ब्लैक, येलो और वाइट फंगस इंफेक्शन ने हमारे हेल्थ सिस्टम पर कब्जा कर लिया है और आपको उनके लक्षणों के बारे में पता होना चाहिए। यह मूलत: हाइजीन से जुड़ा इन्फेक्शन होता है. अगर हाइजीन का, साफ-सफाई का ख्याल नहीं रखा गया तो इंटरनल बॉडी में फंगल इन्फेक्शन का खतरा रहता है।
भारत कोविड-19 की दूसरी लहर के प्रकोप से निपट रहा है और अभी कई लोग कठिनाइयों से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं।कोरोना की दूसरी लहर के बीच एक नई महामारी ने चिंता बढ़ा दी है।कोविड-19 रोगियों में फंगल इंफेक्शन की एक नई गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है, जो हमारे हेल्थ केयर सिस्टम पर बोझ डाल रही है। वहीं केंद्र सरकार ने भी राज्यों से इसे महामारी घोषित करते हुए सारा रिकॉर्ड रखने को कहा है। कोविड-19 का इलाज करते समय कॉमरेडिडिटीज, कम इम्युनिटी लेवल, अस्वाभाविक स्थिति और स्टेरॉयड के ज्यादा प्रयोग से आज देश भर में ब्लैक फंगस के संक्रमण या ‘म्यूकोर्मिकोसिस’ के मामलों को देखा जा रहा है। इसके बाद, वाइट फंगस और येलो फंगस के इंफेक्शन के मामले भी सामने आने लगे हैं।
अमेरिकी शीर्ष स्वास्थ्य एजेंसी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक, म्यूकर माइकोसिस (लैक फंगस) और कैंडिडिआसिस (वाइट फंगस) तो होते हैं, लेकिन येलो फंगस भी होते हैं क्या? एम्स, दिल्ली के निदेशक डॉ रणदीप सिंह गुलेरिया का कहना है कि रंगों को लेकर बहुत कन्फ्यूज होने या घबराने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा है कि फंगल इंफेक्शन को उस रंग के नाम से न ही पुकारे तो ठीक है, क्योंकि इससे कंफ्यूजन पैदा होता है। डॉ गुलेरिया का कहना है कि म्यूकर संक्रमण कोरोना की तरह कम्युनिकेबल डिजीज यानी फैलनेवाली बीमारी नहीं है।
आखिर कितने तरह के फंगल इन्फेक्शन होते हैं, क्यों होते हैं… इनके लक्षण क्या हैं, किस फंगल इन्फेक्शन से कितना खतरा है और इनसे बचाव के क्या उपाय हैं? स्वास्थ्य एजेंसी, एक्पर्ट्स डॉक्टर्स के माध्यम से इन तमाम सवालों के बारे में हम यहां समझने की कोशिश करेंगे।
फंगल इन्फेक्शन कितने तरह के होते हैं?
