हाल ही में मछली पालकों को प्रोत्साहित करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे कृषि (Agri) का दर्जा दिया है. राज्य सरकार मछली पालन करने वाले किसानों को इंटरेस्ट फ्री लोन की सुविधा दे रही है. साथ ही सब्सिडी और मछुवारों के लिए बीमा योजना भी सरकार की तरफ से मिलती है.
आज हम आपको एक बेहतरीन बिजनेस आइडिया (New Business Idea) के बारे में बता रहे हैं. इससे आप कम लागत में मोटी कमाई कर सकते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं मछली पालन (Fish Farming) के कारोबार के बारे में. बता दें कि वर्तमान में किसान सब्जी के अलावा मछली पालन पर भी ध्यान दे रहे हैं. सरकार भी मछली पालन के व्यवसाय को बढ़ावा दे रही है।
कोविड-19 के खतरे ने लोगों को स्वास्थ्य के प्रति पहले से ज्यादा जागरूक कर दिया है। शरीर की इम्यूनिटी पॉवर बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक काढ़ा, अंडा, मांस, मछली जैसे खाद्य पदार्थों का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए लोग मछली का सेवन करना पसंद करते हैं। मछलियों में ज्यादा प्रोटीन होने से इनकी मांग और कीमत हमेशा अच्छी बनी रहती है। भारत में 60 प्रतिशत लोग मछली का सेवन करना पसंद करते हैं। इन्हीं कुछ कारणों से बायो फ्लॉक मछली पालन व्यवसाय तेजी से पनप रहा है और भारतीय अर्थवयवस्था में मछली पालन उद्योग की हिस्सेदारी करीब 4.6 फीसदी से ज्यादा है।
जानें कैसे होगी कमाई?
अगर आप भी मछली पालन के व्यवसाय में हैं या फिर इसे शुरू करना चाह रहे हैं तो इसकी आधुनिक तकनीक आपको बंपर मुनाफा करवा सकती है. जी हां.. मछली पालन के लिए इन दिनों बायोफ्लॉक तकनीक काफी मशहूर हो रहा है. कई लोग इस तकनीक का इस्तेमाल करके लाखों में कमाई कर रहे हैं.
जानिए कैसे काम करता है तकनीक
बता दें कि Biofloc Technique एक बैक्टीरिया का नाम है. इस तकनीक के जरिए मछली पालन में काफी मदद मिल रही है. इसमें बड़े बड़े (करीब 10-15 हजार लीटर के) टैंकों में मछलियों को डाला जाता है. इन टैंकों में पानी डालने, निकालने, उसमें ऑक्सीजन देने आदि की अच्छी खासी व्यवस्था होती है. बायोफ्लॉक बैक्टीरिया मछली के मल को प्रोटीन में बदल देता है, जिसे मछलियां वापस खा लेती हैं, इससे एक-तिहाई फीड की बचत होती है. पानी भी गंदगी होने से बची रहती है. हालांकि, यह थोड़ा खर्चीला जरूर है लेकिन बाद में यह मुनाफा भी खूब देती है. नेशनल फिशरीज डेवलपमेंट बोर्ड (NFDB) के मुताबिक, अगर आप 7 टैंक से अपना कारोबार शुरू करना चाहते हैं तो इन्हें सेटअप करने में आपका करीब 7.5 लाख रुपये का खर्च आएगा. हालांकि, आप तालाब में मछली पालकर भी मोटी कमाई कर सकते हैं।
ऐसे समझें बायोफ्लॉक तकनीक
बायोफ्लॉक तकनीक एक आधुनिक व वैज्ञानिक तरीका है। बायोफ्लॉक तकनीक से किसान बिना तालाब की खुदाई किए एक टैंक में मछली पालन कर सकते हैं। बायोफ्लॉक तकनीक को अपनाने से कम पानी और कम खर्च में अधिक से अधिक मछली उत्पादन किया जा सकता है। इस तकनीकी में टैंक सिस्टम में बैक्टीरिया द्वारा मछलियों के मल और अतिरिक्त भोजन को प्रोटीन सेल में बदल कर मछलियों के खाने में बदल दिया जाता है। यह मुनाफा कमाने की एक बेहतरीन तकनीक है। इसमें खास बात यह है कि इस तकनीक में कई प्रजातियों की मछलियां पाली जा सकती हैं, जिनकी बाजार में अच्छी मांग होती है।
बायोफ्लॉक तकनीक में चारे का खर्चा आधा
