इस्लामिक मान्यताओं अनुसार रमजान के महीने में पवित्र किताब कुरान आई थी। माना जाता है कि पैगम्बर मोहम्मद ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थी जिसकी खुशी में सभी लोगों ने एक दूसरे का मुंह मीठा करके खुशियां मनाई थी।
भिलाई सेक्टर 6 स्थित जामा मस्जिद को इस तरह सजाया गया
पूरी दुनिया में ईद के त्योहार की धूम है. भारत में ईद का त्योहार आज मनाया जा रहा है. महीने भर के रोजे का अंत ईद का त्योहार के साथ ही होता है. ईद का त्योहार आखिरी रोजे के बाद मनाजा जाता है। खुशियों का त्योहार ईद-उल-फितर चांद दिखाई देने के अगले दिन मनाया जाता है। इस त्योहार को मुस्लिम समुदाय बड़े ही धूम धाम से मनाते हैं। ये पर्व रमजान के बाद शव्वाल की पहली तारीख को मनाया जाता है। सुबह की नमाज से इसकी शुरुआत हो जाती है। भारत में ईद 14 मई को मनाए जाएगा।
ईद का महत्व
इस्लामिक मान्यताओं अनुसार रमजान के महीने में पवित्र किताब कुरान आई थी। माना जाता है कि पैगम्बर मोहम्मद ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थी जिसकी खुशी में सभी लोगों ने एक दूसरे का मुंह मीठा करके खुशियां मनाई थी। कहा जाता है कि तभी से इस दिन मीठी ईदी या ईद-उल-फितर मनाए जाने की परंपरा शुरू हो गई है। ये दिन पुराने गिले शिकवे भुलाने का दिन है। इस दिन लोग एक दूसरे के गले मिलकर ईद मुबारक कहते हैं।
चांद का दिखना होता है जरूरी
ईद का त्योहार हमेशा से ही चांद पर निर्भर करता है। ऐसे में चांद का दिखना जरूरी होता है। चांद देखने के साथ ही यह त्योहार मनाया जाता है।
कैसे मनाई जाती है ईद
इस दिन सुबह उठकर सबसे पहले एक खास नमाज अदा की जाती है और फिर दोस्तों, रिश्तेदारों को ईद की बधाई देते हैं। ईद वाले दिन सुबह सुबह नहा-धोकर नए कपड़े पहन कर मस्जिदों में लोग नमाज के लिए जाते हैं, जहां अल्लाह की बारगाह में अपने गुनाहों की माफी मांगी जाती है और मुस्लिम लोग अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं कि उन्होंने रोजे रखने का अवसर और शक्ति प्रदान की। । इस मौके पर अमन-चैन की दुआ भी की जाती है। इसके अलावा ईद के दिन गरीबों, बेसहारा लोगों को जकात दी जाती है।
ईद पर जकात है जरूरी
दान-दक्षिणा को जकात कहा जाता है। रमजान में रोज़े रखने के दौरान भी जकात दी जाती है लेकिन ईद के दिन नमाज से पहले गरीबों में जकात या फितरा देना जरूरी माना गया है। अल्लाह के रसूल का फरमान है कि ईद की नमाज से पूर्व सदका-ए-फितर अदा करना चाहिए। जिस व्यक्ति के पास साढ़े सात तोला सोना या 52 तोले से अधिक चांदी या इनके बराबर जरूरत से ज्यादा धन हो उनके लिए जकात फर्ज है।
अगर परिवार में पांच सदस्य हैं और सभी नौकरी या बिजनेस के जरिए पैसा कमा रहे हैं तो परिवार के सभी सदस्यों पर जकात देना फर्ज माना जाता है। फितरा जकात से अलग होता है। ये वो रकम होती है जो संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देते हैं। जकात और फितरे में फर्क ये है कि जकात देना सभी के लिए जरूरी होता है, वहीं फितरा देना जरूरी नहीं है। जकात में 2.5 फीसदी देना तय होता है जबकि फितरे की कोई सीमा नहीं। इंसान अपनी हैसियत के हिसाब से कितना भी फितरा दे सकता है।
सेंवई इस दिन का मुख्य पकवान
इस दिन मुस्लिम परिवारों में मीठे पकवान बनाए जाते हैं। जिसमें सेंवई प्रमुख है। मीठी सेंवई घर आए मेहमानों को खिलाई जाती है। साथ ही दोस्तों और रिश्तेदारों को भी ईदी बांटी जाती है।
जानिए ईद त्योहार से जुड़ीं 10 खास बातें