फंगस कोई नई चीज नहीं हैं. ये पहले से ही पर्यावरण में मौजूद होते हैं। इनसे होनेवाले इन्फेक्शन को फंगल इन्फेकशन कहते हैं। ज्यादातर फंगल इन्फेक्शन से हमें बहुत खतरा नहीं होता, लेकिन कुछ संक्रमण जानलेवा भी होते हैं। दाद, खाज, खुजली भी एक तरह के फंगल इन्फेक्शन ही हैं।दाद के अलावा नेल फंगलइन्फेक्शन, वजाइनल कैंडिडिआसिस, गले में होने वाले कैंडिडा इन्फेक्शन वगैरह आम होते हैं।
ट्रेमेला मेसेन्टेरिका या येलो फंगस को भी एक आम जेली फंगस कहा जाता है। अमेरिकी स्वास्थ्य एजेंसी सीडीसी के मुताबिक, एस्परजिलोसिस, टैलारोमाइकोसिस, सी नियोफॉर्म्स इन्फेक्शन, न्यूमोसिस्टिस निमोनिया, म्यूकरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) और कैंडिडिआसिस (वाइट फंगस) जैसे कई फंगल इन्फेक्शन होने के पीछे कमजोर इम्यूनिटी बड़ी वजह है।
आइए जानते हैं क्या हैं ये तीनों फंगस
1 समझिए क्या है ब्लैक फंगस
ये संक्रमण हमारे आस-पास मौजूद ‘म्यूकोर्माइसेट्स’ नामक एक प्रकार के मोल्ड के कारण होता है। ये रोग उन लोगों को प्रभावित करता है, जिनकी किसी खास स्वास्थ्य स्थिति के कारण कमजोर इम्युनिटी है- जैसे मधुमेह। इसके होने का एक अन्य कारण ये भी है कि कोविड-19 के रोगियों के इलाज के लिए, स्टेरॉयड (श्वसन पथ में सूजन को कम करने के लिए) उपयोग किया जाता है। ऐसे मरीजों में इंफेक्शन होने की संभावना अधिक देखी गई है। इसके अलावा, मधुमेह या कैंसर के मरीजों को संक्रमित होने का खतरा अधिक है।
मोर्टलिटी रेट यानी मृत्यु दर के लिहाज से देखें तो ब्लैक फंगस ज्यादा जानलेवा है. इसके गंभीर होने पर 54 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है. सीडीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इन्वेसिव कैंडिडा भी जानलेवा है, जिसके गंभीर होने पर 25 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है. अस्पताल में भर्ती रहने वाले लोगों को ऐसे इन्फेक्शन का खतरा ज्यादा रहता है।
इसके लक्षणों को पहचानिए
चेहरे के एक तरफ सूजन।
गंभीर सिरदर्द, नाक बंद।
नाक या मुंह के ऊपरी हिस्से पर काले घाव।
सीने में दर्द, सांस फूलना और मुंह को चबाने या खोलने में कठिनाई होना।
2 अब जानिए येलो फंगस के बारे में
ब्लैक फंगस के विपरीत, ये संक्रमण किसी भी बाहरी लक्षण से पहले आंतरिक रूप में प्रकट होना शुरू करता है। ये संक्रमण अस्वच्छता, दूषित भोजन और अस्वच्छ मेडिकल उपकरणों के संपर्क में आने के कारण होता है। ब्लैक फंगस की तरह ही, स्टेरॉयड के अधिक प्रयोग से येलो फंगस के मामले सामने आ रहे हैं और ये फंगस कोमॉर्बिड वाले रोगियों को नुकसान पहुंचा रहा है।
येलो फंगस की बात करें तो इसमें जान का खतरा नहीं रहता है। येलो फंगस के लक्षण मिलने पर तुरंत मेडिकल हेल्प ली जानी चाहिए, ताकि शुरुआती दौर में ही इसका पता लगाया जा सके. इसमें एंटी फंगल इंजेक्शन अम्फोटेरिसिन बी का इस्तेमाल किया जाता है।
फंगस के लक्षण पहचानिये
ये पहले आंतरिक रूप से शुरू होता है जैसे मवाद रिसाव, अंग विफलता और तीव्र परिगलन होना। एक बार संक्रमण शुरू होने के बाद रोगी स्वयं इसका अनुभव कर सकता है।
सुस्ती, भूख में कमी,
लाल और धंसी हुई आँखें।
3 क्या है वाइट फंगस
वाइट फंगस या ‘एस्परगिलोसिस’ कम प्रतिरक्षा वालों को और मधुमेह जैसे रोगियों को प्रभावित करता है। स्टेरॉयड के ज्यादा इस्तेमाल से भी ये संक्रमण शुरू होता है। येलो और ब्लैक फंगस के विपरीत, ये शरीर के विभिन्न भागों जैसे नाखून, त्वचा, पेट, गुर्दे, मस्तिष्क और प्रजनन अंगों को प्रभावित करता है।
फंगस के लक्षण पहचानियें
जीभ का सफेद होना
खांसी,
बुखार,
दस्त,
फेफड़ों पर काले धब्बे,
ऑक्सीजन के स्तर में कमी।
क्या हो सकते हैं फंगल इंफेक्शन से बचाव के उपाय
एम्स दिल्ली के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया के अनुसार, ये फैलने वाले संक्रमण नहीं है। हालांकि, इसकी शुरुआत को रोकने के लिए कुछ सुझावों पर विचार किया जा सकता है। जैसे
स्टेरॉयड का विवेकपूर्ण उपयोग करें और कोविड-19 के रोगियों के बीच रक्त शर्करा के स्तर पर नजर रखें।
अपने आस-पास की जगह साफ रखें और बासी भोजन न खायें। इससे बैक्टीरिया और फंगल से बचा जा सकता है।
ध्यान रखें कि आपके आस-पास नमी न हो, क्योंकि ज्यादा नमी बैक्टीरिया को बढ़ावा देती है।
कोरोना के बाद क्यों हो रहे हैं फंगल इन्फेक्शन?
