सौरमंडल के सभी ग्रहो में से एक पृथ्वी जिस पर जीवन संभव है, जो आपका, हमारा घर है, जो वास्तव में एक खूबसूरत जीवनदायनी गृह है। जिस पर अरबो सालो से जीवन रूपी पेड़, पौधे व् जीव जंतु फलते फूलते आ रहे है, वास्तव में पृथ्वी और मानव शरीर का बड़ा ही गहरा संबंध है आइए जानते हैं यह हमारे तन मन और जीवन को कैसे प्रभावित करता है।
‘पृथ्वी माता द्यौः नः पिता’ (वेद)। पृथ्वी (Earth) हमारी माता, आकाश पिता है। पृथ्वी हमारी मातृ भूमि और आधार भूमि,जननी माता है, और इस जननी का हमारे शरीर में अपना मूल तत्व अंश जिससे हमारा शरीर बना और पोषित होता है। शरीर जिन पांच तत्वों से बना है, क्रमानुसार वे हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। पृथ्वी तत्व से हमारा भौतिक शरीर बनता है। जिन तत्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी (धरती) बनी उन्हीं से हमारे भौतिक शरीर की भी रचना हुई है। यही कारण है कि आयुर्वेद में शरीर को निरोग और बलशाली बनाने के लिए धातु के भस्मों का प्रयोग किया जाता है।
पृथ्वी के पाँच गुण
शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध पृथ्वी इन पाँच गुणों से युक्त है। पृथ्वी शक्ति तथा गुणों से सर्वसम्पन्न है।
दुर्गन्ध मिटाने, सर्दी-गर्मी रोकने, विदावक शक्ति, विष शोषण, खनिज शक्ति को धारण करने, जल के वेग को रोकने, उष्णता को कम करने, सब कुछ आत्मसात् कर लेने की शक्ति, शरीर से विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालने की शक्ति आदि गुण व शक्तियाँ पृथ्वी में विद्यमान हैं।रोगों को दूर करने की अद्भुत क्षमता पृथ्वी में है।
पृथ्वी मुद्रा लाभ: • पृथ्वी मुद्रा से सभी तरह की कमजोरी दूर होती है। विटामिन की कमी दूर होती है। चेहरे की त्वचा साफ और चमकदार बनती है। शरीर को स्वस्थ्य बनाए रखने में मदद करती है। सयंम और सहनशीलता बढाती है। यह एकाग्रता बढाने में सहायक है। यह मुद्रा तनाव मुक्त करती है।
प्रो0 स्टाकलास्वा के अनुसार- ‘‘पृथ्वी में एक प्रकार का रेडियम होता है, जो शरीर-ग्रन्थियों को प्रभावित कर स्वास्थ्य-वृद्धि करता है।’’
पृथ्वी में एक विलक्षण शक्ति है जो नंगे पैर चलने वालों के शरीर में ताजगी व जीवन-शक्ति का संचार करती है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार वृक्षों में शक्ति और जीवन भरती है। जिस प्रकार वृक्ष पृथ्वी से अलग होकर पनप नहीं सकता इसी प्रकार मानव पृथ्वी से संबंध-विच्छेद कर जी नहीं सकता। समस्त जीव-जन्तु पृथ्वी-स्पर्श से ही स्वस्थ व प्रसन्न रहते हैं।
योग-साधना के लिए नंगी भूमि पर सोना नंगे पैर चलना आवश्यक नियम है। प्राचीन भारत के गुरुकुलों में विद्यार्थी, वानप्रस्थी तथा संन्यासी पृथ्वी (Earth) पर ही सोते थे और नंगे पाँव चलते थे।अनिद्रा, चिन्ता, बेचैनी घबराहट में खुली पृथ्वी, आकाश के नीचे सोना लाभदायक होता है। उदर के सभी अवयव, हृदय, आँतें पृथ्वी (Earth) पर सोने से अपार जीवन शक्ति पाते हैं तथा विजातीय द्रव्य आसानी से बाहर हो जाते हैं, शरीर को नयी संजीवनी शक्ति मिलती है। मरने पर शरीर को पृथ्वी में लिटाने की प्रथा वैज्ञानिक है।वह सुख सेज है। पृथ्वी पर नंगे पैर चलना, बैठना, लेटना पूर्णतया लाभकारी है। हमारे ऋषियों ने पृथ्वी की अमोघ शक्ति से विलक्षण कार्य सम्पन्न किया है। जो सुख व आनंद गद्दे में सोने पर 5, 6 घंटे में मिलता है, वह सुख, शांति और आनंद पृथ्वी पर 2 घंटे में प्राप्त हो जाता है। नंगे पैर पृथ्वी में चलने से पैर मजबूत, स्वस्थ, सुडौल रहते हैं, रक्तभ्रमण समान रहता है। संन्यासी गुरु शिष्यों को नंगे पैर चलने की सलाह देते हैं। नंगे पैर चलने से भूख अधिक लगती है। उच्च रक्तचाप दूर होता है।