ईद उल-फितर को मीठी ईद भी कहते हैं. आइए जानते हैं ईद से जुड़ी कुछ ऐसी ही और दिलचस्प बातें।
इस्लामिक मान्यता के मुताबिक, रमजान महीने के अंत में ही पहली बार कुरान आई थी. रमजान महीने के दौरान मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हुए रोजा रखते हैं. रमजान में दान देने का भी खास महत्व है।
ईद उल-फितर की नमाज को सलत अल-ईद भी कहा जाता है. ये नमाज ईद के मौके पर की जाती है. शिया और सुन्नी मुसलमान ये नमाज अपने-अपने तरीके से अदा करते हैं।
अरबी में ईद उल-फितर का अर्थ है ‘रोजा तोड़ने का त्योहार.’ ईद तब तक शुरू नहीं होती है जब तक कि आसमान में चांद दिखाई नहीं दे जाता. आज भी कई मुस्लिम परंपरागत रूप से तब तक ईद की शुरुआत नहीं मानते हैं जब तक चांद नजर ना जाए।
पूरी दुनिया में ईद उल-फित्र का त्योहार अलग-अलग दिन और समय पर मनाया जाता है. ये उस देश में चांद दिखने के समय पर निर्भर करता है. कई देशों के मुसलमान अपने स्थानीय समय की बजाय मक्का में चांद दिखने के हिसाब से ही ईद का त्योहार मनाते हैं।
रमजान और ईद उल-फितर हर जगह ग्रेगोरियन तारीख के हिसाब से अलग-अलग मनाए जाते हैं. इस्लामिक कैलेंडर चंद्र चक्र पर आधारित है जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर सौर चक्र पर आधारित है।
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, चांद दिखने के साथ ही नए महीने की शुरूआत होती है. आमतौर पर नया चांद हर 29 दिनों में दिखाई देता है. इसलिए चंद्र महीने ग्रेगोरियन महीनों की तुलना में कुछ कम होते हैं. यही वजह है कि पिछले साल की तुलना में हर साल रमजान 10 दिन पहले पड़ जाता है।
ईद का त्योहार आमतौर पर तीन दिनों तक रहता है लेकिन यह कैलेंडर पर निर्भर करता है कि ये तीन दिन किस हिसाब से पड़ रहे हैं. अगर ये दिन हफ्ते के बीच में पड़ रहे हैं तो मुसलमान ईद का त्योहार सप्ताहांत तक मनाते हैं।
ईद की सुबह, मुसलमान ग़ुस्ल करने के बाद नए कपड़े पहनते हैं. ग़ुस्ल एक रस्म होती है जिसमें शरीर की कुछ खास तरीकों से सफाई की जाती है. ग़ुस्ल के बाद ईद की सुबह की नमाज अदा की जाती है. कुछ मुसलमान इस दिन पारंपरिक पोशाक पहनते हैं।
ईद के दिन मुसलमानों न केवल स्वादिष्ट भोजन की दावत देते हैं, बल्कि इस दिन एक-दूसरे को तोहफे भी देते हैं. इनमें पैसे, सामान, घर की चीजें से लेकर फूल तक होते हैं जिन्हें ‘ईदी’ कहा जाता है. खासतौर से बच्चों में इस दिन का खास उत्साह रहता है।
ईद के दिन बड़ी संख्या में मुसलमान एक दूसरे को ‘ईद मुबारक’ की बधाई देने के लिए इकट्ठा होते हैं. हालांकि इस बार कोरोना वायरस की वजह से मुस्लिम धर्मगुरुओं ने लोगों को अपने घरों में ही ईद मनाने की सलाह दी है।
ईद में रखें इन बातों का ध्यान
हर साल ईद का त्योहार काफी धूमधाम से मनता है, हालांकि, इस साल कोरोना वायरस महामारी ने सभी को घरों में रहने पर मजबूर कर दिया है। देश इस वक्त कोरोना की ख़तरनाक दूसरी लहर से जूझ रहा है, जिसने लाखों लोगों की जान ले ली है। ऐसे में ईद के साथ सभी त्योहार अपने-अपने घरों में सिर्फ अपने परिवार के साथ मनाएं। नमाज़ घरों में ही पढ़ें और कोशिश करें कि घर से बाहर न निकलना पड़े। घर पर रहकर ही आप खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित रख पाएंगे।
ईद खुशी मनाने और दिल की गहराइयों से हंसने का दिन है. हमारे ऊपर अल्लाह की रहमतों के आभारी होने का दिन है. खुदा करे ये ईद आपके लिए खास हो और बहुत सारे खुशी के पल हमेशा के लिए लाए!
