मुस्कान अनमोल है इसकी कोई कीमत नहीं है। हमारी थकान में मुस्कान हमारे आराम का काम करती है जिसे हमारा मन तनाव मुक्त होता है। यदि किसी कारणवश हमारे जीवन में अंधेरा है और हमारी जिंदगी में उदासी छाई है तो उस वक्त यह मुस्कान हमारे जीवन में प्रकाश का कार्य करेगी जिससे हमारे मन में एक उम्मीद का दीपक जलेगा और फिर से हम अपने जीवन में आगे बढ़ने को तैयार हो जायेंगे।
मुस्कान प्रकृति का एक सर्वोत्तम उपहार है। यह एक ऐसा शब्द है जिसके सुनने मात्र से ही किसी के भी होठों पर मुस्कान आ जाती है।मुस्कुराहट व्यक्ति के जीवन में एक दवाई की तरह काम करती है जिसका सीधा असर हमारे सेहत पर पड़ता है, जो व्यक्ति को अंदर से स्वस्थ बनाए रखता है। सिर्फ मुस्कुराने मात्र से ही हमारे जीवन में आने वाली परेशानी हमें छोटी लगने लगती है क्योंकि मुस्कुराहट समस्या का सामना करने और हर डर को कुचलने का सबसे अच्छा तरीका है। मुस्कान व्यक्ति के अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करती है जिससे वह अपने जीवन की हर एक परिस्थिति का सामना करने में सक्षम रहता है।
मुस्कुराने का इतिहास और वर्तमान
शारीरिक तौर पर मुस्कुराने की प्रक्रिया एकदम आसान और साफ़ है. इंसान, जो भाव चेहरे से ज़ाहिर करता है, उसे 17 मांसपेशियां नियंत्रित करती हैं. इसके अलावा एक और मांसपेशी होती है-ऑर्बिक्यूलारिस ओरिस, ये मांसपेशी हमारे मुंह के चारों तरफ़ एक घेरा बनाती है। इंसान की जो बुनियादी मुस्कान है जिसमें चेहरा ऊपर की तरफ़ खिंचता है, वो मांसपेशियों की दो जोड़ियों से बनती है. इन्हें हम साइंस की ज़बान में ज़ाइगोमैटिकस मेजर और माइनर कहते हैं। ये दोनों मांसपेशियां हमारे मुंह के कोनों को कनपटी से जोड़ती हैं. इन्हीं की वजह से हमारे होंठ ऊपर की तरफ़ खिंचते हैं. आप के जज़्बात अगर ज़्यादा गहरे हैं, तो आप खुल कर मुस्कुराते हैं. ऐसी सूरत में आपकी एक और मांसपेशी-लेवाटर लैबी सुपीरियॉरिस में हलचल होती है, जो होंठों और दूसरी पेशियों को ऊपर की तरफ़ खींचती है।
मुस्कान से जुड़ी इसके आगे की कहानी, बेहद राज़दार है. और, दिलचस्प भी.
