हममें से ज्यादातर ने बचपन में नानी–दादी या पेरेंट्स से कहानियां सुनी होंगी। ये कहानियां न सिर्फ हमारा मनोरंजन करती थीं, बल्कि हमें व्यावहारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ज्ञान भी सिखाती थीं। न्यूक्लियर फैमिली में रहने और घर-ऑफिस के कार्यों में व्यस्त रहने के कारण हम अपने बच्चों को कहानियां नहीं सुना पाते। पर शायद आप नहीं जानते कि ये छोटी-छोटी कहानियां बच्चों के मानसिक विकास और सामाजिक संबंध बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।
बच्चे हो या बूढ़े, कहानियां एक ऐसी चीज है जो हर किसी का ध्यान अपनी तरफ केंद्रित कर लेती है। कहानियों के अंदर इतनी शक्ति होती है कि वह एक इंसान को दूसरी दुनिया में ले जाती है। आपको तो याद ही होगा कि कैसे आप अपनी दादी और नानी से कहानियां सुनने के लिए सब कुछ छोड़-छाड़कर उनके पास आ जाते थे। आज कल की दुनिया में सब डिजिटल हो गया है, बच्चे अब दादी-नानी से नहीं बल्कि मोबाइल और लैपटॉप में कहानियां सुनते हैं। जमाना कितना मॉडर्न क्यों ना हो जाए लेकिन कहानी हमेशा से इंसान को रोचक लगती थी और हमेशा लगती रहेगी। इस अस्त-व्यस्त जीवन में माता-पिता अपने बच्चों के साथ कम समय बिता पाते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि बच्चों को कम उम्र से ही अच्छी शिक्षा दी जाएं। अगर आप अपने बच्चों से काम की वजह से दूर रहते हैं तो थोड़ा सा समय उनके लिए निकालिए और कहानियों के माध्यम से उन्हें अच्छी बातें सिखाइए। आपकी बातों से या डांट से हो सकता है बच्चे किसी बात को अच्छी तरह से ना समझें लेकिन कहानियों के माध्यम से अगर आप अपने बच्चे को कोई चीज समझाएंगे तो वह अवश्य समझेंगे। जानिए कि बच्चों के लिए कहानियां सुनना क्यों जरूरी है और इसके क्या लाभ हैं।
बच्चों को कहानियां इसलिए सुनाएं, क्योंकि
उनकी कल्पनाशीलता और उत्सुकता बढ़ती है
जब बच्चे कहानियां सुन रहे होते हैं तो वे केवल सुन नहीं रहे होते हैं, बल्कि अपनी कल्पना में गढ़ी गई एक दुनिया में पहुंच गए होते हैं. आप जिन किरदारों के बारे में उनको बता रहे होते हैं, वे उनके रंग-रूप, आकार-प्रकार की कल्पना कर चुके होते हैं. उनके दिमाग़ में आपके द्वारा सुनाई जा रही कहानी विज़ुअल फ़ॉर्म में चल रही होती है. इस तरह कहानियां सुनाकर आप बच्चों के कल्पनाशील मस्तिष्क में रचनात्मकता के बीज बो रहे होते हैं.
आप कह सकते हैं कि यह तो टीवी पर कहानियां देखते समय भी हो सकता है, फिर कहानी सुनाने की ज़रूरत क्या है? ज़रूरत है. वह इसलिए क्योंकि टीवी पर बच्चे कहानियां सुनते समय देख भी रहे होते हैं. उनके दिमाग़ में केवल वही दृश्य चलते हैं, जो स्क्रीन पर दिख रहे होते हैं. इसमें बच्चों की अपनी कोई क्रिएटिविटी नहीं बढ़ती. जबकि कहानियां सुनते समय वे अपने हिसाब से उस कहानी की दुनिया को गढ़ते हैं. आपकी कहानी में उनकी भावनाएं जुड़ जाती हैं. चूंकि आप कहानी सुना रहे होते हैं तो वे उससे जुड़े सवाल आपसे पूछ सकते हैं, इस तरह सवाल पूछना उन्हें जिज्ञासू बनाता है. दुनिया में सफल होने का पहला सूत्र ही है जिज्ञासू होना. इसके अलावा कहानी सुनते समय उनका पूरा ध्यान शब्दों पर होता है तो वे नए-नए शब्द सीखते हैं. पुराने शब्दों का नया इस्तेमाल भी उन्हें पता चलता है. कई कहावतें और मुहावरे बच्चे कहानियों के माध्यम से सीख लेते हैं।
पर्सनैल्टी डेवलपमेंट में मददगार
वर्क-लाइफ बैलेंस के साथ हमें अपने बच्चों को रोज एक कहानी सुनाने का भी वक्त निकालना चाहिए। यदि आप व्यस्त रहते हैं, तो कई साइट्स ऑडियो रूप में बेडटाइम स्टोरीज उपलब्ध कराती हैं। उनकी भी मदद ली जा सकती है। कई रिसर्च इस बात को प्रमाणित करते हैं कि बच्चों को कहानियां सुनाने से न सिर्फ उनकी नॉलेज बढ़ती है, बल्कि उनकी पर्सनैलिटी भी डेवलप होती है।
