देश भर में COVID वैक्सीन की भारी कमी है, ऐसे में 45 साल से ज्यादा उम्र के हजारों लोग अपने दूसरे डोज के इंतजार में हैं और दूसरे डोज का समय बीतता जा रहा है. इस वजह से कई लोगों के मन में ये सवाल है कि अगर पहला टीका कोविशील्ड का लगा है, तो क्या दूसरा टीका किसी और कंपनी का लगवा लिया जाए? सवाल है कि दो टीकों को मिलाने के बारे में हम क्या जानते हैं? इसके पीछे का विज्ञान क्या है? चलिए आपको बताते हैं कि अबतक इस मामले हम अब क्या जानते हैं।
दूसरी डोज में अलग वैक्सीन लग भी जाए तो कोई दिक्कत नहीं
उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के एक सरकारी अस्पताल में ग्रामीणों के एक समूह को गलती से कोरोना के टीकों की मिश्रित खुराक दिए जाने पर विवाद के जवाब में, नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉक्टर वीके पॉल ने आज गुरुवार को आयोजित पीसी में कहा कि। यदि किसी व्यक्ति की दूसरी कोविड वैक्सीन की खुराक पहले से अलग है, तो उसपर कोई खास प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पॉल ने कहा, ‘प्रोटोकॉल क्लियर है। पहली वाली का ही दूसरी डोज लगना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर दोनों अलग अलग वैक्सीन की डोज अगर लग जाए तो विपरीत असर नहीं होता। इस साइंटिफिक ओपिनियन को देखना होगा. अपील यही है कि जिसका पहला डोज उसी का दूसरा डोज लगाया जाए.’
बता दें कि उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर ज़िले में कुछ लोगों को वैक्सीन की दोनों अलग अलग डोज देने का मामला सामने आया था. जिले के 20 लोगों को पहली डोज तो कोविशील्ड की लगी लेकिन दूसरी डोज उन्हें कोवैक्सीन की लगा दी गई. वैक्सीन के इस कॉकटेल के कारण लोगों में दहशत का माहौल है. ज़िले के CMO ने माना था कि यह गलती हुई है।
क्या कोवैक्सिन और कोविशील्ड अलग तरह से काम करते हैं?
हां, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका, या सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया का कोविशील्ड, एक वायरल वेक्टर वैक्सीन है. भारत बायोटेक का कोवैक्सिन एक निष्क्रिय टीका है। जबकि लक्ष्य एक ही है, लेकिन दोनों टीके मानव शरीर पर अलग मेकैनिजम का इस्तेमाल करते हैं।
कोवैक्सिन एक निष्क्रिय टीका है. ये वायरस या बैक्टीरिया से बने होते हैं जो चिकित्सकीय रूप से ‘मारे’ गए हैं और इसलिए, डब्ल्यूएचओ के अनुसार, अब बीमारियों का कारण नहीं बन सकते हैं, इसलिए, कोवैक्सिन अन्य निष्क्रिय टीकों की तरह काम करता है, जैसे कि हेपेटाइटिस ए, इन्फ्लुएंजा, पोलियो और रेबीज
वहीं दूसरी ओर, कोविशील्ड का विकास चिंपाजी में सर्दी पैदा करने वाले सामान्य वायरस (एडेनोवायरस) के कमजोर संस्करण से किया गया है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसे कोरोना वायरस जैसा लगने के लिए बदला गया. हालांकि जब इसे शरीर में डाला जाता है तो इससे कोई बीमारी नहीं होती।
क्या अन्य देश टीकों का मिक्स कर रहे हैं?
हां, मुख्य रूप से यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस। उदाहरण के लिए, फ्रांस में, जिन लोगों को पहली खुराक के लिए एस्ट्राजेनेका वैक्सीन मिला है, उन्हें उनके दूसरे शॉट के लिए फाइजर और BioNTech SE द्वारा विकसित वैक्सीन की पेशकश की जा रही है. ऐसा तब हुआ जब सरकार ने बूढ़े रोगियों के लिए एस्ट्राजेनेका वैक्सीन पर प्रतिबंधित लगा दिया था।
यूनाइटेड किंगडम में, एक चल रहे अध्ययन में कुछ लोगों के साथ प्रयोग किया जा रहा है, जिन्हें एस्ट्राजेनेका के शॉट की पहली खुराक मिली और उसके बाद फाइजर की वैक्सीन लगी है।
UK में हो रही स्टडी में क्या पाया गया?
लैंसेट मेडिकल जर्नल के मुताबिक, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बताया कि मिश्रित खुराक लेने वालों ने मामूली दुष्प्रभाव की खबर दी. चल रहे शोध से पता चला है कि मिश्रित (मिक्स) खुराक लेने वाले 800 लोगों में से लगभग 10 प्रतिशत ने गंभीर थकान की बात कही है। परीक्षण का नेतृत्व कर रहे हैं ऑक्सफोर्ड के बाल रोग और वैक्सीनोलॉजी के प्रोफेसर मैथ्यू स्नेप ने कहा, “यह एक बेहतर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से संबंधित होगा या नहीं, हम अभी तक नहीं जानते हैं; हम कुछ हफ्तों में उन परिणामों का पता लगा लेंगे.” स्नेप ने कहा कि अध्ययन में भाग लेने वाले सभी 50 वर्ष और उससे अधिक आयु के हैं, लेकिन यह संभव है कि युवा रोगियों में प्रतिक्रियाएं और भी मजबूत हो सकती हैं।