विश्व भर में 21 फरवरी को “अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस” मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य दुनिया भर में अपनी भाषा-संस्कृति के प्रति लोगों में रुझान पैदा करना और जागरुकता फैलाना है. अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का विचार सबसे पहले बांग्लादेश से आया. संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के सामान्य सम्मेलन ने 17 नवंबर 1999 में मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की. जिसमें फैसला लिया गया कि 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
भारत के साथ दुनिया के भी कई देशों में अब कई प्राचीन भाषाएं लुप्त होने की कगार पर हैं और हर दो सप्ताह में एक भाषा अपने साथ एक पूरी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को ले जाने के लिए गायब हो रही है| बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक समाज अपनी भाषाओं के माध्यम से मौजूद हैं जो पारंपरिक ज्ञान और संस्कृतियों को प्रसारित और संरक्षित करते हैं| सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए प्रति वर्ष अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है| आइये जानते हैं अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस कब मनाया जाता है और क्या है अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2022 थीम।
मातृभाषा दिवस 2022
भाषाएं अपने जटिल निहितार्थ के साथ, दुनिया भर में पहचान, संचार, सामाजिक एकीकरण, शिक्षा और विकास के लिए पृथ्वी और लोगों के लिए रणनीतिक महत्व रखती हैं| लगातार हो रहे वैश्वीकरण के कारण भाषाएं और बोलियां खतरे में हैं, और पूरी तरह से गायब हो रही हैं| जब भाषाएं लुप्त होती हैं, तो उनके साथ दुनिया की सांस्कृतिक विविधता भी ख़त्म होने लगती हैं| और साथ ही परंपराएं, स्मृति, सोच और अभिव्यक्ति के अद्वितीय तरीके – एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने के लिए मूल्यवान संसाधन भी खो जाते हैं| दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 6000-7000 भाषाओं में से कम से कम 43% लुप्तप्राय हैं| केवल कुछ सौ भाषाओं को वास्तव में शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक डोमेन में जगह दी गई है, और डिजिटल दुनिया में सौ से भी कम का उपयोग किया जाता है| अकेले भारत में लगभग 22 आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त भाषाएं, 1652 मातृभाषाएं और 234 पहचान योग्य मातृभाषाएं हैं| अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस इस बात की याद दिलाता है कि भाषा हमें कैसे जोड़ती है, हमें सशक्त बनाती है और दूसरों को हमारी भावनाओं को संप्रेषित करने में हमारी मदद करती है| इसी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हर साल भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है|
और भी नाम है इसके
इंटरनेशनल मदर लैंग्वेज डे को टंग डे (Tongue Day), मदर लैंग्वेज डे (Mother language Day) और मदर टंग डे (Mother Tongue Day) और लैंग्वेज मूवमेंट डे (Language Movement Day) और Shohid Dibosh के नाम से भी जाना जाता है।
मातृभाषा दिवस 2022 की थीम
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2022 थीम (इंटरनेशनल मदर लैंग्वेज डे थीम 2022): “Using Technology for multilingual learning: Challenges and opportunities”
2022 अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का विषय, “बहुभाषी सीखने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना: चुनौतियां और अवसर,” है| इस साल का विषय बहुभाषी शिक्षा को आगे बढ़ाने और सभी के लिए गुणवत्ता शिक्षण और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी की संभावित भूमिका पर केंद्रित है| प्रौद्योगिकी में आज शिक्षा में कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों का समाधान करने की क्षमता है। यह सभी के लिए समान और समावेशी आजीवन सीखने के अवसरों को सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयासों में तेजी ला सकता है। कोविड-19 स्कूल बंद होने के दौरान, दुनिया भर के कई देशों ने सीखने की निरंतरता बनाए रखने के लिए प्रौद्योगिकी-आधारित समाधानों को नियोजित किया। लेकिन कई शिक्षार्थियों के पास आवश्यक उपकरण, इंटरनेट एक्सेस, सुलभ और अनुकूलित सामग्री, और मानव समर्थन की कमी थी| इसके अलावा, दूरस्थ शिक्षण और सीखने के उपकरण, कार्यक्रम और सामग्री हमेशा भाषा विविधता को प्रतिबिंबित करने में सक्षम नहीं होते हैं|
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का इतिहास
