केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी है कि राष्ट्रीय पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम 31 जनवरी यानी आज (रविवार) से शुरू किया जाएगा। इसके तहत, पांच वर्ष तक के आयु वर्ग के बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाई जाती है। इसे आम तौर पर ‘पल्स पोलियो टीकाकरण’ (PPE) कार्यक्रम के नाम से जाना जाता है. राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस (NID) की शुरुआत देशभर में 17 जनवरी से होने वाली थी लेकिन 16 जनवरी से शुरू हुए कोरोना टीकाकरण अभियान के चलते इसे आगे बढ़ाने का फैसला लिया गया।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 14 जनवरी को बताया था, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में 16 जनवरी से COVID-19 टीकाकरण अभियान शुरू करने जा रहे हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान होगा। इसलिए, भारत के राष्ट्रपति कार्यालय के परामर्श से स्वास्थ्य मंत्रालय ने पोलियो टीकाकरण दिवस, जिसे राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस (एनआईडी) या ”पोलियो रविवार” भी कहा जाता है, उसे 31 जनवरी से शुरू करने को निर्णय किया है।” मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि राष्ट्रपति 30 जनवरी को राष्ट्रपति भवन में कुछ बच्चों को पोलियो खुराक पिलाकर पोलियो राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस की शुरुआत करेंगे।
भिलाई के मशहूर शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ राजकुमार अग्रवाल ने इस विषय पर हमसे विस्तृत रूप से चर्चा करते हुए इसके कारण, लक्षण और निदान जानकारी देते हुए बताया कि बच्चों को अनिवार्य रूप से पोलियो की दवा पिलाएं।डॉक्टर राजकुमार अग्रवाल इस अभियान से 1995 से ही जुड़े हुए हैं। अब तक उन्होंने हजारों बच्चों को इस अभियान के तहत पोलियो की खुराक पिलाई है। उन्होंने बताया कि पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान भारत में डब्ल्यूएचओ वैश्विक पोलियो उन्मूलन प्रयास के परिणाम स्वरूप 1995 में पल्स पोलियो टीकाकरण (पीपीआई) कार्यक्रम आरंभ किया। इस कार्यक्रम के तहत 5 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को पोलियो समाप्त होने तक हर वर्ष दिसंबर और जनवरी माह में ओरल पोलियो टीके (ओपीवी) की दो खुराकें दी जाती हैं।
पोलियो क्या है?
डॉ. राजकुमार अग्रवाल बताते हैं कि पोलियो एक जल जनित रोग है। जिसे अक्सर बहुतृषा, पोलियो या ‘पोलियोमेलाइटिस’ भी कहा जाता है। यह एक विषाणु जनित भीषण संक्रामक रोग है जो आमतौर पर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति मे संक्रमित पानी, विष्ठा या खाने के माध्यम से फैलता है। यह एक उग्र स्वरूप का बच्चों में होनेवाला रोग है, जिसमें मेरुरज्जु के अष्टश्रृंग तथा उसके अंदर स्थित धूसर वस्तु में अपभ्रंशन हो जाता है और इसके कारण चालकपक्षाघात हो जाता है। पोलियो में संक्रमण के लगभग 90% मामलों में कोई लक्षण नहीं होते यद्यपि, अगर यह विषाणु व्यक्ति के रक्त प्रवाह में प्रवेश कर ले तो संक्रमित व्यक्ति मे लक्षणों की एक पूरी श्रृंखला दिख सकती है। मेरुरज्जु का पोलियो सबसे आम रूप है, जिसकी विशेषता असममित पक्षाघात होता है जिसमे अक्सर पैर प्रभावित होते हैं।
कब हुई इसकी पहचान
इसे सबसे पहले 1840 में जैकब हाइन ने एक विशिष्ट परिस्थिति के रूप में पहचाना, पर 1908 में कार्ल लैंडस्टीनर द्वारा इसके कारणात्मक एजेंट, पोलियोविषाणु की पहचान की गई थी। हालांकि 19 वीं सदी से पहले लोग पोलियो के एक प्रमुख महामारी के रूप से अनजान थे, लेकिन 20 वीं सदी मे पोलियो बचपन की सबसे भयावह बीमारी बन के उभरा। पोलियो की महामारी ने हजारों लोगों को अपंग कर दिया जिनमे अधिकतर छोटे बच्चे थे और यह रोग मानव इतिहास मे घटित सबसे अधिक पक्षाघात और मृत्युओं का कारण बना। पोलियो हजारों वर्षों से चुपचाप एक स्थानिकमारी वाले रोगज़नक़ के रूप में मौजूद था, पर 1880 के दशक मे यह एक बड़ी महामारी के रूप मे यूरोप में उदित हुआ और इसके के तुरंत बाद, यह एक व्यापक महामारी के रूप मे अमेरिका में भी फैल गया।
