इस महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ होती है. इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं स्नान आदि करके नए वस्त्र पहनती हैं और शाम को शाकाहारी पकवान खाती हैं. आज सूर्योदय 6:38 मिनट पर और सूर्यास्त 5:31 मिनट पर होगा।
छठ पर्व हर साल कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। ये तिथि इस बार 10 नवंबर को पड़ रही है। छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है। यही एकमात्र ऐसा त्योहार है, जिसमें सूर्य देव का पूजन कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। वैसे भी हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। सभी वैदिक-धार्मिक अनुष्ठानों की शुरुआत में पंचदेवता की पूजा होती है, जिनमें सूर्य भी एक हैं। छठ महापर्व में भी सूर्यदेव के लिए व्रत किया जाता है और उनकी पूजा होती है, इसलिए इसे सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। छठ का यह व्रत संतान-प्राप्ति एवं उनके सुखी एवं स्वस्थ जीवन के लिए किया जाता है। हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि से चार दिवसीय छठ महापर्व की शुरुआत होती है। जानिए छठ पर्व की पूजा विधि, सामग्री, प्रसाद, कथा और आरती।
कैसे मनाया जाता है छठ पर्व?
हिन्दू धर्म में छठ पर्व का अत्यंत महत्त्व है। यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ होकर सप्तमी तक चलता है। चतुर्थी तिथि ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाई जाती है। पंचमी तिथि को खरना व्रत किया जाता है और इस दिन संध्याकाल में उपासक प्रसाद के रूप में गुड-खीर, रोटी और फल आदि का सेवन करते है और अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं। छठ पूजा की अहम तिथि षष्ठी में नदी या जलाशय के तट पर श्रद्धालु एकत्रित होते हैं और उदीयमान सूर्य को अर्ध्य समर्पित कर पर्व का समापन करते हैं।
छठ पर्व में किसकी होती है पूजा?
छठ महापर्व में मुख्यतः सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाले देवता हैं, जो पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार हैं। सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। शास्त्रों में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है। पुराणों में इन्हें माँ कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर होती है। षष्ठी देवी को ही स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा जाता है।
महापर्व छठ का पहला अर्घ्य आज
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन छठ पर्व मनाया जाता है. इस बार छठ पर्व 10 नवंबर के दिन मनाया जा रहा है. 8 नवंबर से छठ पर्व की शुरुआत हुई थी. और 9 नवंबर 2021, मंगलवार के दिन छठ का दूसरा पर्व है खरना था. छठ पर्व के दौरान 36 घंटे निर्जला व्रत रखा जाता है. और सूर्य देव और छठी मैय्या की पूजा और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है।
छठ पूजा: संध्या अर्घ्य और प्रात:काल के अर्घ्य का समय
10 नवंबर (संध्या अर्घ्य) सूर्यास्त का समय : 05:30 PM
11 नवंबर (प्रात:काल अर्घ्य) सूर्योदय का समय : 06:41 AM
छठ पूजा सामग्री
नए वस्त्र, बांस की दो बड़ी टोकरी या सूप, थाली, पत्ते लगे गन्ने, बांस या फिर पीतल के सूप, दूध, जल, गिलास, चावल, सिंदूर, दीपक, धूप, लोटा, पानी वाला नारियल, अदरक का हरा पौधा, नाशपाती, शकरकंदी, हल्दी, मूली, मीठा नींबू, शरीफा, केला, कुमकुम, चंदन, सुथनी, पान, सुपारी, शहद, अगरबत्ती, धूप बत्ती, कपूर, मिठाई, गुड़, चावल का आटा, गेहूं।
छठ पूजा विधि
-छठ पर्व के दिन प्रात:काल स्नानादि के बाद संकल्प लिया जाता है। संकल्प लेते समय इस मन्त्र का उच्चारण किया जाता है-
ॐ अद्य अमुक गोत्रो अमुक नामाहं मम सर्व पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।
-पूरे दिन निराहार और निर्जला व्रत रखा जाता है। फिर शाम के समय नदी या तालाब में जाकर स्नान किया जाता है और सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है।
-अर्घ्य देने के लिए बांस की तीन बड़ी टोकरी या बांस या पीतल के तीन सूप लें। इनमें चावल, दीपक, लाल सिंदूर, गन्ना, हल्दी, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी रखें। साथ में थाली, दूध और गिलास ले लें। फलों में नाशपाती, शहद, पान, बड़ा नींबू, सुपारी, कैराव, कपूर, मिठाई और चंदन रखें। इसमें ठेकुआ, मालपुआ, खीर, सूजी का हलवा, पूरी, चावल से बने लड्डू भी रखें। सभी सामग्रियां टोकरी में सजा लें। सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में एक दीपक भी जला लें। इसके बाद नदी में उतर कर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
अर्घ्य देते समय इस मंत्र का उच्चारण करें