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस दुनिया भर में वर्ष 2000 से मनाया जा रहा है| इसकी घोषणा नवंबर 1999 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के सामान्य सम्मेलन द्वारा की गई थी| यह बांग्लादेश द्वारा अपनी भाषा बांग्ला की रक्षा के लिए एक लंबे संघर्ष को भी याद करता है| 21 फरवरी, बांग्लादेशी लोगों द्वारा अपनी मातृभाषा के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक जड़ों की रक्षा के लिए किये गए आंदोलन की वर्षगांठ है| इतिहास में दुर्लभ घटनाओं में से एक इस आंदोलन में लोगों ने अपनी मातृभाषा के खातिर अपने जीवन का बलिदान दिया था| असल में जब 1947 में पाकिस्तान बना, तो इसके दो क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान, (वर्तमान में बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान संस्कृति, भाषा में पूरी तरह से अलग थे और यहां तक कि भूमि से भी जुड़े नहीं थे| 1948 में पाकिस्तान सरकार ने उर्दू को एकमात्र राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया| पूर्वी पाकिस्तान के बांग्ला मातृभाषीय लोगों ने इस फैसले का विरोध किया और बांग्ला को भी एक राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देने की मांग की| इस आंदोलन को समाप्त करने के लिए पाकिस्तान सरकार ने, सभी बैठक और रैली रद्द करवा दी| आदेशों की अवहेलना करते हुए ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों ने बड़े पैमाने पर रैलियों की व्यवस्था जारी रखी| 21 फरवरी 1952 को प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने गोलीबारी करवा दी जिसमें 04 छात्रों ने अपनी जान गंवाई और कई घायल हुए| इसके बाद भी विरोध जारी रहा और 1956 में पाकिस्तान सरकार को बांग्ला को आधिकारिक भाषा का दर्जा देना पड़ा| जनवरी 1998 में एक बांग्लादेशी कैनेडियन नागरिक रफीकुल इस्लाम ने सयुंक्त राष्ट्र के जनरल को खत लिखकर दुनिया की लुप्त होती भाषाओं को बचाने के लिए अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए जाने के लिए आग्रह किया और इसके लिए उन्होनें 21 फरवरी के दिन प्रस्ताव रखा| इसके बाद नवंबर 1999 में यूनेस्को ने 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मनाए जाने की घोषणा करी| 16 मई 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने प्रस्ताव A/RES/61/266 में सदस्य देशों से “दुनिया के लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली सभी भाषाओं के संरक्षण और संरक्षण को बढ़ावा देने” का आह्वान किया| उसी प्रस्ताव द्वारा, महासभा ने बहुभाषावाद और बहुसंस्कृतिवाद के माध्यम से विविधता और अंतर्राष्ट्रीय समझ में एकता को बढ़ावा देने के लिए 2008 को भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया| आज के समय में यह जागरूकता बड़ी है कि भाषाएं विकास में, सांस्कृतिक विविधता और सांस्कृतिक संवाद सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं| इसी के साथ भाषाएं, आपसी सहयोग बढ़ाने और सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में, समावेशी ज्ञान समाजों के निर्माण और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में, और सतत विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लाभों को लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति को जुटाने में भी अपना योगदान देती हैं| यूनेस्को का मानना है कि पहली भाषा या मातृभाषा पर आधारित शिक्षा को बच्चों के शुरुआती वर्षों से ही शुरू होना चाहिए क्योंकि बचपन की देखभाल और शिक्षा, सीखने की नींव होती है|
विश्व भर में बोली जाती हैं इतनी भाषाएं, भारत में हैं 1652 भाषाएं
विश्व में जो भाषाएं सबसे ज्यादा बोली जाती हैं. उनमें अंग्रेजी, जैपनीज़, स्पैनिश, हिंदी, बांग्ला, रूसी, पंजाबी, पुर्तगाली, अरबी भाषा शामिल हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार लगभग 6900 भाषाएं हैं जो विश्व भर में बोली जाती हैं. इनमें से 90 प्रतिशत भाषाएं बोलने वाले लोग एक लाख से भी कम हैं. भारत की बात करें तो 1961 की जनगणना के अनुसार, भारत में 1652 भाषाएं बोली जाती हैं।
हिंदी है हमारी पहचान
भारत विविधताओं का देश है। रूप-रंग-संस्कृति-भाषा-बोलियां यहां अलग-अलग परिधान में हमारी वसुधा की आरती उतारती आ रही हैं, लेकिन समग्रता में हिंदी भाषा हमारी ‘अपनी’ पहचान है। हम देश के किसी भी कोने में चले जाएं, वहां हिंदी किसी न किसी रूप में हमसे मिलती-जुलती और बात करती है।
दूसरी लोकप्रिय भाषा के रूप में है हिंदी
दुनिया में अगले 40 साल में चार हजार से अधिक भाषाओं के खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है. भारत विविध संस्कृति और भाषा का देश रहा है. 1961 की जनगणना के मुताबिक, भारत में 1652 भाषाएं बोली जाती हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में फिलहाल 1365 मातृभाषाएं हैं, जिनका क्षेत्रीय आधार अलग-अलग है. अन्य मातृभाषी लोगों के बीच भी हिंदी दूसरी भाषा के रूप में लोकप्रिय है। छोटे भाषा समूह जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर बसते हैं तो वे एक से अधिक भाषा बोलने-समझने में सक्षम हो जाते हैं. 43 करोड़ लोग देश में हिंदी बोलते हैं, इसमें 12 फीसद द्विभाषी है. 82 फीसद कोंकणी भाषी और 79 फीसद सिंधी भाषी अन्य भाषा भी जानते हैं. हिंदी मॉरीशस, त्रिनिदाद-टोबैगो, गुयाना और सूरीनाम की प्रमुख भाषा है. फिजी की सरकारी भाषा है।
जितना लगाव हमें अपनी मां से होता है उतना ही अपनी भाषा से इसलिए शायद इसे मातृभाषा कहा जाता है. यानी अपनी जबान का सम्मान करने का दिन है। भारत के लिए एक बड़ी ही मशहूर कहावत है, कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी। यानी भारत में हर चार कोस पर भाषा बदल जाती है. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत में कितनी भाषाएं बोली जाती होंगी। बच्चे का शैशव जहां बीतता है, उस माहौल में ही जननी भाव है. जिस परिवेश में वह गढ़ा जा रहा है, जिस भाषा के माध्यम से वह अन्य भाषाएं सीख रहा है, जहां विकसित-पल्लवित हो रहा है, वही महत्वपूर्ण है।