ़ है। कार्यकारी निर्णय भारतीय सिविल सेवकों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। सिविल सेवक, भारतीय संसद के बजाय भारत सरकार के कर्मचारी हैं। सिविल सेवकों के पास कुछ पारम्परिक और सांविधिक दायित्व भी होते हैं। भारत में प्रतिवर्ष 21 अप्रैल को राष्ट्रीय लोक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन उन लोक सेवकों को समर्पित है जो कि देश की प्रगति के लिए कार्य करते हैं, साथ ही नीति निर्माण में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। सिविल सेवा का सर्वप्रमुख कार्य राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा निर्मित नीतियों को कार्यान्वित करना है। सिविल सेवक राजनीतिक कार्यपालिका को नीति-निर्माण में परामर्श और तकनीकी सहायता प्रदान कर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सिविल सेवकों के योगदान को शब्दों में बयां करना इतना आसान नहीं है इसलिए प्रतिवर्ष इस दिन को सिविल सेवकों को समर्पित किया जाता है। उनके सराहनीय कार्यों के लिए इस दिन उन्हें सम्मानित भी किया जाता है। आइए जानते हैं राष्ट्रीय लोक सेवा दिवस का इतिहास एवं अन्य महत्वपूर्ण बातें।
राष्ट्रीय नागरिक सेवा दिवस का इतिहास
21 अप्रैल को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अखिल भारतीय सेवाओं का उद्घाटन किया था। दिल्ली के मेटकाफ हाउस में उन्होंने सिविल सेवकों को अतीत के अनुभव पीछे छोड़ राष्ट्रीय सेवा को अच्छे से करने की भावना पर भाषण दिया। इस दिन उन्होंने सिविल सर्वेंटों को देश की स्टील फ्रेम कहकर संबोधित किया था। 2006 में इसी दिन एक विशाल समारोह सिविल सर्वेंटों के लिए आयोजित किया गया था। इसके बाद से प्रतिवर्ष 21 अप्रैल को राष्ट्रीय लोक सेवा दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
21 अप्रैल ही क्यों?
हर साल 21 अप्रैल को सिविल सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन 1947 में, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने प्रशासनिक सेवाओं के पहले बैच के परिवीक्षकों को संबोधित किया था। हालाँकि, 2006 में पहली बार यह दिवस मनाया गया था।
महत्व
सरदार वल्लभभाई पटेल के अनुसार, सिविल सेवक भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। वे लोक प्रशासन के सुचारू संचालन के लिए अथक प्रयास करते हैं। उनकी ज़िम्मेदारी सत्ताधारी पार्टी की नीतियों को क्रियान्वित करने की ओर है।
इस तरह मनाया जाता है राष्ट्रीक लोक सेवा दिवस
राष्ट्रीय लोक सेवा दिवस के अवसर पर केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों को उनके द्वारा वर्षभर में किए गए असाधारण कार्यों के लिए सम्मानित किया जाता है। इस दिन अधिकारी मिलकर आने वाले सालों की योजना पर भी विचार करते हैं एवं उनपर विभिन्न मतों को प्रकट करते हैं। कई संस्थानों में सिविल सर्वेंटों को बतौर अतिथि आमंत्रित किया जाता है जहां पर वे अपने कार्य से जुड़े अनुभवों को बांटते हैं।
ब्रिटिशकाल में आया शब्द ‘सिविल सर्वेंट’
सिविल सर्वेंट शब्द ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के दौरान प्रचलन में आया था। यहां के नागरिक कर्मचारी प्रशासनिक नौकरियों में शामिल थे। ब्रिटिशर्स इन्हें सिविल सर्वेंट अर्थात लोक सेवक कहकर पुकारते थे। इन सेवाओं की शुरुआत वॉरेन हेस्टिंग्स द्वारा की गई। उसके पश्चात चार्ल्स कॉर्नवॉलिस ने इनमें सुधार किये इसलिए वे ‘भारत में नागरिक सेवाओं के पिता’ कहलाए।
यह सेवाएं हैं शामिल
भारतीय प्रशासनिक सेवा, आईएएस, भारतीय पुलिस सर्विस, आईपीएस, भारतीय विदेश सेवा, आईएफएस और अखिल भारतीय सेवाओं और केंद्रीय सेवा समूह अ और ब के लिए भारत में कई सारे विद्यार्थी परीक्षा देते हैं। यह सभी परीक्षाएं भारतीय लोक सेवा आयोग के तहत आती हैं। जिनमें चयन होने के बाद आगे विद्यार्थियों को ट्रेनिंग दी जाती है।
भारतीय लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका
* सिविल सेवा का सर्वप्रमुख कार्य राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा निर्मित नीतियों को कार्यान्वित करना है।