1910 तक, ज्यादातर दुनिया के हिस्से इसकी चपेट मे आ गये थे और दुनिया भर मे इसके शिकारों मे एक नाटकीय वृद्धि दर्ज की गयी थी; विशेषकर शहरों में गर्मी के महीनों के दौरान यह एक नियमित घटना बन गया। यह महामारी, जिसने हज़ारों बच्चों और बड़ों को अपाहिज बना दिया था, इसके टीके के विकास की दिशा में प्रेरणास्रोत बनी। जोनास सॉल्क के 1952 और अल्बर्ट साबिन के 1962 मे विकसित पोलियो के टीकों के कारण विश्व में पोलियो के मरीजों मे बड़ी कमी दर्ज की गयी। विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और रोटरी इंटरनेशनल के नेतृत्व मे बढ़े टीकाकरण प्रयासों से इस रोग का वैश्विक उन्मूलन अब निकट ही है।
आज पिलाई जाएंगी जिंदगी की दो बूंदे
पल्स पोलियो अभियान भारत सरकार की महत्वकांक्षी अभियान है। इसके तहत 0 से 5 वर्ष के बच्चों को पोलियो की खुराक दी जाती है। यह खुराक बच्चों के लिए अनिवार्य है। 31 जनवरी दिन रविवार को देशभर में पल्स पोलियो अभियान है और इसके तहत अपने बच्चों को अनिवार्य रूप से पोलियो की खुराक पिलाना चाहिए।
अपने बच्चों को दे जीवन का सबसे कीमती उपहार
डॉक्टर राजकुमार अग्रवाल का कहना है कि किसी भी माता पिता के द्वारा अपने बच्चों को देने वाला सबसे कीमती उपहार है। उन्होंने कहा कि पल्स पोलियो अभियान के प्रति लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है। और यह खुराक बच्चों को नहीं देने से किस प्रकार के विपरीत परिणाम आ सकते हैं इसकी विस्तार पूर्वक जानकारी दी।
भारत में हो चुका है पूरी तरह समाप्त
डॉ अग्रवाल ने बताया कि भारत सरकार ने देश में पोलियो को जड़ से मिटाने के लिए यह अभियान शुरू किया था। वर्तमान में देश से पोलियो पूरी तरह समाप्त हो गया है, लेकिन अब भी बच्चों को इस की खुराक देना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि विश्व के अनेक देशों में अभी भी इसके विषाणु जीवित है और लोगों को संक्रमित कर रहे हैं। जो विभिन्न माध्यमों से फिर से प्रवेश हो सकते हैं। इसीलिए वैक्सीन की यह खुराक जरूरी है।
अक्सर देखा गया है जागरूकता की कमी के कारण पल्स पोलियो अभियान के दौरान कई माता-पिता अपने बच्चों को पोलियो की खुराक नहीं पिलाते। इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इससे बच्चों में विकलांगता की आशंका पूरी तरह समाप्त हो जाती है।
क्या है वैक्सीन
डॉ अग्रवाल ने वैक्सीन की खुराक के संबंध में सरल भाषा में समझाते हुए बताया कि दरअसल इस वैक्सीन में पोलियो के ही विषाणु होते हैं। जो फ्रेंडली होते हैं, इनसे कोई खतरा नहीं होता इनमें विकलांगता उत्पन्न करने वाली कोई भी शक्ति नहीं होती। जब यह हमारे शरीर में प्रवेश करती है तब हमारा शरीर इसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता अपने आप ही विकसित कर लेता है और जब बीमारी पैदा करने वाले विषाणु हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं तब यही प्रतिरोधक क्षमता हमें पोलियो ग्रस्त होने से बचाती है।
0 से 5 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य रूप से पिलाएं पोलियो की खुराक
डॉ अग्रवाल ने कहा कि 31 जनवरी से 2 फरवरी तक भारत सरकार द्वारा या विशेष अभियान चलाया जाएगा। रविवार को पल्स पोलियो अभियान तहत सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में पोलियो की खुराक पिलाई जाएगी। सेक्टर 10 जोनल मार्केट शॉप नंबर 158 में संचालित चाइल्ड क्लिनिक में भी सुबह 9:00 बजे से दोपहर 3:30 बजे तक पोलियो की खुराक पिलाई जाएगी। यदि कोई पालक इस दौरान अपने बच्चे को पोलियो की दवा नहीं दे पाता है तो वह क्लीनिक में सप्ताह भर के भीतर कभी भी आकर पोलियो की खुराक नि:शुल्क ले सकता है। डॉ अग्रवाल ने कहा है कि 1 से 5 वर्ष के बच्चों को उनके पालक अनिवार्य रूप से पोलियो की खुराक पिलाएं।
यह लेख विभिन्न संचार माध्यमों और भिलाई के मशहूर शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर राजकुमार अग्रवाल से विशेष बातचीत पर आधारित है।