दुनिया के बारे में उनकी समझ बढ़ती है
आप कहेंगे कि बच्चों की ज़्यादातर कहानियां में काल्पनिक दुनिया होती है, ऐसे में कहानियां सुनकर दुनिया की समझ बढ़ने की बात हज़म नहीं होती. अगर आपके मन में भी यह बात आई हो तो आपको बता दें कि भारतीय बच्चों को सुनाई जानेवाली सबसे मशहूर कहानियां पंचतंत्र की होती हैं, जिसमें जंगल के जावनरों के माध्यम से नैतिक शिक्षा दी जाती है. पंचतंत्र के बारे में आपको पता ही होगा कि पढ़ाई में ज़रा भी रुचि न लेनेवाले राजा के बच्चों को नैतिक शिक्षा देने के लिए उनके शिक्षक ने उन्हें कहानियों के माध्यम से जीवन के कई गहरे और ज़रूरी मूल्य सिखाए थे. तो कहानियों की दुनिया काल्पनिक हो या असल ज़िंदगी की, बच्चों को कहानियां सुनाने का मक़सद होता है, उन्हें सही-ग़लत, अच्छा-बुरा जैसे दुनिया के बुनियादी नियम सिखाए जाएं. कहानियां सुनने के बाद बच्चे न केवल भाषा और उसके इस्तेमाल के तरीक़े सीखेंगे, पर साथी ही अलग-अलग रिश्तों, परंपराओं और संस्कृतियों के बारे में सीखेंगे. एक अच्छा विद्वार्थी, अच्छा मित्र, अच्छी संतान या अच्छा इंसान बनने की ज़रूरत क्यों होती है, इन काल्पनिक कहानियों के माध्यम से बच्चे अपने आप सीख जाएंगे।
क्या कहती हैं रिसर्च
लेखक विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र की कहानियों को क्यों लिखा था। आज से 2 हजार साल पहले राजा अमरशक्ति के तीनों बेटे मूर्ख थे। उन तीनों को प्रैक्टिकल नॉलेज और पॉलिटिक्स की सही जानकारी देने के लिए उस समय के स्कॉलर विष्णु शर्मा ने पशु-पक्षियों पर आधारित कहानियों को माध्यम बनाया था। ये कहानियां आज भी ‘पंचतंत्र की कहानियां’ के रूप में उपलब्ध हैं। कई अलग-अलग युनिवर्सिटी में हुए रिसर्च भी यही मानते हैं कि यदि बच्चों की पर्सनैलिटी डेवलप करनी है, तो उन्हें रोज कहानियां सुनानी पड़ेंगी। वर्ष 2010 में यूरोपियन अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन रिसर्च जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च आर्टिकल के अनुसार, स्टोरीटेलिंग बच्चों की लैंग्वेज और शब्द कोश में विस्तार करता है। इसमें 229 बच्चों पर स्टोरीटेलिंग का प्रभाव देखा गया। ये सभी बच्चे 6 वर्ष या उससे अधिक उम्र के थे। यह देखा गया कि जिन बच्चों को मांओं से रोज कहानी सुनने की आदत थी, वे न सिर्फ अपनी बातों को स्पष्ट तरीके से कह पा रहे थे, बल्कि उनकी कई दूसरी एक्टिविटी भी कहानियां न सुनने वाले बच्चों की तुलना में सकारात्मक थी।
व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं कहानियां
रिसर्च के अनुसार, स्टोरीटेलिंग से बच्चों को कई साइकोलॉजिकल और एजुकेशनल बेनिफिट्स मिलते हैं। इससे बच्चे की इमेजिनेशन बढ़ती है और वे बोले गए शब्दों को विजुअलाइज कर पाते हैं। उनकी शब्दावली बढ़ती है और उनका कम्युनिकेशन स्किल भी डेवलप हो पाता है। इसकी वजह से बच्चा कहीं भी बोलने-बात करने में लो फील नहीं करता विशेषकर अच्छी आदतें सिखाने तथा अपनी सुरक्षा के प्रति सावधान रहना सिखाने में कहानियों की ही मदद लें। साइकोलॉजिस्ट बताते हैं कि जो शिक्षा या संस्कार आप देना चाहती हैं, उसके लिए कहानी सबसे सरल और सही माध्यम हो सकती है।
इंस्पिरेशनल स्टोरीज बढ़ाती है ऑक्सिटोसिन का सीक्रेशन
कहानियों के माध्यम से ही सामान को व्यवस्थित रूप से रखना, सुबह उठकर ब्रश करना, कंघी करना, घर के कामों में छोटी-मोटी मदद करना, बड़ों से अच्छा व्यवहार करना आदि अच्छी आदतें विकसित करें। जब हम इंस्पिरेशनल स्टोरीज सुनते हैं, तो न्यूरोकेमिकल ऑक्सिटोसिन का सीक्रेशन बढ़ जाता है। इससे हमें खुशी की अनुभूति होती है और हम बढ़िया करने के लिए प्रेरित होते हैं।