फादर नीप के शब्दों में- ‘‘नंगे पैर पृथ्वी पर चलने से सिरदर्द, गले की सूजन, पैर और शिर का ठंढा रहना आदि दूर हो जाते हैं’’।
जीवन-शक्ति प्रदान करने का पृथ्वी में अपार गुण है। पहलवान लोग शरीर पर मिट्टी लगाते हैं। बिजली का झटका लगने पर, सर्प जैसे विषैले जन्तुओं के काटने पर मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। सर्प-विष को दूर करने के लिए सर्प काटे रोगी को 2 फीट के गड्ढे में बैठाकर गर्दन तक गीली मिट्टी से गड्ढे को भर कर विष दूर किया जा सकता है। घोड़े, गदहे व अन्य पशु सूखी व गीली मिट्टी में लोटकर थकान मिटाते हैं, जीवन-शक्ति प्राप्त करते हैं। सूखी गीली मिट्टी का स्नान अति लाभदायक होता है। अपने देश में स्नान के पहले मुल्तानी मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। शुद्ध मिट्टी अच्छा दन्त-मंजन भी है। मिट्टी के घर अधिक स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। मिट्टी से घरों, दीवालों, फर्श का पोतना आज भी प्रचलित है।
मिट्टी के बर्तनों में भोजन पकाना व खाना अति उत्तम तथा स्वादिष्ट है।
भोजन मिट्टी के बर्तनों में खराब नहीं होता है। मिट्टी की गरम पट्टी, ठंढी पट्टी, रज स्नान, पंक स्नान, बालू-भक्षण प्राकृतिक चिकित्सा के अंग हैं। प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी तत्त्व की अति महत्ता है। मिट्टी से बहुत से रोग दूर किये जाते हैं।
मिट्टी का प्रयोग स्वास्थ्य लाभ के लिए
मिट्टी का विविध रूपों में प्रयोग कर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जाता है।खाज- खुजली, कोढ़, दाग, चर्म रोग, खून की खराबी- संबंधी रोगों में पंक स्नान अर्थात् गीली मिट्टी को शरीर में लपेट कर धूप में 15 से 40 मिनट तक बैठना चाहिए, फिर स्नान करना चाहिए। इस तरह पृथ्वी (Earth) और शरीर (Body) का बहुत ही गहरा सम्बन्ध है।
पृथ्वी तत्त्व और जल तत्त्व का महत्व
पञ्चभूत (पंचतत्व या पंचमहाभूत) भारतीय दर्शन में सभी पदार्थों के मूल माने गए हैं । पृथ्वी (ठोस), आप (जल, द्रव), आकाश (शून्य), अग्नि (प्लाज़्मा) और वायु (गैस) – ये पञ्चमहाभूत माने गए हैं जिनसे सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है ।
पृथ्वी तत्त्व
पृथ्वी तत्त्व का स्थान है शक्तिकेंद्र (मूलाधार चक्र ) | अस्थि , मांस , त्वचा , रोम और रक्तवाहिनियां — इन पाँचों का पृथ्वी तत्त्व से सम्बन्ध है | कनिष्ठा अंगुली को अंगूठे से दबाने पर शरीर में पृथ्वी तत्त्व का संतुलन होता है | यकृत , आमाशय और प्लीहा पर इस तत्त्व का नियंत्रण है | इसकी अधिकता से कफ , श्वास में भारीपन , आलस्य , उल्टी, पैर में कृमि और चक्षु रोग आदि होते हैं | यह तत्त्व यदि पूर्ण रूप से संतुलित हो तो व्रण, चमड़ी, हड्डी — सब ठीक हो जाते हैं। 21 दिसंबर से 20 मार्च तक शरीर में पृथ्वी तत्त्व की प्रधानता रहती हैं।
जल तत्त्व
जल तत्त्व का स्थान है स्वास्थ्यकेन्द्र ( स्वाधिष्ठान चक्र ) | कान, सिर के बाल और हड्डियों में जलीय परमाणुओं की विद्यमानता है। अनामिका अंगुली को अंगूठे से दबाने पर शरीर में जलतत्त्व का संतुलन होता है। आंसू, कफ, थूक, रक्त, प्रस्वाद, श्लेष्म आदि पर तत्त्व का नियंत्रण है। इसकी अधिकता से गैस, ह्रदय पर असर, मुख फीका, हकलाना, चमड़ी मे कम्पन आदि रोग होते हैं | इस तत्त्व पर नियंत्रण होने से भूख – प्यास शांत होती है और मैत्री का विपाक होता है। 21 मार्च से 20 जून तक शरीर में जल तत्त्व की प्रधानता रहती है |
मानव शरीर प्रकृति द्वारा तैयार की गई एक मशीन है जिसके सूक्ष्म संसाधनों व तंत्रों और तत्वों के प्रयोग की सटीक सहज क्रिया के जरिए हम अपनी ऊर्जा को निरंतर गति दे सकते हैं।