वाराणसी की मोना सिंह ने गर्भावस्था के दौरान खुद ही हर्बल बिस्किट का उद्योग स्थापित कर दिया। कोरोना काल में नौकरी छूटने के बाद मोना ने आपदा में अवसर तलाशा और अब 20 लोगों को रोजगार देने के साथ-साथ दूसरों को भी आगे बढऩे की प्रेरणा दे रही हैं।
इस दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं, एक वे जो विषम परिस्थितियों का डट कर सामना करते हुए अपने अधूरे ख्वाबों को मुकम्मल करते हैं और वे जो विषम परिस्थितियों के आगे घुटने टेकते हुए अपने ख्वाबों को अधूरा ही छोड़ देते हैं। अब आप अपने आपको किस जमात में रखते हैं, यह तो आप पर निर्भर करता है लेकिन आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हेंने अपनी जिंदगी में न महज मुश्किलों को बौना साबित कर न महज अपने अधूरे ख्वाबों को मुकम्मल कर दूसरों के लिए एक नजीर पेश की है, बल्कि उन सभी लोगों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बनकर भी उभरे हैं, जो मुश्किल घड़ी में हिम्मत हार जाते हैं।अगर आप भी अपनी जिंदगी में हो रही मुश्किलों की वजह से हिम्मत हार चुके हें तो जरा मिलिए इनसे. इनका नाम मोना सिंह है।
मोना ने राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान सोनीपत से पढ़ाई के बाद गाजियाबाद में निजी क्षेत्र में नौकरी की। कोरोना काल में नौकरी छूटी तो पालमपुर में पति के पास आ गईं। मोना के पति पटना निवासी रोशन लाल वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद और हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआइआर-आइएचबीटी) पालमपुर से जड़ी-बूटियों के संरक्षण में डाक्ट्रेट हैं। पालमपुर पहुंचने के समय मोना सिंह गर्भवती थीं और कोरोना की बंदिशों के कारण उन्हेंं पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक आहार उपलब्ध नहीं हो पाया। यह उनकी जिंदगी का एक ऐसा वक्त था, जब उन्हें पैसों की सख्त दरकार थी. गर्भवती होने की वजह उन्हें उचित पोष्टिक आहार की आवश्यकता थी. लॉकडाउन व पैसों की तंगी की वजह उन्हें पोष्टिक आहार प्राप्त होने में उन्हें बहुत तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता था. इन समस्याओं का सामना करने के बाद उन्होंने फैसला किया कि जिस तरह की समस्याएं उन्हें हुई है, वैसी समस्याएं किसी और को न हो, पति से विमर्श के बाद उन्होंने कुछ ऐसा करने का सोचा ताकि दूसरे उनके जैसी समस्या से दो चार न हों। तब उन्होंने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत साढ़े छह लाख रुपये का ऋण लेकर हिमाचल प्रदेश के पालमपुर (भरमात) में उद्योग स्थापित किया है। रोशन भी पत्नी के साथ कारोबार में हाथ बंटाते हैं।
सीएसआइआर-आइएचबीटी पालमपुर में लिया प्रशिक्षण
मोना सिंह ने गाजियाबाद में एक निजी कंपनी में बतौर खाद्य तकनीकी अधिकारी के रूप में कुछ समय काम किया है। बाद में उन्होंने वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद व हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर में प्रशिक्षण लेकर मुख्यमंत्री स्टार्टअप योजना का लाभ लेते हुए परियोजना तैयार की। सरकार से ऋण लेकर व स्वजन के सहयोग से अप्रैल 2021 में हर्बल बिस्किट उद्योग स्थापित किया।
बिस्किट में इन जड़ी-बूटियों का होता है इस्तेमाल
मोना के मुताबिक, यह बिस्किट काफी लाभकारी है, बिस्किट में आटा, गुड़ व तेल के अतिरिक्त अश्वगंधा, शतावरी, हरड़, पिपली व सोंठ का समायोजन किया जाता है। यह इम्युनिटी बढ़ाने के साथ-साथ दवा का काम भी करते हैं। यह प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ओषधि के रूप में भी उपयोग में लाई जाती है. यह बिस्किट किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए काफी उपयोगी मानी जाती है। 100 ग्राम हर्बल बिस्किट का मूल्य 35 रुपये है और ये कई फ्लेवर में उपलब्ध है।
हिमाचल के साथ दिल्ली व पटना में भी करते हैं सप्लाई
मोना सिंह पैकिंग कर थोक में बिस्किट बेचती हैं। वह हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और पटना में आपूॢत कर रही हैं। उन्हें आर्डर लगातार मिल रहे हैैं। बकौल मोना सिंह, स्टार्टअप युवाओं के लिए बेहतर विकल्प है और इससे स्वावलंबी बना जा सकता है। उनका कहना है कि पढ़े-लिखे युवाओं को स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाने चाहिए।
चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों ने दिखाई दिशा
मोना सिंह ने बताया कि मातृत्व के दौरान उन्होंने महिलाओं जरूरतों को काफी करीब से महसूस किया। तब उन्होंने निर्णय किया कि इस दौरान महिलाओं को जरूरी पोषण उपलब्ध होना चाहिए। इसके अलावा फास्ट फूड की बढ़ते बाजार और खतरों से भी वह काफी चिंतित थीं। यहीं से उन्हें हर्बल उत्पादों से जड़ा स्टार्टअप शुरू करने की प्रेरणा मिली।
कोरोना काल में मोना के द्वारा की गई यह पहल अनेकों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन रही है. अपने इस कारोबार के जरिए मोना आज की तारीख में न महज खुद धानार्जन कर रही हैं, बल्कि अनेकों लोगों को रोजगार भी मुहैया करा रही हैं. यकीनन, इस काम के लिए मोना की जितनी भी तारीफ की जाए, उतनी कम है।