बायोफ्लॉक तकनीक में मछलियां टैंकों में पाली जाती। मछली जो भी खाती है उसका 75 फीसदी वेस्ट( मल) निकालती है। वो वेस्ट( मल) उस पानी के अंदर ही रहता है और उसी वेस्ट को शुद्ध करने के लिए बायोफ्लॉक का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें बैक्टीरिया होता है जो इस वेस्ट को प्रोटीन में बदल देता है, जिसको मछली खाती है तो इस तरह से मछली के आधे चारे की बचत हो जाती है। यानि अगर तालाब में अगर चार बोरी चारा देना पड़ता है तो आपको बायोफ्लॉक विधि से दो ही बोरा चारा देना पड़ेगा।
बायोफ्लॉक और तालाब तकनीक में अंतर
बायोफ्लॉक तकनीक, तालाब तकनीक के मुकाबले सस्ती और लाभप्रद है। तालाब तकनीक में जहां बड़ी जमीन और कच्चे तालाब की आवश्यकता होती है। वहीं बायोफ्लॉक तकनीक में पानी का टैंक बनाकर मछली पालन किया जा सकता है। बायोफ्लॉक तकनीक में सीमेंट टैंक/ तारपोलिन टैंक, एयरेशन सिस्टम, विधुत उपलब्धता, प्रोबायोटिक्स, मत्स्य बीज की आवश्यकता होती है।
तालाब में सघन मछली पालन नहीं हो सकता क्योंकि ज्यादा मछली डालने पर तालाब का अमोनिया बढ़ जाता है और तालाब गंदा होने पर मछलियां मर जाती हैं। मछली पालकों को तालाब की हर समय निगरानी रखनी पड़ती है क्योंकि मछलियों को सांप और बगुला खा जाते हैं। जबकि बायोफ्लॉक वाले जार के ऊपर शेड लगाया जाता है। इससे मछलियां मरती भी नहीं है और किसान को नुकसान भी नहीं होता है। एक हेक्टेयर के तालाब में हर समय एक दो इंच के बोरिंग से पानी दिया जाता है जबकि बायो फ्लॉक विधि में चार महीने में केवल एक ही बार पानी भरा जाता है। गंदगी जमा होने पर केवल दस प्रतिशत पानी निकालकर इसे साफ रखा जा सकता है। टैंक से निकले हुए पानी को खेतों में छोड़ा जा सकता है।
बायोफ्लॉक तकनीक में मछली पालन
बायोफ्लॉक तकनीक में पंगेसियस, तिलापिया, देशी मांगुर, सिंघी, कोई कॉर्प, पाब्दा एवं कॉमन कार्प जैसी मछलियां पाली जा सकती है।
बायोफ्लॉक तकनीक से कमाई
देश की करीब 60 प्रतिशत आबादी मछली खाना पसंद करती है इसलिए बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन भारत में काफी लाभदायक सिद्ध हो सकता है। कम लागत, कम जगह व न्यूनतम श्रम लागत और कम से कम पानी का उपयोग करके बायोफ्लॉक पद्धति से मछली उत्पादन किया जा सकता है। इस तकनीकी से 10 हजार लीटर क्षमता के टैंक से लगभग छह माह में विक्रय योग्य 3.4 किंवटल मछली का उत्पादन कर अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। इस तरह वार्षिक शुद्ध लाभ 25 हजार रुपए एक टैंक से प्राप्त किया जा सकता है। यदि मंहगी मछलियों का उत्पादन किया जाये तो यह लाभ 4.5 गुना अधिक हो सकता है।
बायो फ्लॉक तकनीक में टैंक निर्माण की लागत
बायो फ्लॉक तकनीक में एक टैंक को बनाने में कितनी लागत आएगी वो टैंक के साइज के ऊपर होता है। टैंक का साइज जितना बड़ा होगा मछली की ग्रोथ उतनी ही अच्छी होगी और आमदनी भी उतनी अच्छी होगी। इस उद्योग से जुड़े लोगों के अनुसार एक टैंक को बनाने में 28 से 30 हजार रुपए का खर्चा आता है जिसमें उपकरण और लेबर चार्ज शामिल है। टैंक का साइज जितना बढ़ेगा कॉस्ट बढ़ती चली जाएगी।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा मछली पालको को दी जाने वाली सुविधा
मछली पालन करने के इच्छुक किसानों को छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से इंटरेस्ट फ्री लोन मिलेगा. इससे पहले छत्तीसगढ़ में मत्स्य पालन के लिए एक प्रतिशत ब्याज दर के साथ किसानों को लोन दिये जाते थे. जबकि तीन लाख रुपए तक तीन प्रतिशत ब्याज दर में मिलता था। पर अब छत्तीसगढ़ में मत्स्यपालन करने वाले किसानों को अब सहकारी विभाग से शून्य प्रतिशत ब्याज पर लोन दिया जायेगा। इसके साथ ही मछली पालन के लिए किसान किसी भी बैंक से केसीसी बनवा सकते हैं।