इंसान के चेहरे की इन मांसपेशियों के खिंचकर मुस्कान में तब्दील होने का बेहद घुमावदार इतिहास है, जो इंसानियत के विकास के पहिये की तरह घूमता आया है। इसकी मिसालें हम ढाई हज़ार साल पहले यूनान में बने युवाओं के हल्की मुस्कान वाले मशहूर बुतोंस ‘कोऊरॉस’ से लेकर आज डिजिटल युग में ऑनलाइन संवाद का अहम हिस्सा बन चुकी इमोजी तक में पाते हैं।
मुस्कुराहट सबसे बेहतरीन भाव
मर्दों और औरतों की मुस्कुराहट में फ़र्क़ से लेकर तमाम देशों की संस्कृतियों में मुस्कुराने का लंबा-चौड़ा फ़ासला है. मसलन, महिलाएं, मर्दों के मुक़ाबले ज़्यादा मुस्कुराती हैं। मुस्कुराहट अपने-आप में पूरा संवाद है. जज़्बात का बिन-बोला इज़हार है. आप अकेले में बहुत कम ही मुस्कुराते हैं. लोगों के साथ होते हैं, तो मुस्कान ख़ुद-ब-ख़ुद आप के चेहरे पर बिखर जाती है. दूसरों से बात करते वक़्त, ज़रा सी बात पर लंबी-चौड़ी स्माइल लोगों के चेहरे पर प्रकट हो जाती है। वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि किसी और भाव के मुक़ाबले मुस्कान को लोग सबसे जल्दी समझ लेते हैं।अब इसका राज़ क्या है? ये पता नहीं। ‘हम मुस्कान को बहुत अच्छे से समझ लेते हैं. लेकिन, ऐसा क्यों होता है, इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं। अगर कोई तस्वीर केवल 10 मिलीसेकेंड के लिए भी दिखाये तो आप उस की मुस्कान को फटाक से पकड़ लेंगे. इंसान के किसी और भाव के साथ ऐसा नहीं है’। और डर का भाव समझने में हमें मुस्कान के मुक़ाबले दस गुना ज़्यादा वक़्त लगता है। डर को समझना हमारी ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरत है. मगर हम मुस्कुराहट को जल्दी समझ लेते हैं।दूसरे तजुर्बे बताते हैं कि इंसान के चेहरे पर आने वाले तमाम भावों में से मुस्कुराहट को सबसे जल्दी पकड़ लिया जाता है। मुस्कुराना, या भंवें तानकर नाराज़गी ज़ाहिर करने का ये इंसानी तरीक़ा उस दौर का है, जब हमारे पूर्वजों ने बोलना नहीं सीखा था। वैसे इंसान की भाषा का इतिहास भी क़रीब एक लाख साल पुराना है. लेकिन हमारे चेहरे से भाव प्रकट करने का इतिहास तो और भी पहले का है. शायद आदि मानवो के दौर का। ‘इंसान ने बोलना सीखने से पहले चेहरे से ही भाव प्रकट करना सीखा’। किसी भी मुस्कुराते चेहरे के जज़्बात समझना बहुत बड़ी चुनौती है. कला के इतिहास से लेकर, आज रोबोटिक मशीनों के दौर तक, मुस्कुराहट को सही-सही समझ पाना चैलेंज बना हुआ है।
भारतियों के मुस्कान पर भरोसा क्यों नहीं?
2016 में 44 अलग-अलग संस्कृतियों से ताल्लुक़ रखने वाले हज़ारों लोगो को आठ चेहरों की तस्वीरें दिखाईं. इन आठ तस्वीरों में से चार मुस्कुराहट वाली थीं. और चार बिना मुस्कान वाली। ज़्यादातर लोगों को मुस्कुराती तस्वीरें ज़्यादा ईमानदार लगीं, बनिस्बत उन तस्वीरों के, जो मुस्कान वाली नहीं थीं। मुस्कान समझने का ये फ़ासला स्विटज़रलैंड, ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस के लोगों के बीच बहुत ज़्यादा था. वहीं पाकिस्तान, रूस और फ्रांस में बहुत कम था. वहीं ईरान, भारत और ज़िम्बाब्वे जैसे देशों में किसी ने मुस्कुराहट पर भरोसा नहीं दिखाया।
आख़िर क्यों?