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आज है अक्षय तृतीया, जानिये पूजा विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त समेत सभी जरूरी बातें
अक्षय तृतीया, ये एक ऐसी तिथि है जिसमें कोई भी शुभ कार्य करने के लिए या कोई नयी वस्तु की खरीदारी के लिए पंचांग देखकर शुभ मुहूर्त निकालने की जरूरत नहीं पड़ती है।
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि बेहद ही शुभ मानी जाती है। जिसे अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। इस दिन कोई भी शुभ काम करने के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं पड़ती। विवाह के लिए भी ये दिन शुभ माना गया है। कहा जाता है कि इस दिन किये गये कार्य सफल होते हैं और उनमें किसी भी तरह की बाधाएं नहीं आती। जानिए अक्षय तृतीया का महत्व, पूजा विधि और मुहूर्त…
अक्षय तृतीया महत्त्व
मान्यता है कि भगवान विष्णु के छठे अवतार श्री परशुराम का जन्म भी अक्षय तृतीया को ही हुआ था।
सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ भी इसी दिन हुआ था।
भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण और हयग्रीव का अवतरण भी इसी तिथि में हुआ माना जाता है।
मान्यता है कि वेद व्यास एवं श्रीगणेश द्वारा महाभारत ग्रन्थ के लेखन का प्रारंभ भी इसी तिथि से हुआ था।
ये महाभारत के युद्ध का समापन दिन भी माना जाता है।
द्वापर युग का समापन भी अक्षय तृतीया पर हुआ माना गया है।
मान्यताओं अनुसार माँ गंगा का धरती पर आगमन इस शुभ तिथि पर ही हुआ था।
भक्तों के लिए तीर्थस्थल श्री बद्रीनाथ के कपाट भी इसी तिथि को खोले जाते हैं।
साल में केवल एक बार वृन्दावन के श्री बांके बिहारी जी मंदिर में श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं।
बेहद ही शुभ है अक्षय तृतीया की तिथि
ये एक ऐसी तिथि है जिसमें कोई भी शुभ कार्य करने के लिए या कोई नयी वस्तु की खरीदारी के लिए पंचांग देखकर शुभ मुहूर्त निकालने की जरूरत नहीं पड़ती है। मान्यता है कि इस दिन पितृ पक्ष में किये गए पिंडदान का अक्षय परिणाम मिलता है। इस तिथि पर उपवास रखने, स्नान दान करने से भी अनंत फल की प्राप्ति होने की मान्यता है। इस व्रत से मिलने वाला फल कभी कम न होने वाला, न घटने वाला और कभी नष्ट न होने वाला होता है।
अक्षय तृतीया की पूजा विधि
इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना की जाती है। कई स्त्रियाँ अपने परिवार की समृद्धि के लिए इस दिन व्रत भी रखती हैं। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद श्री विष्णुजी और माँ लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत चढ़ाना चाहिए। फूल या श्वेत गुलाब, धुप-अगरबत्ती इत्यादि से इनकी पूजा अर्चना करनी चाहिए। नैवेद्य स्वरूप जौ, गेंहू या फिर सत्तू, ककड़ी, चने की दाल आदि का चढ़ावा चढ़ाना चाहिए। हो सके तो इस दिन ब्राह्मणों को भोजन जरूर कराएं। इस खास दिन पर इन चीजों का दान करना बेहद ही फलदायी माना गया है- फल-फूल, भूमि, जल से भरे घड़े, बर्तन, वस्त्र, गौ, कुल्हड़, पंखे, खड़ाऊं, खरबूजा, चीनी, साग, चावल, नमक, घी आदि।
अक्षय तृतीया पर करें ये काम
इस दिन के साफ-सफाई का विशेष ध्यान दें।
बाजार से 11 कौड़ियां लाकर इनका पूजन कर धन के स्थान में रख दें।
इस दिन सात्विक भोजन करें और कलह-कलेश से बचें।
इस दिन जरूरतमंद की मदद जरूर करें। इस दिन किये गये पुण्य कामों का फल कई गुना मिलता है।
इस दिन केसर और हल्दी से देवी लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
इस दिन आर्थिक तरक्की के लिए सोने या चांदी से बनी लक्ष्मी की चरण पादुका खरीदकर घर में रखें और इसकी नियमित पूजा करें।
अक्षय तृतीया मुहूर्त
14 मई अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त- 05:38 AM से 12:18 PM