ऊं एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भवत्या गृहाणार्ध्य नमोअस्तुते॥
छठ पूजा में क्या करें
-छठ पूजा के दौरान साफ-सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता है। इस दौरान साफ-सुथरे और अगर मुमकिन हो को नए कपड़े पहनकर ही छठ पूजा करनी चाहिए।
-छठ पर्व के दौरान व्रती को बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए।
-इस दौरान सात्विक भोजन ही करें और शराब का भी सेवन न करें।
-जरूरतमंदों की सहायता करें।
-व्रती की जितना हो सके सेवा करें। उन्हें गलती से भी परेशान न करें।
-पूजन के लिए बांस के सूप का ही उपयोग करें।
-छठ का प्रसाद जितना ज्यादा हो सके बनाएं और इसे अधिक से अधिक लोगों में बांटे।
छठ पूजा के दिन सूर्य को अर्घ्य देने की विधि
छठ पूजा के दिन छठ घाट की तरफ जाती हुए महिलाएं रास्ते में छठ मैय्या के गीत गाती हैं। इनके हाथों में अगरबत्ती, दीप, जलपात्र होता है। घाट पर पहुंचकर व्रती कमर तक जल में प्रवेश करके सूर्य देव का ध्यान करते हैं। जब सूर्य अस्त होने लगते हैं तब अलग-अलग बांस और पीतल के बर्तनों में रखे प्रसाद को तीन बार सूर्य की दिशा में दिखाते हुए जल से स्पर्श कराते हैं।
छठ पूजा का महत्व
इस पर्व में सूर्य देव की पूजा की जाती है उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य देव के साथ-साथ छठी मैया की भी पूजा होती है। मान्यता है कि छठी मैया संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है।
छठ पर्व के तीसरे दिन क्या करते हैं
तीसरे दिन छठ मैया का प्रसाद बनाया जाता है और सूर्य देवता को संध्या अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इसके बाद छठ पूजा के चौथे दिन यानी सप्तमी के दिन सूर्य देवता को दोबारा जल चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है और इस दिन छठ पूजा संपन्न होती है।
सप्तमी के दिन छठ का पारण
कार्तिक शुक्ल सप्तमी के दिन सुबह उगते सूरज को अर्घ्य देकर विधि-विधान से पूजा संपन्न की जाती है. महिलाएं छठी माता के गीत गाती हैं. सूर्योदय के साथ ही सुबह का अर्घ्य दिया जाता है और इस तरह छठ पूजा का पारण यानी समापन होता है. इसके बाद ही घाटों पर प्रसाद दिया जाता है।
10 नवंबर को है छठ पूजा का विशेष दिन, जानिए संध्या अर्घ्य की विधि
अर्घ्य के दौरान नदी तट पर बांस की बनी टोकरी में मौसमी फल, मिठाई और प्रसाद में ठेकुआ, गन्ना, केले, नारियल, खट्टे के तौर पर डाभ नींबू और चावल के लड्डू रखे जाते हैं। इस टोकरी को लोग सिर पर रखकर नदी तट पर लेकर जाते हैं। सिर पर लेकर जाने का उद्देश्य प्रसाद को आदर पूर्वक छठ मैय्या को भेंट करने से है।
11 नवंबर को छठ पर्व का आखिरी दिन
कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन सुबह सूर्योदय के समय बीते दिन की सूर्यास्त वाली पूजा की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। इसके बाद पूजा करने के बाद प्रसाद बांटा जाता है और इसके बाद ही छठ पूजा संपन्न मानी जाती है।
छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा
छठ पर्व का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। एक कथा के अनुसार प्रथम मानव स्वयंभू मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। इस वजह से वे दुःखी रहते थे। महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा। महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ कराया। इसके बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ। इस बात से राजा और अन्य परिजन बेहद दुःखी थे। तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं। जब राजा ने उनसे प्रार्थना की, तो उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा – मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं। मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं।” इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। ऐसी मान्यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर इस पूजा का प्रसार हो गया।
छठ पूजा खरना ऐसे करें
खरना में व्रती पूरे दिन निराहार रहना होता है। फिर शाम में मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर, पूरी बनाकर छठ मैय्या को भोग लगाया जाता है। फिर खरना का प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटों के लिए निर्जला व्रत रखा जाता है। खरना के अगले दिन अस्तगामी सूर्य को नदी, तलाब के किनारे अर्घ्य दिया जाता है। इसे पहला अर्घ्य भी कहते हैं।
कौन हैं छठी मइया…
मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है। षष्ठी मां यानी छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है। मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं।
यूं ग्रहण करें प्रसाद