इन दिनों कोरोना के बाद फंगल इन्फेक्शन के मामले सामने आने के पीछे कमजोर इम्यूनिटी को डॉक्टर्स बड़ा कारण बता रहे हैं. कोरोना मरीजों को स्टेरॉयड भी दिए जाते हैं. ऐसे में जिन लोगों को कोरोना हो रहा है उनकी इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है. खासकर डायबिटीज के पेशेंट में ऐसे मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं। कारण कि डायबिटिक पेशेंट को कोरोना होने पर उनका इम्यून सिस्टम बहुत ज्यादा कमजोर हो जाता है।
कौन सा फंगल इन्फेक्शन हमारे लिए कितना खतरनाक है?
एम्स के निदेशक डॉ गुलेरिया बताते हैं कि फंगल इन्फेक्शन 95 फीसदी तक ऐसे मरीजों में देखा गया है, जो या तो डायबिटीक हैं या जिन्हें ज्यादा स्टेरॉयड दिया जा रहा है. इसके अलावा अन्य लोगों में यह न के बराबर ही है. इनसे इसलिए भी ज्यादा खतरा नहीं है, क्योंकि यह मरीज के पास बैठने या संपर्क में आने से नहीं फैलता है। हेमेटोलॉजिस्ट डॉ डी ठाकुर बताते हैं कि संक्रमण दर के नजरिये से वाइट फंगस, ब्लैक फंगस से ज्यादा संक्रामक है।
फंगल इन्फेक्शन से बचने के लिए क्या करें?
किसी भी फंगल इन्फेक्शन को हाइजीन से जुड़ी समस्या बताया जाता है. ब्लैक फंगस से बचने के लिए डॉक्टर प्रदूषण भरे वातावरण से दूर रहने की सलाह देते हैं. धूल-मिट्टी से जुड़े काम करते समय फुल स्लीव्स शर्ट, ग्लव्स और मास्क पहनने को कहा जाता है. उन जगहों पर न जाएं, जहां ड्रेनेज का पानी जमा होता हो. अपनी इम्यूनिटी को मजबूत बनाए रखें।
लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहनेवाले मरीजों को वाइट फंगल इन्फेक्शन का खतरा रहता है. पहले भी बताया जा चुका है यह मूलत: हाइजीन से जुड़ा इन्फेक्शन होता है. अगर हाइजीन का, साफ-सफाई का ख्याल नहीं रखा गया तो इंटरनल बॉडी में फंगल इन्फेक्शन का खतरा रहता है। खासकर ऑक्सीजन या वेंटिलेटर पर जो मरीज हैं, उनके उपकरण और ऑक्सीजन जीवाणु, कीटाणु वगैरह से मुक्त होने चाहिए. ऑक्सीजन सिलेंडर के ह्यूमिडिफायर में स्टेरेलाइज वाटर का प्रयोग करना चाहिए. ये कुछ सावधानियां बताई जाती हैं।
यह लेख आपकी सामान्य जानकारी के लिए है. किसी भी तरह की स्वास्थ्य समस्या में संबंधित विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह लेना ज्यादा उचित है।