अवधि- 06 घण्टे 40 मिनट
तृतीया तिथि प्रारम्भ- 14 मई 2021 को 05:38 AM बजे
तृतीया तिथि समाप्त- 15 मई 2021 को 07:59 AM बजे
अन्य शहरों में अक्षय तृतीया मुहूर्त
06:01 AM से 12:31 PM – पुणे
05:38 AM से 12:18 PM – नई दिल्ली
05:59 AM से 12:36 PM – अहमदाबाद
05:38 AM से 12:17 PM – नोएडा
05:38 AM से 12:18 PM – गुरुग्राम
05:38 AM से 12:19 PM – चण्डीगढ़
05:44 AM से 12:05 PM – चेन्नई
05:40 AM से 12:23 PM – जयपुर
05:44 AM से 12:12 PM – हैदराबाद
04:56 AM से 07:59 AM मई 15 तक – कोलकाता
06:04 AM से 12:35 PM – मुम्बई
05:55 AM से 12:16 PM – बेंगलूरु
अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का मुहूर्त
अक्षय तृतीया के दिन यानी 14 मई शुक्रवार को पूरे दिन सोने की खरीदारी कर सकते हैं। 14 मई को प्रात:काल में 05:38 बजे से अगले दिन 15 मई को प्रात: 05:30 बजे के मध्य कभी भी सोना या सोने के आभूषण खरीद सकते हैं। सोना खरीदने के लिए आपको कुल 23 घंटे 52 मिनट का समय है।
अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का चौघड़िया मुहूर्त
प्रातः मुहूर्त: 14 मई को प्रात: 05:38 बजे से सुबह 10:36 बजे तक।
अपराह्न मुहूर्त: शाम को 05:23 बजे से शाम 07:04 बजे तक।
अपराह्न मुहूर्त: दोपहर 12:18 बजे से दोपहर 01:59 बजे तक।
रात्रि मुहूर्त: रात 09:41 बजे से रात 10:59 बजे तक।
रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर): देर रात 12:17 बजे से 15 मई को प्रात: 04:12 बजे तक।
अक्षय तृतीया पर लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त
अक्षय तृतीया तिथि: 14 मई 2021, शुक्रवार
तृतीया तिथि आरंभ: 14 मई 2021, प्रात: 05 बजकर 38 मिनट
तृतीया तिथि समापन: 15 मई 2021,प्रात: 07 बजकर 59 मिनट
लक्ष्मी मंत्र
– ॐ सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:
– ॐ अमृत लक्ष्म्यै नम:
– ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम:
– ॐ ह्रीं ह्रीं श्री लक्ष्मी वासुदेवाय नम:
– लक्ष्मी नारायण नम:
– पद्मानने पद्म पद्माक्ष्मी पद्म संभवे तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्
– ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम:
– ॐ धनाय नम:
लक्ष्मी जी की आरती
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।।
ओम जय लक्ष्मी माता।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जगमाता।
सूर्य, चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।।
ओम जय लक्ष्मी माता।
दुर्गा रूप निरंजनी, सुख संपत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता।।
ओम जय लक्ष्मी माता।
तुम पाताल निवासनी, तुम ही शुभ दाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशनी, भवनिधि की त्राता।।
ओम जय लक्ष्मी माता।
जिस घर में तुम रहतीं,सब सद्गुण आता।
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता।।
ओम जय लक्ष्मी माता।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्तु न कोई पाता।
खान पान का वैभव सब तुमसे आता।।
ओम जय लक्ष्मी माता।
शुभ्र गुण मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता।।
ओम जय लक्ष्मी माता।
महालक्ष्मी जी की आरती जो कोई नर गाता।
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता।।
ओम जय लक्ष्मी माता।
लक्ष्मी माता की जय, लक्ष्मी नारायण की जय।
भगवान विष्णु की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥
कोई सपना न अधूरा हो, धन-धान्य और प्रेम से भरा हो जीवन, घर में हो मां लक्ष्मी का आगमन शुभ, कामयाबी कदम चूमती रहे, खुशियां आस-पास घूमती रहें, धन की हो भरमार, मिले अपनों का प्यार, ऐसा हो आपके लिए अक्षय तृतीया का त्योहार