इसके साथ ही मत्स्यपालक किसानों को अब फ्री में बिजली दी जाएगी. पहले किसानों को 4.40 पैसे के देने पड़ते थे, पर अब उनके लिए यह मुफ्त कर दिया गय है. सरकार के इस फैसले से मत्स्य उत्पादन की लागत में प्रति किलो लगभग 10 रूपये की कमी आएगी. जिसका सीधा लाभ मत्स्य पालन व्यवसाय से जुड़े लोगों को मिलेगा ।
इतना मिलता है अनुदान
मत्स्य पालन को बढावा देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार 6.60 लाख रुपये तक की योजना दी जाती है. इसमें सब्सिडी भी मिलती है. सरकार इसके लिए सामान्य वर्ग के मत्स्य कृषकों को अधिकतम 4.40 लाख रूपये तथा अनुसूचित जाति जनजाति एवं महिला वर्ग के हितग्राहियों को 6.60 लाख रूपये तक का अनुदान दिया जाता है।
पांच लाख रुपए तक का बीमा
छतीसगढ़ में मछुवारों के लिए बीमा योजना भी सरकार की तरफ से मिलती है. इसके तहत बीमित मत्स्य कृषक की मृत्यु पर 5 लाख रूपये की दावा राशि का भुगतान किया जाता है। बीमारी की इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होने पर 25 हजार रूपये तक के इलाज की सुविधा का प्रावधान है।
सहकारी समितियों को आर्थिक लाभ
सहकारी समितियों के लिए भी तीन लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता जी जाएगी. सहकारी समितियों को मत्स्य पालन के लिए जाल, मत्स्य बीज एवं आहार के लिए 3 सालों में 3 लाख रूपये तक की सहायता दी जाती है. बायोफ्लाक तकनीकी से मत्स्य पालन को बढावा देने के लिए मत्स्य कृषकों को 7.50 लाख रूपए की इकाई लागत पर 40 प्रतिशत की अनुदान सहायता दिए जाने का प्रावधान है।
छत्तीसगढ़ सरकार की मछली पालन की जानकारी देने के लिए अधिकृत वेबसाइट
http://agriportal.cg.nic.in/fisheries/Fishhi/
केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना से नीली क्रांति
केंद्र सरकार ने पिछले दिनों आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज में मछली पालन क्षेत्र के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणा की है, जिसका लक्ष्य प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के तहत मछली पालन के टिकाऊ तरीके से नीली क्रांति लाना है। प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना का मुख्य उद्देश्य रोजगार के प्रत्यक्ष अवसर पैदा करना है। बायोफ्लॉक तकनीक को मछली पालन में नई नीली क्रांति यह मछली पालन का एक लाभदायक तरीका है और यह पूरी दुनिया में खुले तालाब में मछली पालन का बहुत अच्छा ऑप्शन बन गया है।
बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन में सब्सिडी
मत्स्य पालन विभाग ने इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए किसानों के प्रशिक्षण और सब्सिडी का भी प्रावधान किया है। भारत सरकार ने मछली पालन के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं। मछली पालन के लिए सरकार की तरफ से सामान्य वर्ग के लाभार्थियों को 40 प्रतिशत व एससी, एसटी समेत कमजोर वर्ग के लोगों के लिए 60 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है। इस प्रकार 5 लाख पर 3 लाख रुपए ( महिला, एससी, एसटी) राशि का प्रावधान है और सामान्य वर्ग को 2 लाख रुपए की राशि का प्रावधान है।