छठ पर्व के दौरान नियमों का पालन करना जरूरी होता है. इस दिन सिर्फ प्रसाद बनाते समय ही नहीं बल्कि खाते समय भी नियमों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. जब खरना के दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति प्रसाद रखता है तो घर के सभी सदस्य शांत रहते हैं और कोई शोर नहीं करते. ऐसा माना जाता है कि शोर होने के बाद व्रती प्रसाद खाना बंद कर देता है. ऐसा भी कहा जाता है कि व्रत करने वाला व्यक्ति ही सबसे पहले प्रसाद ग्रहण करता है उसके बाद ही घर के सभी सदस्य प्रसाद ग्रहण करते हैं।
छठ पूजा करने से मिलती है सुख-समृद्धि
छठ व्रत संतान प्राप्ति, संतान की लंबी उम्र और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए होता है. यह व्रत जितना कठिन है उतने ही कठिन इसके नियम हैं. मान्यता है कि विधि-विधान और नियमों का पालन करते हुए इस व्रत को करने से छठी मैया हर मनोकामना पूर्ण करती हैं।
छठ के त्योहार में प्याज और लहसुन का सेवन करने से बचें…
छठ पूजा के दिनों में घर में प्याज और लहसुन का सेवन बिलकुल बंद कर दें। घर के सभी सदस्यों को इसका पालन करना चाहिए वरना छठ मईया की कुदृष्टि का शिकार होना पड़ सकता है।
व्रत लेते समय करें इस मंत्र का उच्चारण…
छठ के उपवास का संकल्प लेते समय इस मन्त्र का उच्चारण किया जाता है- ॐ अद्य अमुक गोत्रो अमुक नामाहं मम सर्व पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।
चार दिनों तक मनाया जाता है छठ का त्योहार…
चार दिवसीय छठ के त्योहार में पहला दिन नहाए-खाए, दूसरा दिन खरना, तीसरे दिन छठ और चौथे दिन अर्घ्य होता है।
संतान प्राप्ति के लिए भी महिलाएं रखती हैं छठ का उपवास…
मान्यता है छठ पूजा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती हैं। खासकर इस व्रत को संतानों के लिए रखा जाता है। कहते हैं जो लोग संतान सुख से वंचित हैं उनके लिए ये व्रत वरदान साबित होता है।
36 घंटे निर्जला व्रत रखती हैं महिलाएं…
छठ पूजा के दिन महिलाएं 36 घंटे निर्जला व्रत रखती हैं। फिर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा होती और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है।
छठ पूजा के दौरान ना दोहराएं ये गलितयां…
व्रती लोग इस बात का खास ध्यान रखें कि वो पलंग, सोफे आदि पर न सोएं। मान्यता है कि इस दिन साफ जमीन पर चादर बिछाकर सोना शुभ फलदायी होता है।
छठ पूजा के दौरान नहीं करनी चाहिए ये गलतियां…
छठ पूजा शुद्ध मन से की जाती है। नहाय-खाय से इसकी शुरुआत होती है जो खरना, छठ पूजा और छठ पूजा के दूसरे अर्घ्य तक चलती है। ध्यान रखें कि छठ पूजा के इन दिनों में घर में किसी प्रकार का कलेश न हो और परिवार वालों में ख़ुशी का माहौल रहे। किसी भी प्रकार के झगड़े से बचें वरना इससे छठ मईया रुष्ट हो जातीं हैं।
छठ के दिन घर में लगाएं सूर्य देव के साथ सात घोड़ों के रथ वाली तस्वीर…
वास्तु के अनुसार, सूर्य देव के साथ सात घोड़ों के रथ वाली तस्वीर को घर में लगाने से धन की कमी नहीं होती। माना जाता है कि ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और संपन्नता बनी रहती है। तस्वीर लगाते वक्त ध्यान रखें कि उसकी दिशा पूरब में हो।
छठ पूजा प्रसाद
व्रती घाट के ऊपर आकर छठ मैय्या की कथा सुनते हैं और पानी में भिगोये हुए केराव को प्रसाद के तौर पर बांटते हैं। पूजा होने के बाद छठ घाट पर लोगों को प्रसाद बांटने की भी परंपरा है।
ये काम दिलाएंगे सुख-समृद्धि और आरोग्य जीवन
जरूरतमंदों का ज्यादा से ज्यादा दान करें। इसके अलावा जो व्यक्ति निर्धन हो और छठ पूजा की तैयारी करने में सक्षम न हो तो आप उसकी मदद कर सकते हैं। छठ पूजा करने में किसी व्यक्ति की मदद करना बेहद शुभ माना जाता है।
आज शाम लकड़ी के चूल्हे पर बनेगी गुड़ की खीर
छठ पूजा के दूसरे दिन खरना की पूजा में महिलाएं शाम को लकड़ी के चूल्हे पर गुड़ का खीर बनाकर प्रसाद के तौर पर खाती हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार खरना पूजा के साथ ही छठी मइया घर में प्रवेश कर जाती हैं और महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है।
छठ पर्व का खगोलीय महत्व
वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी छठ पर्व का बड़ा महत्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर है, जिस समय सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित रहता है। इस दौरान सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं। इन हानिकारक किरणों का सीधा असर लोगों की आंख, पेट व त्वचा पर पड़ता है। छठ पर्व पर सूर्य देव की उपासना व अर्घ्य देने से सूर्य के इन नकारात्मक प्रभावों का मनुष्य पर कम असर पड़ता है। 36 घंटे का व्रत और सात्विक भोजन, व्रती को सूर्य से उचित ऊर्जा लेने में मदद करता है।
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