अपनी आत्मा को उस परमात्मा से जोड़ने का प्रयास करें, क्योंकि हम उस एक ईश्वर के ही अंश है। परंतु ध्यान रहे जिसको भी प्रभु का इस दुनिया में सहारा नहीं मिला है, उसे संसार सागर का किनारा भी नहीं मिला है। जो सब सहारों की फिक्र छोड़कर एक प्रभु का सहारा पा लेता है वह सब कुछ साध लेता है। जब अंततः हमें परमात्मा में ही विलीन हो जाना है (चूंकि हम सब उसके अंश है)। तो फिर उसने यह माया रचकर अपने अंशो को यहां क्यों भेजा?
हम उस एक ईश्वर के ही अंश है
वह सत्यस्वरूप परमात्मा एक है, जिसे हम सभी अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। उस एक को जानने-पहचानने और उसकी उपासना करने से सभी प्रकार की वासनाएं मिटती हैं और पवित्र भावनाएं प्रकट होती हैं। धरती, जल, अग्नि, वायु और आकाश, हर जगह उसकी सत्ता है। उसकी मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिलता है। वह कण-कण में समाया है। हमारे भीतर हर पल वह हमारे साथ है। हमारे हृदय मंदिर में यदि परमात्मा के नाम की बयार बहने लगे, तो समझो कि सारा संसार आनंदमय हो जाता है। इसलिए प्रभु की सुध-बुध लग जाए, इसके लिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए। अपनी पात्रता तैयार करने के लिए आज ही तत्पर हो जाएं। मन, कर्म और वचन से सच्चे बनें। अपनी आत्मा को उस परमात्मा से जोड़ने का प्रयास करें, क्योंकि हम उस एक ईश्वर के ही अंश है। परंतु ध्यान रहे जिसको भी प्रभु का इस दुनिया में सहारा नहीं मिला है, उसे संसार सागर का किनारा भी नहीं मिला है। जो सब सहारों की फिक्र छोड़कर एक प्रभु का सहारा पा लेता है वह सब कुछ साध लेता है। उसकी जीवन नैया सहज ही पार हो जाती हैं। ईश्वर को जानने के पथ पर जो अग्रसर होता है, वह पाप कर्र्मो से बच जाता है। उसके अंदर का अहंकार मिट जाता है। मिथ्या भावनाएं अनायास ही चली जाती हैं। जब तक हम अपने आत्म स्वरूप में नहीं पहुंचते हैं, यह संसार दृष्टिगोचर होता है। जैसे ही हम अपने स्वरूप में आते हैं, यह संसार रूपी स्वप्न खो जाता है। यदि कुछ रह जाता है तो वह है सत्य जो सर्वव्यापक है। ध्यान रहे जो जागता है और जीवन में हर पल सचेत व सजग रहता हैं, उसे ही करुणा के सागर परमपिता का दर्शन होता है। भगवान ने स्वयं उद्घोषणा की है कि ऐ मनुष्य! तू हर पल मेरे साथ है, तू मेरे आश्रय में बसा हुआ है, मैं तेरा मित्र हूं। परमात्मा की कृपा मिलते ही लोहे जैसा जीवन भी कंचन बन जाता है। हम इस मायावी संसार में कितना भी घूम लें, भटक लें, शांति तभी मिलेगी जब हम प्रभु की शरण में पहुंचेंगे। कितना ही भोगों को भोग लें, यह भूख मिटने वाली नहीं है। यह मिटेगी मात्र भगवान की भक्ति से। भगवान प्रेम के भूखे हैं, भक्ति के भूखे हैं। जब दुनियादारी के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, रिश्ते-नाते टूट जाते हैं तो भी परमपिता हमारे साथ रहते हैं।
आप जिसके अंश हो उससे जुडो और जो आपका वाहन मात्र है उससे थोडा हटो| शरीर के साथ जुडाव कितना ही महसूस हो लेकिन शरीर कभी अपना हुआ ही नहीं वो नष्ट होगा ही | ईश्वर से कितनी ही दूरी लगे लेकिन इश्वर दूर हो ही नहीं सकते क्यूंकि उसी के तो अंश हो तो आत्मा रूप उसी के अंग हो उससे हटकर जाओगे कहाँ? चूंकि सभी शरीर परमात्मा की अपरा प्रकृति के अंश हैं परंतु ख़ास बात ये है कि जीव या जीवात्मा इश्वर का अंश होते हुए भी खुदको उससे दूर मह्सूस करती है और शरीर का अंश ना होते हुए भी उससे नज़दीकी फील करती है| परमात्मा कहते हैं ‘तेरे अन्दर भी उतना ही सोना है जितना मेरे अन्दर है, जैसा मैं हूँ, बस प्रोसेस कर, सौ टंच सोना होगा।’ प्रक्रिया में लगो यही साधना है, यही तपस्या है, यही आराधना है। ऐसा कोई स्वतंत्र परमात्मा नहीं जो हमारा नियंता हो, निर्माता हो, हमारे जीवन को संचालित करता हो, हमें पुरस्कृत करता हो, हमे दंडित करता हो, हमारा उत्थान करता हो, पतन करता हो, कोई परमात्मा नहीं। मन्दिर में जिस भगवान को हम विराजमान करते हैं वह भगवान भी हमारे लिए प्रेरणा है चूंकि हमारे भीतर का परमात्मा अमूर्त है उसे हम पहचाने नहीं पाते तो उस अमूर्त परमात्मा को पहचानने के लिए बाहर का यह मूर्त आलम्बन लेते हैं और मूर्त से अमूर्त की यात्रा करते हैं।
डिस्क्लेमर- ”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।”