* सिविल सेवक राजनीतिक कार्यपालिका को नीति-निर्माण में परामर्श और तकनीकी सहायता प्रदान कर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
* राजनीतिक कार्यपालिका अथवा मंत्रियों द्वारा अपने कई अधिकारों का सिविल सेवकों को प्रत्यायोजन (delegation) कर दिया जाता है। अतः इन पर सिविल सेवक नियम और विनियम तैयार करते हैं।
इस प्रकार, सिविल सेवक भारत में सामाजिक समानता व आर्थिक विकास जैसे कल्याणकारी लक्ष्यों तथा नीति निदेशक तत्त्वों में उल्लिखित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये मुख्य उपकरण सिद्ध हुए हैं जिससे भारत एक सशक्त एवं मज़बूत लोकतंत्र के रूप में उभरा है।
राष्ट्रीय सिविल सेवा दिवस मनाने का उद्देश्य
* सिविल सेवा अधिकारियों के कार्य और प्रयासों को प्रेरित करना और उनकी सराहना करना।
* केंद्र सरकार सबसे अच्छा काम करने वाले व्यक्तियों और समूहों को पुरस्कार देती है।
* केंद्र सरकार इस अवसर का उपयोग सिविल सेवाओं के तहत विभिन्न विभागों के काम का मूल्यांकन करने के लिए करती है।
* इस दिन ज्यादातर केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारियों को भारत के प्रधानमंत्री द्वारा लोक प्रशासन के क्षेत्र में उनकी असाधारण सेवाओं के लिए सम्मानित किया जाता है।
पुरस्कार
सिविल सेवा दिवस पर, भारत के विभिन्न अधिकारियों को लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार (Prime Minister’s Awards for Excellence in Public Administration) प्रदान किये जाते हैं। यह पुरस्कार सिविल सेवकों के लिए प्रेरणा का काम करते हैं।
यह पुरस्कार तीन श्रेणियों में प्रस्तुत किए जाते हैं। श्रेणी 1 जिसमें पहाड़ी राज्य और उत्तर पूर्वी राज्य शामिल हैं। श्रेणी 2 में 7 केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं। श्रेणी 3 में बाकी 18 राज्य शामिल हैं।
भारत में सिविल सेवाओं का इतिहास और विकासक्रम
* प्राचीन भारत में यद्यपि आधुनिक अर्थ एवं आयाम वाली सिविल सेवा के स्पष्ट उदाहरण नहीं मिलते फिर भी तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप सिविल सेवाओं का गठन किया गया था। मौर्य प्रशासन में सिविल सेवाओं का संकेत मिलता है, जिसमें ‘अध्यक्ष’, ‘राजुक’, ‘पण्याध्यक्ष’, ‘सीताध्यक्ष’ जैसे सिविल सेवा अधिकारी महत्त्वपूर्ण भूमिका में थे। मुगल काल के दौरान अकबर ने एक भूमि राजस्व प्रणाली प्रारंभ की जिसके कार्यान्वयन के लिये नए पदों का सृजन किया गया।
* भारत में सिविल सेवा के वर्तमान ढाँचे की शुरुआत लार्ड कार्नवालिस द्वारा की गई। कार्नवालिस ने इन सेवाओं को पेशेवर सेवाओं में परिवर्तित कर ब्रिटिश साम्राज्य की नीतियों को कार्यान्वित करने का उपकरण बनाया। 1857 में मैकाले समिति की सिफारिशों के आधार पर सिविल सेवाओं में चयन के लिये प्रतियोगी परीक्षा को लागू किया गया।
* स्वतंत्रता के बाद भारतीय सिविल सेवाओं को भारतीय लोकतांत्रिक एवं कल्याणकारी राज्य के आदर्शों को लागू करने का साधन बनाया गया। इन सेवाओं ने ‘स्टील फ्रेम’ की तरह कार्य करते हुए भारतीय एकता, अखंडता और संप्रभुता को अक्षुण्ण बनाने का कार्य किया।
* वर्तमान में भारतीय सेवाओं की प्रकृति विनियामक के स्थान पर समन्वयक की हो गई है। सुशासन की बढ़ती मांगों, सिटिज़न चार्टर, सूचना का अधिकार, अधिकारों के प्रति जागरूकता, सेवा प्रदाता राज्य की अवधारणा आदि स्थितियों ने सिविल सेवाओं की तटस्थता, निष्पक्षता, वस्तुनिष्ठता और दक्षता में वृद्धि कर उसे समाजिक-आर्थिक न्याय की दिशा में उन्मुख किया है।
हर साल लाखों उम्मीदवार भारतीय सिविल सेवा परीक्षा के लिए आवेदन करते हैं. इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि सिविल सेवा वह स्तंभ है, जिस पर सरकार देश की नीतियों और कार्यक्रमों को सुचारू रूप से चलाती है. सिविल सेवकों के योगदान को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है. इसलिए, 21 अप्रैल को सिविल सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि राष्ट्र के लिए उनके अपार योगदान के लिए सिविल सेवकों को प्रोत्साहित किया जा सके।