इस सवाल का जवाब पेचीदा है. रिसर्चरों का मानना है कि जिन देशों में भ्रष्टाचार ज़्यादा है, वहां पर लोगों को मुस्कुराहट पर भी भरोसा नहीं। पश्चिमी समाज में जब धार्मिकता ज़्यादा थी, तो मुस्कुराने को बुरा माना जाता था. क्योंकि मुस्कुराने के बाद हंसने की बारी आती थी. पश्चिमी देशों में उस दौर में हंसना तो नफ़रत की नज़र से देखा जाता था। फ्रांस की क्रांति के पहले की कलाकृतियों पर नज़र डालें, तो मुस्कुराहट लिए हुए जो भी तस्वीरें गढ़ी गईं, वो नीच, शराबी और घटिया दर्ज़े के लोगों की थीं। वहीं पूर्वी सभ्यता में मुस्कुराहट को ज्ञान का प्रतीक माना जाता था. जैसे बौद्ध धर्म के स्माइलिंग बुद्धा को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है. हल्की सी मुस्कुराहट लिए देवताओं की मूर्तियां हमारे देश में बहुत देखने को मिलती हैं। अगर आप मुस्कुरा नहीं सकते, तो लोग आप को ग़लत समझ सकते हैं. लोग सोचते हैं कि जो मुस्कुरा नहीं पाता, क्या उसकी दिमाग़ी हालत ठीक नहीं है. वो आपकी अक़्लमंदी पर भी सवाल उठाने लगते हैं. क्योंकि सामने वाले के भावहीन चेहरे की वजह से उन्हें अजीब महसूस होता है। बीमारी की वजह से जो लोग मुस्कुरा नहीं पाते, उन्हें और भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
अगर आप मुस्कुरा नहीं सकते, तो आप नुक़सान में रहेंगे
चेहरे पर लकवा मारने की बीमारी बहुत दुर्लभ है. लोगों को न इसके असर का पता होता है, न नतीजे का. तो ये जन्मजात हो या बाद में हो, समाज में इसके प्रति जागरूकता बेहद कम है। बाद के दिनों में चेहरे को लकवा मारने को बेल्स पैल्सी कहते हैं. इसमें चेहरे की तंत्रिकाएं झुलस जाती हैं. नतीजा ये होता है कि चेहरे के एक तरफ़ की चमड़ी लटक जाती है. ऐसी बीमारी लोगों को पंद्रह से 60 साल की उम्र के बीच में होती है। ज़्यादातर मामलों में ये बीमारी ठीक वैसे ही ख़ुद-ब-ख़ुद ग़ायब हो जाती है, जैसे आती है. डॉक्टरों का मानना है कि ये वायलर इन्फेक्शन से होता है. इसके अलावा कई बार हादसों की वजह से भी बेल्स पैल्सी हो जाती है। दिल के दौरे से भी बहुत से लोगों की मुस्कान पर बुरा असर पड़ता है. इसमें किसी के होंठ या चेहरे का एक हिस्सा अचानक लटक जाता है. दौरा पड़ने का ये अहम लक्षण है. किसी को भी ऐसी हालत मे देखें, तो उसे फ़ौरन मेडिकल मदद मुहैया करानी चाहिए। किसी भी उम्र में मुस्कुराहट को खोना बहुत बड़ा झटका है. लेकिन कम उम्र में किसी के साथ ऐसा हो जाए, तो और भी बुरा होता है. क्योंकि लड़कपन में ही लोग नए-नए रिश्ते बनाते हैं। आप किसी को देखते हैं तो सबसे पहले ये देखते हैं कि वो मुस्कुरा रहा है या नहीं. अगर आप के चेहरे के भाव किसी को समझ में नहीं आ रहे, तो ये बहुत बड़ा सदमा है. बच्चों के लिए तो ये और बड़ी मुसीबत है’। अगर आप मुस्कुरा नहीं सकते, तो आप नुक़सान में रहेंगे. लोग आप के जज़्बात ही नहीं समझ पाएंगे. लोगों को लगेगा कि आप की बातचीत में दिलचस्पी ही नहीं है’।
मुस्कान थके हुए के लिए विश्रााम है! उदास के लिए दिन का प्रकाश है! और कष्ट के लिए प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है! क्योकि आप की मुस्कान ही आप की सबसे बड़ी दौलत है जो आप के चेहरे की सुन्दरता को निखारता है एक औषधि के रुप मे. क्यूकि यह मुस्कान ईश्वर का दिया हुआ सबसे अनमोल तोहफ़ा हैं।मुस्कुराहट ही जिन्दादिली की निशानी है गम में भी मुस्कुराने वाला इंसान कभी भी असहाय नही होता क्यूकि हमेशा हर दुखों के रास्ते पर मुस्कुराहट उसके साथ होती है।