न सुनाएं डरावनी कहानियां
कहानियों से न सिर्फ बच्चों की कल्पनाशक्ति बढ़ती है, बल्कि कहानियों के माध्यम से उनमें मानवीय मूल्यों का संचार भी होता है।‘ वह इस बात की चेतावनी देती हैं कि बच्चों को कभी भी भूत–प्रेत या डरावनी कहानियां नहीं सुनानी चाहिए। इससे उनके दिमाग और व्यक्तित्व दोनों पर बुरा असर पड़ता है।
सोचने-समझने की शक्ति होती है विकसित
“बच्चे यदि तरह–तरह की कहानियां सुनते हैं, तो उन्हें नए–नए शब्दों की जानकारी होती है। साथ ही कहानियां सुनने के दौरान वे कई तरह के प्रश्न भी पूछते रहते हैं।इससे न सिर्फ उनकी नॉलेज बढ़ती है, बल्कि वे चीजों को भी स्पष्ट रूप से समझ पाते हैं। दूसरी तरफ सस्पेंस वाली कहानियां उन्हें दिमागी तौर पर मजबूत बनाती हैं।’ कहानियां सुनने से बच्चे खुद भी कहानियां पढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं और नई चीजें सीखते हैं। जब भी समय मिले, पंचतंत्र, मुहावरों आदि पर आधारित कहानियां सुनाएं। इससे बच्चे न सिर्फ मोबाइल से दूर रहते हैं, बल्कि उनमें कम शब्दों में अधिक समझने की कला भी विकसित होती है।
भाषा और व्यक्तित्व में आता है सुधार
रोज कहानियां सुनने से आपके बच्चों की भाषा सुधारने लगती है। कहानियों के माध्यम से वह तहजीब सीखते हैं। अगर आपकी कहानियां प्रेरणादायक होती हैं तो बच्चे उस कहानी के नायक की तरह व्यवहार करने लगते हैं जिसके मदद से उनके व्यक्तित्व में भी सुधार आता है।
संस्कृति से जुड़े रहते हैं बच्चे
अपनी संस्कृति को पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए कहानी एक सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। कहानियों के वजह से बच्चों के अंदर ना ही सिर्फ अपने संस्कृति और परंपराओं की समझ बढ़ती है बल्कि वह देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों की भी संस्कृति और परंपराओं के बारे में जान पाते हैं। इसीलिए बच्चों को ऐसी कहानियां सुनाना चाहिए जिनमें अपनी संस्कृति से जुड़े किससे हों।
वे चीज़ों पर फ़ोकस करना सीखते हैं
जिनके भी छोटे बच्चे होंगे वे इस बात से इत्तेफ़ाक रखते होंगे कि एनर्जी से भरे बच्चे एक जगह पर टिककर बैठ ही नहीं सकते. वे यहां-वहां कूदते-फांदते ही रहते हैं. या घर के दूसरे लोगों का अटेंशन पाने के लिए तरह-तरह की हरक़तें करते रहते हैं. यानी हम कह सकते हैं कि जिज्ञासा से भरा उनका दिमाग़ हमेशा कुछ न कुछ सोचता रहता है, जिसके चलते वे एक जगह पर फ़ोकस नहीं कर पाते. जब बच्चे कहानियां सुनते हैं तो वे चीज़ों को और घटनाओं को एक के साथ एक जोड़कर देखना शुरू करते हैं. जब वे चीज़ों पर फ़ोकस करते हैं तो उनका कॉन्सन्ट्रेशन बढ़ता है. जो बच्चे ज़्यादा कहानियां सुनते हैं, वे पढ़ाई-लिखाई के मामले में उन बच्चों से अच्छे होते हैं, जो कहानियां सुनने के बजाय टीवी देखने या मोबाइल/कम्प्यूटर में गेम खेलने में ज़्यादा वक़्त बिताते हैं. देखा यह भी जाता है, कहानियां सुनने में रुचि रखनेवाले बच्चे पढ़ना भी जल्दी सीखते हैं, क्योंकि उन्हें और कहानियों के बारे में जानना होता है.
सुनने की शक्ति होती है प्रगाढ़
ना ही सिर्फ बच्चे बल्कि बड़े भी अगर रोज कहानियां सुनेंगे तो उनकी सुनने की शक्ति तेज होगी और इसकी मदद से वह अपना ध्यान भी केंद्रित कर पाएंगे। ध्यान करने की शक्ति को अगर बढ़ाना है तो हमें बोलने से ज्यादा सुनना चाहिए।
इसीलिए बच्चों को रोज कहानियां सुनाना चाहिए। कहानियां सुनाने से अभिभावक और बच्चों के रिश्ते भी मजबूत होते हैं। कहानियों के माध्यम से बच्चे ऐसी कई चीजें सीख जाते हैं जो उनको ताउम्र काम आती है। इस डिजिटल जमाने में जहां बच्चे मोबाइल और लैपटॉप के पीछे भागते हैं आप कहानियां सुनाकर उनका ध्यान भटका सकते हैं और नई चीजें सिखा सकते हैं।